अगर भारत में बिजली इस्तेमाल करने वालों के पास ख़ुदरा बिजली आपूर्तिकर्ता का चुनाव करने का विकल्प हो तो, क्या वो नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों (RE) से बनी बिजली आपूर्ति करने वाले लाइसेंसशुदा बिजली आपूर्तिकर्ताओं (DF) या फिर वितरण के फ्रैंचाइज़ी (DF) से बिजली ख़रीदेंगे? इस वक़्त बिजली उपभोक्ताओं के लिए ये प्रावधान है कि वो एकाधिकार वाली वितरण कंपनियों (discoms) या DFs से नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी बिजली ख़रीद सकते हैं. इसके नतीजे अब तक उत्साहवर्धक नहीं रहे हैं. क्योंकि RE बिजली और RE वाली बिजली ख़रीदने की हामी भरने वाले ग्राहकों की संख्या बहुत कम है. हालांकि, अगर वितरण को लाइसेंस से आज़ाद कर लिया जाए, तो इस बात की संभावना है कि हरित बिजली आपूर्ति करने वाले समर्पित आपूर्तिकर्ता उभर सकते हैं, जो नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी ऊर्जा के ऐसे उत्पाद मुहैया करा सकते हैं, जो ग्राहकों की प्राथमिकताओं को पूरा कर सकें. RE बिजली प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध DF और DL ग्रीन टैरिफ के विकल्प के ज़रिए कारोबारी और औद्योगिक ग्राहकों (C&I) को हरित बिजली उपलब्ध करा सकते हैं, जिनके लिए RE बिजली ख़रीदना अनिवार्य हो. इसके अलावा वो उन घरेलू ग्राहकों को भी हरित बिजली मुहैया करा सकते हैं, जो बिजली सेक्टर से कार्बन उत्सर्जन कम करना चाहते हैं. ग्रीन पावर एक्सचेंज़ के ज़रिए RE ख़रीदने या फिर ओपन एक्सेस (OA) के प्रावधानों या फिर छत पर सोलर जेनरेटर लगाकर इसे सीधे हरित बिजली बनाने वालों से ख़रीदने की तुलना में ग्रीन टैरिफ के ज़रिए बिजली मुहैया कराने में लागत कम आती है.
ग्रीन पावर एक्सचेंज़ के ज़रिए RE ख़रीदने या फिर ओपन एक्सेस (OA) के प्रावधानों या फिर छत पर सोलर जेनरेटर लगाकर इसे सीधे हरित बिजली बनाने वालों से ख़रीदने की तुलना में ग्रीन टैरिफ के ज़रिए बिजली मुहैया कराने में लागत कम आती है.
रूपरेखा
ग्रीन प्रीमियम टैरिफ कोई नई चीज़ नहीं है. क्योंकि आंध्र प्रदेश जैसे देशों ने लगभग 15 बरस पहले इसकी शुरुआत की थी. कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश भी ग्रीन टैरिफ व्यवस्था उपलब्ध कराते हैं. लेकिन, इसके ज़रिए RE बिजली की ख़रीद अभी भी 0.5 फ़ीसद से भी कम बनी हुई है. जिन राज्यों में ग्रीन टैरिफ की व्यवस्था है, वहां औसत ख़ुदरा बिजली दर की तुलना में ग्रीन टैरिफ अधिक है, जो शायद RE बिजली ख़रीद में सीमित दिलचस्पी की एक बड़ी वजह है.
जिन राज्यों में ग्रीन टैरिफ की व्यवस्था है, वहां औसत ख़ुदरा बिजली दर की तुलना में ग्रीन टैरिफ अधिक है, जो शायद RE बिजली ख़रीद में सीमित दिलचस्पी की एक बड़ी वजह है.
2022 में ऊर्जा मंत्रालय ने ‘इलेक्ट्रिसिटी (प्रमोटिंग RE थ्रो ग्रीन एनर्जी ओपन एक्सेस रूल्स) [GEOAR] 2022’ की शुरुआत की थी. नए नियम के मुताबिक़, ठेके पर 100 किलोवाट या इससे ज़्यादा बिजली की मांग वाला ग्राहक, पहले से तय क़ीमत पर अपनी बिजली वितरण कंपनी से ‘हरित’ बिजली ख़रीद सकता है. हरित बिजली की दर तय करने के लिए राज्यों को GEOAR 2022 के नियमों के तरह केवल (i) RE की औसत सामूहिक बिजली ख़रीद की लागत, (ii) आपूर्ति की औसत लागत के 20 फ़ीसद पर क्रॉस सब्सिडी सरचार्ज और, (iii) सेवा शुल्क (जिसका व्यवहारिक मार्जिन 0.25 रूपए/किलोवाट घंटे ua) का ख़याल रखना होगा. ऊर्जा मंत्रालय सभी राज्यों के बिजली नियामक आयोगों (SERCs) को निर्देश दे रहा है कि वो इन नियमों को अपनाएं. अगर GEOAR 2022 नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी बिजली अपनाने को बढ़ावा देते हैं, तो इससे निजी वितरण कंपनियों के लिए ग्राहकों को RE बिजली उपलब्ध कराने में उस वक़्त मदद मिलेगी, जब ख़ुदरा बिजली के बाज़ार में प्रतिद्वंदियों के दाख़िले को मंज़ूरी दी जाती है.
हरित बिजली को अपनाना
निजी क्षेत्र के दो बिजली आपूर्तिकर्ता, मुंबई में टाटा पावर और अडानी इलेक्ट्रिक ग्राहकों को ग्रीन टैरिफ के ज़रिए 100 प्रतिशत नवीनीकरण योग्य ऊर्जा स्रोतों से बनी बिजली इस्तेमाल करने का विकल्प उपलब्ध कराते हैं. टाटा पावर के मुताबिक़, 27 हज़ार ग्राहकों ने हरित ऊर्जा को अपना लिया है और नवंबर 2023 में एक विशेष त्यौहारी अभियान के तहत 6274 ग्राहकों को RE बिजली अपनाने की प्रक्रिया से जोड़ा गया था. कुल मिलाकर, कहा जा रहा है कि इनमें से 3576 ग्राहक 1 से 100 किलोवाट घंटे वर्ग के दायरे में आते हैं. टाटा पावर का दावा है कि 27 करोड़ किलोवाट घंटे हरित बिजली मुहैया कराने से कार्बन उत्सर्जन दो लाख टन कम हुआ है. ऐसी बिजली पर लगाया गया ग्रीन प्रीमियम, सामान्य बिजली की दर के ऊपर 0.66 रुपए प्रति किलोवाट घंटे अतिरिक्त है. ये नियमों के तहत तय की गई 1.33 रुपए प्रति किलोवाट घंटे की दर से आधा है. मुंबई में टाटा पावर के 762,000 ग्राहक हैं और जिन लोगों ने RE बिजली को अपनाया है, उनकी संख्या महज़ 3 प्रतिशत है. ये बहुत उत्साहवर्धक तादाद तो नहीं है. लेकिन, इसके आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाज़ी होगी.
12 नवंबर 2023 को अडानी इलेक्ट्रिक मुंबई ने दावा किया था कि 1.2 करोड़ लोगों वाले तीस लाख घरों और संस्थाओं ने चार घंटे तक केवल नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी ‘स्वच्छ’ बिजली का उपभोग किया था. 2023 में अडानी इलेक्ट्रिक ने कहा कि वो अपने ग्राहकों की 38 प्रतिशत बिजली की ज़रूरत RE बिजली से पूरी कर रही थी. ये बिजली अडानी इलेक्ट्रिक अपने बिजली निर्माण केंद्रों से हासिल कर रही थी. टाटा पावर की तुलना में नवीनीकरण योग्य स्रोतों से बनी बिजली का इस्तेमाल बढ़ाने का ये थोड़ा अलग मॉडल है. क्योंकि, RE बिजली को इस्तेमाल करने का फ़ैसला मांग के बजाय आपूर्ति के मोर्चे पर किया गया. अडानी इलेक्ट्रिक मुंबई में अपने ग्राहकों को ग्रीन टैरिफ उपलब्ध कराती है. लेकिन, अभी ये आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि कितने ग्राहकों ने इस विकल्प को अपना लिया है.
दिक़्क़तें क्या हैं?
ग्रीन प्राइसिंग के कार्यक्रमों से कारोबारी और औद्योगिक ग्राहक (नियमित बाज़ार) और इसके साथ साथ शहरी अमीर परिवार (स्वैच्छिक बाज़ार) आकर्षित होंगे. ग्रीन प्राइसिंग एक स्वतंत्र विकल्प मुहैया कराती है, जो स्वैच्छिक है और बाज़ार की क़ीमतों पर आधारित भी, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए ज़िम्मेदार बाज़ार, जिसमें नवीनीकरण योग्य ऊर्जा ख़रीदने की बाध्यताओं वाले संगठन (RPOs) भी शामिल हैं. ग्रीन टैरिफ़ न होने की सूरत में वैसे ग्राहक जो हरित बिजली के लिए पैसे चुकाने को तैयार हैं, उनके पास RE बिजली ख़रीदने का माध्यम नहीं होता है. ग्रीन टैरिफ अपनाने का मतलब है कि हरित बिजली को तरज़ीह देने के ग्राहकों के विचारों और जज़्बात को मान्यता मिल जाती है.
बिजली के एक विकेंद्रीकृत बाज़ार में ग्रीन प्राइसिंग के कार्यक्रमों को वितरण के कुछ फ्रैंचाइज़ी (DF) और निजी वितरण लाइसेंस (DL) वाले अपनाएं, ताकि वो बिजली जैसी चीज़ बेचने को अन्य सेवाओं से अलग करके पेश कर सकें.
ये मुमकिन है कि बिजली के एक विकेंद्रीकृत बाज़ार में ग्रीन प्राइसिंग के कार्यक्रमों को वितरण के कुछ फ्रैंचाइज़ी (DF) और निजी वितरण लाइसेंस (DL) वाले अपनाएं, ताकि वो बिजली जैसी चीज़ बेचने को अन्य सेवाओं से अलग करके पेश कर सकें. ग्राहकों के लिए हरित ऊर्जा हासिल करने के मामले में ग्रीन टैरिफ तमाम उपलब्ध विकल्पों में से सबसे आसान तरीक़ा है. क्योंकि सोलर रूफ टॉप सिस्टम लगाने में शुरुआती तौर पर भारी निवेश करना पड़ता है, वहीं OA के प्रावधानों से सीधे तौर पर हरित बिजली ख़रीदना भी अच्छा विकल्प नहीं है, क्योंकि इसमें लेन-देन की भारी लागत चुकानी पड़ती है.
निचली ओर के लाइसेंस मुक्त बिजली बाज़ार में DF और DL द्वारा ग्रीन टैरिफ जैसी व्यवस्थाओं से हरित बिजली की मार्केटिंग करने की संभावना है. इसकी तमाम वजहों में से एक तो ख़ुद की बनाई हरित बिजली का उपभोग बढ़ाना (जैसा मुंबई के मामले में अडानी इलेक्ट्रिक का है) या फिर अपने RPO को हासिल करना है. DF और DL द्वारा हरित बिजली की मार्केटिंग से RE बिजली के लिए ग्राहकों पर केंद्रित बाज़ार विकसित हो सकेगा. हरित बिजली की मांग, जनहित के सार्वजनिक प्रावधानों सरीखा है, जैसे कि स्वच्छ हवा, कम कार्बन उत्सर्जन वग़ैरह. मुंबई में वितरण के लाइसेंसधारकों का अनुभव ये बताता है कि एक प्रतिद्वंदी बाज़ार में ग्रीन मार्केटिंग अपने बल बूते पर RE को एक बड़ा बाज़ार उपलब्ध नहीं करा सकती है. ये बात ख़ास तौर पर तब और सही साबित होती है, जब भारत जैसे क़ीमत के मामले में बेहद संवेदनशील बाज़ार में हरित बिजली की क़ीमत काफ़ी ज़्यादा हो. RE बिजली को लेकर किए गए सर्वेक्षण में ग्राहकों ने इसके प्रति सकारात्मक रुख़ ज़रूर दिखाया था. लेकिन, जब उन्हें इस बिजली के लिए अपनी जेब ढीली करने को कहा जाएगा, तो निश्चित रूप से वो हिचकिचाएंगे. यहां तक कि अमीर ग्राहकों द्वारा भी ‘मुफ़्त की बिजली’ का विकल्प चुनने के लिए ज़्यादा प्रोत्साहन होता है, और इस वजह से उनके जनहित के प्रावधानों में बहुत अधिक योगदान देने की संभावना कम ही है.
उत्तरी अमेरिका और यूरोप के विकसित हो चुके बाज़ारों में ग्राहक हरित बिजली के लिए पैसे ख़र्च करने को तैयार हैं. कई अध्ययनों में इस बात की तरफ़ इशारा करने वाले नतीजे निकले हैं. इन सर्वेक्षणों में से कई इस नतीजे पर पहुंचे थे कि सर्वेक्षण में शामिल 80 से 90 प्रतिशत लोगों ने जवाब मं कहा कि वो पर्यावरण की फ़िक्र करते हैं. पर उनमें से केवल 20 प्रतिशत ने ही हरित बिजली के लिए क़ीमत अदा करने पर सहमति (WTP) जताई थी. जो लोग ऐसी बिजली के लिए पैसे ख़र्च करने की इच्छा शक्ति दिखाते भी हैं, वो अच्छे पढ़े लिखे होते हैं और उनकी आमदनी भी काफ़ी अधिक होती है. जब ये बात भारत में लागू की जाती है, तो सर्वेक्षण में शामिल रिहाइशी इलाक़ों वाले जो लोग भुगतान करने की इच्छा (WTP) जताते हैं, वो उन लोगों की तादाद की तुलना में काफ़ी कम होते हैं, जो सच में हरित बिजली के लिए अपनी जेब ढीली करते हैं. नीतिगत नज़रिए से देखें, तो ख़ुदरा बिजली बाज़ार की गिरावट से हरित बिजली को अपनाने में तेज़ी आने की उम्मीद कम ही है. लेकिन, RE बिजली अपनाने को बढ़ावा देने के लिए तमाम विकल्पों में से एक विकल्प ये भी हो सकता है.
Source: Mercom India Research; Note: only the green premium energy charge that is over and above regular electricity tariff is shown; final green tariff may be higher when fixed charges are included.
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