आज के दौर की बेहद बुरी तरह बटीं और विवादित साइबर दुनिया में भारत ने अपनी साइबर कूटनीति के ज़रिए सहयोग और साझेदारी का एक ख़ास मानक पेश किया है. आज जब तमाम देशों की सरकारी संस्थाएं तकनीक़ी तरक़्क़ी को ग़लत मक़सद से इस्तेमाल करने की कोशिशें कर रही हैं, तब भारत ने दुनिया को दिखा दिया है कि तकनीक़ का इस्तेमाल मानवता की बेहतरी के लिए भी किया जा सकता है. बहुपक्षीय सहयोग और द्विपक्षीय संपर्कों की ताक़त का इस्तेमाल करते हुए, भारत की साइबर कूटनीति, साइबर क्षेत्र में एक नियमों पर आधारित व्यवस्था बनाने की कोशिश कर रही है. G20 की अध्यक्षता ने भारत को एक और मौक़ा दिया है, जिससे वो इस सहयोगात्मक नज़रिये का इस्तेमाल एक लचीली साइबर दुनिया बनाने के लिए कर सके.
साइबर क्षेत्र आज की तारीख़ में एक आम बात और रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हो गई है. साइबर दुनिया पर मानवता की निर्भरता ने ग़लत इरादे रखने वालों को साइबर हमलों के ज़रिए इसका दुरुपयोग करने का भी मौक़ा दिया है.
साइबर क्षेत्र आज की तारीख़ में एक आम बात और रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हो गई है. साइबर दुनिया पर मानवता की निर्भरता ने ग़लत इरादे रखने वालों को साइबर हमलों के ज़रिए इसका दुरुपयोग करने का भी मौक़ा दिया है. 2007 में जब रूसी और रूस समर्थित हैकर्स ने एस्टोनिया को हिला देने वाला साइबर हमला किया था, उसके बाद से ही ‘हाइब्रिड युद्ध’ के ज़रिए साइबरस्पेस का इस्तेमाल भू-राजनीतिक प्रतिद्वंदिताओं से निपटने के लिए किया जाता रहा है. साइबर हमलों की धमकियों के अलावा, बढ़ते साइबर अपराध, साइबर तकनीक की मदद से कारोबारी जासूसी और हैकर्स द्वारा हमला करके बदले में वसूली करने की घटनाओं ने साइबर दुनिया को अस्थिर बना दिया है.
इस प्रतिद्वंदिता और संघर्ष के उलट, जब से दुनिया एक तरफ़ पूर्वी मोर्चे यानी चीन और रूस और दूसरी तरफ़ अमेरिका और यूरोप की अगुवाई वाले पश्चिमी ख़ेमे में बंटी है, तब से साइबर सहयोग बढ़ाने की राह निकालने की कोशिशें अक्सर नाकाम होती रही हैं. भारत की साइबर और तकनीक़ी कूटनीति इसी माहौल में विकसित हुई है. इसका ज़ोर, a) कौशल और क्षमता निर्माण, b) सूचना के लेन-देन, और c) राष्ट्रीय विकास के लिए तकनीक उपलब्ध कराने पर रहा है.
कौशल और क्षमता का निर्माण
बढ़ते हुए साइबर ख़तरों की वजह से, क़ानून व्यवस्था संभालने वाली राष्ट्रीय संस्थाओं के लिए अपने कौशल और तकनीक़ी क्षमताओं को मज़बूत बनाना ज़रूरी कर दिया है. हालांकि, बहुत सी विकासशील डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के पास ऐसा करने के लिए ज़रूरी तकनीक़ी ज्ञान और वित्तीय संसाधन नहीं हैं. इस कमी को पहचान कर भारत ने अपनी तकनीक़ी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए वियतनाम, बांग्लादेश और मोरक्को जैसे देशों के साथ काम किया है, ताकि अपनी साइबर जानकारी को उनसे साझा कर सके. इसके अलावा भारत ने कई देशों में साइबर सुरक्षा के लिए सेंटर ऑफ एक्सेलेंस (CoE) भी स्थापित किए हैं.
भारत ने साइबर सुरक्षा के मामले में G20 देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में भी केंद्रीय भूमिका अदा की है. जून 2023 में भारत ने G20 के ‘साइबर सिक्योरिटी एक्सरसाइज़ फ़ॉर बैंकिंग सेक्टर’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेज़बानी की थी.
भारत अपनी प्रमुख विदेशी सहायता पहल यानी इंडियन टेक्निकल ऐंड इकॉनमिक को-ऑपरेशन (ITEC) कार्यक्रम के तहत साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण भी दे रहा है. नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कानपुर और सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस अकादेमी जैसे कई भारतीय अकादेमिक संस्थान भी ITEC कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों को ट्रेनिंग देते हैं. भारत ने ग्लोबल फोरम ऑन साइबर एक्सपर्टाइज़ जैसे बहुपक्षीय मंचों का इस्तेमाल भी अपनी बेहतरीन साइबर क्षमताएं साझा की हैं. जैसे कि ‘साइबर सुरक्षित भारत इनिशिएटिव’. इसके अतिरिक्त भारत ने G20 के मंच का इस्तेमाल करते हुए डिजिटल इकॉनमी वर्किंग ग्रुप (DEWG) के ज़रिए डिजिटल स्किल की थीम को बढ़ावा देने की कोशिश की है.
सूचना का आदान-प्रदान
साइबर ख़तरों से निपटने का एक अहम पहलू, ख़तरे की जानकारी को संबंधित देश की सरकारी एजेंसियों से साझा करना है. भारत के अपने घरेलू अनुभव ने इस नज़रिए को इंडियन साइबरक्राइम को-ऑर्डिनेशन सेंटर की स्थापना और रैनसमवेयर और मैलवेयर से मुक़ाबला करने के लिए रेफ़रेंस डेटाबेस के तौर पर प्रस्तावित नेशनल मैलवेयर रिपॉज़िटरी की स्थापना जैसे क़दमों से रेखांकित किया है. आज भारत अपने इसी अनुभव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहता है. पिछले साल भारत की मेज़बानी में हुए कई वैश्विक सम्मेलनों जैसे कि हाल ही में हुआ ‘NFT, AI और मेटावर्स के दौर में अपराध और साइबर सुरक्षा पर G20 सम्मेलन’, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद निरोधक समिति की विशेष बैठक और इंटरपोल की 90वीं महासभा की बैठक के दौरान भारतीय अधिकारी सूचना आपस में साझा करने की अहमियत पर ज़ोर देते रहे हैं. भारत कई अंतरराष्ट्रीय तकनीक़ी मंचों में भी ज़ोर-शोर से भाग लेता रहा है. जैसे कि अमेरिका की अगुवाई वाला इंटरनेशनल काउंटर रैनसमवेयर इनिशिएटिव (CRI), संयुक्त राष्ट्र के समर्थन वाल इंटरनेशनल टेलीकॉम यूनियन का इंटरनेशनल मल्टीलैटरल पार्टनरशिप अगेंस्ट साइबर थ्रेट, इंटरपोल का ग्लोबल कॉम्प्लेक्स फॉर इनोवेशन और फोरम ऑफ इन्सिडेंट रिस्पॉन्स ऐंड सिक्योरिटी टीम्स, जो कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीमों का एक समूह है.
भारत ने साइबर सुरक्षा के मामले में G20 देशों के बीच सहयोग बढ़ाने में भी केंद्रीय भूमिका अदा की है. जून 2023 में भारत ने G20 के ‘साइबर सिक्योरिटी एक्सरसाइज़ फ़ॉर बैंकिंग सेक्टर’ पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेज़बानी की थी. इस सम्मेलन में बैंकिंग और वित्तीय सेक्टर के सामने खड़े ख़तरों की चर्चा होती है और इनसे निपटने की ड्रिल की जाती है. उल्लेखनीय है कि भारत, साइबर सुरक्षा के ढांचे में संभावित कमियों का पता लगाने के लिए सिम्युलेशन एक्सरसाइज़ करने की पुरज़ोर वकालत करता रहा है. फरवरी 2023 में भारत ने नई दिल्ली में G20 देशों के लिए इसी तरह की ड्रिल और टेबलटॉप एक्सरसाइज़ आयोजित की थीं. CRI में भारत नेटवर्क रेज़िलिएंस वर्किंग ग्रुप की अगुवाई करता है. वहां भारत ने सितंबर 2022 में वर्चुअल रैनसमवेयर ड्रिल आयोजित की थी, ताकि किसी रैनसमवेयर के हमले से निपटने की भागीदार देशों की क्षमताओं का परीक्षण किया जा सके.
राष्ट्रीय विकास के लिए तकनीक़ी मदद देना
एक विकासशील अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत के अनुभव ने राष्ट्रीय विकास के लिए तकनीक के इस्तेमाल को लेकर उसका नज़रिया बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है. डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) के मामले में भारत की पहल और अग्रणी भूमिका रही है. भारत ने पहचान, भुगतान और डेटा पर ध्यान केंद्रित करके अपने नागरिकों के लिए स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, सब्सिडी, टैक्स के मामले, बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं से जुड़ी सरकारी सेवाएं हासिल करने का अनुभव आसान बनाने में काफ़ी मदद दी है. यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) और को-विन टीकाकरण पोर्टल जैसे मंच दुनिया के सबसे प्रमुख नागरिक सेवा देने वाले मंच बन चुके हैं.
भारत की साइबर और तकनीक़ी कूटनीति ने कामयाबी से G20 का दायरा भी बढ़ा दिया है और अब वो डिजिटल अर्थव्यवस्था के कामकाज को चलाने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाला संगठन बन गया है.
इसीलिए, DPI के मामले में भारत का अनुभव बहुत सस्ती लगात में दूरगामी असर वाला तकनीक़ी मॉडल मुहैया कराता है, जिसकी मदद से कई विकासशील देश पुरानी व्यवस्थाओं को छोड़कर डिजिटल युग में छलांग लगा सकते हैं. G20 के डिजिटल इकॉनमी वर्किंग ग्रुप (DEWG) के ज़रिए भारत ने न केवल DPI के मामले में अपना तजुर्बा G20 के अन्य देशों से साझा किया है, बल्कि उसने ग़ैर G20 देशों को DPI देने के लिए पूंजी जुटाने की संभावनाएं तलाशी हैं. अन्य देशों तक इस मामले में पहुंच बढ़ाकर भारत, विकासशील देशों की डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं को इनोवेट करने, ख़ुद को ढालने और मुक्त स्रोतों से उपलब्ध तकनीकों को लागू करने में मदद कर रहा है, जिससे वो सिर्फ़ तकनीक हासिल करने वाले देश बनकर न रह जाएं. क्योंकि, जब विकसित देश एशिया और अफ्रीका के देशों को आर्थिक सहायता देते हैं, तो उनके साथ ग्लोबल नॉर्थ के रिश्ते ऐसे ही रहे हैं.
निष्कर्ष
विकसित और विकासशील देशों के बीच पुल के तौर पर भारत ने दिखाया है कि बड़े भू-राजनीतिक टकराव का हिस्सा बनने के बजाय, साइबर लचीलापन निर्मित करने के ज़्यादा फ़ायदे हैं और इससे साइबर दुनिया की स्थिरता भी बढ़ेगी. भारत की साइबर और तकनीक़ी कूटनीति ने कामयाबी से G20 का दायरा भी बढ़ा दिया है और अब वो डिजिटल अर्थव्यवस्था के कामकाज को चलाने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाला संगठन बन गया है. भारत, अमेरिका के साथ इनिशिएटिव इन क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) और यूरोपीय संघ के साथ ट्रेड ऐंड टेक्नोलॉजी काउंसिल जैसी भरोसेमंद तकनीक़ी साझेदारियों का निर्माण करके वैश्विक स्तर पर अपने साइबर संपर्क का विस्तार करना चाहता है.
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