Published on Dec 17, 2022 Updated 0 Hours ago

घरेलू राजनीति और चीन का प्रभाव, सीएससी के विकास में बाधा डालने में प्रमुख भूमिका अदा करेगा.

Colombo Security Conclave (CSC): गैर-पारंपरिक सुरक्षा और बाधाओं पर एक व्यापक दृष्टि

इस वर्ष कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव (सीएससी) के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पांचवीं बैठक में मॉरिशस का इसके चौथे सदस्य के रूप में स्वागत करते हुए बांग्लादेश और सेशेल्स को भी सदस्य के रूप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया.  सीएससी का यह विस्तार इस बात को दर्शाता है कि कैसे दक्षिण एशियाई और इंडियन ओशन (आईओ) अर्थात हिंद महासागर के देश, हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में गैर-पारंपरिक सुरक्षा (एनटीएस) और समुद्री खतरों का मुकाबला करने को तेजी से उत्सुक हैं. लेकिन सीएससी के इन देशों की सुरक्षा को बढ़ावा देने को लेकर इस उत्साह और फायदों के बावजूद, इसके संस्थानीकरण को मालदीव और श्रीलंका में क्षेत्र की घरेलू राजनीति, विशेष रूप से चाइना फैक्टर अर्थात चीन का कारक चुनौती दे रहा है.

सीएससी का यह विस्तार इस बात को दर्शाता है कि कैसे दक्षिण एशियाई और इंडियन ओशन (आईओ) अर्थात हिंद महासागर के देश, हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में गैर-पारंपरिक सुरक्षा (एनटीएस) और समुद्री खतरों का मुकाबला करने को तेजी से उत्सुक हैं.

गैर-पारंपरिक सुरक्षा: सीएससी का केंद्र 

सहयोग को बढ़ावा देने वाली एक स्थिर क्षेत्रीय संरचना हासिल करने के लिए एक सामान्य बुनियाद अर्थात आधार की खोज जरूरी है. दक्षिण एशिया जैसे जटिल क्षेत्र में अधिक सहयोग के लिए एनटीएस सामान्य आधार बन गया है, क्योंकि उस क्षेत्र में पारंपरिक सुरक्षा पर सहयोग करना एक संवेदनशील विषय है. 

छोटे द्वीप राष्ट्रों को सीमित संसाधनों और अपर्याप्त भौतिक क्षमताओं ने एनटीएस खतरों जैसे आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, मादक पदार्थों की तस्करी, समुद्री डकैती आदि का मुकाबला करने के लिए प्रमुख ताकतों, विशेषत: भारत पर भरोसा करने पर मजबूर किया है. इन मामलों में इन देशों ने भारत की ओर से आर्थिक, डिफेंस अर्थात सुरक्षा और मानवीय क्षेत्र में दी जाने वाली सहायता का स्वागत भी किया है. भारत और उसके पड़ोसी द्वीप देशों के आर्थिक कल्याण और व्यापार सुरक्षा के लिए समुद्री खतरों से प्रतिरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है. इसी वजह से सीएससी इन खतरों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिए इन देशों के लिए एक व्यवहार्य मंच बन गया है.

समुद्री क्षेत्रीय संरचना का महत्व भारत के लिए इसी बात से साफ हो जाता है कि वह आईओआर में एक शुद्ध-सुरक्षा प्रदाता होने का रुख अपनाता है और इसके तहत उस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास (एसएजीएआर) जैसी पहल मुहैया करवाता है. श्रीलंका और मालदीव के साथ भारत के क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और रक्षा सहायता ने उसकी स्थिति को और मजबूत किया है. आईओआर में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने की भारत की कोशिशें इसलिए भी तेज हो गई है, क्योंकि चीन जैसी बाहरी शक्ति इस क्षेत्र में अपनी समुद्री गतिविधियों को बढ़ा रही है.

मुख्यत: सीएससी को इसे गठित करने वाले देशों (भारत, श्रीलंका और मालदीव) की ओर से ही काफी महत्व दिया जाता है. सीएससी के झंडे तले ही एक सीएससी केंद्रीत ऑपरेशन तथा पहले ओशनोग्राफर्स अर्थात समुद्र विज्ञानी एवं हाइड्रोग्राफर्स सम्मेलन का आयोजन किया गया था. हाल ही में इसकी पांचवीं तथा छठी सुरक्षा बैठकें, समुद्री सुरक्षा को लेकर चिंताओं के आदान-प्रदान के साथ संपन्न हुईं. ये चिंताएं आमतौर पर सदस्य देशों को प्रभावित करने के साथ नए सदस्य देशों को शामिल करने के लिए भी विस्तारित की गई थी. इस बढ़ती प्राथमिकता और संस्थानीकरण के बावजूद, इसकी राह में संभावित बाधाएं हैं, जो इसकी प्रगति को रोक सकती हैं.

घरेलू राजनीति 

सीएससी को इस क्षेत्र की घरेलू राजनीति ही ज्यादा प्रभावित और परेशान करेगी. किसी भी देश में आमतौर पर सत्तारूढ़ दल बदलते ही राजनीतिक स्थिति भी बदल जाती है. मालदीव और श्रीलंका के मामले में तो यह सच ही है. राष्ट्रपति सोलिह के नेतृत्व वाला मालदीव का वर्तमान राजनीतिक माहौल, अब्दुल्ला यामीन की प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (पीपीएम) के विपरीत भारत के लिए अनुकूल है. मालदीव ने विशेष रूप से सीएससी के अधिकार क्षेत्र के तहत भारत की सहायता से समुद्री सुरक्षा को बढ़ाया है. इस बढ़ते हुए सहयोग को समुद्री डोमेन जागरूकता (एमडीए) में वृद्धि, समुद्री सुरक्षा जानकारी साझा करना, तटीय रडार प्रणाली का शुभारंभ, भारत के डोर्नियर विमान का हस्तांतरण, मालदीव के तट रक्षक में सुधार करने के लिए समझौता और हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण के लिए भारतीय जहाजों की उपस्थिति से समझा जा सकता है. अगर यामीन, राष्ट्रपति चुनाव को अपने पक्ष में करने में सफल हुए, तो इसमें यू-टर्न भी देखा जा सकता है. भारत विरोधी भावना को बढ़ाने के अलावा, ‘इंडिया आउटअभियान के कारण मालदीव की समुद्री क्षेत्र में सहायता करने की भारत की कोशिशों का राजनीतिकरण किया गया था. भारत की इन पहलों को अक्सर बढ़ती भारत विरोधी भावना के तहत आशंका की निगाहों से देखा गया था.

गोटबाया राजपक्षे ने श्रीलंका में एक समुद्रीफर्स्ट रिस्पॉन्डरअर्थात प्रथम उत्तरदाता के रूप में भारत की आवश्यकता को देखते हुए 2011 में सीएससी के गठन पर जोर दिया था. भारत ने वर्तमान आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका को 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी थी. इसके कारण कॉन्क्लेव के कुछ पहलुओं - जैसे कि समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा मिला. उदाहरण के लिए, भारत और श्रीलंका दोनों ने एक समुद्री बचाव समन्वय केंद्र (एमआरसीसी) बनाने का समझौता किया हैं; इसी तरह, भारत ने हाल ही में एक डोर्नियर विमान श्रीलंका को सौंपा था. हालांकि, आमतौर पर भारत की सहायता को नागरिक और खास रूप से वामपंथी दलों के बीच संदेह की नज़रों से देखा जाता है. इस संदेह का राजनीतिकरण करते हुए उसका लाभ वोट हासिल करने के लिए किया जाता है, जिसके चलते सीएससी की दक्षता प्रभावित होती है. इस संगठन के लिए राजपक्षे और बौद्ध भिक्षुओं का चीन के साथ घनिष्ठ गठजोड़ भी एक बड़ी चुनौती है. 

चीन ने इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण पूर्वी कंटेनर टर्मिनल जैसी महत्वपूर्ण भू-आर्थिक परियोजनाओं को हासिल किया है, जो यहां की समुद्री सुरक्षा को बाधित कर सकती है. 

चीन की अहमियत 

सीएससी की राह के लिए दूसरा प्रमुख अवरोध, चाइना फैक्टर अर्थात चीनी कारक है. पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों का मुकाबला करने के भारत के डोर्नियर विमान, एमआरसीसी आदि जैसे सामान्य साधन चीन की नज़रों में संदेह पैदा करते हुए इन द्वीप देशों पर चीन विरोधी निरुपित करने का जोखिम भी बढ़ जाएगा. श्रीलंका और मालदीव में चीन अब भी उनका सबसे बड़ा आर्थिक सहयोगी बना हुआ है. बीजिंग से ही श्रीलंका में सबसे ज्यादा निर्यात होता है, जबकि श्रीलंका पर जो बाहरी ऋण है उसमें 20 प्रतिशत हिस्सेदारी इस कम्युनिस्ट देश की ही है. जहां तक मालदीव का सवाल है, उस क्षेत्र में अब्दुल्ला यामीन के शासनकाल के दौरान ही चीन ने तेजी से अपने पैर जमाए थे. चीन का मालदीव पर 1.1 बिलियन से 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बकाया है. इसके अलावा मालदीव ही उसके प्रमुख निर्यात स्थलों में से एक है. चीन की सहायता और उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को ही श्रीलंका और मालदीव में विकास और इंफ्रास्ट्रक्चरल कनेक्टीविटी के एजेंट के रूप में देखा जाता है. कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना और श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के साथ मालदीव में नोरोचचोलई कोयला बिजली संयंत्र, बीआरआई परियोजना का ही हिस्सा हैं. इसके अलावा, इस क्षेत्र में भारत के प्रभुत्व के बढ़ने को लेकर संदेहपूर्ण दृष्टिकोण, आईओआर में स्वायत्तता बनाए रखने की महत्वाकांक्षा इन राष्ट्रों को चीन के प्रभाव, सम्मान और अपने हितों को चीन के साथ संरेखित करना जारी रखने के लिए प्रेरित करती है. ऐसे में ये छोटे देश चीनी हितों का सम्मान करते रहेंगे. इसके साथ ही ये चीन और भारत के बीच संतुलन साधने की कोशिश करेंगे. यह संभवत: कुछ सीएससी परियोजनाओं और उनकी उपलब्धियों की गति को धीमा करेगा, रोकेगा अथवा उलट देगा.

सहयोग का जो पैमाना गैर-पारंपरिक सुरक्षा के क्षेत्र तक सीमित है, वह सीएससी को फिलहाल एक सुगम पथ पर ले जाएगा.

एनटीएस के खतरे इन द्वीप देशों के हितों पर कब्जा करना जारी रखे हुए हैं. ऐसे में सीएससी एक ऐसी पहल है जो इन ख़तरों का मुकाबला करने के लिए इन देशों को एक साथ जोड़े रखने की कोशिश करती है. इसलिए, सहयोग का जो पैमाना गैर-पारंपरिक सुरक्षा के क्षेत्र तक सीमित है, वह सीएससी को फिलहाल एक सुगम पथ पर ले जाएगा. इसके अलावा, यह फोरम कुछ संभावित बाधाओं के प्रति संवेदनशील है, जो इसकी प्रगति को इसकी पूर्ण क्षमता तक पहुंचने से रोकेंगे. घरेलू राजनीति और चीन का प्रभाव इस कॉन्क्लेव के एजेंडा को बाधित करने में अहम भूमिका अदा करेंगे. आईओ में सैन्य गुटनिरपेक्षता पर राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की हाल में की गई टिप्पणी, एनटीएस की प्रासंगिकता और सीएससी के महत्व पर बल देने वाली है. इसी प्रकार मालदीव भी खुद को ऐसी स्थिति में ला रहा है, जहां वह पारंपरिक समुद्री सुरक्षा क्षेत्र में भारत के साथ शामिल होने से बच सके. ऐसे में पारम्परिक सुरक्षा के मुद्दे पर चीन को आपत्ति होगी, जो सीएससी के विकास को बाधित करेगी. एनटीएस के ख़तरों का मुकाबला करने और चीन के प्रभाव को कम करने की एक व्यापक दृष्टि, कॉन्क्लेव की प्रगति को ही बाधित करेगी.

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