Published on Sep 29, 2021 Updated 0 Hours ago

दिल्ली की दीर्घावधि वायु प्रदूषण की समस्या और इससे निपटने के लिए नये अनुमोदित कानून पर एक नजर. 

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग

संसद के दोनों सदनों ने मॉनसून सत्र के पहले हफ़्ते में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम 2021 को मंजूरी दी जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और और इससे सटे आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता के प्रबंधन और निगरानी के लिए एक आयोग के गठन का प्रावधान है. 

इस बिल में इससे जुड़े एक अध्यादेश को रद्द कर केवल आयोग को ही क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन का अधिकार दिया गया है. दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या एक प्रभावी सरकारी तंत्र और ठोस क्षेत्रीय प्रयास के अभाव, वायु प्रदूषण के मूल कारण को लेकर अस्पष्टता और पर्याप्त सार्वजनिक आधारभूत संरचना में कमी (शहर में बसों की संख्या सार्वजनिक यातायात की जरूरत के मुकाबले आधी है) के कारण बद्तर हुई है. 

आयोग के गठन से यह अपेक्षा   

इस आयोग के गठन से यह अपेक्षा की जा रही है कि बीते सालों में वायु गुणवत्ता निगरानी और प्रबंधन को लेकर लक्षित राज्यों- एनसीआर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के बीच एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाले जाने का सिलसिला खत्म होगा. राज्यों के बीच सामंजस्य बनाने के लिए लंबे समय से राष्ट्रीय स्तर के प्राधिकरण की स्थापना की जरूरत महसूस की जा रही थी.   

इस आयोग के गठन से यह अपेक्षा की जा रही है कि बीते सालों में वायु गुणवत्ता निगरानी और प्रबंधन को लेकर लक्षित राज्यों- एनसीआर, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के बीच एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाले जाने का सिलसिला खत्म होगा.

देश की राजधानी नई दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगरों के पुंज में से एक है. महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने भी शहर की भयावह वायु गुणवत्ता से कोई राहत नहीं दी है क्योंकि इस साल के मार्च महीने में स्विस टेक्नोलॉजी कंपनी आईक्यू एयर की रिपोर्ट ने दिल्ली को साल 2020 में दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बताया है. शहर में वायु प्रदूषण यहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के साथ ही उनकी आर्थिक समृद्धि पर हानिकारक प्रभाव का कारण है. वायु प्रदूषण और उसके जटिल दुष्प्रभावों को कम करने के लिए बहुत हस्तक्षेपों के बावजूद राजधानी में कण पदार्थ का स्तर गंभीर वर्गीकरण से भी काफी ऊपर है. यह समस्या शीतकाल के दौरान और उससे पहले और भी गहरा जाती है जब हवाओं का बहाव धीमा होता है और प्रदूषण शहर की सतह के काफी गरीब जमा हो जाता है जिससे एक भूरी धुंध बन जाती है.           

दिल्ली के प्रदूषण की समस्या को समझने में साल 2016 में अहम प्रगति हासिल हुई जब आईआईटी कानपुर ने इस पर स्रोत विभाजन शोध किया और 2018 में द एनर्जी रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानी टेरी ने प्रदूषण को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारकों की पहचान के लिए एक अध्ययन किया. हालांकि यह अध्ययन बहुत प्रभावशाली नहीं थे. उनसे यह बात रेखांकित हुई कि पिछले कुछ सालों में दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता फसल और पराली जलाने, औद्योगिक प्रदूषण, वाहनों का धुआं, निर्माण कार्यों और पावर प्लांट समेत विभिन्न कारकों के कारण बदतर हुई है. सालों से इन चुनौतियों को दूर करने के प्रयासों के बावजूद, दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या और भी गहरी होती जा रही है. इस साल एक नई प्रणाली डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) के शुरू होने की उम्मीद है जिसके जरिए दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का पता लगाने की शुरुआत होने की उम्मीद है, जिसमें संभवत: नीतियों के आधार पर विशिष्ट कारकों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. यह प्रदूषण ट्रैकिंग मॉडल भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) द्वारा विकसित किया गया है जिसका उद्देश्य सही समय पर ज्ञात स्रोतों के योगदान का पता लगाना है जैसे वाहनों के टेलपाइप से होने वाला उत्सर्जन, सड़क की धूल और खेतों की आग.   

इस साल एक नई प्रणाली डिसीजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) के शुरू होने की उम्मीद है जिसके जरिए दिल्ली में वायु प्रदूषण के मुख्य स्रोतों का पता लगाने की शुरुआत होने की उम्मीद है, जिसमें संभवत: नीतियों के आधार पर विशिष्ट कारकों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.

वायु प्रदूषण से मुकाबला

वायु प्रदूषण के ख़िलाफ़ एक सम्मिलित और सुसंगत रणनीति बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि क्षेत्र के आर्थिक भूगोल की जटिलताओं को साधा जाए जो कुछ विशिष्ट इलाकों में तीव्र प्रदूषण की वजह बनता है. डीएसएस एक ऐसे साधन के रूप में विकसित किया जा रहा है जिससे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस बारीक अंतर को बेहतर रूप से समझने में सहयोग मिल सके. अल्प अवधि की समस्या के समाधान के लिए नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने, दिल्ली में प्रदूषण की गंभीर समस्या को सीमित करने के लिए सरकार को ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्राप) को शुरू करने और उसे लागू करने के निर्देश दिये थे, हालांकि इसे समग्र रूप से लागू नहीं किया गया. 

इसके बाद, 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) को लॉन्च किया गया जिसका अगले पांच साल का उद्देश्य प्रदूषण निगरानी को मजबूत करना और नागरिकों के बीच जागरूकता लाना था. हालांकि, फंडिंग के प्रावधानों और अनिवार्य कानूनी ढांचे के अभाव के कारण इस कार्यक्रम की आलोचना हुई. इसके अलावा ऑड-ईवन स्कीम जैसे नीतिगत समाधानों को लागू किया गया, जिनका उद्देश्य वाहनों की संख्या को कम करना था, लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण एक बारम्बार होने वाली दीर्घावधि समस्या है जिसके लिए लक्ष्य स्थापित कर समग्र रूप से कार्य करने की ज़रूरत है. कोविड 19 महामारी के बाद हालात सामान्य करना प्राथमिकता है, यह एक अवसर भी है नीति प्रक्रिया में शमन उपायों को शामिल करने का ताकि वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का लाभ एक साथ मिल सके. राज्यांतर्गत और अंतरराज्यीय रणनीति के जरिए ऐसे प्रयासों की ज़रूरत है जो वायु प्रदूषण पर कई हितधारकों का संज्ञान ले. लिहाज़ा तकनीकि हस्तक्षेप की पारस्परिक क्रिया और लक्षित, बहुस्तरीय और बहुआयामी निर्णय लेने का मज़बूत तंत्र एनसीआर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की आगे की राह स्थापित कर सकता है.

वायु प्रदूषण के ख़िलाफ़ एक सम्मिलित और सुसंगत रणनीति बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि क्षेत्र के आर्थिक भूगोल की जटिलताओं को साधा जाए जो कुछ विशिष्ट इलाकों में तीव्र प्रदूषण की वजह बनता है.

निगरानी, प्रबंधन और नीतियों में सामंजस्य बनाना आवश्यक 

इसके लिए हाल ही में पारित हुए बिल में केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, स्थानीय संगठनों और अन्य हितधारकों के बीच भागीदारी और सहयोगी तंत्र को विस्तार दिया गया है, जिससे एनसीआर में वायु प्रदूषण के समाधान के लिए स्थायी और समर्पित ढांचे के अभाव को पूरा किया जा सके. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संचालित स्टेटमेंट ऑफ ऑब्जेक्ट्स एंड रिज़न्स ऑफ द बिल के अनुसार सार्वजनिक भागीदारी, अंतरराज्यीय सहयोग, विशेषज्ञों को शामिल करना और शोध और नवाचार का कार्य जारी रखना आयोग की परिकल्पना है. दिल्ली में 2.2 मिलियन से अधिक बच्चे लाइलाज फेफड़ों की बीमारी के खतरे के साये में हैं जो इस बात का संकेत देता है कि दिल्ली में लोगों की जिन्दगियों पर वायु प्रदूषण का कितना असर हो रहा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव पर ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है. आयोग में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को शामिल करने की पेशकश की गई है ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषकर बुज़ुर्गों और बच्चों पर वायु प्रदूषण के प्रभाव के मूल्यांकन की जांच की जा सके. इसके अलावा, भविष्य में देश के विभिन्न राज्यों में वायु प्रदूषण के व्यापक समाधान के लिए आयोग के दायरे को बढ़ाने के बारे में भी विचार किया जा सकता है क्योंकि यह कोई स्थानीय मसला नहीं है.  

महत्वपूर्ण पर्यवेक्षण के बाद जो बात अब तक प्रकाश में आयी है वो प्राथमिकताओं को लेकर नीति निवारण का अभाव है, सही दिशा की तरफ पहला कदम वायु प्रदूषण के मुद्दे को राज्यों के उभरते उद्देश्यों के साथ संरेखित किया जा सकता है. इसलिए इस प्रयास से निगरानी, प्रबंधन और नीतियों में सामंजस्य बनाना आवश्यक है.  

दिल्ली में 2.2 मिलियन से अधिक बच्चे लाइलाज फेफड़ों की बीमारी के खतरे के साये में हैं जो इस बात का संकेत देता है कि दिल्ली में लोगों की जिन्दगियों पर वायु प्रदूषण का कितना असर हो रहा है और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव पर ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है. 

    

पर्यावरणविदों और नेताओं ने बिल के कुछ विशिष्ट प्रावधानों को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की है. इसमें प्रावधानों के उल्लंघन पर पांच साल तक की कैद और एक करोड़ रुपये के जुर्माने की बात है और यह सज़ा व्यक्ति और अन्य सेक्टरों के लिए अब भी बरकरार है, लेकिन कृषक समुदाय पर अब कारावास की सज़ा लागू नहीं हो रही है (धारा 14 के अनुसार). हालांकि आयोग किसानों से पराली जलाकर वायु प्रदूषण फैलाने के लिए ऐसे दर और ऐसे तरीके से, जो निर्धारित हैं (धारा 15) पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूल कर सकता है, जिसका किसानों और सांसदों ने विरोध किया. इसके अलावा, चूंकि आयोग को राज्य सरकारों और अन्य निकायों पर अधिकार हासिल है, इसलिए यह तर्क भी दिया गया कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया के विकेंद्रीकरण में कमी आयेगी.   

हालांकि, आयोग के बड़े क्षेत्राधिकार से राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) समेत विभिन्न एजेंसियों के संयोजित कार्यान्वयन के लिए मार्ग प्रशस्त होने की संभावना भी है.

आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चिंता के तर्क के आधार पर कारगर कार्ययोजना के लिए निगरानी की कोशिशों से आयी प्रगति का लाभ लेते हुए इसे सुगम बनाया जाना चाहिए. दृष्टिकोण और सहभागिता को सम्मिलित किये बिना आयोग खुद को अपने पूर्ववर्तियों की तरह की पायेगा- एक आदर्शपूर्ण सिद्धांत.   

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