मई में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के स्टेट काउंसिल ने एक सर्कुलर जारी किया. इसके तहत ‘नई ऊर्जा के उच्च गुणवत्ता वाले विकास’ को लागू करने की योजना है. इसका उद्देश्य 2030 के लक्ष्य को साकार करने के लिए कम कार्बन वाले पर्यावरण के निर्माण एवं विकास को तेज़ करना है. काउंसिल के अनुसार “चीन रेगिस्तानी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पवन ऊर्जा और फोटोवोल्टिक बिजली स्टेशन बनाने पर ध्यान देगा. साथ ही ऊर्जा के नये दोहन और उपयोग को ग्रामीण पुनरुद्धार के साथ जोड़ेगा और उद्योग एवं निर्माण क्षेत्र में नई ऊर्जा के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देगा.” पिछले कुछ वर्षों में चीन ने ख़ास तौर पर सोलर फोटोवोल्टिक उद्योग और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल की है. प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश के रूप में चीन ने नवीकरणीय ऊर्जा की तकनीकों के उत्पादन में दुनिया का मार्गदर्शक बनने में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है. 2014 और 2015 में चीन ने मल्टीक्रिस्टलिन सिलिकॉन सोलर सेल की कार्यक्षमता के मामले में अंतर को कम करते हुए दुनिया का रिकॉर्ड तोड़ा. इस प्रक्रिया में चीन अधिकतम रणनीतिक लाभ को हासिल करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा की तकनीक के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक भी बन गया.
चीन का नपा-तुला क़दम
नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने में चीन के पर्यावरणीय उद्देश्य के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं. पहला दृष्टिकोण ऊर्जा क्षेत्र का आंतरिक प्रारूप तैयार करना है. चीन की पर्यावरणीय स्थिति अपेक्षाकृत रूप से अविवादित और काफ़ी हद तक जनसंख्या के द्वारा समर्थित है. सरकार स्थानीय स्तर पर अलग-अलग तरह की सब्सिडी मुहैया कराती है जिससे कि मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को बढ़ावा मिलता है. दूसरा दृष्टिकोण ऊर्जा का भू-राजनीतिक पहलू है. जब बात जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य की आती है तो चीन अपना दांव खेलने में रणनीतिक रहा है. एक दशक से भी कम समय में चीन अपने कुल ऊर्जा उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों का अनुपात बढ़ाने में सफल रहा है. इसकी वजह से ऊर्जा सुरक्षा के मामले में दूसरे क्षेत्रों पर चीन की निर्भरता कम हुई है. चाइनीज़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के सामरिक अध्ययन के अनुसार 2020 में ऊर्जा उत्पादन में कोयले की कुल खपत 58 प्रतिशत पर थम गई है और ग़ैर-जीवाश्म ईंधन का योगदान बढ़कर 15 प्रतिशत हो गया है.
स्रोत: चाइना इंजीनियरिंग साइंस प्रेस
चीन के पास अब समय नहीं
कम कार्बन वाले विकास के मामले में चीन ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है. लेकिन चीन की नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता जीवाश्म ईंधन की ऊर्जा और उस पर निर्भरता का मुक़ाबला करने में सक्षम नहीं है. चीन के लिए एक बड़ी चिंता अपने कार्बन उत्सर्जन से मुक़ाबला करना है. वैसे तो चीन अभी भी ज़्यादा महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को विकसित करने की प्रक्रिया से गुज़र रहा है और उसे तुरंत अपने आर्थिक विकास को कार्बन उत्सर्जन से अलग करने की ज़रूरत है. जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ़ परिवर्तन एक कठिन प्रक्रिया है और चीन की वर्तमान ऊर्जा नीति की रूप-रेखा कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को पूरा करना कठिन बनाती है. ऊर्जा पर ज़बरदस्त ढंग से निर्भर एक अर्थव्यवस्था के रूप में चीन रफ़्तार आधारित आर्थिक विकास पर ज़्यादा ध्यान देता है.
चीन की मौजूदा जलवायु नीतियों और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य में लागू करने के तौर-तरीक़ों की कमी है. अपने स्वभाव के अनुसार चीन अभी भी एक विकासशील देश है और उसे तकनीकी रिसर्च एवं इनोवेशन में निवेश करने की आवश्यकता है.
दूसरा, चीन की मौजूदा जलवायु नीतियों और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य में लागू करने के तौर-तरीक़ों की कमी है. अपने स्वभाव के अनुसार चीन अभी भी एक विकासशील देश है और उसे तकनीकी रिसर्च एवं इनोवेशन में निवेश करने की आवश्यकता है. वैसे 2021 में चीन ने कार्बन उत्सर्जन की वर्तमान क्षमता को पार करने वाली कोयला और इस्पात की नई परियोजनाओं को इजाज़त दी है. तेज़ विकास चीन की सरकार की ज़रूरत है और इसकी वजह से औपचारिक और अनौपचारिक रूप-रेखा स्थापित होती है. चीन के विकास को तुरंत कार्बन उत्सर्जन से अलग करने पर चीन आगे बढ़कर कम कार्बन वाला देश बन जाएगा.
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