Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

रूस और चीन को अमेरिका के साथ अपने-अपने रिश्ते से जितना फ़ायदा मिल सकता है, उससे कहीं ज्यादा फ़ायदेमंद दोनों के आपसी संबंध हैं. हालांकि, इसमें अनिश्चितता काफ़ी है.

अमेरिका-चीन व रूस के जटिल और कई परतों वाले बदलते संबंधों पर चीन का नज़रिया!
अमेरिका-चीन व रूस के जटिल और कई परतों वाले बदलते संबंधों पर चीन का नज़रिया!

यूक्रेन पर अमेरिका-रूस के बीच जारी गतिरोध के दौरान, 4 फरवरी को हुई शी-पुतिन की शिखर-वार्ता पर चीनी विमर्श में विरोधाभासी स्वर सुनायी पड़े हैं. एक तरफ़, इस बात का ज़बरदस्त प्रचार रहा कि अमेरिका और यूरोप की ओर से संयुक्त दबाव के चलते चीन और रूस अंतत: साथ आये. दूसरी तरफ़, इसके उलट कहानी यह है कि अमेरिका और यूरोप मुश्किल खड़ी कर रहे हैं, संदेह के बीज बो रहे हैं, अपनी काली छाया डाल रहे हैं, तथा मॉस्को और बीजिंग के बीच दरार चौड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं.

‘चीन-रूस के अघोषित अर्ध-गठबंधन’ के साथ ‘एक नया वैश्विक ध्रुव’ बनने से चीनी टिप्पणीकारों का एक तबका गदगद लग रहा था. उन्होंने कहा कि यह कई पश्चिमी राजधानियों में बैठे नीति-निर्माताओं की ‘रातों की नींद उड़ा’ देगा. हालांकि, उसी समय, अपेक्षाकृत संजीदा नज़रिये भी थे, जिन्होंने इस बैठक का ख़ासकर उस बढ़ती भू-राजनीतिक प्रवृत्ति के परिप्रेक्ष्य में आकलन किया, जहां अमेरिका और पूरे पश्चिमी ब्लॉक को चीन-रूस संबंधों में दख़ल अंदाज़ी करने या उसे क्षति पहुंचाने और दोनों देशों के बीच मनमुटाव के बीज बोने की कोशिश करने वाला समझा जाता है. केवल टिप्पणियों और विश्लेषणों तक यही सीमित नहीं रहा. चीनी उप विदेश मंत्री ली युचेंग ने चीनी मीडिया को ब्रीफ करते हुए न सिर्फ़ चीन-रूस दोस्ती की ‘कोई सीमा नहीं… कोई निषिद्ध क्षेत्र नहीं… कोई हदबंदी नहीं’ वाली प्रकृति की बात की, बल्कि दोनों को बांटने की कोशिशों पर चीन की चिंता भी सामने रखी.

दिलचस्प है कि यूरोप में अमेरिका और रूस के बीच सबसे बड़ा सुरक्षा संकट सामने आने के बावजूद, बीजिंग में चर्चा चीन और रूस के बीच दूरी पैदा करना चाहने की अमेरिका की दीर्घकालिक प्रवृत्ति के बारे में है.

दिलचस्प है कि यूरोप में अमेरिका और रूस के बीच सबसे बड़ा सुरक्षा संकट सामने आने के बावजूद, बीजिंग में चर्चा चीन और रूस के बीच दूरी पैदा करना चाहने की अमेरिका की दीर्घकालिक प्रवृत्ति के बारे में है. हाल के वर्षों में, चीनी रिसर्च की यह अक्सर थीम रही है कि कैसे ‘अमेरिकी हितों पर बहुत कम असर वाली चीन-रूस की सुविधाजनक धुरी’ के पुराने विमर्श की जगह, चीन-रूस के सहकारी रिश्तों के विकास के ख़िलाफ़ अमेरिकी रणनीतिक समुदाय के भीतर ऊंचे दर्जे की चौकसी और दोनों के बीच सहयोग की गति को नुक़सान पहुंचाने (या तो उनके द्विपक्षीय संबंधों में ख़ामियों का फ़ायदा उठाकर या उनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर) में उनकी बढ़ी हुई दिलचस्पी ले रही है. आगे चिंता के साथ यह उल्लेख किया गया कि चीन को अमेरिका के लिए सबसे बड़ा दीर्घकालिक ख़तरा समझे जाने के आधार पर, न सिर्फ़ अमेरिका में बल्कि पूरे पश्चिमी ब्लॉक में चीन को नियंत्रित करने के वास्ते रूस के प्रति अपनी नीतियों को समायोजित करने, रूस के साथ एकता बनाने के लिए आवाज़ तेज़ से तेज़तर होती जा रही है. इस संबंध में, जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल Kay-Achim Schönbach या अमेरिकी सीनेटर जोश हॉले जैसे लोगों द्वारा ज़ाहिर किये गये ‘चीन से लड़ने के लिए रूस की ज़रूरत’ वाले नज़रिये से चीन बेख़बर नहीं है. चीनी आकलन में, ट्रंप प्रशासन के समय से ही अमेरिका का रणनीतिक लक्ष्य चीन को अलग-थलग करने के लिए रूस को अपने पक्ष में करना रहा है; अगर अपने पक्ष में करना संभव न हो, तो चीन-रूस की प्रतिद्वंद्विता में रूस को कम-से-कम तटस्थ रखा ही जाए. समझा जाता है कि ‘कूटनीतिक रूप से ज़्यादा अनुभवी’ बाइडन प्रशासन ने भी रूस के साथ ज़्यादा ‘स्थिर और पूर्वानुमान-योग्य रिश्ते’ के लिए अभी तक अमेरिका-रूस संवाद को प्राथमिकता दी है.

रूस की उलझाऊ चीन ‘नीति’

दूसरी तरफ़, रूस की चीन नीति का चीनी रणनीतिकारों द्वारा अवलोकन भी काफ़ी उलझाऊ है. ‘चीन-अमेरिका की बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और मूलत: उलट क़िस्म के चीन-रूस शक्ति संतुलन के बीच रूस की चीन रणनीति में नयी प्रवृत्तियों’ की चर्चा करते हुए, चीन की फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, लेई जियानफेंग उल्लेख करते हैं कि निर्णय कर पाने में ज़्यादा स्वायत्तता और मौजूदा कूटनीतिक दायरे के विस्तार के इरादे से रूस में दो त्रिकोणीय संबंधों (चीन-अमेरिका-रूस और चीन-रूस-भारत) को एकसाथ समन्वित करने की रणनीतिक प्रवृत्ति है. [1]

चीनी पर्यवेक्षक इस बात का अफ़सोस करते हैं कि कैसे इन नये हालात में भी, रूस अब भी मानता है कि वह अमेरिका के साथ एक असमकक्ष असमरूप खेल के बजाय एक समकक्ष खेल (peer game) में है [2] और इस तरह वह चीन-अमेरिका की द्विध्रुवीय प्रतिस्पर्धा में एक सहायक भूमिका (चीन के छोटे ऊर्जा साझेदार की) निभाना नहीं चाहता, बल्कि इस त्रिकोण में एक स्वतंत्र ध्रुव बनना चाहता है [3]. इसलिए, चीन के साथ अपने रिश्तों का अमेरिका के ख़िलाफ़ एक रणनीतिक प्रति-भार (काउंटरवेट) और भूराजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए, वह इसके साथ ही साथ संवाद के नये रास्ते खोलने और अमेरिका के साथ बेहतर रिश्तों के लिए जतन की कोशिश करता है [4] . दूसरी तरफ़, चीन के साथ अपने शक्ति अंतराल (स्ट्रेंथ गैप) और चीन-रूस संबंधों में संभावित जोख़िमों (जैसे चीन की अपनी सुरक्षा और विकास में अनिश्चितता, अगर चीन भविष्य में ज़्यादा मज़बूत हो गया तो चीन की रूस नीति में बदलावों की संभावना, आर्थिक या अन्य तरह से रूस की चीन पर अतिनिर्भरता) की भरपाई के लिए, रूस पूरी शिद्दत से भारत के साथ रिश्ते विकसित करना चाहता है, और इसे चीनी प्रभावी के ख़िलाफ़ मोल-भाव करने के एक महत्वपूर्ण पत्ते की तरह इस्तेमाल करना चाहता है [5]. रूस-भारत संबंध रूस को न सिर्फ़ चीन-रूस संबंधों में अपनी पहलक़दमी को बनाये रखने में मदद करते हैं, बल्कि इसके साथ ही रूस को अमेरिका तक पहुंचने के लिए मौक़ा/मंच मुहैया कराते हैं, जो भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी की वजह से है. ऐसा देखा गया है कि बदले में रूस भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को एक हद तक बढ़ाने में और चीन के समक्ष उसकी मोल-भाव की शक्ति को बल प्रदान करने में मदद करता है [6].

रूस-भारत संबंध रूस को न सिर्फ़ चीन-रूस संबंधों में अपनी पहलक़दमी को बनाये रखने में मदद करते हैं, बल्कि इसके साथ ही रूस को अमेरिका तक पहुंचने के लिए मौक़ा/मंच मुहैया कराते हैं, जो भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी की वजह से है

चीन-रूस-अमेरिका संबंधों की इस जटिल गतिकी की पृष्ठभूमि में, यूक्रेन में मौजूदा गतिरोध को चीन में अमूमन अमेरिका और रूस के बीच अंत:क्रिया के नये तरीक़े के बतौर देखा जा रहा है- यानी, ट्रिगर पर उंगली रखकर एक-दूसरे से बातचीत चाहना [7]. तर्क दिया जाता है कि रूस ने पश्चिम के सामने अपनी विभिन्न मांगों को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिकी शक्ति में अपेक्षाकृत गिरावट के समग्र पैटर्न, पश्चिमी ख़ेमे में कूटनीतिक अव्यवस्था, बड़ी ताक़तों के बीच वैश्विक खेल में गतिरोध और चीनी चुनौती का सामना करने के लिए पश्चिमी ख़ेमे के भीतर एक तबके में रूस को जोश दिलाने की बढ़ती इच्छा के मौक़े को झपट लिया है. दूसरी तरफ़, रूस के साथ नियंत्रित टकराव अमेरिकों हितों के अनुकूल भी है, क्योंकि यूरोप में स्थिति जितनी तनावपूर्ण होगी नेटो की वैधता भी उतनी ही ज़्यादा होगी, जो अमेरिकी गठबंधन तंत्र के भीतर बेहतर एकजुटता और तालमेल सुनिश्चित करेगा.

अमेरिका-चीन संबंधों के बीच तेज़ होती प्रतिस्पर्धा के एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति बनने के साथ, चीन उम्मीद करता है कि भविष्य में रूस-अमेरिका टकराव का स्तर अंतत: एक हद तक कम हो जायेगा. 

जटिल और बहु-परतीय खेल

जब यूक्रेन पर अमेरिका-रूस में ठनी हुई है, चीन की सबसे बड़ी चिंता यह लगती है कि कैसे यह सुनिश्चित किया जाए कि अगर कम लागत पर अमेरिका के साथ सहकारी संबंध विकसित करने का मौका बनने की स्थिति से सामना होता है, तो रूस चीनी हितों की बलि चढ़ाना न चुने और चीन की क़ीमत पर अमेरिका के साथ समझौते के लिए राज़ी न हो [8]. चीनी रणनीतिकार स्वीकार करते हैं कि फ़िलहाल चीन-रूस सहकार से एक-दूसरे को होने वाले फ़ायदे दोनों के अमेरिका के साथ अपने-अपने सहकार से होने वाले फ़ायदे से ज़्यादा नहीं हैं, जो संबंधित देश की अंतरराष्ट्रीय हैसियत में बड़ा बदलाव ला सकता है, उसके प्रतिकूल सुरक्षा वातावरण को बेहतर बना सकता है, और इसके अलावा पूंजी व तकनीक के लिहाज़ से बेजोड़ अवसर मुहैया करा सकता है [9]. नतीजतन, यह माना जाता है कि दोनों ही पक्षों के लिए अमेरिका के साथ सहकार अब भी एक आकर्षण रखता है और अब भी चीन-रूस संबंधों के भीतर धोखे और विश्वासघात के लिए काफ़ी गुंजाइश है [10]. अमेरिका-चीन संबंधों के बीच तेज़ होती प्रतिस्पर्धा के एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति बनने के साथ, चीन उम्मीद करता है कि भविष्य में रूस-अमेरिका टकराव का स्तर अंतत: एक हद तक कम हो जायेगा. अब, चीनी रणनीतिक समूहों में यह सवाल घूम रहा है कि ऐसी स्थिति में, पीठ में छुरा घोंपे जाने या एक असुविधाजनक दो-मोर्चों वाली चुनौती में फंसने के जोख़िम को कैसे कम किया जाए? ज़रूरत के वक़्त में रूस से रणनीतिक मदद या समर्थन की गारंटी कैसे की जाए- दोनों देशों के हितों को आबद्ध करके (तरजीही तौर पर प्राकृतिक गैस की आपूर्ति-मांग का एक मज़बूत रिश्ता स्थापित करने के ज़रिये), या सहकार के फ़ायदों का मुनासिब बंटवारा सुनिश्चित करके, या फिर आशंकित पाला-बदल को एक महंगा सौदा बनाकर [11].

कुल मिलाकर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अभी यूरोप में चीन, अमेरिका और रूस के बीच एक बहुत जटिल और बहु-परतीय खेल चल रहा है. यह यहां से किस तरह आगे बढ़ता है, यह देखा जाना अभी बाक़ी है.


[1] Lei Jianfeng, “Balancing China and the United States and Hedging with India: New Trends in Russia’s Strategy towards China”, 俄罗斯研究 2021, (01),43-73

[2] Han Lu, Liu Feitao, “A Study on the Major-Country Interaction in the China-US-Russia Triangular Relationship amid Great Changes”, Peace and Development. 2021(04) Page:26-46

[3] Zhao Huasheng , “China-Russia-US Relations and International Structure: From Multipolarity to Bipolarity?”, Journal of International Relations. 2020(04) Page:3-20

[4] Lei Jianfeng, “Balancing China and the United States and Hedging with India: New Trends in Russia’s Strategy towards China”, 俄罗斯研究 2021,(01),43-73

[5] Ibid.

[6] Ibid.

[7] Ibid.

[8] Han Lu, Liu Feitao, “A Study on the Major-Country Interaction in the China-US-Russia Triangular Relationship amid Great Changes”, Peace and Development. 2021(04) Page:26-46

[9] Yang Lei, “Analysis on the Effects of the US Policy to Divide Sino-Russian Cooperation: From the Perspective of Game Theory”, Russian, East European & Central Asian Studies. 2021(03) Page:39-57

[10] Ibid.

[11] Ibid.

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