Author : Pushan Das

Published on Oct 23, 2017 Updated 0 Hours ago

जिस तरह से इस क्षेत्र में स्टेल्थ विमान का उपयोग बढ़ रहा है उसके बाद भारतीय वायु सीमा में चीन की ओर से किसी हवाई हमले या घुसपैठ की आशंका को ले कर भारतीय वायु सेना को हमेशा तैयार रहना होगा।

चीनी लड़ाकू स्टेल्थ विमान और हम

चेंगदू एरोस्पेस कॉरपोरेशन में बने दो इंजन और एकल सीट वाले स्टेल्थ लड़ाकू विमान जे-20 ए, जिन्हें लंबी दूरी के मिशन के लिए तैयार किया गया है।

यह The China Chronicles सीरीज का 35वां हिस्सा है।

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चेंगदू जे-20 ए के रूप में पांचवीं पीढ़ी के अपने पहले लड़ाकू विमान को बेड़े में शामिल कर पीपुल्स लिबरेशन आर्मी वायु सेना (पीएलएएएफ) अपनी युद्धक क्षमता में बहुत बड़ा बदलाव लाने जा रही है। जे-20 ए लड़ाकू विमानों के शामिल होने के साथ ही एशिया प्रशांत देशों की सेनाओं के सामने एक बिल्कुल अलग तरह का और बहुत व्यापक खतरा पैदा हो जाएगा। अब तक चीनी हवाई शक्ति मुख्य रूप से रूसी एसयू-30 और 35 फ्लैंकर परिवार के विमानों पर निर्भर करती थी और यही उसकी मुख्य ताकत थे। जे-20 ए ऐसे विमान हैं जिनकी मदद से अगर चीन ने किसी गतिरोध की स्थिति में भारतीय सीमा में हमला किया तो इन्हें पकड़े जाने की बहुत कम संभावना होगी। उधर, भारतीय वायु सेना जो अपनी लड़ाकू क्षमता के लिए पहले से ही संघर्ष कर रही है, उसके लिए चीनी हवाई बेड़े की क्षमता में हुए इस ताजा विस्तार के बाद बहुत रचनात्मक तरीके से और लागत सीमित रखते हुए इससे निपटने की तैयारी करनी होगी। क्योंकि इसे अपने रक्षा बजट की सीमाओं का भी ध्यान रखना है।

चीन की पीएलएएएफ एक क्षेत्रीय शक्ति से ऐसी महाशक्ति बनने जा रही है जो रक्षात्मक के साथ ही आक्रामक ऑपरेशनों को भी आसानी से अंजाम दे सकेगी और इस कायापलट के लिहाज से स्टेल्थ तकनीक बहुत अहम भूमिका निभाएगी। चेंगदू एरोस्पेस कॉरपोरेशन की ओर से बनाए गए दो इंजन वाले जे-20 ए एकल सीट वाले ऐसे लड़ाकू विमान है जिसकी दुश्मन टोह नहीं लगा पाता। इसे लंबी दूरी के लड़ाकू मिशन के लिए तैयार किया गया है और यह किसी संघर्ष के शुरुआती दौर में राडार की पकड़ में नहीं आ पाने की अपनी क्षमता की वजह से अग्रिम चौकियों को नुकसान पहुंचाने में काफी अहम भूमिका निभा सकता है। इस काम में लंबी दूरी की इसकी क्षमता और भारी गोला-बारूद ढोने की शक्ति इसकी मददगार साबित होगी।

चीन की पीएलएएएफ एक क्षेत्रीय शक्ति से ऐसी महाशक्ति बनने जा रही है जो रक्षात्मक के साथ ही आक्रामक ऑपरेशनों को भी आसानी से अंजाम दे सकेगी और इस कायापलट के लिहाज से स्टेल्थ तकनीक बहुत अहम भूमिका निभाएगी।

हवा से हवा में मार करने के लिए जे-20 ए में हथियार के तीन गलियारे हैं, साथ ही कई तरह की मिसाइल और जमीन पर मार करने वाले हथियारों की जगह भी है। जे-20 ए में सक्रिय एलेक्ट्रॉनिक तरीके से स्कैन की जा सकने वाली व्यूह (एईएसए) रडार, नॉन माउंटेड इनफ्रारेड सर्च और ट्रैकिंग सेंसर और फ्यूसलेज माउंटेड कैमरा होते हैं जो इसके पायलट को पूरे 360 डिग्री तक देख सकने की क्षमता देते हैं। आने वाले समय में जैसे-जैसे यह लड़ाकू विमान और विकसित होगा ये क्षमताएं और बढ़ेंगी। साथ ही चीन के प्रतिद्वंद्वी वायु सेनाओं को चुनौती भी बढ़ेगी।

भारतीय वायु सेना के मौजूदा बेड़े के पुराने पड़ रहे लड़ाकू विमानों में सबसे ज्यादा तो सुखोई-30 एमकेआई हैं जिनके लिए जे-20 ए जैसे विमानों का सामना करना काफी मुश्किल होगा। स्टेल्थ विमान के पास एसयू-30 एमकेआई विमानों का दूर से ही पता लगा लेने की क्षमता होगी और इस तरह वह इससे बच पाने में सक्षम होगा और साथ ही हमला करने में भी वह बेहतर स्थिति में होगा।

भविष्य में चीन की ओर से किसी हमले या घुसपैठ की स्थिति में भारतीय वायु सेना की रक्षा करने के लिहाज से भारतीय वायु सेना को स्टेल्थ लड़ाकू विमानों की बढ़ती उपलब्धता का ध्यान रखना होगा। इस समय भारतीय वायु सेना अपने बेड़े की गुणवत्ता और संख्या दोनों ही लिहाज से अपनी कमियों को दूर करने की तैयारी में है और खरीद की अपनी मुश्किल प्रक्रिया के सहारे 2032 तक इसे 42 लड़ाकू बेड़ों की क्षमता हासिल कर लेने की उम्मीद है। चीन और पाकिस्तान के साथ एक साथ होने वाले किसी संघर्ष की स्थिति में इतने बड़े की क्षमता इसके लिए जरूरी है।

भारतीय वायु सेना को चीन के स्टेल्थ लड़ाकू विमान जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए ज्यादा लचीले रवैये की जरूरत है। ऐसे में एक उपाय तो यह हो सकता है कि यह आधुनिक एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (अवैक्स) विमान हासिल करे जो वायु सेना की परिस्थितिजन्य सूचना को बेहतर कर सके तथा साथ ही चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के बेहतर उपयोग में मदद करे। दूसरा उपाय यह हो सकता है कि यह आधुनिक आक्रामक जमीन-आधारित एकीकृत हवाई रक्षा व्यवस्था (आईएडीएस) विकसित करे और साथ ही चीन से सुरक्षित रहने के लिए स्टेल्थ प्रतिरोधी क्षमता वाली सुरक्षा व्यवस्था तैयार करे। इसके साथ ही थोड़ी संख्या में चौथी और 4.5 पीढ़ी के बहुउपयोगी लड़ाकू विमान हासिल करे जो एक हद तक वायु सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकें। आसानी से पकड़ में नहीं आने वाले विमानों के भारतीय वायु सेना में घुसपैठ से निपटने के लिहाज से यही मिली-जुली व्यवस्था बेहतर होगी। भारतीय वायु सेना के लिए खरीदे जा रहे या विकसित किए जा रहे विमानों के मुकाबले यह व्यवस्था ऐसी स्थिति से निपटने में ज्यादा कारगर होगी। दूसरे विकल्प के लिहाज से पहला चरण रूस से लंबी दूरी की एस- 400 वायु सुरक्षा व्यवस्था हासिल करना हो सकता है।

भारतीय वायु सेना को स्टेल्थ जैसी तकनीक से लैस चीन की मारक क्षमता का सामना करने के लिए काफी रचनात्मक तरीका निकालना होगा।

आलोचकों का कहना है कि जहां तक जे-20 ए या रूसी सुखोई टी-50 जैसे विमानों का सवाल है पांचवीं पीढ़ी के दिखने वाले विमानों के प्रोटोटाइप तो विकसित करना आसान है, लेकिन वास्तव में ऐसे विमानों को पर्याप्त संख्या में तैयार करना बहुत मुश्किल है जो वास्तव में पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की तरह प्रदर्शन करते हों। खास तौर पर दूश्मनों कि निगाह से बचने और सेंसर फ्यूजन सक्षम स्थितिजन्य सूचना तंत्र वाले ऐसे विमान तैयार करना आसान नहीं है।

जहां पश्चमी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान तो फिर भी दुश्मनों की निगाह से बचने वाली तकनीक और स्थितिजन्य सूचना तंत्र के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हो सकते हैं। लेकिन एक बार चीनी पीएलएएएफ में जे-20 ए के पर्याप्त संख्या में शामिल हो जाने के बाद यह भारत सहित एशिया की सेनाओं के मुकाबले काफी व्यापक क्षमता वाली सेना होगी।

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