China’s Expanding Role in Africa: शी जिनपिंग और चीन का अफ्रीका में बढ़ता हस्तक्षेप
22 अक्टूबर 2022 को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ((CPC) की 20वीं राष्ट्रीय अधिवेशन में, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) के अध्यक्ष शी जिनपिंग (Xi Jinping) ने उम्मीद के अनुसार ही CPC के महासचिव के रूप में लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल किया. इससे उनका कद माओत्से तुंग के बाद चीनी नेताओं के बीच बेहद अद्वितीय हो गया है. शी जिनपिंग भी एक मज़बूत नेता के रूप में उभरे हैं क्योंकि वे सात सदस्यीय पोलित ब्यूरो स्थायी समिति में अपने वफादारों को शामिल करने में सफल रहे. अपने नेतृत्व के साथ-साथ नीतियों के ऐसे ज़बर्दस्त समर्थन के बाद, शी जिनपिंग के नेतृत्व वाला शासन, 2049 तक यह सुनिश्चित करना चाहता है कि “चीन समग्र राष्ट्रीय ताक़त और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव के मामले में दुनिया का नेतृत्व करता है“. 2012 में शी के सत्ता संभालने के बाद से, चीन (China) का अफ्रीका (Africa) में एक ख़ास असर देखा गया है. अपनी ज़बर्दस्त राजनीतिक ताक़त के साथ, अब अपने तीसरे कार्यकाल में निश्चित रूप से चीन की अफ्रीका नीति को और ज़्यादा आकार देना वो जारी रखेंगे. ऐसे में अफ्रीका में चीनी भूमिका के संभावित ट्रेजेक्टरिज़ (प्रक्षेपवक्रों) काअनुमान लगाने के लिए चीन-अफ्रीकी संबंधों (Sino-African ties) पर विचार करना ज़रूरी होगा.
दुनिया का नेतृत्व करने के लिए, शी का मानना है कि पीआरसी को ताइवान के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र को चीन के साथ फिर से मिलाना होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चीन पूरे प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व और ताक़त का मुक़ाबला करने में सक्षम है. 1950 के दशक के बाद से उपनिवेशवाद-विरोधी और नस्लवाद-विरोधी आंदोलनों के समर्थन के कारण चीन अफ्रीका में चीनी नीति को बढ़ावा देने की अपनी कोशिश में बेहद सफल रहा है. तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री, झोउ एन लाई, 1963-1964 में एक सद्भावना मिशन में अफ्रीका में 10 देशों के राजनयिक दौरे पर गए थे. 1971 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में 26 अफ्रीकी सदस्य देशों के समर्थन के कारण, चीन के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य के रूप में अपना वैध स्थान पाना आसान हो पाया था. इसके बाद, 1970 के दशक के मध्य में, चीन ने ज़ाम्बिया को तंजानिया से जोड़ने वाली टैन-ज़म रेलवे लाइन का निर्माण करवाया था. इसने जाम्बिया को अपने निर्यातके लिए समुद्र तक पहुंच की अनुमति दी थी. मौज़ूदा वक़्त में 54 अफ्रीकी राज्यों में, केवल इस्वातिनी (पूर्व में स्वाज़ीलैंड) अभी भी चीन/ताइवान रिपब्लिक को मान्यता देता है. बावज़ूद इसके, चीन के सभी 54 अफ्रीकी राज्यों के साथ बेहद अच्छे आर्थिक संबंध कायम हैं.
दुनिया का नेतृत्व करने के लिए, शी का मानना है कि पीआरसी को ताइवान के रणनीतिकरूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र को चीन के साथ फिर से मिलाना होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चीन पूरे प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व और ताक़तका मुक़ाबला करने में सक्षम है.
इसी तरहजब 1989 में चीनी सरकार ने लोकतंत्र के लिए तियानमेन स्क्वायर पर हो रहे विरोध को बेरहमी से कुचल दिया था, तब मिस्र, बुर्किना फासो और अंगोला जैसे देशों ने इसका समर्थन किया, जबकि अधिकांश अफ्रीकी देशों ने चीनी आधिकारिक नीतियों कीनिंदा करने से परहेज किया था. यहां तक कि जब पश्चिमी देश चीन के निराशाजनक मानवाधिकार रिकॉर्ड की आलोचना करने में जुटे थे, तब चीन को अफ्रीका से ज़रूरी समर्थन मिला. 1990 के दशक के बाद अफ्रीका के साथ चीन का जुड़ाव और ज़्यादा होता गया क्योंकि उसने अफ्रीका में अपने बहुस्तरीय संबंधों को कायम रखते हुए मानवाधिकारों या लोकतांत्रिक शासन पर रिकॉर्ड से संबंधित पारंपरिक पश्चिमी मानदंडों को लागू करने पर कभी जोर नहीं दिया. यह काफी स्पष्ट हो गया था जब चीन ने क्रमशः जिम्बाब्वे और सूडान जैसे संसाधन संपन्न देशों में रॉबर्ट मुगाबे (1980-2017) और उमर-अल बशीर (1989-2019) के निरंकुश शासन के साथ अपने संबंधों को कायम रखा.
अफ्रीका के साथ बढ़ते आर्थिक संबंध
संक्षेप में, वैश्वीकरणके तहत अफ्रीका में चीन की अहमियत और जुड़ाव को बचाए रखने के लिए शीजिनपिंग की व्यावहारिक नीतियों ने बड़े पैमाने पर चीन की अफ्रीका नीति कोनिर्देशित किया है. वास्तव में, सैन्य ताक़त में सर्वेसर्वा बनने की चीन कीचाहत, तीव्र आर्थिक विकास और अपने लोगों की भौतिक उन्नति ने चीन को अफ्रीकामें अपनी भूमिका को और व्यापक और गहरा करने के लिए प्रेरित किया है.
मैक्रो स्तर पर, सुरक्षा संबंधी क्षेत्रों में अफ्रीका में चीन की भूमिका पहले ही बढ़ चुकी है और भविष्य में और मज़बूत होने की संभावना है. चीन ने रक्षा ख़र्च के लिए 2000 से 2020 के बीच आठ अफ्रीकी देशों के साथ 3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के 27 ऋण सौदों पर हस्ताक्षर किए हैं. अफ्रीकी देशों में 70 प्रतिशत बख़्तरबंद वाहन और 20 प्रतिशत सैन्य वाहन चीन द्वारा ही सप्लाई किए गए जाते हैं. एक अध्ययन के मुताबिक़, 2013 से 2017 तक, चीन ने अफ्रीकी हथियारों के आयात में 70 प्रतिशत और 2015 से 2020 तक 55 प्रतिशत का योगदान दिया है. भले ही चीन हथियारों और सुरक्षा प्रौद्योगिकी के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा हो लेकिन आलोचकों का कहना है कि चीन अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन करने वाले क्रूर शासकों को हथियार स्थानांतरित कर रहा है. इसके अलावा, 2017 के बाद से, चीन ने जिबूती में एक प्रमुख सैन्य अड्डा विकसित किया है, जो हॉर्न ऑफ अफ्रीका में रणनीतिक रूप सेअहम क्षेत्र है.
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में, चीन फोरम ऑनचाइना-अफ्रीका कोऑपरेशन (FOCAC) के माध्यम से अपने संबंधों का समन्वय करतारहा है. अक्टूबर 2000 में शुरू किया गया एफओसीएसी विकास सहयोग को बढ़ावादेने के लिए चीन और 54 अफ्रीकी राज्यों के बीच तीन सालों में होने वालीमल्टीलैटरल डायलॉग (त्रि-वार्षिक बहुपक्षीय वार्ता) एक प्रमुख प्लेटफॉर्मके रूप में विकसित हो रहा है. इसके अतिरिक्त, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), अफ्रीका में शी जिनपिंग के तहत 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अंतर महाद्वीपीय निवेश इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट फली-फूली है. चीन अफ्रीकामें डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार कर रहा है. अब तक 46अफ्रीकी देशबीआरआई प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिसके तहत एक अरब लोग शामिलहैं. बीआरआई 43 अफ्रीकी देशों में औसतन 2.8 वर्षोंमें बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है, जो अफ्रीकी विकास बैंक या विश्व बैंक जैसी अन्य डोनर एजेंसियों के मुक़ाबले में बहुत कम समय में हुआ है. शीजिनपिंग अपने कार्यकाल में एफओसीएसी और बीआरआई के ज़रिए अफ्रीकी देशों केसाथ अपने संबंधों को और मज़बूत करने की कोशिश करेंगे. हालांकि, आलोचक बीआरआईको कर्ज़दारों को धोखा देने के लिए चीन की कर्ज़ के जाल में फंसाने कीकूटनीति के तौर पर देखते हैं लेकिन इसे लेकर सूक्ष्म मूल्यांकन कीआवश्यकता है. इस तरह के आलोचक अफ्रीकी देशों को उनकी एजेंसी और संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, भारत, फ्रांस, आदि जैसी विभिन्न प्रतिस्पर्द्धी शक्तियों के साथ सौदेबाजी करने की क्षमता से वंचित करते हैं, जो अफ्रीका में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए पहले से मैदान में डटे हैं.
अफ्रीका के कुल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 16.4 प्रतिशत है. अफ्रीकी देशों से चीन में कोई प्रत्यक्ष निवेश नहीं हुआ लेकिन चीन ने 2000-2019 तक अफ्रीकी देशों को 153 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण ज़रूर दिया है.
साथ ही सुरक्षित रूप से यह तर्क दिया जा सकता है कि समग्र रूप से अफ्रीका महाद्वीप के साथ चीन का संबंध भेदभाव वाला है और यह ऐसा ही रहेगा. चीन अफ्रीका का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार, द्विपक्षीय लेनदार और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश/विकास करने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है. एक्ज़िम बैंक ऑफ़ चाइना द्वारा अफ्रीका में व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के साथ, 2021 तक, चीन केट्रेड का वैल्यू 254 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ सबसे उच्च स्तर पर जा पहुंचा. हालांकि, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2020 में, अफ्रीका के साथ चीन का व्यापार उसके कुल विश्व व्यापार का केवल चार प्रतिशत ही था, जो जर्मनी के साथ चीन के व्यापार से कम था. अधिकांश अफ्रीकी देशों का चीन के साथ ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) है. दक्षिण अफ्रीका, कांगो और अंगोला सहित केवल तीन निर्यातक देशों का अफ्रीका से निर्यात में 62 प्रतिशतकी हिस्सेदारी है. इसी तरह, 2019 में, कुल फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) में से केवल 2.9 प्रतिशत चीनी एफडीआई अफ्रीका में आया था. इसके विपरीत, अफ्रीका के कुल व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 16.4 प्रतिशत है. अफ्रीकी देशों से चीन में कोई प्रत्यक्ष निवेश नहीं हुआ लेकिन चीन ने 2000-2019 तक अफ्रीकी देशों को 153 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण ज़रूर दिया है.
पीपल टू पीपल संपर्क
चीन की ऊर्जा की भूखी अर्थव्यवस्था सूडान/दक्षिण सूडान, अंगोला और नाइजीरिया जैसे तेल का प्रचुर भंडार रखने वाले देशों को हमेशा से लुभाती रही है. जहां तक प्रमुख रणनीतिक संसाधनों का संबंध है, अफ्रीका में कोबाल्ट खनन पर चीन का एकाधिकार बना हुआ है.कोबाल्ट इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन के लिए एक आवश्यक सामग्री है और दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत कोबाल्ट कांगो में खनन किया जाता है. 2007 में, कांगो के राष्ट्रपति जोसेफ कबीला ने इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के बदले खनन हितों की अदला-बदली की थी. हालांकि फिर भी, अफ्रीका में चाइनीजस्टेट-ओन्ड इंटरप्राइजेज (एसओई) और निजी फर्मों के व्यापक नेटवर्क मौज़ूद हैं.
चीनी भाषा, संस्कृति और शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के प्रसार के माध्यम से, चीन पीपुल टू पीपुल स्तर पर अफ्रीका के साथ संबंधों का निर्माण कर रहा है. इसके अलावा, अफ्रीका में चीनी प्रवासियों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हुई है.
एक कंसल्टेंसी फर्म मैकिन्से एंड कंपनी ने अनुमान लगाया है किअफ्रीका में लगभग 10,000 चीनी फर्म सक्रिय हैं जो 20 प्रतिशत से अधिक कालाभ मार्जिन अर्जित करती हैं. यह संख्या उन फर्मों से कहीं अधिक है जो चीनमें वाणिज्य विभाग के तहत आधिकारिक रूप से पंजीकृत हैं. एसओई, कुल मिलाकर बड़ी फर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और उनके साथ बड़ी संख्या में निजी फर्म भी शामिल हैं. ऐसी फर्मों की उल्लेखनीय मौज़ूदगी कंस्ट्रक्शनऔर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में है. इसके अलावा, ट्रांशयन, एक चीनी निजी फर्म, बेहतर मार्केटिंग और अफ्रीकी उपभोक्ताओं की ज़रूरतों के बारे में अपनी समझ की वज़ह से मोबाइल फोन बाज़ार में प्रमुख कंपनी के रूप में उभरीहै.
इसके अलावा, चीन की सॉफ्ट पावर लगभग 60 कन्फ्यूशियस संस्थानों के माध्यम से प्रदर्शित की जा रही है जो वर्तमान में अफ्रीका में कार्यरत हैं. चीनी भाषा, संस्कृति और शैक्षिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के प्रसार के माध्यम से, चीन पीपुल टू पीपुल स्तर पर अफ्रीका के साथ संबंधों का निर्माण कर रहा है. इसके अलावा, अफ्रीका में चीनी प्रवासियों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हुई है.
अफ्रीका में सबसे प्रमुख बाहरी शक्ति के रूप में, चीन पहले ही शी जिनपिंग के नेतृत्व में एक बड़ी भूमिका निभा चुका है. ऐसे में समय बीतने के साथ सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, विकास, व्यापार, निवेश और सॉफ्ट पावर जैसे प्रत्येक क्षेत्रों में चीन दुनिया का नेतृत्व करने के अपने मिशन में अफ्रीका में अपनी भूमिका को और ज़्यादा मज़बूत और आगे बढ़ा सकता है.
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