Author : Ritika Passi

Published on May 15, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन द्वारा फोरम के शिखर सम्‍मेलन के दौरान लगभग 20 देशों और 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ बीआरआई समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है।

चीन का बीआरआई फोरम: धाक जमाने की कोशिश

चीन के बढ़ते प्रभाव, आर्थिक बढ़त एवं वर्चस्व पर वार्तालाप के दौरान समुचित प्रक्रियाओं, नियमों और चीन के कदमों से उत्‍पन्‍न शक्ति संतुलन को निश्चित रूप से ध्‍यान में रखने की जरूरत है। यही कारण है कि जैसे-जैसे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए बेल्ट एंड रोड फोरम की तिथि (14-15 मई) नजदीक आती जा रही है, वैसे-वैसे यह जानना महत्‍वपूर्ण होता जा रहा है कि इसे आखिरकार क्‍यों इस साल का चीन का प्रमुख राजनयिक आयोजन बताया जा रहा है।

पहला, फोरम के शिखर सम्‍मेलन में वैश्वीकरण को फिर से परिभाषित किया जा सकता है। इस सम्‍मेलन की थीम ‘सहयोग बढ़ाना और विकास से सभी को लाभ के सपने को साकार करना’ है, इसलिए फोरम विकास के सतत प्रतिमान के रूप में वैश्वीकरण पर आम सहमति सुनिश्चित करने पर विशेष जोर देगा। यह दरअसल अब भी एक और ऐसा प्‍लेटफॉर्म है जहां से चीन का नेतृत्व अनिश्चितता, धीमे पड़ते व्यापार और बढ़ते संरक्षणवाद के इस दौर में व्यापार, निवेश और एकीकरण के जरिए विकास के संदेश को आगे बढ़ाएगा। हालांकि, खुली अर्थव्‍यवस्‍था के इस संस्‍करण (वर्जन) को अवश्‍य ही समावेशी एवं न्यायसंगत होना चाहिए। वहीं, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) शी जिनपिंग की ओर से ‘वैश्वीकरण 2.0’ का समुचित जवाब (विकल्‍प) है, जिसके दायरे में आसपास के साथ-साथ विस्‍तृत क्षेत्र को भी लाया जाएगा ताकि पारस्परिक लाभ वाली विकास रणनीतियों में तालमेल बैठाया जा सके। उदाहरण के लिए, एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने वाले व्यापार एवं बुनियादी ढांचागत नेटवर्क से चीन को अपनी अतिरिक्त औद्योगिक क्षमता का कहीं और इस्‍तेमाल करके बेहतर स्थिति सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी। चूंकि चीन अपने साझेदार देशों में बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, अत: इस निर्माण से एशिया- प्रशांत क्षेत्र में निहित घरेलू बुनियादी ढांचागत खाई को कुछ हद तक पाटने में सहायता मिलेगी (फि‍लहाल 1.7 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष होने का अनुमान)। इससे चीन को क्षेत्रीय सप्‍लाई चेन का पुनर्गठन करके विनिर्माण के बजाय प्रौद्योगिकी, खपत, और सेवाओं के वर्चस्‍व वाली अर्थव्यवस्था में तब्‍दील करने में भी मदद मिलेगी। यह विनिर्माण क्षेत्र में तेजी से प्रतिस्पर्धी हो रहे देशों में श्रम-गहन, निर्यातोन्मुख उद्योगों को स्‍थानांतरित करके और साझेदार देशों में कृषि, ऊर्जा, रसद (लॉजिस्टिक्‍स), एवं उद्योग जैसे क्षेत्रों में निवेश करके अग्रणी की भूमिका निभाएगा। चीन के उद्योगों को स्थानांतरित करने के लिए विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया को एक महत्वपूर्ण गंतव्य के रूप में चिन्हित किया गया है।

दूसरे दिन शी जिनपिंग की अध्यक्षता में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में ‘चीन की वह आम सहमति’ वास्तविक रूप में दिखाई देगी जो निरंतर सहयोग और एकीकरण पर विशेष जोर देती रही है।

‘यह फोरम क्षेत्रीय एवं वैश्विक आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के तरीके तलाशेगा, परस्पर विकास के लिए नई ऊर्जा उत्पन्न करेगा और इसके साथ ही यह सुनिश्चित करेगा कि बीआरआई से प्रभावित देशों के लोगों को अधिक से अधिक लाभ मिले।’ दूसरे दिन शी जिनपिंग की अध्यक्षता में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में ‘चीन की वह आम सहमति’ वास्तविक रूप में दिखाई देगी जो निरंतर सहयोग और एकीकरण पर विशेष जोर देती रही है। फोरम में बीआरआई से जुड़े जिन आंकड़ों पर रोशनी डाली जाएगी उससे इस तरह की आम सहमति की दिशा में मदद मिलेगी। व्‍यापार में वृद्धि, व्‍यापक निवेश, स्‍थानीय नौकरियां उपलब्‍ध होना और चीन-यूरोप ट्रेनों के प्रभाव इन आंकड़ों में शामिल हैं। चीन द्वारा फोरम के शिखर सम्‍मेलन के दौरान लगभग 20 देशों और 20 से अधिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ बीआरआई समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है।

चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और इसके साथ ही चीन दुनिया की कार्यशाला, सबसे बड़ा निर्यातक, सबसे बड़ा व्यापारिक राष्ट्र और दूसरा सबसे बड़ा सीमा-पार निवेशक भी है। चीन ने पिछले साल वैश्विक विकास में 30 फीसदी से भी ज्यादा का योगदान दिया। चूंकि चीन मूल्य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) में ऊपर चढ़ना चाहता है, इसलिए वह, सिन्हुआ के शब्‍दों में,  विश्‍व स्‍तर पर छाई आर्थिक सुस्‍ती से निजात के लिए ‘चाइना सॉल्‍यूशन’ का निर्यात कर रहा है। यह फोरम की दूसरी अहमियत को रेखांकित करता है: यह एक अन्य संभावित बहुपक्षीय संदर्भ में नियम बनाने वाले के रूप में चीन को मजबूती प्रदान कर सकता है। यह फोरम एक अन्‍य ऐसा अंतरराष्ट्रीय प्‍लेटफॉर्म है जो चीन की अगुवाई में राजनीतिक और आर्थिक परामर्श के लिए कई हितधारकों को एकजुट कर रहा है। इस मामले में, चीन की आर्थिक ताकत और क्षमता के साथ-साथ बदलाव को नया स्‍वरूप प्रदान करने तथा आवश्यक पड़ने पर नेतृत्व करने की उसकी घोषित इच्छा के कारण ही चर्चा संभव नजर आ रही है।

60 संगठनों और 110 देशों एवं क्षेत्रों के 1200 से अधिक प्रतिनिधि, जिनमें 28 देशों के राजनेता शामिल हैं (आखिरी गिनती के वक्‍त), [1] इसमें भाग लेंगे। पर्यवेक्षकों ने प्रमुख पश्चिमी देशों, चीन के समीपवर्ती पड़ोस और उसके साथी ब्रिक्स (एक को छोड़) के राष्‍ट्राध्‍यक्षों द्वारा इसमें भाग न लिए जाने का उल्लेख किया है। हालांकि, मेहमानों की सूची पर गहरी नजर डालने पर अनेक प्रमुख क्षेत्रों जैसे कि मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एवं मध्य यूरोप और अफ्रीका के राजनेताओं द्वारा इसमें शिरकत किए जाने के बारे में जानकारी मिलती है। पुतिन और एरडोगन भी इसमें शिरकत करेंगे। ये उन देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पूर्वी और पश्चिमी यूरेशिया दोनों में ही फैले हुए हैं। ब्रिटेन, फ्रांस एवं जर्मनी वरिष्ठ अधिकारियों को भेज रहे हैं और जापान अपनी सत्तारूढ़ पार्टी के दूसरे सबसे बड़े प्रतिनिधि को भेज रहा है। वहीं, शी ने मिस्र के सि‍सी को आमंत्रित किया है। बेल्ट और रोड के संदर्भ में यदि देखें तो भूमि और समुद्र दोनों से ही जुड़े देशों के प्रमुख इसमें उपस्थित होंगे। एक और महत्वपूर्ण सूचना यह है कि 10 आसियान देशों में से सात के राजनेता इसमें भाग लेंगे। (हैरानी की बात यह है कि दो लैटिन अमेरिकी देशों के राजनेताओं ने भी इसमें शामिल होने की हामी भर दी है)। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की पवित्र त्रिमूर्ति यथा संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख भी इसमें उपस्थित रहेंगे। मतलब यह कि यदि सार्वभौमिक समर्थन हासिल नहीं है, तो भी इसमें सहभागिता की इच्‍छा तो स्पष्ट रूप से है।

चीन पहले ही 40 से अधिक देशों के साथ बीआरआई सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है। चीन ने यूएनडीपी और डब्ल्यूएचओ दोनों के साथ भी बीआरआई परियोजनाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। एक और विशेष बात। मार्च में संयुक्त राष्ट्र के एक संकल्प में समस्‍त देशों से बीआरआई जैसी पहलों के माध्यम से भी क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को मजबूत करने का आह्वान किया गया था। इसके अलावा, चीन अन्य क्षेत्रीय पहलों या कनेक्टिविटी परियोजनाओं जैसे कि यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और यूरोपीय संघ की जुंकर योजना के साथ बीआरआई के एकीकरण को विकसित कर रहा है।

फोरम के शिखर सम्‍मेलन में दुनिया भर से सकारात्‍मक भागीदारी चीन के सियासी और आर्थिक प्रभाव को दर्शाती है। फोरम चीन को विशेषकर बीआरआई द्वारा हार्डवेयर (कनेक्टिविटी इन्फ्रास्ट्रक्चर) और सॉफ्टवेयर (नीतियों और प्रक्रियाओं) दोनों को आपस में जोड़ने के बाद वैश्विक आर्थिक नीति बनाने का एक और अवसर प्रदान कर रहा है। इतना ही नहीं, ‘व्यापक विचार-विमर्श’ और ‘संयुक्त योगदान’ के लिए चीन की ओर से बार-बार कॉल आने के बावजूद उसे कोई तवज्‍जो नहीं दी गई क्‍योंकि अब तक बीआरआई का द्विपक्षीय कार्यान्वयन होता रहा है। वहीं, यह फोरम, जो इस पहल की शुरुआत के बाद उच्चतम स्तर का प्‍लेटफॉर्म है, काम करने के तरीके के रूप में ‘बहुपक्षवाद’ शुरू करने का पहला प्रयास है। फोरम यदि बीआरआई के संस्थाकरण की शुरुआत करने में सफल हो जाता है, तो चीन एक ऐसा संगीतज्ञ साबित होगा जो ‘भाग लेने वाले समस्‍त देशों से बने ऑर्केस्ट्रा द्वारा प्रस्तुत सिम्फनी’ का सफल संचालन करने में माहिर होगा।

यह फोरम, जो इस पहल की शुरुआत के बाद उच्चतम स्तर का प्‍लेटफॉर्म है, काम करने के तरीके के रूप में ‘बहुपक्षवाद’ शुरू करने का पहला प्रयास है।

बीआरआई का संभावित संस्थाकरण स्वयं ही इस तथ्‍य का तीसरा महत्वपूर्ण कारण है कि फोरम आखिरकार क्‍यों मायने रखता है: इसमें पूंजी के प्रवाह को सम्मिलित तरीके से पुन: नियंत्रित करने और साझेदारी को फिर से संगठित करने की नींव रखी जा सकती है। जहां एक ओर यह स्पष्ट है कि जो देश चीन से वित्तीय सहायता या तो पहले ही पा चुके हैं या प्राप्त करने की उम्मीद रखते हैं, वे अपने राष्‍ट्राध्‍यक्ष को फोरम की बैठक में भेज रहे हैं। यह आयोजन महज एक ऐसी बड़ी प्रदर्शनी का रूप ले सकता है जहां चीन बीआरआई संबंधी द्विपक्षीय सहयोग समझौतों पर हस्‍ताक्षर करेगा। वहीं, दूसरी ओर फोरम में यह स्‍पष्‍ट किया जा सकता है कि बीआरआई क्या है और इसका रोडमैप क्‍या है। इसके साथ ही फोरम में संभावित/नई परियोजनाओं, वित्त की व्‍यवस्‍था करने और सीमा पार प्रवाह को सुविधाजनक बनाने वाली नीतियों पर सहमति कायम हो सकती है।

उल्‍लेखनीय है कि यूरोपीय देश बीआरआई के दायरे पर संयुक्त रूप से चर्चा करने और समान भागीदार बनने के इच्‍छुक हैं। चेकोस्‍लोवाकिया के राष्ट्रपति के सलाहकार की इच्‍छा है कि उच्चस्तरीय राजनीतिक फोरम की बैठक हर तीन साल में हो। हालांकि, इस बीच उन्‍होंने यह सुझाव दिया है कि इसमें भाग लेने वाला प्रत्‍येक देश एक समन्वयक का चयन करे और सभी समन्वयकों की बैठक हर साल हो। यह गुजारिश भी की जा सकती है कि बीआरआई फोरम का एक स्थायी सचिवालय स्थापित किया जाए जो प्रगति और कार्यान्वयन पर नजर रखे, समुचित तालमेल बैठाए एवं मूल्यांकन करे और इसके साथ ही जब भी बीआरआई फोरम की बैठक हो तो उसका अध्‍यक्ष बारी-बारी से निर्वाचित किया जाए।

यह देखना अभी बाकी है कि फोरम में वास्‍तव में क्‍या-क्‍या निर्णय लिए जाते हैं। क्‍या वैश्वीकरण 2.0 के मार्ग के रूप में बीआरआई पर आम सहमति होगी? चीन का नेतृत्व क्या चीन में निवेश करने के लाभप्रद और पारस्परिक अवसरों को प्रोत्साहित करेगा? क्या बीआरआई फोरम एक और ऐसा प्‍लेटफॉर्म बन जाएगा जहां चीन केवल अपने देश के फायदे की बातें करेगा और इसके लिए वह अशांत आर्थिक माहौल में भी सुदृढ़ अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में अपनी हैसियत का खुलकर उपयोग करेगा ? क्‍या व्यावहारिक मुद्दों जैसे कि ऋण की अदायगी पर स्पष्टता सुनिश्चित की जाएगी? क्‍या इस फोरम की बैठक होने से बीआरआई परियोजनाओं के कार्यान्वयन में विभिन्‍न विचारों का समावेश होने के साथ-साथ गंभीर चिंताएं भी जुड़ जाएंगी?

बीआरआई फोरम को सफल बताने के लिए व्‍यापक निवेश वाले प्रस्‍तावों और बड़ी परियोजनाओं की घोषणा किए जाने की संभावना है। चूंकि भारत भी इस शिखर सम्मेलन में अपना एक प्रतिनिधि भेज रहा है, इसलिए भारत को यह अवश्‍य ही पूरी गहराई के साथ समझना चाहिए कि दुनिया भर के अन्य देश बीआरआई के बारे में आखिरकार क्‍या राय रखते हैं, उनकी चिंताएं एवं अपेक्षाएं क्‍या-क्‍या हैं, किन-किन तरह की व्‍यवस्‍थाओं, वित्तपोषण के तौर-तरीकों इत्‍यादि पर सहमति बनी है और फ़ोरम में किन-किन नियमों तथा मानदंडों का मार्ग प्रशस्त हुआ है? इससे भारत को बीआरआई की दिशा में हो रही प्रगति पर करीबी नजर रखने में मदद मिलेगी क्‍योंकि उसे भी तो अपना खुद का औपचारिक रुख एवं सहभागिता का स्तर तय करना है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फोरम में लिए जाने वाले निर्णयों के आर्थिक, सियासी एवं सामरिक निहितार्थों को बेहतर ढंग से समझने और उसके अनुरूप ठोस कदम उठाने में भारत को काफी मदद मिलेगी।

बीआरआई के सफल होने का सीधा मतलब यही होगा कि चीन-केंद्रित वैश्विक आर्थिक व्यवस्था को एक बार फि‍र हरी झंडी मिल जाएगी। दरअसल, यही तो वह भूमिका है जिसे चीन एक विघटनकारी के तौर पर नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के एक हिस्से के रूप में हासिल करना चाहता है।

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