Author : Akshay Mathur

Published on Oct 28, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को अगर दूसरे सदस्य देशों का समर्थन मिले तो वह अगली आर्थिक धुरी बनकर सप्लाई चेन को लचीला बनाने के क्वॉड के एजेंडे की अगुवाई कर सकता है. इसके लिए भारत को अपने दूरसंचार और इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरों को मजबूत करना होगा, और सप्लाई चेन के लिए अपनी निर्भरताओं के मामले को देखना होगा.

क्वॉड के सामने सप्लाई चेन को लचीला बनाने का एजेंडा

अभी भू-राजनीति (जियोपॉलिटिक्स) और भू-अर्थव्यवस्था (जियोइकोनॉमिक्स) में साफ तौर पर एक उथल-पुथल चल रही है. अमेरिका-चीन का व्यापार युद्ध, कोविड महामारी का प्रकोप, और बहुपक्षीय प्रणाली में पैदा हुई गड़बड़- इस बात के लिए मजबूर कर रहे हैं कि वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं (ग्लोबल सप्लाई चेन्स) का मूल्यांकन और उनका पुनर्विन्यास किया जाए. अमेरिका-चीन के व्यापार युद्ध के साथ वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के ठिकानों में बदलाव शुरू हुआ, जिसे महामारी ने और तेज कर दिया. इस घटनाक्रम ने अत्यावश्यक वस्तुओं के उत्पादन नेटवर्कों में मौजूद भारी ज़ोखिम उजागर कर दिये.

आज इस बात पर दुनिया एकमत है कि देशों को अपनी विदेश व्यापार नीति इस ढंग से बनानी होगी कि वह जोखिमों से निपटने पर ध्यान दे, व्यवधानों को संभाल सके और केंद्रीकरण को कम करे. इन नये बने हालात का फ़ायदा उठाते हुए भारत के पास वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को आकर्षित करने का अनोखा मौका है, ख़ासकर रणनीतिक और भू-राजनीतिक रूप से अपने खेमे के देशों (जैसे क्वॉड के सदस्यों) के साथ साझेदारी की संभावनाएं तलाश करके.

सप्लाई चेन को लचीला या झटके झेलने में सक्षम बनाने का भारत का एजेंडा क्वॉड के भीतर तीन सिद्धांतों से दिशानिर्देशित हो सकता है : लचीलेपन के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना, तकनीक से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करना, और कच्चे माल पर निर्भरताओं के मुद्दे पर ध्यान देना.

सप्लाई चेन को लचीला या झटके झेलने में सक्षम बनाने का भारत का एजेंडा क्वॉड के भीतर तीन सिद्धांतों से दिशानिर्देशित हो सकता है : लचीलेपन के लिए वित्तीय संसाधन जुटाना, तकनीक से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करना, और कच्चे माल पर निर्भरताओं के मुद्दे पर ध्यान देना.

क्या भारत हिंदप्रशांत क्षेत्र में आर्थिक धुरी बन सकता है?

पहला, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी संस्थागत निवेश मुख्य रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान जैसे जी-7 और ओईसीडी के पूंजी-समृद्ध देशों से सिंगापुर, नीदरलैंड और मॉरीशस जैसे वित्तीय केंद्रों के जरिए आता है. अगर क्वॉड अपनी अगुवाई वाली वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में भारत के प्रवेश को समर्थन देने के लिए वित्तपोषण की प्रतिबद्धता जताए, तो भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वॉड के लिए एक ‘आर्थिक धुरी’ बन सकता है. हालांकि क्वॉड अपने उद्देश्यों में ‘विकास संबंधी वित्तपोषण के लिए निजी वित्त जुटाने’ और ‘बहुपक्षीय लोक वित्त के प्रभाव में वृद्धि करने’ की घोषणा कर चुका है,[1] मगर ज्यादातर पहलकदमियां बिना वित्तपोषण के रह जाती हैं. यहां तक कि आपूर्ति शृंखला के लचीलेपन के लिए पहलकदमी (Supply Chain Resilience Initiative) के वास्ते भी वित्तपोषण का कोई गंभीर साझा आश्वासन अभी तक नहीं मिला पाया है.

बिना वित्तीय समर्थन के, वाहन और दूरसंचार जैसे भारी पूंजी की जरूरत वाले उद्योगों को गति में ला पाना नामुमकिन होगा. मसलन, मैकिंसी के 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि क्रमश: अमेरिका और चीन में स्थित दुनिया की दो सबसे बड़ी कंप्यूटर कंपनियों डेल और लेनोवो के 4000 से 5000 के बीच टियर-1 और टियर-2 सप्लायर हैं. इनमें से 2000 सप्लायर दोनों कंपनियों के लिए काम करते हैं, जो कि उल्लेखनीय है.[2] ज्यादातर नीति निर्माताओं और व्यवसायों के लिए इस तरह की कॉरपोरेट निर्भरता की थाह पाना ही असंभव है, नाता तोड़ पाना तो दूर की बात रही.

वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत को घुसने का मौका तलाशना चाहिए

दूसरा, भारत को भविष्य की वैश्विक मूल्य शृंखलाओं, ख़ासकर जो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और दूरसंचार पर केंद्रित हैं, में घुसने का मौका ज़रूर तलाशना चाहिए. सन 2000 से भारत में कुल एफडीआई का तकरीबन 40 फ़ीसद इन्हीं सेक्टरों में आया है.[3] पिछले पांच सालों में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग तकरीबन 23 फ़ीसद की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी है, और साथ ही इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर का घरेलू उत्पादन 2019-20 में 76 अरब डॉलर तक पहुंच गया.[4] अब भी, भारत चीन पर चिंताजनक ढंग से निर्भर है, खासकर इलेक्ट्रिकल मशीनरी के लिए : इस सेगमेंट में देश के कुल आयात का 60 फ़ीसद चीन से है.[5] आईटी हार्डवेयर के वैश्विक बाजार पर सात कंपनियों का दबदबा है, जिनके पास दुनिया के कुल बाजार का 70 फ़ीसद हिस्सा है.[6] लिहाजा, लार्ज-स्केल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए भारत सरकार द्वारा 7 अरब डॉलर की हालिया प्रतिबद्धता, साथ ही आईटी हार्डवेयर के लिए तकरीबन एक अरब डॉलर, दिखाते हैं कि सरकार भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिजाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ईएसडीएम) के वैश्विक हब के रूप में खड़ा करने के लिए गंभीर है.

भारत को भविष्य की वैश्विक मूल्य शृंखलाओं, ख़ासकर जो इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और दूरसंचार पर केंद्रित हैं, में घुसने का मौका ज़रूर तलाशना चाहिए

दुर्भाग्य से, भारत जिस तरह अपनी गतिविधियों को वैश्वीकृत (ग्लोबलाइज) करने की तैयारी कर रहा है, ठीक उसी तरह पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी गतिविधियों को अपने मूल देश में या फिर पास-पड़ोस में वापस लाकर अ-वैश्वीकरण (डी-ग्लोबलाइजिंग) की प्रक्रिया में हैं. वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की औसत पारदेशीयता या ट्रांसनेशनलिटी (यह एक संकेतक है जो दिखाता है कि किसी कंपनी की परिसंपत्तियों, बिक्री और कर्मचारियों में कितना हिस्सा विदेश का है) बीते एक दशक में 65 फ़ीसद पर ठहरी हुई है. जलवायु परिवर्तन, हिंसक संघर्षों और महामारियों से उत्पन्न जोखिम को संभालने के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के विविधीकरण का विकल्प है.[7] पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियां विविधीकरण के चुनाव में अपने मूल देश की जगह भारत को तरजीह दें, इसके लिए क्वॉड को रणनीतिक फायदों को और लुभावना बनाना ही होगा.

भारत को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण करना होगा

तीसरा, भारत को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण करना होगा, खासकर उनका जिन पर वह सबसे ज्यादा निर्भर है. कोविड-19 महामारी के शुरुआती दिनों ने दवा बनाने में इस्तेमाल होनेवाली मुख्य सामग्री (एक्टिव फार्मा इनग्रेडिएंट्स या एपीआइ) के लिए दुनिया की निर्भरता को उजागर किया. 70 फ़ीसद एपीआइ चीन से आते हैं. इसी तरह, इलेक्ट्रॉनिक्स और अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) जैसे नये जमाने के उद्योगों के लिए भारत को जिन बेहद अहम खनिजों की ज़रूरत है वे बहुत सीमित स्रोतों से आते हैं. द इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी बताती है कि चीन न सिर्फ़ दुर्लभ मृदा तत्वों (रेयर अर्थ एलीमेंट्स) के 60 फ़ीसद और ग्रेफाइट के 64 फ़ीसद की निकासी करता है, बल्कि 58 फ़ीसद लीथियम, 65 फ़ीसद कोबाल्ट, 35 फ़ीसद निकल और 40 फ़ीसद तांबे का प्रसंस्करण भी करता है. इसी तरह, कोबाल्ट का 70 फ़ीसद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो से, निकल का 33 फ़ीसद इंडोनेशिया से और लीथियम का 22 फ़ीसद चिली से निकाला जाता है. ऐसा अनुमान है कि भारत के पास दुर्लभ मृदा तत्वों का दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन वैश्विक उत्पादन में उसकी हिस्सेदारी महज 2 फ़ीसद है. [8

]भारत को अपनी आपूर्ति शृंखलाओं का विविधीकरण करना होगा, खासकर उनका जिन पर वह सबसे ज्यादा निर्भर है. 

पॉलसन इंस्टीट्यूट के एक विश्लेषण ने पाया कि जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, अमेरिका और चीन के बीच लीथियम-ऑयन बैटरियों, चिप्स और उन्नत डिस्प्ले के लिए आपूर्ति शृंखलाओं में जबरदस्त केंद्रीकरण और अंतर-निर्भरता है.[9] अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और ताइवान में है, तो चीन फ्रैबिकेशन और असेंबली के साथ ही बेहद जरूरी कच्चा माल मुहैया कराने में आगे है. अगर क्वॉड से निवेश आये, तो भारत दुर्लभ मृदा तत्वों का अपना भंडार विकसित कर सकता है. यहां तक कि विकसित हो रही नयी तकनीकों के लिए गठजोड़ कर इन दुर्लभ खनिजों पर निर्भरता को कम कर सकता है.

यह लेख ओआरएफ की स्पेशल रिपोर्ट नंबर 161,  राइज एंड राइज ऑफ द क्वॉड : सेटिंग एन एजेंडा फॉर इंडिया का हिस्सा है.


fEndnotes

[1] The White House Briefing Room. “Fact Sheet: President Biden and G7 Leaders Launch Build Back Better World (B3W) Partnership.” The White House. 2021.

[2] Lund et al. Risk, resilience, and rebalancing in global value chains. McKinsey Global Institute. 2020, pp. 9.

[3] Department for Promotion of Industry and Internal Trade. 2021. “Fact Sheet on Foreign Direct Investment (FDI) from April, 2000 to June, 2021.” DPIIT, Government of India. June.

[4] Invest IndiaSchemes for Electronics Manufacturing. 2021.

[5] Dr.V.S.Seshadri, Amb. (Retd.). RCEP: A Possible Approach Considering China’s Already Large Presence in The Indian Market. Confederation of Indian Industry (CII). 2018, pp. 83.

[6] Ministry of Electronics & IT, GoI. Cabinet approves Production Linked Incentive Scheme for IT Hardware. PIB Delhi. 2021.

[7] UNCTAD. World Investment Report, 2020. New York: United Nations. 2020, pp. 23.

[8] Kanisetti et al. A Rare Earths Strategy for India. Takshashila Institution. 2020.

[9] Ma, Damien, Houze Song, and Neil Thomas. “Supply Chain Jigsaw: Piecing Together the Future Global Economy.” Marco Polo. 13` April. 2020.

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