सिंगल–यूज प्लास्टिक और डिस्पोजेबल यानी उपयोग करके फेंकने लायक प्लास्टिक के बढ़ते उत्पादन की वजह से प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण एक बढ़ी चिंता बन गया है और इसने इसे एक सर्वव्यापी मुद्दा बना दिया है. इसी कारण से प्लास्टिक के उत्पादन में कमी लाने के लिए एक व्यापक कार्य योजना तैयार की जा रही है. प्लास्टिक के उपयोग में तेज़ी से वृद्धि का श्रेय उसके भौतिक गुणों को दिया जाता है, जैसे कि इसकी मोल्डिंग में आसानी और तरल एवं गैसों के लिए अभेद्य प्रकृति. वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. प्लास्टिक का उत्पादन सदी के अंत में लगभग 230 मिलियन टन से दोगुना होकर कोविड-19 महामारी से ठीक पहले 450 मिलियन टन से अधिक हो गया था. उस दौरान आर्थिक गतिविधियों में कमी के कारण कोरोना महामारी का सभी सेक्टरों में उत्पादन पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा था, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादन पर देखा जाए तो इसका कोई असर नहीं हुआ था.
प्लास्टिक का उत्पादन सदी के अंत में लगभग 230 मिलियन टन से दोगुना होकर कोविड-19 महामारी से ठीक पहले 450 मिलियन टन से अधिक हो गया था. उस दौरान आर्थिक गतिविधियों में कमी के कारण कोरोना महामारी का सभी सेक्टरों में उत्पादन पर अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा था, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादन पर देखा जाए तो इसका कोई असर नहीं हुआ था.
कोरोना महामारी के दौरान, सुरक्षात्मक उपकरण और मास्क बनाने के लिए प्लास्टिक का तेज़ी से इस्तेमाल किया जाने लगा. चिकित्सा से जुड़ी गतिविधियों में प्लास्टिक के उपयोग को लोगों की सुरक्षा और हेल्थकेयर सेक्टर में एक प्रमुख योगदान के रूप में देखा गया. दुनिया भर के देशों में सरकार द्वारा फेस मास्क लगाने के आदेश के परिणामस्वरूप मास्क की आपूर्ति में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई. इसके अलावा, पीपीई किट के उत्पादन में वृद्धि के कारण पॉलिमर की मांग बढ़ी. महामारी के दौरान अन्य आवश्यक चिकित्सा उपकरणों जैसे प्रोपियोनेट, एसीटेट, पीवीसी या पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट ग्लाइकोल के साथ–साथ फेस शील्ड के लिए पॉली कार्बोनेट की मांग भी बढ़ी. इसके विपरीत, कंस्ट्रक्शन और मैन्युफैक्चरिंग के लिए उपयोग में लाई जाने वाली भारी प्लास्टिक की खपत में कमी दर्ज़ की गई, जिसके चलते वर्ष 2019 के स्तर की तुलना में प्लास्टिक के उत्पादन में कुल मिलाकर कमी आई है.
प्लास्टिक का प्रभाव
हालांकि स्वास्थ्य संकट के दौरान प्लास्टिक एक बेहद ज़रूरी चीज़ साबित हुई, लेकिन उसके हानिकारक प्रभावों, विशेष रूप से नैनो और माइक्रो प्लास्टिक के उपयोग के दुष्प्रभावों को नज़रअंदाज नहीं किया गया है. सांस लेने और त्वचा के संपर्क के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक्स एवं ज़हरीले रसायनों की चपेट में आने से कैंसर जैसी घातक बीमारी हो सकती है. इतना ही नहीं इससे न केवल मस्तिष्क को नुक़सान पहुंच सकता है, बल्कि यह मौत भी वजह भी बन सकती है. प्लास्टिक के उत्पादन, इस्तेमाल और निस्तारण के दौरान मनुष्य और पशु इसके हानिकारक प्रभावों के संपर्क में आते हैं. हालांकि, मानव द्वारा प्लास्टिक का उपभोग करने की सही मात्रा के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ भी जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ यह अनुमान लगाया गया है कि एक व्यक्ति औसतन प्रति सप्ताह लगभग पांच ग्राम प्लास्टिक का सेवन कर लेता है. वर्ष 2019 के एक अनुमान के अनुसार विकासशील देशों में प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाली बीमारियों ने सालाना 4 लाख से 10 लाख लोगों की जान ली है. इसलिए, मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण दोनों की रक्षा और बचाव के लिए प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने हेतु क़ानूनी तौर पर सख़्त क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है.
इसको लेकर यूनाइटेड नेशन्स एनवायरनमेंट असेंबली यानी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा ने प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के मकसद से क़ानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते को विकसित करने के लिए मार्च 2022 में एक प्रस्ताव पारित किया था. इसके तहत प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दे पर अंतर–सरकारी वार्ता कमेटी (INC) की स्थापना की गई, इस कमेटी का उद्देश्य वर्ष 2024 तक समझौते के मसौदे को पूरा करना है. समझौते का यह मसौदा प्लास्टिक के जीवन चक्र के अहम पहलुओं को कवर करेगा और रिसाइकिल करने योग्य एवं दोबारा इस्तेमाल किए जाने योग्य प्लास्टिक उत्पादों व सामग्रियों को डिजाइन करेगा. इस प्रकार, बेहतर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के आधार पर प्लास्टिक कूटनीति की तरफ निर्धारित लक्ष्य, देशों को प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए एक सहयोगी नज़रिए के साथ प्रौद्योगिकियों एवं वैज्ञानिक जानकारी के साझाकरण के उपयोग में सक्षम बनाते हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण को वर्ष 2040 तक 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए ज़रूरी यह है कि देश और कंपनियां व्यवस्थागत एवं प्रणालीगत बदलावों के लिए प्रतिबद्ध हों.
प्लास्टिक कचरे से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि उच्च आय वाले देशों में प्रति व्यक्ति इस कचरे का उत्पादन अधिक होता है, लेकिन इस विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों को समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण का सामना करना पड़ता है. इसकी एक वजह यह है कि इन अर्थव्यवस्थाओं में कुप्रबंधित प्लास्टिक कचरे का प्रतिशत बहुत ज़्यादा है. इसके साथ ही वेस्ट ट्रेड यानी कचरे के व्यापार पर विचार करना भी बेहद ज़रूरी हैं, क्योंकि कुछ अमीर देश ऐसे हैं, जो अपने प्लास्टिक कचरे को ग़रीब देशों में निर्यात करते हैं. हालांकि, प्लास्टिक के कचरे का आयात करने वाले देश अक्सर इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि इस कचरे को रिसाइकल किया जा सकता है या नहीं. बेसल एक्शन नेटवर्क की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बेसल कन्वेंशन के बावज़ूद कचरे के व्यापार में तेज़ी के साथ बढ़ोतरी जारी है. ज़ाहिर है कि बेसल कन्वेंशन का उद्देश्य ख़तरनाक कचरे के परिवहन को विनियमित करना है. निस्तारण किए जाने वाले प्लास्टिक कचरे के आंकड़ों से यह पता चलता है कि 10 प्रतिशत से भी कम प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल किया जाता है. स्पष्ट है कि जो बाक़ी प्लास्टिक कचरा है, उसे या तो लैंडफिल्स में डाल दिया जाता है, या फिर उसे ऐसे ही वातावरण में छोड़ दिया जाता है, ख़ासकर नदियों, तालाबों और समुद्र आदि में फेंक दिया जाता है. इस प्लास्टिक के कचरे में प्राकृतिक प्रक्रियाओं और रहने के स्थानों में बदलाव करने की क्षमता है और इसी वजह से यह बेहद चिंता वाली बात है. ज़ाहिर है कि इससे पारिस्थितिकी तंत्र की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की क्षमता कम हो जाती है.
जलवायु परिवर्तन के लिए खतरा
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को वैश्विक राजनीति में एक सुरक्षा चुनौती के तौर पर देखा जाने लगा है. जलवायु परिवर्तन के विषय पर जिस प्रकार से संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G7 और G20 के सम्मेलनों में बढ़ती भागीदारी और चर्चा–परिचर्चाएं इस तथ्य को सिद्ध करती हैं. जलवायु परिवर्तन और प्लास्टिक प्रदूषण के मुद्दे गैर–पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों के रूप में उभर कर सामने आए हैं. ये मुद्दे विभिन्न सैद्धांतिक और वैचारिक फ्रेमवर्क्स जैसे कि ग्रीम थ्योरी इन इंटरनेशनल रिलेशन्स (IR), रचनात्मकतावाद सिद्धांत और कोपेनहेगन स्कूल के सुरक्षाकरण सिद्धांत का उपयोग करके रिसर्च के लिए एक अवसर उपलब्ध कराते हैं. बैरी बुज़ान ने पर्यावरण सुरक्षा का बखान मानव के लिए एक ज़रूरी सहायक प्रणाली के रूप में किया है. इस विषय को सुरक्षा करण यानी सुरक्षा के साथ जोड़े जाने ने इसे हाई पॉलिटिक्स का मुद्दा बना दिया है और देशों को इसके बारे में प्रभावी तरीक़े से सोचने, इसे संबोधित करने और इसको लेकर क़दम उठाने के लिए प्रेरित किया है. उल्लेखनीय है कि उच्च राजनीति का मुद्दा बन जाने की वजह से देशों के राजनीतिक नेता मानव एवं स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु बातचीत के लिए न केवल जवाबदेह हो जाते हैं, बल्कि ज़िम्मेदार भी हो जाते हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण, स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन के लिए एक बड़ा ख़तरा है और इस वजह से इसके ख़िलाफ़ एक बहुस्तरीय और सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत है. यानी एक ऐसी कार्रवाई की ज़रूरत है जो इस मुद्दे की भू–राजनीतिक जटिलता को ध्यान में रखते हुए इसका हल निकाल सके. महासागरों में माइक्रोप्लास्टिक जैसे मुद्दे वैश्विक हैं और इसके लिए विभिन्न हितधारकों की सहमति के साथ–साथ उप–राष्ट्रीय संस्थाओं के समर्थन के साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होगी. अब बड़ी चिंता वाली बात यह है कि क्या वर्तमान बौद्धिक और संरचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय ढांचा प्लास्टिक प्रदूषण जैसे वैश्विक मुद्दों को हल करने में सहयोग कर सकता है और अगर सहयोग कर सकता है, तो किस प्रकार से. ज़ाहिर है कि इसके लिए एक मुकम्मल कार्रवाई की ज़रूरत है, यानी कि नीतिगत हस्तक्षेप के साथ ही क़ानूनी क़दमों की मिली जुली कार्रवाई की ज़रूरत, जो कि स्पष्ट तौर पर हितधारकों, व्यक्तियों, कंपनियों और देशों के लक्ष्यों और प्रतिबद्धताओं को परिभाषित करने वाली हों. इसलिए, 29 मई से 2 जून 2023 के बीच अंतर–सरकारी वार्ता कमेटी के दूसरे सत्र जैसी बैठक, जहां नियामक एवं नियंत्रक साधनों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाती हैं, वहीं मौज़ूदा मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कुछ हद तक दबाव बनाने का भी काम करती हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण, स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन के लिए एक बड़ा ख़तरा है और इस वजह से इसके ख़िलाफ़ एक बहुस्तरीय और सामूहिक कार्रवाई की ज़रूरत है. यानी एक ऐसी कार्रवाई की ज़रूरत है जो इस मुद्दे की भू–राजनीतिक जटिलता को ध्यान में रखते हुए इसका हल निकाल सके.
प्लास्टिक प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए व्यवहारिक बदलाव अर्थात आदतों में बदलाव को बढ़ावा देने जैसे क़दम उठाए जाने बेहद ज़रूरी हैं. इसके तहत नागरिकों को प्लास्टिक के पुन: उपयोग करने, रिसाइकिल करने और उसे फिर से बनाने जैसे विभिन्न क़दमों द्वारा अपनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. ज़ाहिर है कि UNEP द्वारा इसको लेकर बढ़ावा दिया गया है. इसे प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को शिक्षित करके और ज़िम्मेदारी के साथ प्लास्टिक–कचरा निस्तारण को प्रोत्साहित करके हासिल किया जा सकता है. जहां तक नीतिगत मोर्चे की बात है, तो स्थानीय सरकारों को प्लास्टिक कचरे के सुरक्षित निस्तारण और प्लास्टिक लीकेज से बचाव सुनिश्चित करने के लिए कचरा प्रबंधन के बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ाना चाहिए. प्लास्टिक के समुचित निस्तारण को सुनिश्चित करके स्वास्थ्य और पर्यावरणीय ख़तरों को कम करने के लिए यह बुनियादी पहल बहुत महत्वपूर्ण है.
प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके बनाई गईं सड़कें, साइकिल लेन और पैदल चलने के रास्ते पारंपरिक रूप से डामर वाली सड़कों की तुलना में बेहतर होते हैं. भारत प्लास्टिक की सड़कों के निर्माण में शामिल रहा है और प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के इस बेहतरीन तरीक़े को बढ़ावा दे सकता है. कई देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए पहले ही एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी यानी विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) को लागू कर दिया है, क्योंकि यह उत्पादकों द्वारा पैकेजिंग और अपशिष्ट सामग्री के निस्तारण से जुड़ी लागत को कम करता है. EPR के अंतर्गत प्लास्टिक सामग्री को एकत्र करने और रीसायकल करने का शुल्क कंपनियों पर लगाया जाता है. ऐसा करके कंपनियों को प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और पर्यावरण–अनुकूल दूसरी सामग्रियों की ओर स्थानांतरित होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. पूरे यूरोप में EPR के कार्यान्वयन ने प्लास्टिक कचरे के बेहतर संग्रह और इसे रिसाइकिल करने में बढ़ोतरी की दिशा में योगदान दिया है. फ्रांस में इसने प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन पर सार्वजनिक ख़र्च को कम करने में सहायता की है, क्योंकि इसकी लागत का लगभग 15 प्रतिशत EPR योजनाओं द्वारा एकत्र किया गया था.
आगे की राह
कंपनियों को अनुपालन स्कोर के साथ एनवायरमेंट, सोशल एवं गवर्नेंस (ESG) रेटिंग से टैग करके, उन्हें EPR के मानदंडों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि व्यवसायों के लिए पर्यावरण और सामाजिक प्रभावों के प्रबंधन हेतु आसान उपाय प्रदान करके स्थिरता को लेकर अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करने के लिए ESG रिपोर्टिंग अहम संकेतकों में से एक बन चुकी है. इसलिए, ESG रिपोर्टिंग के दौरान कंपनियों के लिए EPR के मानदंडों का अनुपालन अनिवार्य करने से, उन्हें अपने प्लास्टिक फुटप्रिंट्स को कम करने की दिशा में अधिक सक्रिय कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
इस वर्ष का विश्व पर्यावरण दिवस, जो इसे मानए जाने का 50वां साल भी है, ने “प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान” पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है. यह व्यक्तियों, समुदायों, कंपनियों और सरकार को प्लास्टिक के उत्पादन, खपत और प्लास्टिक कचरे के कुप्रबंधन को कम करने के साझा दृष्टिकोण की दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए एक बेहतरीन मंच है.
जलवायु परिवर्तन को सुरक्षा के नज़रिए से देखने से संबंधित जोखिमों, जैसे कि सीमा पार संघर्षों को बढ़ावा देने, व्यवसायों के लिए अस्थिरता पैदा करने और कमज़ोर वर्गों की आजीविका को प्रभावित करने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है. निसंदेह, पूरी दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण के दूरगामी सामाजिक और आर्थिक प्रभाव हैं. इस वर्ष का विश्व पर्यावरण दिवस, जो इसे मानए जाने का 50वां साल भी है, ने “प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान” पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रतिबद्ध किया है. यह व्यक्तियों, समुदायों, कंपनियों और सरकार को प्लास्टिक के उत्पादन, खपत और प्लास्टिक कचरे के कुप्रबंधन को कम करने के साझा दृष्टिकोण की दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए एक बेहतरीन मंच है. वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण का जो ख़तरा सामने दिखाई दे रहा है, वो दीर्घकालीन अवधि में ऐसी सामग्रियों की मौज़ूदगी के प्रसार एवं उनके प्रभावों से जुड़े अधिक से अधिक आंकड़े जुटाने की दिशा में काम करने के लिए निरंतर विचार–विमर्श किए जाने की मांग करता है, जो समुचित, व्यवस्थित और ठोस नियम–क़ानून बनाने में मदद कर सकते हैं.
किरण भट्ट सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी, डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में रिसर्च फेलो हैं.
अनिरुद्ध इनामदार सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में रिसर्च फेलो हैं.
संजय पट्टनशेट्टी, प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन विभाग के प्रमुख और सेंटर फॉर हेल्थ डिप्लोमेसी के समन्वयक हैं.
हेल्मुट ब्रांड प्रसन्ना स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के संस्थापक निदेशक हैं.
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