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चीन के द्वारा निर्यात पर रोक की व्यापक रणनीति सीधे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालती है. भारत को व्यापक रणनीतियों का इस्तेमाल करके इसका हल निकालना चाहिए.
Image Source: Getty
10 जनवरी 2025 को ऐसी खबरें आईं कि चीन ने जहां एक तरफ अपने देश के कर्मचारियों को भारत में फॉक्सकॉन की आईफोन फैक्ट्रियों के दौरे पर जाने से रोक दिया है, वहीं दूसरी तरफ जो लोग वहां काम कर रहे हैं उन्हें वापस बुलाया जा रहा है. इसके अलावा आईफ़ोन बनाने के लिए जो विशेष उत्पादन उपकरण भारत जाने वाले थे, उन्हें रोक दिया गया. चीन के प्रशासन ने उनके निर्यात को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया. चीन के मैनपावर और उपकरणों के निर्यात पर इन प्रतिबंधों का उद्देश्य नवीनतम आईफोन 17 के भारत में उत्पादन और 2025 में उसे वहां लॉन्च करने की एप्पल की योजना में बाधा डालना था. सप्लाई चेन में रुकावट डालकर चीन का मक़सद एप्पल को इस बात पर फिर से विचार करने के लिए दबाव डालना था कि वो धीरे-धीरे अपने काम-काज को चीन से दूर, विशेष रूप से भारत, नहीं ले जाए. ये कदम बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए उत्पादन के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी महाशक्ति के तौर पर उभरने में भारत की क्षमता को लेकर चीन की बढ़ती चिंता दर्शाते हैं और भारत के ख़िलाफ़ निर्यात पर रोक की चीन की बदलती रणनीति की झलक पेश करते हैं. ये उपाय भारत और उसकी अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा का ख़तरा पेश करते हैं. ध्यान देने की बात है कि चीन प्रतिबंध लगाने की इस रणनीति को उस समय अपना रहा है जब दोनों देशों के बीच स्पष्ट रूप से मेल-मिलाप हो रहा है. ये चीन के भीतर छिपे हुए गलत इरादों को उजागर करता है.
ध्यान देने की बात है कि चीन प्रतिबंध लगाने की इस रणनीति को उस समय अपना रहा है जब दोनों देशों के बीच स्पष्ट रूप से मेल-मिलाप हो रहा है. ये चीन के भीतर छिपे हुए गलत इरादों को उजागर करता है.
हाल के वर्षों में भारत एप्पल के लिए एक प्रमुख उत्पादन का ठिकाना हो गया है जो दुनिया भर में आईफोन का 14 प्रतिशत उत्पादन करता है. ये हिस्सा आने वाले वर्षों में बढ़कर 25-40 प्रतिशत होने की उम्मीद है. आईफोन के अलावा भारत एप्पल आईपैड, एयरपॉड्स और एप्पल घड़ी का भी उत्पादन करता है. केवल अप्रैल और सितंबर 2024 के बीच एप्पल ने भारत से 6 अरब अमेरिकी डॉलर की कीमत के आईफोन का निर्यात किया है. वैश्विक कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में ये बढ़ती भूमिका इस क्षेत्र में भारत की स्थिति मज़बूत करती है और चीन पर एप्पल की निर्भरता कम करके सप्लाई चेन की स्थिरता सुनिश्चित करती है.
चीन की आशंकाएं ठोस बुनियाद पर आधारित हैं. 2017-18 में अपने सर्वाधिक उत्पादन के दौरान फॉक्सकॉन की झेंगझाऊ फैक्ट्री में 3,50,000 कर्मचारी काम करते थे. एप्पल की सप्लाई चेन, जिसमें 150 चीनी सप्लायर और 259 फैक्ट्रियां शामिल थीं, यांग्त्जे नदी के डेल्टा, पर्ल नदी के डेल्टा और मध्य एवं पश्चिमी चीन में रोज़गार का आधार थी जो लाखों निचले स्तर के कामगारों को सहारा देती थी. लेकिन 2023 तक 2,00,000 से अधिक फॉक्सकॉन के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया और झेंगझाऊ में कई कलपुर्जे सप्लायर या तो दिवालिया हो गए या नए सेक्टर की तरफ मुड़ गए. एप्पल की दीर्घकालिक रणनीति के तहत इनमें से ज़्यादातर नौकरियां धीरे-धीरे भारत में जा रही हैं.
भारत में एप्पल का काम-काज देश के स्मार्ट टेक्नोलॉजी उद्योग को विकसित करने में मदद कर रहा है. भारत के पास पहले से ही IT की मज़बूत बुनियाद और इंजीनियरिंग का विशाल टैलेंट पूल है जो उसे एप्पल के बढ़ते काम-काज से फायदे के लिए अच्छी स्थिति में रखता है. अकेले फॉक्सकॉन ने भारत में 10 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है और 50 हज़ार कामगारों को रोज़गार दिया है. इसके अलावा भारत में आईफोन के उत्पादन में ख़राबी की दर (डिफेक्ट रेट) घटकर चीन के स्तर तक पहुंच गई है जिससे सीधी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है.
आने वाले आईफोन 17 के बारे में उम्मीद जताई जा रही है कि वो इमेज एनालिसिस और वॉयस रिकॉग्निशन को बढ़ाने के लिए मशीन लर्निंग और AI को जोड़ेगा जिससे इस्तेमाल करने वालों को शानदार अनुभव और डेवलपर को इनोवेशन के लिए बेहतरीन अवसर मिलेगा.
आने वाले आईफोन 17 के बारे में उम्मीद जताई जा रही है कि वो इमेज एनालिसिस और वॉयस रिकॉग्निशन को बढ़ाने के लिए मशीन लर्निंग और AI को जोड़ेगा जिससे इस्तेमाल करने वालों को शानदार अनुभव और डेवलपर को इनोवेशन के लिए बेहतरीन अवसर मिलेगा. चीन एप्पल के द्वारा न्यू प्रोडक्ट इंट्रोडक्शन (NPI) नीति में बदलाव को लेकर विशेष रूप से चिंतित है जो पहले चीन तक सीमित थी और अब आईफोन 17 के लिए भारत में भी लागू की जा रही है. ये बदलाव भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियर को शुरुआती लाभ मुहैया करा सकता है जिससे स्मार्ट कंज्यूमर टेक्नोलॉजी में चीन के वर्चस्व को चुनौती मिलेगी.
चीन की आशंकाएं आईफोन से आगे टनल बोरिंग मशीन के सेक्टर तक है जहां इसी तरह के प्रतिबंध साफ तौर पर दिख रहे हैं. 27 अक्टूबर 2024 को भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जर्मनी के डिप्टी चांसलर रॉबर्ट हैबेक के साथ बैठक के दौरान जर्मनी के TBM के भारत को निर्यात पर चीन की पाबंदियों का मुद्दा उठाया. हेरेनक्नेक्ट एजी, जो जर्मनी की एक प्रमुख सप्लायर है, ने भारत के बुनियादी ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उसकी 75 मशीनों ने अभी तक 200 किमी सुरंग तैयार की है.
2019 तक भारत TBM के आयात के लिए चीन के गुआंगझू और शंघाई में हेरेनक्नेक्ट की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर काफी ज़्यादा निर्भर था. ये निर्भरता मेट्रो, सड़क और रेल की सुरंग के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण थी और वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के नज़दीक पहाड़ी सुरंगों के लिए सामरिक तौर पर अहम थी. गलवान संघर्ष और उसके उपरांत गतिरोध के बाद चीन ने धीरे-धीरे कस्टम क्लीयरेंस के समय में बढ़ोतरी की और इस तरह भारत को TBM के निर्यात पर रोक लगा दी. चीन का मानना है कि ये मशीनें LAC तक सैनिकों की पहुंच को सुविधाजनक बनाने के लिए पहाड़ी सुरंग बनाने में मदद कर रही हैं.
आने वाले हाई-स्पीड रेल और मेट्रो प्रोजेक्ट की वजह से TBM के लिए भारत की मांग बढ़ना तय है. ऐसे में चीन के नियंत्रण वाली सप्लाई चेन पर निर्भर रहना एक गंभीर ख़तरा है.
आने वाले हाई-स्पीड रेल और मेट्रो प्रोजेक्ट की वजह से TBM के लिए भारत की मांग बढ़ना तय है. ऐसे में चीन के नियंत्रण वाली सप्लाई चेन पर निर्भर रहना एक गंभीर ख़तरा है. इसमें सकारात्मक घटनाक्रम ये है कि हेरेनक्नेक्ट ने भारतीय बाज़ार के लिए चेन्नई में TBM बनाने का निर्णय लिया है जो भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.
महत्वपूर्ण खनिज एक और क्षेत्र है जहां चीन ने भारत को निर्यात पर रोक लगाई है. 2023 से चीन ने अमेरिका, भारत और अन्य देशों को जर्मेनियम (Ge) और गैलियम (Ga) की सप्लाई पर रणनीतिक रोक लगा दी है. ये खनिज सेमीकंडक्टर, सोलर पैनल और दूसरे सामरिक उत्पादों के निर्माण के लिए आवश्यक हैं. इन पर पाबंदियों का मक़सद चीन की इस दलील को मज़बूत करना है कि जब तक निर्यात और अत्याधुनिक चिप तक उसकी पहुंच को रोका जाता है, तब तक विश्व व्यापार सुचारू रूप से काम नहीं कर सकता है.
भारत के लिए गैलियम बहुत बड़ी चिंता नहीं है क्योंकि इसे बॉक्साइट अयस्क के उसके विशाल भंडार से निकाला जा सकता है. लेकिन जर्मेनियम के आयात पर भारत की निर्भरता व्यापक है. चीन के प्रतिबंध से बचने के लिए भारत के व्यापारी दुबई के रास्ते इसका आयात कर रहे हैं. लेकिन इसकी वजह से लागत 10-15 प्रतिशत बढ़ जाती है, समय ज़्यादा लगता है और ख़रीदारी जटिल हो जाती है. व्यापारियों को अग्रिम भुगतान करना होगा और लॉजिस्टिक, गोदाम और वित्त के लिए अतिरिक्त लागत उठाना होगा. बाद में यही तरीका स्पेयर पार्ट्स मंगाने के लिए अपनाया जाता है जिससे लागत और बढ़ जाती है. इस तरह लंबे समय के लिए ये प्रक्रिया टिकाऊ नहीं रहती है.
गलवान संघर्ष से पहले चीन ने भारतीय आयात को बाधित करने के लिए पसंदीदा हथियार के रूप में लगातार नॉन-टैरिफ बैरियर (NTB) का इस्तेमाल किया. इस तरह फार्मास्यूटिकल्स, बासमती चावल और गोजातीय मांस (बोवाइन मीट) समेत कई क्षेत्रों को निशाना बनाया गया. भारतीय कंपनियों को चीन के बाज़ार में प्रवेश करने से रोकने के लिए चीन के व्यापारियों की गुटबंदी एक और रणनीति बनी हुई है. हाल के वर्षों में चीन केवल भारतीय प्रवेश को रोकने को अपर्याप्त समझने लगा है. इसके बदले उसने बहुराष्ट्रीय और चीन की कंपनियों को भारत में जाने से रोकने की सक्रिय कोशिश की है. इसके कारण भारत के ख़िलाफ़ स्पष्ट और पूरी तरह से पाबंदियों में बढ़ोतरी हुई है.
चीन इन उपायों के माध्यम से तीन प्रमुख उद्देश्यों को पूरा करना चाहता है. पहला उद्देश्य है कि वो हाई-टेक और कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों के चीन से भारत जाने को रोकने का इरादा रखता है. ये उद्योग सस्ते श्रम, कुशल इंजीनियर और सरकारी समर्थन के कारण भारत जाना चाहते हैं. इसके अलावा चीन में बेरोज़गारी चिंताजनक स्तर तक पहुंच गई है जिससे मजबूर होकर सरकार को आधिकारिक आंकड़ों के प्रकाशन को रोकना पड़ा है. उच्च तकनीक वाले उद्योग अच्छी संख्या में रोज़गार प्रदान करते हैं, चीन में मूल्य सृजन (वैल्यू क्रिएशन) में योगदान करते हैं और अर्थव्यवस्था के लिए उन्हें महत्वपूर्ण माना जाता है. इसके कारण उनके भारत जाने को, विशेष रूप से उभरते क्षेत्रों में, चीन की आर्थिक स्थिरता के लिए सीधे तौर पर ख़तरा माना जाता है. उद्योगों के भारत जाने को लेकर चीन में चर्चा के दौरान इसे हतोत्साहित करने के लिए उपायों की सिफारिश करने वाले तर्क बड़ी संख्या में दिए जाते हैं, विशेष रूप से उस समय जब तेज़ विकास वाले नए उद्योगों में भारत से प्रतिस्पर्धा की बात होती है.
दूसरा, गलवान संघर्ष के बाद भारत ने चीन की कंपनियों के ख़िलाफ़ कई आर्थिक उपायों को लागू किया. इनमें चीन के ऐप पर पाबंदी लगाना, स्थानीय कंपनियों में चीन के निवेश को रोकना और देश में पहले से मौजूद चीनी कंपनियों की अवैध गतिविधियों की छानबीन शामिल है. वैसे तो अक्टूबर 2024 से तनाव में अपेक्षाकृत कमी ने चीन की उम्मीदें बढ़ा दी हैं कि अपनी अर्थव्यवस्था में चीन को फिर से शामिल करने के लिए भारत इन कदमों को हटा सकता है लेकिन ये उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं. तनाव कम करने के लिए द्विपक्षीय बातचीत धीमी गति से आगे बढ़ी है और बड़े मुद्दों पर स्पष्टता का इंतज़ार किया जा रहा है. इसके परिणामस्वरूप चीन की पाबंदियों में बढ़ोतरी का उद्देश्य बड़े मुद्दों पर बातचीत में भारत के ख़िलाफ़ खुले तौर पर फायदा उठाना भी है.
अंत में, चीन की तरफ से निर्यात पर रोक की नई रणनीति का आंशिक उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार की थाह लेना भी है. अतीत में चीन के आर्थिक प्रतिबंधों का सीमित असर रहा है. 2010 में नौसैनिक विवाद के बाद जापान को दुर्लभ पृथ्वी धातु (रेअर अर्थ मेटल) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फायदा होने के बदले चीन को अंतर्राष्ट्रीय आलोचना झेलनी पड़ी. अमेरिका के विपरीत चीन के पास समान विचार वाले देशों के गठबंधन की कमी है. इसकी वजह से वो अपने आर्थिक प्रतिबंधों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाता है. इसके नतीजतन भारत की प्रतिक्रिया और सामर्थ्य का पता लगाने के लिए चीन चुनिंदा चीज़ों पर रोक और निर्यात पाबंदियों का इस्तेमाल करता है.
पिछले दिनों चीन के द्वारा भारत में फॉक्सकॉन की फैक्ट्रियों, जो आईफोन का उत्पादन करती हैं, को मैनपावर और उपकरणों के निर्यात पर पाबंदी का मक़सद भारत के हाई-टेक कंज़्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के विकास को बाधित करना है. ये उपाय, जो दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप के दौरान लागू किए गए, भारत के साथ तनाव को दूर करने के चीन के चालाकी भरे दृष्टिकोण को रेखांकित करते हैं. पिछले कुछ वर्षों के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में इसी तरह के प्रतिबंध वाले आर्थिक उपाय की श्रृंखला चीन की निर्यात पर रोक वाली व्यापक रणनीति को उजागर करती है जो सीधे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डालती है. भारत को चीन के प्रभाव को कम करने के लिए व्यापक रणनीति विकसित करनी चाहिए और अपनी अर्थव्यवस्था की रक्षा करनी चाहिए.
अतुल कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
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Atul Kumar is a Fellow in Strategic Studies Programme at ORF. His research focuses on national security issues in Asia, China's expeditionary military capabilities, military ...
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