Author : Rumi Aijaz

Published on Nov 03, 2023 Updated 0 Hours ago
पर्यावरण से जुड़े विषय पर संवाद और भारत की हरित ऊर्जा यात्रा

पृथ्वी की दिनों दिन बिगड़ती स्थिति को लेकर दुनियाभर के पर्यावरणविदों में चिंता स्वाभाविक तौर पर दिनों-दिन बढ़ती जा रही है.अस्थायी तापमान डेटा के विश्लेषण के आधार पर ये धारणा कायम हुई हैजो 1880 से 2022 की अवधि के दौरान पृथ्वी पर तापमान के 1.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़त का संकेत देता हैवैज्ञानिक समुदाय के अनुसार भविष्य में तापमान में और भी ज्य़ादा बढ़तसामाजिकआर्थिकऔर पर्यावरणीय परेशानियों की उत्पत्ति का आधार बनेगी. इस लेख में जलवायु परिवर्तन पर बन रही वैश्विक सोच एवं भारत में हरित ऊर्जा संबंधी पहलों का वर्णन करने का प्रयास किया गया है

वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार भविष्य में तापमान में और भी ज्य़ादा बढ़त, सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय परेशानियों की उत्पत्ति का आधार बनेगी.

बदलते जलवायु परिवर्तन संबंधी समाचारों में बढ़त देखी जा रही है और वो चर्चा का विषय बन रहा है. दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में अक्सर पड़ रहा सूखा/अकालजंगल में आगबरफ़ का पिघलनासमुद्र/सागर में बढ़ता जलस्तरबाढ़और प्रलयंकारी तूफ़ान/साइक्लोन (चक्रवातआदि जैसे कई समस्याएं लगातार घट रही हैये सारी घटनाएँ लोगों के जीवन को बहुत ज़्यादा प्रभावित कर रही है 

उदाहरण के लिये,बंगाल की खाड़ी से सटे सुंदरबन क्षेत्र में लगातार हो रहे जलस्तर में वृद्धिखारे पानी की क्षेत्र में घुसपैठऔर तटीय कटावों के कारण किसान और मछुवारे समुदाय पलायन को विवश हो रहे हैइस जबरन विस्थापन की वजह ने इस समुदाय को उनकी आजीविका से वंचित करके उन्हें दरिद्रता की ओर धकेल दिया हैठीक इसी तरहजुलाई – अगस्त 2023 के दौरानग्रीस के जंगलों में लगी आग की वजह से हज़ारों लोग मारे गए और काफी घायल हुए. इसके अलावा वहां बनी इमारतों और उनकी बुनियादी ढांचों को भारी क्षति एवं नुकसान पहुंचाअगस्त 2023 मेंउसी तरह सेचीन ने भी भारी बारिश और उसके फलस्वरूप  आये प्रलयंकारी बाढ़ के चलते 10 लाख से भी ज्य़ादा लोगों के जबरन विस्थापन को झेला  हैदुनिया भर  मेंअप्रत्याशित रूप से घट रही घटनाओं में दर्ज बढ़त को ध्यान में रखते हुएभविष्य में जलवायु शरणार्थियों में वृद्धि की काफी संभावना है.     

तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्त के कारण अन्य सामाजिक और आर्थिक चिंताओं में कृषि उत्पादन में हो रही कमी, सामानों की कीमत में लगातार हो रही वृद्धिबढ़ती गरीबी/ ज्ञात/अज्ञात बीमारियों का फैलावजल की कमीसीमित संसाधनों पर मतभेद एवं संघर्षऔर काम से प्राप्त कम उत्पादकता शामिल है. 

लगातार सामने आ रही जलवायु समस्याओं के पीछे वैज्ञानिक समुदाय ने दो प्रमुख वजह गिनाई हैपहला– ज्वालामुखी की गतिविधियों में लगातार हुई बढ़त के साथपृथ्वी तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की तीव्रता में आने वाला परिवर्तन, और दूसरामानव समुदायों द्वारा अपनी कई सामाजिक ज़रूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन(जैसे कोयलातेलऔर गैसको जलाना. 

हाल ही मेंवैज्ञानिकों ने ऐसा दावा किया है कि, पिछले कुछ वर्षों में, जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में सूरज की भूमिका काफी कम हो गई है, 20वीं सदी के मध्य सेजीवाश्म ईंधन और उसके साथ-साथ अन्य पर्यावरणअनुकूलमानव गतिविधियों में हो रही वृद्धिभी ग्लोबल वॉर्मिंग (जलवायु परिवर्तन)के लिए ज़िम्मेदार है. ये सब परिवहन (मोटर वाहन), उद्योग (पावर प्लांट), संसाधन (सड़कजलसैनिटेशन, आवासीय (इमारतों को गरम और ठंडा करने के लिए) और वनों की कटाई की वजह से जलवायु संबंधित हानि और सतह पर बसे जल निकायों के प्रदूषण से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान से संबंधित है.  

इस संदर्भ मेंये ध्यान दिए जाने योग्य बात है कि ज़्यादातर राष्ट्र अपने देश के विकास कार्यों हेतुअब कार्बन – गहन दृष्टिकोण अपना रहे हैंजीवाश्म ईंधन की हो रही लगातार इस्तेमाल की वजह से उत्पन्न हो रही ग्रीनहाउस गैस जैसेकार्बनडाइऑक्साइडनाइट्रस ऑक्साइडऔर मिथेन आदि वातावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैंऐसी स्थिति मेंसूरज से प्राप्त होने वाली ऊर्जा या गर्माहटअंतरिक्ष में समूचे रूप से प्रतिबिंबित नहीं होती हैइसके बजाए, (जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल से उत्पन्न होने वाली) गैस और अन्य कणवायुमंडल में उपलब्ध ज्य़ादातर ऊष्मा, को सोख लेती है, जो पृथ्वी के सभी दिशाओं में फैल जाती   है,और इस वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या उभर रही है.   

जलवायु संकट के प्रमुख कारण

ऊर्जा क्षेत्रगैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्त्रोत हैइसलियेऊर्जा के पारंपरिक स्रोत (जीवाश्म ईंधनयूरेनियमपर निर्भरता को कम किए जाने और साथ हीपर्यावरण के अनुकूल स्रोतों या फिर हरित ऊर्जा की ओर उसे स्थानांतरित किये जाने पर आम सहमति बनी है. यूनाईटड स्टेट एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसारसूरज, बायोमास(पौधों/जानवरों से प्राप्त ऑर्गेनिक तत्वभूताप (पृथ्वी के भीतर की गर्मी, बायोगैस(मृत जानवर,पौधों के अवशेषों से प्राप्त कार्बनिक पदार्थों के जीवाणु डिकंपोज़िशन से पैदा होने वाली गैस)एवं हल्के प्रभाव वाले छोटे पनबिजली (बहते पानी के प्राकृतिक स्रोत से बिजली पैदा करने वाली)परियोजनाएं, ग्रीन एनर्जी या हरित ऊर्जा का उत्पादन करती है

मानव गतिविधियों के संचालन के लिये, पर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाए जाने पर काफी ज़ोर दिया जा रहा है. परिवहन सेक्टर के लिए, की गई सिफारिशों में, सार्वजनिक परिवहनों का इस्तेमाल, साझा परिवहन, इलेक्ट्रिक व्हीकल,और गैर मोटर-चलित वाहन शामिल हैं.

इसके अलावामानव गतिविधियों के संचालन के लियेपर्यावरण के अनुकूल तरीकों को अपनाए जाने पर काफी ज़ोर दिया जा रहा हैपरिवहन सेक्टर के लिएकी गई सिफारिशों मेंसार्वजनिक परिवहनों का इस्तेमालसाझा परिवहनइलेक्ट्रिक व्हीकल,और गैर मोटरचलित वाहन शामिल हैंआवास/कार्यस्थलों के लिए मुहैया कराये जा रहे विकल्प ज्य़ादातर रिन्यूएबल एनर्जी के स्रोतों जैसे वायु और  सोलर एनर्जी, व ऊर्जा कुशल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ओर रुख़ कर रहे हैइसके अलावाखरीदारी एक काफी लोकप्रिय काम हैऔर इसको ध्यान में रखते हुएबेवजह रूप सेकिसी प्रकार के वस्तु (वस्तुओंकी खरीदारी (जैसे कि कपड़ा आदिको हतोत्साहित किया जाना चाहिएक्योंकि इन वस्तुओं की ज़रूरत से ज़्यादा मांग की वजह से इनके उत्पादन में बढ़त की ज़रूरत  पड़ी है जिसके फलस्वरूपमांग की पूर्ति के लिए होने वाले उत्पादन में भी ऊर्जा का उपयोग होता है. मांसाहारी भोजन(खासकर:लाल मांस)भी एक काफी ज्वलंत मुद्दा है क्योंकिइसमें भी जानवरों के पालन पोषण के लिए प्राकृतिक संसाधनों (पानी/भूमि)का भारी इस्तेमाल होता हैउत्पादों और संसाधनों में कमी और पुन:उपयोग, उनकी देखरेख/वस्तुओं और संसाधनों(जल/तरल और ठोस अपशिष्ट)की दोबारा रिसाइक्लिंग, को समान महत्व दिया जाता हैबदलते समय के साथ, समाज के तमाम मानव समुदायों इन सभी  विकल्पों के इस्तेमाल को सहजता के साथ स्वीकार किया है इसके प्रमाण हर जगह मौजूद है. 

संयुक्त राष्ट्र ने  दुनिया के समस्त शीर्ष नेताओं से 2030 तक अपने अपने देशों में उत्सर्जन कम करने का और 2050 तक शुद्ध शून्य यानी शून्य के नजदीक उत्सर्जन तक पहुँचने का आह्वान किया है. इसके अलावा,औद्योगिक देशों को,विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन एवं लचीलापन को और भी सुदृढ़ करने के एवज में जलवायु वित्त के तौर पर 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर राशि मुहैया कराए जाने को कहा है

एक तरफ ज्य़ादातर देशों ने इन प्रस्तावों के समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता जताई हैइसके बावजूदमात्र कुछ देशों ने ही आंशिक रूप से इसका अनुपालन किया हैसंयुक्त राष्ट्र के लिए अब भी ये विषय काफी चिंतनीय है, क्योंकि कुछ देश (विशेषतग्रेट ब्रिटेन)शुद्ध शून्य के बजाय (उपलब्ध संसाधनों की मदद सेऊर्जा सुरक्षा को अधिक प्राथमिकता देते हैंइसलिए उन सब ने अपने जलवायु लक्ष्यों से पीछे हटना शुरू कर दिया हैसंयुक्त राष्ट्र के सेक्रेटरी जनरलएंटोनियो  गुटेरेस ने अपनी टिप्पणी में कहा, “बच्चे बारिश में बहे जा रहे हैंपरिवार आग की लपटों से भाग रहे हैंभीषण गर्मी में श्रमिक धराशाही हो रहे हैंहवा सांस लेने योग्य नहीं हैऔर गर्मी भी असहनीय है.”  

कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने में भारत की भूमिका

दुनिया की सबसे ज्य़ादा आबादी वाले देश भारत नेकई हरित पहल शुरू किए हैं और अपनी उत्सर्जन रैंकिंग को और बेहतर करने की दिशा में कोशिश कर रही हैवर्तमान समय मेंवो चीनसंयुक्त राष्ट्र अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के बाद दुनिया का चौथा सबसे ज़्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश हैऔर उनका लक्ष्य है वर्ष 2030 तक ग़ैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत बिजली उत्पाद करना और 2070 तक शुद्ध शून्य के आँकड़े को प्राप्त करना

काफी समय पहले वर्ष 2010 मेंराष्ट्रीय सोलर मिशन को लॉन्च किया गया था जिसमें सौर पार्क (बड़े भूमि क्षेत्र पर सौर अवसंरचना विकास)मेगा सौर पावर परियोजनाएंकिसान ऊर्जा सुरक्षा (सोलर सिंचाई पंप स्थापना के लिए दिए जाने वाली कृषि वित्तीय सहायतारूफ़टॉप सोलर प्रोजेक्ट,और हरित ऊर्जा कॉरीडोर (सोलर पावर द्वारा चार्ज किए जाने वाले अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन लाइन और सबस्टेशन का गठन)जैसी योजनाओं का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन शामिल था. 2022 के अंत तकभारत में 63.30 गीगावाट (gw) क्षमता वाले  सोलर पावर की स्थापना की गई और राजस्थानगुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों ने इसमें बेहतर प्रगति दिखलाई है

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन एक हालिया (2023) में शुरू किया गया पहल है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मेट्रिक टन क्षमता का उत्पादन, हो सकता है.

2022 मेंबायोमास से ऊर्जा (जैसे कृषि अपशिष्ठलकड़ीताड़ के पत्तेकोको शेलहस्कऔर ठोस अपशिष्ठ)प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम लागू किया गया थादेशभर में 800 से ज्य़ादा बायोमास संयंत्र स्थापित किये गये और यह 10.73 गीगावाट स्थापित क्षमता वाला स्त्रोत बन गया

राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन एक हालिया (2023) में शुरू किया गया पहल हैजिसके अंतर्गत वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 5 मिलियन मेट्रिक टन क्षमता का उत्पादनहो सकता है. दूसरे अन्य महत्वपूर्ण पहल जो जारी हैं वो हैं विंडविंड-सोलर हाइब्रिड  और छोटे पनबिजली परियोजनाओं से ऊर्जा का उत्पादन शामिल हैकुल मिलाकर  ये 46.87 गीगावाट की स्थापित क्षमता के लिए ज़िम्मेदार है.  

31 दिसम्बर 2022 तक, भारत में विभिन्न गैरजीवाश्म ईंधन स्रोतों  से कुल 167.75 गीगावाट क्षमता की स्थापना की गई. इसके साथ ही,78.75 गीगावाट क्षमता वाली परियोजना प्रगति में है और 32.60 गीगावाट क्षमता वाले प्रोजेक्ट पर अभी नीलामी शेष हैकाम के पूरा हो जाने पर कुल 280 गीगावाट तक की स्थापित क्षमता उपलब्ध हो चुकी होंगी. इन स्त्रोतों द्वारा स्थापित क्षमता पर जो आंकड़े मौजूद हैं उनसे यह पता चलता है किवर्तमान मेंपवनजैवऊर्जाऔर छोटे पनबिजली क्षेत्र से भी काफी पहले सेसौर ऊर्जा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक है

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNREने साल 2023-24 के दौरानभारत के हरित ऊर्जा एनर्जी क्षेत्र के विकास कार्यों के लिए कुल 102.22 बिलियन की राशि का आवंटन किया थाबायोएनर्जीहाइड्रोजनऔर पनबिजली परियोजनाओं की तुलना मेंसोलर और वायु एनर्जी परियोजनाओं को सबसे ज्य़ादा पैसों का आवंटन किया गया हैकुछ राशि मानव संसाधन विकास और अनुसंधान और विकास के लिए भी रखी गई है. 

स्मार्ट सिटी मिशन के तहत चंद हरित परियोजनाओं को भी लागू किया गया हैकोयम्बटूर और सलेम में विद्युत ज़रूरतों की मांग की पूर्ति के लिए सोलर रूफ़टॉप ढांचों को स्थापित किया गया है. उत्पादन के ज़रिये हासिल हरित बिजली ने नागरिकों को किफ़ायती बिजली सप्लाई करवानी में काफी मदद की है और साथ ही आपूर्तिकर्ता एजेंसियों को भी पारंपरिक थर्मल ऊर्जा और धन की बचत के उपाय दिये हैंउसी तरह सेचंडीगढ़ वॉटरवर्क स्थित पानी में तैरती सौर संयत्र से तैयार बिजलीशहर की मांग को पूरा करने और बिजली की कीमत को कम करने में अपना योगदान दे रही हैवहीं दूसरी ओरइंदौर ने भी अलग किए गए कचरे  का उपचार करने के लिए एक बायोसीएनजी संयंत्र की स्थापना की हैइसमें तैयार होने वाले बायोगैस का इस्तेमाल शहरी परिवहन बसों को चलाने के लिए किया जाता हैइसके अलावाभारत के विभिन्न हिस्सों में घरेलू और संस्थागत स्तरों पर हो रहे हरित ऊर्जा उत्पादन (विशेषतसौर ऊर्जाके कई उदाहरण मौजूद हैं. 

हरित ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारत की प्रगति से संबंधित कुछ आंकड़ों को आधार बनाया गया है. साल 2022 के अंत मेंसरकार ने 168 गीगावाट की स्थापित क्षमता या फिर रिन्यूएबल स्रोतों  के ज़रिए उत्पादन किये गये 40 प्रतिशत ऊर्जा को स्वीकार कियापरंतु जीवाश्म ईंधन अब भी समूची ऊर्जा की खपत का मुख्य हिस्सा है और देश की पूरी  क्षमता का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा इसी से आता है. देश में प्रतिवर्षलगभग 85 प्रतिशत तेल और 45 प्रतिशत गैस का आयात किया जाता है. शहरीकरणपरिवहनीय ढांचों का विस्तार और औद्योगिक उत्पादनों से उत्पन्न होती ऊर्जा की मांगको पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती हैभविष्य की आबादी की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिएभारत को गैरनवीकरणीय संसाधनों पर अपनी निर्भरता को कम करना होगा और हरित ऊर्जा के उत्पादन क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनना होगा. इस नज़रिये और अप्रोच को सफल बनाने के लिये हमें हितधारकों के सहयोगहरित उर्जा से संबंधित पहल का बेहतर कार्यान्वयनहरित परिसंपत्तियों का बेहतर रखरखावलोगों को किफ़ायती और कुशल विकल्प प्रदान कराया जाना और आमजनों की आदत और नज़रिये में बदलाव लाने की ज़रूरत होगी.

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