Published on May 30, 2023 Updated 0 Hours ago
Colombo Security Conclave: क्या है ये सिक्योरिटी कॉन्क्लेव; और ऑस्ट्रेलिया के लिए इसके मायने?

ये लेख भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी: रक्षा का पहलू सीरीज़ का हिस्सा है.


जैसे-जैसे हिंद महासागर में चीन का असर और उसकी मौजूदगी बढ़ रही है, वैसे-वैसे भारत कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव (CSC) नाम के एक नये ‘मिनीलैट्रल (कुछ देशों के)’ ग्रुप के ज़रिए हिंद महासागर के द्वीपों और तटीय देशों के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ा रहा है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के स्तर पर आयोजित CSC, जो भारत, श्रीलंका, मालदीव और मॉरिशस के अलावा ऑब्ज़र्वर के तौर पर बांग्लादेश और सेशेल्स को एक साथ लाता है, अब संभवत: हिंद महासागर के क्षेत्र में काम करने वाला सबसे सक्रिय सुरक्षा केंद्रित ग्रुप है.  CSC के दायरे में समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद का मुक़ाबला और साइबर सुरक्षा शामिल हैं. ये छोटा सा ग्रुप द्वीपों और तटीय देशों को अपनी चुनौतियों का हल करने का मौक़ा मुहैया कराने के साथ-साथ भारत को हिंद महासागर में अपनी सामरिक चिंताओं का समाधान करने के लिए एक अवसर प्रदान करता है. पूर्वोत्तर हिंद महासागर में भागीदारी बढ़ाने की अपनी रणनीति के हिस्से के तहत ऑस्ट्रेलिया को सक्रिय रूप से CSC में हिस्सेदारी के बारे में विचार करना चाहिए. 

बांग्लादेश और सेशेल्स को CSC में शामिल होने के लिए न्योता दिया गया है और दोनों देशों के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने की उम्मीद है. 

सुरक्षा पर फोकस का विस्तार

CSC की शुरुआत 2011 में भारत, मालदीव और श्रीलंका के NSA और डिप्टी NSA के बीच त्रिपक्षीय बैठक से हुई. मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के साथ भारत के कुछ हद तक तनावपूर्ण संबंधों की वजह से 2014 से 2020 के बीच बैठक नहीं हो सकी. 

2020 में CSC के पुनर्जन्म और नये सिरे से ब्रैंडिंग के बाद से मॉरिशस को जहां सदस्य के रूप में जोड़ा गया है वहीं बांग्लादेश और सेशेल्स को ऑब्ज़र्वर के तौर पर शामिल किया गया है. 2021 में CSC का सचिवालय कोलंबो में बनाया गया. 

बांग्लादेश और सेशेल्स को CSC में शामिल होने के लिए न्योता दिया गया है और दोनों देशों के पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने की उम्मीद है. CSC में दोनों देशों की नुमाइंदगी पहले से ही उनके NSA स्तर के अधिकारियों के द्वारा की जा रही है और उन्होंने CSC के सुरक्षा पर केंद्रित अभ्यासों में भागीदारी की है. वैसे तो दोनों देशों में चीन को लेकर एक ‘संतुलित’ विदेश नीति का नज़रिया सुनिश्चित करने की कोशिश के मामले में झिझक है लेकिन CSC की सदस्यता के ज़रिए क्षेत्रीय सहयोग में बढ़ोतरी का फ़ायदा उनकी हिचकिचाहट से ज़्यादा होने की उम्मीद है.  

वैसे तो CSC का दायरा मूल रूप से समुद्री सुरक्षा पर केंद्रित है लेकिन सदस्य देशों के द्वारा जिन अलग-अलग सुरक्षा चुनौतियों का सामना किया जा रहा है और सहयोग की ज़रूरत की वजह से इस ग्रुप का कार्य क्षेत्र बढ़ गया है. मार्च 2022 में CSC ने पांच बुनियादों पर आधारित एक एजेंडे को अपनाया: समुद्री रक्षा एवं सुरक्षा; आतंकवाद एवं कट्टरपंथ का मुक़ाबला; तस्करी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध से लड़ाई; साइबर सुरक्षा एवं महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीक की रक्षा; और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत. 

CSC की सीमित सदस्यता और दायरे का असर NSA और डिप्टी NSA के स्तर पर नियमित रूप से CSC की बैठकों के साथ-साथ सुरक्षा पर केंद्रित अभ्यासों में दिख चुका है.

इस ग्रुप ने नियमित तौर पर सुरक्षा केंद्रित अभ्यासों को आयोजित करके CSC के तहत व्यावहारिक सहयोग को शुरू किया है. जुलाई 2021 से CSC के अभ्यासों में समुद्री तलाश एवं राहत; साइबर सुरक्षा; तटीय सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़े मामलों की छानबीन को शामिल किया गया है. नवंबर 2021 में भारत, श्रीलंका और मालदीव ने मालदीव में 15वां दोस्ती अभ्यास आयोजित किया जिसमें बांग्लादेश और सेशेल्स ऑब्ज़र्वर के तौर पर शामिल थे. इसके बाद भारत, श्रीलंका और मालदीव ने CSC के तत्वावधान में अरब सागर में अपना पहला साझा अभ्यास आयोजित किया. 

मार्च 2022 में NSA स्तर की बैठक में भारत के NSA अजित डोभाल ने चार सदस्य देशों के कोस्ट गार्ड के प्रमुखों और ड्रग तस्करी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों के ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप को मिलने के लिए कहा. उन्होंने ये भी कहा कि सहयोग को संस्थागत रूप देने के लिए एक ‘स्पष्ट उद्देश्यों के चार्टर’ के साथ CSC का एक ‘ठोस रोडमैप’ होना चाहिए.

चुनौतियां 

CSC को अपना असर बढ़ाने के लिए कई प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने की आवश्यकता है. सबसे पहले, अगर CSC अपनी सदस्यता का विस्तार करता है तो उसे हिंद महासागर क्षेत्र के दूसरे बहुपक्षीय समूहों (मल्टीलेटरल ग्रुप) के काम की नक़ल नहीं करनी चाहिए. CSC की सीमित सदस्यता और दायरे का असर NSA और डिप्टी NSA के स्तर पर नियमित रूप से CSC की बैठकों के साथ-साथ सुरक्षा पर केंद्रित अभ्यासों में दिख चुका है. 

CSC में शामिल सभी देश हिंद महासागर के दो क्षेत्रीय समूहों- इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और इंडियन ओशन नेवल सिंपोज़ियम (IONS) के सदस्य हैं. लेकिन IORA और IONS के बीच तालमेल की कमी ने इन संस्थानों के असरदार ढंग से काम-काज में बाधा डाली है. तालमेल को बढ़ावा देने के लिए CSC ऑब्ज़र्वर के तौर पर बारी-बारी से IORA और IONS की अध्यक्षता करने वाले देशों को शामिल कर सकता है. 

दूसरा, जब तक CSC भागीदार देशों के सिस्टम के भीतर ख़ुद को बेहतर संस्थागत रूप नहीं देता है तब तक वो घरेलू राजनीतिक बदलावों से असुरक्षित रहेगा. CSC को चाहिए कि वो ख़ुद को किसी देश की सरकार में बदलाव के असर से अलग करे. इसके लिए CSC वरिष्ठ अधिकारी के स्तर पर वर्किंग ग्रुप बना सकता है. 

CSC अपने ऑब्ज़र्वर देशों की संख्या का विस्तार कर सकता है ताकि ऑस्ट्रेलिया समेत हिंद महासागर के दूसरे देशों को शामिल किया जा सके. 

तीसरा, चूंकि CSC ने पहले के भारत-श्रीलंका-मालदीव समुद्री सुरक्षा संवाद की जगह ले ली है, ऐसे में भारत मौजूदा समय में CSC में शामिल दूसरे पांच देशों में से किसी के साथ भी नियमित और विशेष द्विपक्षीय समुद्री सुरक्षा बैठक का आयोजन नहीं करता है. इसलिए CSC में साझा समुद्री चिंताओं पर ध्यान देने को सुनिश्चित करने में CSC की सहायता करने के लिए भारत सभी द्वीपों और तटीय देशों के साथ द्विपक्षीय समुद्री सुरक्षा बैठकों की शुरुआत कर सकता है. 

ऑस्ट्रेलिया के लिए भूमिका 

एक और चुनौती CSC में भारत की दबदबे वाली भूमिका है जो कुछ सदस्यों के लिए संवेदनशील मामला हो सकता है क्योंकि वो CSC को चीन विरोधी के रूप में नहीं देखना चाहते हैं. इस वजह से CSC में शामिल छोटे देशों के द्वारा संवेदनशील सुरक्षा के मुद्दों पर सहयोग करने की तत्परता में कमी आती है. इन चिंताओं को विशेष मुद्दों पर अभ्यास की मेज़बानी करने वाले दूसरे भागीदारों के द्वारा कम किया जा सकता है जिसकी भारत ने पहले अगुवाई की थी.

ग्रुप के अधिक महत्वाकांक्षी होने के साथ सदस्य देशों ने समान विचारधारा वाले देशों की भागीदारी का विस्तार करने के फ़ायदों पर प्रकाश डाला है. CSC अपने ऑब्ज़र्वर देशों की संख्या का विस्तार कर सकता है ताकि ऑस्ट्रेलिया समेत हिंद महासागर के दूसरे देशों को शामिल किया जा सके. 

उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया CSC के सदस्यों को ट्रेनिंग मुहैया कराने के लिए CSC के ज़रिए काम करके और सुरक्षा पर केंद्रित अभ्यासों की मेज़बानी करके भारत की कोशिशों को पूरा कर सकता है. ऑस्ट्रेलिया किसी ख़ास मुद्दे पर भी CSC के साथ काम करके हिंद महासागर के द्वीपों और तटीय देशों के भीतर क्षमता निर्माण को बढ़ा सकता है. CSC की पांच बुनियादों पर ऑस्ट्रेलिया के अनुभव और उसकी विशेषज्ञता का भारत समेत CSC के देशों के द्वारा स्वागत किए जाने की उम्मीद है.         

फरवरी 2022 में ऑस्ट्रेलिया सरकार के द्वारा पूर्वोत्तर हिंद महासागर में भागीदारी बढ़ाने के एलान के बाद ऑस्ट्रेलिया इस बात पर ध्यान दे रहा है कि वो कैसे सबसे अच्छे ढंग से इस क्षेत्र के साथ सहयोग कर सकता है. CSC के लिए समर्थन ऐसा करने का एक तरीक़ा हो सकता है.


ये लेख ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विभाग के समर्थन से ऑस्ट्रेलिया इंडिया इंस्टीट्यूट के रक्षा कार्यक्रम के तहत लिखा गया था. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के हैं.


विराज सोलंकी लंदन में स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडीज़ (IISS) में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए रक्षा, रणनीति और कूटनीति के रिसर्च एसोसिएट हैं.

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