अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और वित्त मंत्री जेनेट येलेन के चीन दौरे के बाद जो सवाल खड़ा होता है वो है: आखिर अमेरिकी क्या कर रहे हैं? एक तरफ तो अमेरिका चीन को प्रौद्योगिकी के निर्यात पर पाबंदी सख्त करने में लगा हुआ है, दूसरी तरफ अमेरिकी कहते हैं कि ये एक छोटे लक्ष्य के लिए बनाई गई नीति है जिसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं हैं और दोनों देशों के बीच व्यापक संबंध को प्रभावित नहीं करता है या नहीं करना चाहिए.
हालांकि, वास्तविक व्यवहार में अमेरिका का चिप बैन न सिर्फ़ मिलिट्री एप्लिकेशन पर निशाना साध रहा है बल्कि एक आर्थिक ताकत के रूप में चीन के विकास पर लगाम लगाने की भी कोशिश की जा रही है और कुछ लोगों ने तो इसकी तुलना “युद्ध के कदम” से कर दी है. अमेरिका ने इस उद्देश्य से कई कदम उठाए हैं और अपने प्रमुख सहयोगियों जैसे कि जापान और नीदरलैंड्स को भी अपनी पाबंदी की कार्रवाई में शामिल होने के लिए मनाने में सफल रहा है. अब अमेरिका चीन को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चिप्स के निर्यात पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है जिसका उद्देश्य चीन के द्वारा AI कैपेसिटी बनाने को प्रभावित करना है. ये उपाय इस तरह के चिप्स बनाने और बेचने वाली एनवीडिया और AMD जैसी अमेरिकी कंपनियों पर बुरा असर डालेगा. अमेरिका चीन में अमेरिकी निवेश पर पाबंदी लगाने के लिए एक कार्यकारी आदेश (एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर) जारी करने की संभावना पर भी विचार कर रहा है.
अमेरिका का चिप बैन न सिर्फ़ मिलिट्री एप्लिकेशन पर निशाना साध रहा है बल्कि एक आर्थिक ताकत के रूप में चीन के विकास पर लगाम लगाने की भी कोशिश की जा रही है और कुछ लोगों ने तो इसकी तुलना “युद्ध के कदम” से कर दी है.
चीन भी कोई झुकने वाला देश नहीं है और वो अपनी नीतियों के साथ जवाब दे रहा है. इसकी वजह से सेमीकंडक्टर मार्केट में अव्यवस्था और बढ़ रही है. चीन ने पहले ही अमेरिका की बड़ी चिप कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजीज़ पर कार्रवाई की है और जेरेनियम और गैलियम जैसी दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर बैना लगा दिया है जिनका इस्तेमाल चिप्स के उत्पादन समेत हाई-टेक काम में होता है. 1 जुलाई को चीन ने एक नये जासूसी विरोधी कानून को लागू करने का एलान किया जो सरकार की छानबीन की ताकत का विस्तार करता है. हाल के समय में चीन ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देकर चीन में काम करने वाली कई अमेरिकी कंपनियों की छानबीन की है.
अपने चिप्स और साइंस एक्ट के ज़रिए अमेरिका ने संकेत दिया है कि उसका इरादा अपने सेमीकंडक्टर उद्योग के सबसे सामरिक तत्वों को अपने ही देश में या मित्र देशों में स्थापित करना है. लेकिन जिन कंपनियों को वो वापस बुलाना चाहता है, उनका चीन में एक बड़ा बाज़ार है क्योंकि चीन में कार, स्मार्टफोन, डिशवॉशर और कंप्यूटर की बहुत ज़्यादा खपत है और अमेरिका की कई कंपनियां अपने फायदे के लिए चीन पर निर्भर हैं. अभी तक के हालात के मुताबिक अमेरिका की ये कंपनियां चीन में अपना कारोबार छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. कुल मिलाकर दुनिया में सेमीकंडक्टर की कुल बिक्री में एक-तिहाई हिस्सा अकेले चीन का है.
माइक्रोन पर रोक
जापान और नीदरलैंड्स, जिनकी प्रमुख कंपनियां आधुनिक चिप मैन्युफैक्चरिंग मशीन बनाने में लगी हुई हैं, को अमेरिका ने चीन पर प्रतिबंध लगाने के लिए मनाया है.
चीन पर पाबंदी का तुरंत असर अमेरिका की कंपनियों पर होता है. माइक्रोन टेक्नोलॉजीज़, जिसके चिप्स को महत्वपूर्ण सूचना की देखरेख करने वाली चीन की कंपनियों के द्वारा इस्तेमाल करने पर, वहां की सरकार ने रोक लगा दी है, कहती है कि ये बदली हुई परिस्थिति दुनिया भर में उसके राजस्व के लगभग आठवें हिस्से को प्रभावित कर सकती है. माइक्रोन ने ख़ुद भी ये साफ किया है कि अपने प्रोडक्ट पोर्टफोलियो का समर्थन करने के लिए वो अगले कुछ वर्षों में शियान में 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है.
इस बात को लेकर गंभीर शक है कि क्या सेमीकंडक्टर पर नियंत्रण से कुछ बदलाव आएगा. चिप्स का साइज़ बहुत छोटा होता है और इसे आसानी से छिपाया जा सकता है. पहले से ही बड़ी संख्या में चिप्स की तस्करी हो रही है. रूस और चीन के द्वारा स्थापित शेल कंपनियां कुछ हद तक अमेरिका की कानूनी पाबंदियों से बचकर निकलने में कामयाब रही है. चीन अपनी कंपनियों के ज़रिए नये-नये तरीकों की भी तलाश कर रहा है ताकि अमेरिकी प्रतिबंध को दरकिनार किया जा सके.
इसके परिणामस्वरूप अमेरिकी प्रशासन चीन की AI कंपनियों को क्लाउड सर्विसेज़ लीज़ करने पर प्रतिबंध लगाने का विचार भी कर रहा है क्योंकि चीन की कंपनियों ने इस तरह की व्यवस्था का इस्तेमाल आधुनिक चिप के निर्यात पर बैन से बचकर निकलने के लिए किया है.
माइक्रोन ने ख़ुद भी ये साफ किया है कि अपने प्रोडक्ट पोर्टफोलियो का समर्थन करने के लिए वो अगले कुछ वर्षों में शियान में 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की योजना बना रही है.
ये सभी कदम चिप उद्योग में ASML जैसी दिग्गज कंपनी के उपाध्यक्ष क्रिस्टोफ फूकेट के इस बयान के बावजूद उठाए जा रहे हैं कि ख़ुद को अलग करना “बेहद कठिन और खर्चीला” है और सहयोग सबसे अच्छा रास्ता है. ASML एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफी मशीन बनाने वाली ख़ास कंपनी है. इस मशीन का इस्तेमाल सात नैनोमीटर लेवल चिप्स से कम के लिए होता है.
चिप उद्योग बेहद जटिल और एक-दूसरे से जुड़ा है. ये ग्लोबल सप्लाई चेन पर निर्भर करता है जो अलग-अलग क्षेत्रों- अमेरिका में डिज़ाइन, ताइवान एवं दक्षिण कोरिया में मैन्युफैक्चरिंग, चीन में असेंबलिंग, पैकेजिंग एवं टेस्टिंग और नीदरलैंड्स में आधुनिक उत्पादन के साजो-सामान- की क्षमता पर आधारित है. इसलिए सेमीकंडक्टर में आत्मनिर्भरता आसान काम नहीं है. वास्तव में 2022 में निकेई एशिया की छानबीन से पता चला कि किसी एक देश या क्षेत्र में वैश्विक सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की संरचना (आर्किटेक्चर) को बनाना बेहद मुश्किल होगा. इसलिए नुकसान वैश्विक उद्योग को होगा जो एप्लिकेशन की व्यापक श्रेणी के लिए सेमीकंडक्टर पर निर्भर करता है.
निकेई के मुताबिक, पाबंदियां सिर्फ सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की दिखने वाले अंतिम चीज़ (विज़िबल एंड) से जुड़ी हैं. लेकिन उत्पादन के पीछे एक नेटवर्क है जो साजो-सामान और दूसरी चीज़ों जैसे कि कच्चा माल, केमिकल, कंज़्यूमेबल, गैस और मेटल की सप्लाई करता है और जिनकी ज़रूरत इस बेहद जटिल उद्योग को होती है. निकेई ने ताइवान की बड़ी कंपनी TSMC के संस्थापक मोरिस चांग का ज़िक्र किया है जो कहते हैं “अगर आप अमेरिका में एक संपूर्ण सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को फिर से स्थापित करना चाहते हैं तो आपको ये संभव काम नहीं लगेगा. आप सैकड़ों बिलियन डॉलर खर्च करने के बाद भी पाएंगे कि सप्लाई चेन अधूरी है.”
चिप्स से परे अमेरिका-चीन के बीच महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध बना हुआ है जो 2022 में 690 अरब अमेरिकी डॉलर की कीमत के व्यापार में दिखाई देता है. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन के शब्दों में अमेरिका अपनी महत्वपूर्ण तकनीकों की रक्षा के लिए एक “छोटा आंगन, बड़ी घेराबंदी” बनाने की कोशिश कर रहा है. अपनी प्रौद्योगिकी की रक्षा करना हालात का एक पहलू है, दूसरे क्षेत्रों में चीन की तकनीकी शक्ति के असर को ख़त्म करना दूसरा पहलू है.
एक उदाहरण हुआवे का बनता है जो अमेरिकी पाबंदियों का पहला निशाना बनी थी. कई पश्चिमी देशों ने जहां हुआवे की 5G टेक्नोलॉजी को रोक दिया है, वहीं ये अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों जैसे कि इंडोनेशिया में अच्छा प्रदर्शन कर रही है. एक साल पहले के मुकाबले 2022 में इसके लाभ में 70 प्रतिशत की भारी कमी के बाद कंपनी ने एंड्रॉयड को नामंज़ूर करते हुए नये ऑपरेटिंग सिस्टम को शुरू किया है. दुनिया भर की कंपनियों के बीच हुआवे R&D के मामले में सबसे ज़्यादा खर्च करने वाली कंपनियों में से एक बनी हुई है.
चीनी दमखम
पिछले दिनों आंतरिक बाज़ारों के लिए EU के कमिश्नर थियरी ब्रेटन ने और भी देशों से अपील की कि वो अपने 5G नेटवर्क से हुआवे और ZTE जैसी कंपनियों को हटा दें. ऐसा लगता है कि जून 2023 तक EU के 27 में से केवल 10 देशों ने इन कंपनियों को अपने नेटवर्क से हटाया है.
आधिकारिक स्तर पर DJI पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां इनका इस्तेमाल होता है जैसे कि वैज्ञानिक रिसर्च, सर्च एवं रेस्क्यू और कृषि. इन क्षेत्रों में DJI के ड्रोन पर रोक की वजह से कुछ मामलों में दिक्कतें हो रही हैं.
एक और क्षेत्र जहां चीन का तकनीकी दबदबा असर डाल रहा है वो है ड्रोन. DJI जैसी कंपनियां आज गैर-सैन्य इस्तेमाल वाले ड्रोन में वैश्विक बाज़ार का काफी हद तक नेतृत्व कर रही हैं. इसके अलावा, चीन ड्रोन उद्योग के एक बड़े उपभोक्ता के तौर पर भी उभरा है. आधिकारिक स्तर पर DJI पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन फिर भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां इनका इस्तेमाल होता है जैसे कि वैज्ञानिक रिसर्च, सर्च एवं रेस्क्यू और कृषि. इन क्षेत्रों में DJI के ड्रोन पर रोक की वजह से कुछ मामलों में दिक्कतें हो रही हैं. कई राजनेता इन पर बैन लगाने के पक्ष में हैं लेकिन उनकी जगह लेना काफी खर्चीला साबित होगा. एक राज्य जिसने पहले ही पाबंदी लगा दी है वो है फ्लोरिडा जिसके गवर्नर रॉन डीसैंटिस अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से दावेदारी कर रहे हैं.
जुलाई 2023 की शुरुआत में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित एक समीक्षा में कहा गया है कि अगर कोई एक देश हाई टेक में चुनौतियों से पार पा सकता है तो वो चीन होगा. वास्तव में अमेरिका के लिए एक ख़तरा ये है कि पाबंदियां वास्तव में “दीर्घकालीन विकास को प्रेरित” कर सकती हैं. चीन के सालाना 400 अरब अमेरिकी डॉलर के चिप आयात को भीतर की तरफ मजबूर करना चीन के सेमीकंडक्टर उद्योग को आगे बढ़ने में मदद के लिए अंतिम उत्प्ररेक (केटेलिस्ट) हो सकता है. नियंत्रण “चीन को स्थायी तौर पर नहीं रोकेंगे”, वास्तव में इनका मक़सद चीन को परेशान करके अमेरिका और उसके सहयोगी देशों को आगे बढ़ने में सक्षम बनाना है. ऐसा होता है या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा.
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