अमेरिका और चीन के बीच ‘चिप युद्ध’ उनके प्रतिस्पर्धा वाले संबंध के संरचनात्मक समीकरण का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है. चूंकि बाइडेन प्रशासन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को नियमों के दायरे में लाना चाहता है, डेटा का प्रबंधन करना चाहता है और द्विपक्षीय तनाव में बढ़ोतरी को रोकते हुए चीन के ऊपर तकनीकी बढ़त सुरक्षित करना चाहता है, ऐसे में बाइडेन प्रशासन के द्वारा चीन पर थोपा गया चिप रेगुलेशन दोनों देशों के बीच प्रतिस्पर्धा में एक केंद्र बिंदु बनकर उभरा है.
हाल के वर्षों में चिप की भू-राजनीति और उनके व्यापार को नियंत्रित करने वाले रेगुलेशन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गए हैं. ये ख़ास तौर पर अमेरिका-चीन के संबंधों में दिखता है. दुनिया के मंच पर अलग-अलग देशों ने मुख्य रूप से आधुनिक चिप उत्पादन के ज़रिए डेटा को प्रोसेस, स्टोर और जमा करने की क्षमता में बढ़ोतरी की है और पूर्वानुमान को सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन का पुनर्गठन किया है. अमेरिका में बाइडेन प्रशासन से पहले घरेलू और बाहरी- दोनों तरह की पहल का लक्ष्य चीन के ऊपर बढ़त हासिल करना था. इस दिशा में ट्रंप प्रशासन का शुरुआती कदम एक एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर (कार्यकारी आदेश) था जिसके ज़रिए सिंगापुर की कंपनी ब्रॉडकॉम के द्वारा अमेरिका के बड़े चिप उत्पादक क्वालकॉम के टेकओवर (नियंत्रण में लेना) को रोका गया. ये कार्रवाई चीन के साथ व्यापक ‘व्यापार युद्ध’ में समाहित हो गई.
हाल के वर्षों में चिप की भू-राजनीति और उनके व्यापार को नियंत्रित करने वाले रेगुलेशन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गए हैं. ये ख़ास तौर पर अमेरिका-चीन के संबंधों में दिखता है..
बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की सत्ता आने के साथ अमेरिका और चीन के बीच सहयोग की उम्मीदों का उदय हुआ. हालांकि ये उम्मीदें बाइडेन के द्वारा उठाए गए सख्त कदमों के साथ धूमिल हो गईं. इन कदमों में चीन को सेमीकंडक्टर के निर्यात पर नियंत्रण के लिए 7 अक्टूबर 2022 को लिया गया ऐतिहासिक फैसला और ‘आपात स्थिति’ का ज़िक्र करके चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग में अमेरिकी निवेश पर नियंत्रण करने के लिए 9 अगस्त 2023 का चिप्स एंड साइंस एक्ट शामिल हैं.
तकनीक का उत्पादन
2022-2023 की अवधि के दौरान चिप के उत्पादन और इससे जुड़े सप्लाई चेन में अमेरिका के दबदबे को बरकरार रखने के लिए बाइडेन प्रशासन की तरफ से मज़बूत क़ानूनी हस्तक्षेप किया गया है. सेमीकंडक्टर का आविष्कार अमेरिका ने किया लेकिन आज वो दुनिया में सेमीकंडक्टर की कुल सप्लाई के सिर्फ 10 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन करता है. अमेरिका के वाणिज्य विभाग के प्रतिबंधों का उद्देश्य केवल चीन के द्वारा आधुनिक कंप्यूटिंग चिप्स, सुपर कंप्यूटर और आधुनिक सेमीकंडक्टर के उत्पादन के लिए निर्यात नियंत्रण को सीमित करना है. कुछ निर्यात नियंत्रणों का मक़सद सुपर कंप्यूटर के साथ-साथ चिप उत्पादन के उपकरणों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले सामानों के लिए नई लाइसेंस ज़रूरतों की तरफ हैं जिन पर पाबंदी नहीं लगाई गई तो चीन को फायदा हो सकता है. इन अत्याधुनिक तकनीकों में “नॉनप्लानर ट्रांज़िस्टर आर्किटेक्चर के साथ लॉजिक चिप्स या 16-14 नैनोमीटर या कम के प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी नोड के साथ 18 नैनोमीटर (nm) हाफ-पिच या कम का डायनेमिक रैंडम-एक्सेस मेमोरी (DRAM) चिप्स; या 128 लेयर या ज़्यादा के साथ NAND फ्लैश मेमोरी चिप्स” शामिल हैं. एक व्यापक नियम के तौर पर चिप का आकार जितना छोटा होगा, उसकी क्षमता उतनी ही आधुनिक होगी. हुआवे की पिछले दिनों की कामयाबी, जिसके तहत वो देश में ही 7 nm की चिप को विकसित करने का दावा करती है, जितना अमेरिकी पाबंदियों के सीमित असर की तरफ इशारा करती है, उतना ही ग्लोबल सप्लाई चेन में दरार और संभावित रुकावटों की तरफ भी करती है.
नई और उभरती तकनीकों को लेकर विदेशी निर्भरता से दूर रहने के लिए घरेलू इकोसिस्टम विकसित करने की चीन की अपील ने अमेरिका को ज़्यादा सावधान बना दिया है. अगस्त 2023 के बाइडेन के एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर ने तीन क्षेत्रों में चीनी संस्थानों में अमेरिकी निवेश पर पाबंदी लगाने की कोशिश की: सेमीकंडक्टर एवं माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, क्वॉन्टम इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और कुछ ख़ास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम. पहली बार अमेरिका ने न केवल लोगों एवं उत्पादों के आदान-प्रदान को सीमित किया बल्कि पूंजी का भी. इस साल अक्टूबर में ताज़ा एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर के ज़रिए बाइडेन प्रशासन ने तकनीक एवं डेटा नियंत्रण की दिशा में एक और कदम उठाते हुए श्रम बाज़ार पर AI के असर को लेकर नए सुरक्षा मूल्यांकनों, समानता एवं नागरिक अधिकारों के मार्गदर्शन एवं रिसर्च को आवश्यक बना दिया.
नई और उभरती तकनीकों को लेकर विदेशी निर्भरता से दूर रहने के लिए घरेलू इकोसिस्टम विकसित करने की चीन की अपील ने अमेरिका को ज़्यादा सावधान बना दिया है.
एक असरदार आर्थिक और तकनीकी शक्ति के रूप में चीन ने भी अमेरिका के ख़िलाफ़ जवाबी कदम उठाए हैं. चीन ने सेमीकंडक्टर के दो महत्वपूर्ण घटकों- जर्मेनियम और गैलियम- के निर्यात पर अतिरिक्त शर्तें थोपी हैं. इसके अलावा उसने चीन की कंपनियों को अमेरिका के माइक्रोन चिप्स की बिक्री को गैर-कानूनी बना दिया है. 20 अक्टूबर को चीन ने अमेरिकी रेगुलेशन के विस्तार की प्रतिक्रिया में ख़ास ग्रेफाइट उत्पादों पर ताज़ा निर्यात प्रतिबंध लागू किए हैं. दोनों ही मामलों में चीन ने दुनिया के महत्वपूर्ण कच्चे माल और खनिज सप्लाई चेन पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल करते हुए पश्चिमी देशों के द्वारा व्यापक आर्थिक सुरक्षा उपायों के ख़िलाफ़ जवाब दिया है. दुनिया में लगभग 60 प्रतिशत जर्मेनियम और 90 प्रतिशत गैलियम का उत्पादन चीन में होता है. चूंकि ग्रेफाइट इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए ग्रेफाइट के निर्यात पर चीन की पाबंदी का EV बैटरी के उत्पादन उद्योग पर ज़्यादा असर होने की संभावना जताई जा रही है. इस आर्थिक-सुरक्षा संघर्ष में बढ़ोतरी में एक बड़ा जोखिम ये है कि कच्चे माल पर चीन का नियंत्रण महत्वपूर्ण, उभरती और हरित तकनीकों के उत्पादन की क्षमता में गंभीर रुकावट डाल सकता है. आगे बढ़ने के साथ ये फायदे चीन के लिए वैसे आर्थिक और भू-राजनीतिक हालात बना सकते हैं जिनकी आवश्यकता नहीं है. इनकी वजह से संभवत: अमेरिका और उससे जुड़ी सप्लाई चेन के लिए कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है.
7 अक्टूबर 2022 के निर्यात नियंत्रण प्रतिबंध- अमेरिका-चीन के बीच चिप के मुकाबले में एक शुरुआती कदम- का अमेरिका के उद्योग पर दो प्रमुख प्रभाव पड़ा है: अत्याधुनिक चिप और उससे जुड़ी तकनीकों के लिए चीन के बाज़ार की मांग में कमी और चीन के द्वारा जवाबी नियंत्रण और प्रतिबंध की वजह से भू-राजनीतिक मुकाबले में बढ़ोतरी. पिचबुक डेटा के अनुसार, चीन में अमेरिका का कुल वेंचर कैपिटल इन्वेस्टमेंट 2021 के 32.9 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में घटकर 9.7 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. 2023 में तो अभी तक चीन के टेक स्टार्ट-अप में अमेरिका की वेंचर कैपिटल कंपनियों ने सिर्फ़ 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. अमेरिका की सेमीकंडक्टर कंपनियों का एक-तिहाई राजस्व चीन को बिक्री से आता है. कुछ अमेरिकी कंपनियों के लिए तो ये आंकड़ा 70 प्रतिशत तक हो सकता है. इस तरह अमेरिका अपनी ही सेमीकंडक्टर कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है और अगर वो इंडो-पैसिफिक में सप्लाई चेन नेटवर्क तैयार करने की दिशा में धीमी गति से आगे बढ़ता है तो वो चीन समेत विदेशी प्रतिस्पर्धियों के लिए जगह छोड़ देगा. चिप और सेमीकंडक्टर उपकरण पर मौजूदा निर्यात प्रतिबंध अमेरिकी कंपनियों के लिए संभावित बाज़ार का आकार छोटा करता है जो कि संभवत: मध्य से लेकर दीर्घकाल में अमेरिका के प्रतिस्पर्धी लाभ को कमज़ोर कर सकता है. अमेरिका सिर्फ़ चीन से ही आयात नहीं करता है लेकिन 33 प्रतिशत के साथ चीन अमेरिका में आयात का सबसे बड़ा स्रोत है. साथ ही, चीन अपने यहां तस्करी से जुड़े मुद्दों और अपनी निर्भरता कम करने के आयातकों के संकल्प की वजह से जर्मेनियम और गैलियम पर निर्यात प्रतिबंधों से उम्मीद के मुताबिक नतीजे शायद हासिल नहीं कर सके.
चिप की रेस में वर्चस्व के लिए अमेरिका-चीन के मुकाबले को पूरी तरह एक आर्थिक नज़रिए या एक व्यापार युद्ध के रूप में देखना अदूरदर्शिता होगी.
ऐसा लगता है कि ‘चिप युद्ध’ अपने बताए गए उद्देश्य से दूर है. जटिल ढंग से एक-दूसरे पर निर्भरता के युग में अपनी इच्छा के मुताबिक नतीजे हासिल करने में प्रतिबंधों और निर्यात नियंत्रणों का असर सहयोगियों और विरोधियों- दोनों के बीच तकनीकी क्षमता के प्रसार से संकट में पड़ सकता है. ये चुनौती ख़ास तौर पर अमेरिका के लिए स्पष्ट हो सकती है क्योंकि उसके साझेदारों, दोस्तों और सहयोगियों का एक बड़ा नेटवर्क है. विकसित हो रहा सेमीकंडक्टर उद्योग रक्षा को प्रभावित करने की काफी क्षमता रखता है, विशेष रूप से इसलिए क्योंकि सेमीकंडक्टर चिप का दोहरे उद्देश्य के लिए उपयोग हो सकता है. ये AI के साथ उनके एकीकरण को चिंता का विषय बनाता है.
आगे कि राह
जब हम एक नए डिजिटल युग की शुरुआत कर रहे हैं, उस समय समाज के भीतर और अलग-अलग देशों के बीच तकनीकों पर अधिकार, इनोवेशन और नियंत्रण के लिए संघर्ष महाशक्तियों की राजनीति के परिदृश्य को आकार देगा. ऐतिहासिक रूप से तकनीकी प्रगति दुनिया में शक्तियों की संरचना में बदलाव के पीछे की वजह रही है. 19वीं सदी में ब्रिटेन ने औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व किया जबकि अंतरिक्ष, परमाणु एवं अन्य महत्वपूर्ण तकनीकों के नियंत्रण और इनोवेशन को लेकर अमेरिका एवं पूर्ववर्ती सोवियत संघ के बीच मुकाबले ने 20वीं सदी के बाद के समय में शक्ति के समीकरण को परिभाषित किया. सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच मुकाबले की गूंज बाद में सुनाई देना तय है.
सेमीकंडक्टर का मुकाबला अलग-अलग क्षेत्रों, रिमोट कंट्रोल से लेकर AI तक और कृषि से लेकर उड्डयन तक, में इसकी तकनीक के व्यापक उपयोग की वजह से अलग है. कैंटलमो और क्रेप्स जैसे विद्वान कंप्यूटिंग पावर और रोबोटिक्स में तरक्की की वजह से महाशक्तियों की रणनीति में बदलाव की सलाह देते हैं. इसके परिणामस्वरूप, चिप की रेस में वर्चस्व के लिए अमेरिका-चीन के मुकाबले को पूरी तरह एक आर्थिक नज़रिए या एक व्यापार युद्ध के रूप में देखना अदूरदर्शिता होगी. इस मुकाबले का इस ज़माने में महाशक्तियों की राजनीति के लिए आवश्यक कई अन्य क्षेत्रों पर गहरा असर पड़ने की संभावना है.
विवेक मिश्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
पंकज फणसे ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.
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