Author : Soumya Bhowmick

Published on Jul 12, 2023 Updated 0 Hours ago
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा: एक भूला हुआ सपना

2015 में, चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) को लेकर यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इससे वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान की स्थिति मज़बूत होगी और दक्षिण एशिया में वह एक ताकतवर देश के रूप में उभरेगा. हालांकि, जिसे शुरुआत में दो देशों के संबंधों को मज़बूत बनाने के प्रयासों के रूप में देखा जा रहा है, वही बाद में पाकिस्तान की ढलान की एक बड़ी वजह बन गया है. हालांकि, CPEC से एक दशक पहले पाकिस्तान में आधारभूत संरचना के विकास के लिए चीन के समर्थन से कुछ महत्त्वपूर्ण परियोजनाएं चलाई गईं, जहां बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पाकिस्तान की सुस्त पड़ी सार्वजनिक क्षेत्र परियोजनाओं, और कमज़ोर ऊर्जा और परिवहन उद्योगों में नई जान फूंकने वाला साबित हुआ. ये क्षेत्र लंबे समय से सरकार से मिलने वाली सब्सिडी पर निर्भर थे, जिससे राजस्व घाटा बढ़ता जा रहा था.

चीन द्वारा पाकिस्तान की सहायता करने और इसी बहाने महत्त्वाकांक्षी सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट इनिशिएटिव को बढ़ावा देने की घोषणा के बाद, BRI के तहत एक प्रमुख परियोजना के रूप में CPEC का तेज़ी से उभार हुआ.


चीन द्वारा पाकिस्तान की सहायता करने और इसी बहाने महत्त्वाकांक्षी सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट इनिशिएटिव को बढ़ावा देने की घोषणा के बाद, BRI के तहत एक प्रमुख परियोजना के रूप में CPEC का तेज़ी से उभार हुआ. मई 2013 में चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग के पाकिस्तान यात्रा के दौरान इस परियोजना की घोषणा की गई थी. इस परियोजना के ज़रिये पाकिस्तान की बुनियादी अवसंरचना की कमियों को दूर करने, औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना, और ग्वादर बंदरगाह (अरब सागर में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थिति में होने के कारण) से होते हुए चीन के लिए नए व्यापार मार्गों के निर्माण जैसे लक्ष्य के पूरे होने की उम्मीद की जा रही थीं और इसलिए इस परियोजना की रूपरेखा की विशेष रूप से सराहना की जा रही थी. इस परियोजना के तहत पहले 46 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता थी, लेकिन बाद में निवेश ज़रूरतें तेज़ी बढ़कर 62 अरब अमेरिकी डॉलर (पाकिस्तान के जीडीपी का 20 फीसदी) के स्तर तक पहुंच गईं. इनमें कुछ बड़े अर्ली हार्वेस्ट प्रोजेक्ट (EHP) शामिल थे, जिसके लिए पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय निवेश की सख़्त ज़रूरत थी.

भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो, भारत 2013 में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की शुरुआत से ही इसका मुखर विरोधी रहा है. भारत ने CPEC के एक महत्वपूर्ण घटक को अपनी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में देखा. परियोजना से जुड़ी चिंताओं में इसके भू-राजनीतिक प्रभावों के अलावा POK (पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर) पर भारत की दावेदारी से जुड़ा मुद्दा भी शामिल था. इसे चीन द्वारा क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने और भारत को घेरने की व्यापक योजना के रूप में देखा गया. इसके अलावा, इस परियोजना के ज़रिये पाकिस्तानी बंदरगाहों तक चीन की आसान पहुंच और क्षेत्र में एक नौसेना अड्डे के निर्माण की संभावना को लेकर चिंताएं जताई जा रही थीं, जो भारत के लिए सुरक्षा ख़तरा बन सकती थीं. BRI का विरोध करने और इससे बाहर रहने के भारत के फैसले के कारण इससे क्षेत्रीय अवसंरचना के विकास पर ज़्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. इसके बजाय भारत ने क्षेत्रीय संपर्क विस्तार से जुड़ी अपनी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा और ईरान में चाबहार बंदरगाह, हालांकि इसके पास क्षेत्रीय संपर्क के विस्तार के लिए एक व्यापक रणनीति का अभाव है.

CPEC परियोजना के शुरू होने के बाद पाकिस्तानी लोगों के मन में इसे लेकर पहले काफ़ी उम्मीदें थीं कि इसके कारण देश में लंबे समय से चले आ रहे बिजली और ऊर्जा संकटों से निजात मिलेगी. 

 
CPEC परियोजना के शुरू होने के बाद पाकिस्तानी लोगों के मन में इसे लेकर पहले काफ़ी उम्मीदें थीं कि इसके कारण देश में लंबे समय से चले आ रहे बिजली और ऊर्जा संकटों से निजात मिलेगी. बिजली की भारी कमी के कारण देश में आर्थिक गतिविधियों पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ा, जहां भीड़-भाड़ से बाजार अंधेरे में डूब जाते थे. स्वतंत्र बिजली उत्पादक कंपनियों द्वारा बिजली की दरों को मनमाने ढंग से बढ़ाने, बिजली संयंत्रों की देखभाल पर ध्यान न देने, ख़राब ट्रांसमिशन लाइनों और बरसों से सरकारी लोकलुभावन नीतियों को लाने से यह ऊर्जा संकट पैदा हुआ है. पिछले तीन दशकों से, नागरिक रोजाना बिजली की कटौती का सामना कर रहे हैं, जहां शहरी क्षेत्रों में 10 घंटे और ग्रामीण इलाकों में लगभग 22 घंटे की बिजली की कटौती हो रही है. बिजली-कटौती से बाजारों, शिक्षा संस्थानों, उद्योगों, स्वास्थ्य सुविधाओं और सामाजिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव पड़ा है.

चित्र संख्या एक: विभिन्न CPEC परियोजनाएं

स्रोत: योजना आयोग, पाकिस्तान


चीन ने शुरुआत में CPEC के तहत नए कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे शुरू में एक सकारात्मक कदम के तौर पर देखा गया. हालांकि, 2021 के आखिर में, चीन अपनी बात से पलट गया क्योंकि वह यह दिखाना चाहता था कि वह यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट एक्शन कांफ्रेंस (COP 26) के उद्देश्यों से भटका नहीं है, और दूसरे देशों में कोयला-आधारित बिजली संयंत्रों की स्थापना में सहयोग न देने और कार्बन न्यूट्रालिटी के लिए प्रतिबद्ध है. इससे पाकिस्तान के कोयले पर निर्भर बिजली क्षेत्र को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि चीन CPEC परियोजनाओं के निर्माण को बीच में ही रोक दिया, जबकि इन परियोजनों का उद्देश्य पाकिस्तान की बिजली उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 20 गीगावाट करना था.

बुनियादी परियोजनाओं में चीन की हिस्सेदारी


एक तरफ़ CPEC परियोजनाओं के आर्थिक व्‍यवहार्यता पर सवाल खड़े होते हैं, दूसरी तरफ़ देश गंभीर आर्थिक संकट और आतंकवाद से युद्ध से जूझ रहा है. ऐसे में यह स्थिति और जटिल हो गई है. चीन द्वारा अनियमितता बरतने की अफ़वाह ने भी चुनौतियों को बढ़ावा दिया, जिससे परियोजना के कार्यान्वयन में देरी आई और अनुत्पादक ऋण का बोझ बहुत ज़्यादा बढ़ गया. जबकि पाकिस्तान पर बाहरी ऋण का बोझ उसकी चुकाने की क्षमता से कहीं ज़्यादा हो गया है, और आर्थिक संकट का असर CPEC समझौते पर भी दिखाई पड़ रहा है, वहीं इस पहल के कारण देश के चालू खाता घाटे में बढ़ोतरी हुई है और विदेशी मुद्रा भंडार भी काफ़ी कम हो गया है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के दिए तमाम सुझावों के बावजूद, पाकिस्तान ने अंतर-सरकारी निकाय के सामने 6.3 अरब अमेरिकी डॉलर के बेलआउट पैकेज की मांग रखने से पहले परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर कच्चे माल का आयात किया.

पाकिस्तान की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीन की इक्विटी में हिस्सेदारी पर CPEC का आधार काफ़ी हद तक टिका हुआ है, जिसके कारण गलियारे से जुड़े निवेश के 80 फ़ीसदी हिस्से की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान की है.


पाकिस्तान की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में चीन की इक्विटी में हिस्सेदारी पर CPEC का आधार काफ़ी हद तक टिका हुआ है, जिसके कारण गलियारे से जुड़े निवेश के 80 फ़ीसदी हिस्से की ज़िम्मेदारी पाकिस्तान की है. इससे ये चिंताएं पैदा हुई हैं कि BRI की ये फ्लैगशिप परियोजना त्रुटिपूर्ण है, जो चीन के लिए महंगा नीतिगत सौदा साबित हुई है. चीन ने लंबित पड़े ऋण भुगतान को पुनर्गठित करने या उसे रद्द करने से बार-बार किया है क्योंकि उसे डर है कि ऐसे किसी कदम से अन्य ऋणदाताओं को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिलेगी और इसके परिणामस्वरूप ऋण के डिफॉल्ट होने का खतरा बढ़ जाएगा. हालांकि, पाकिस्तान की सहायता करना चीन के निजी हित में है क्योंकि इससे विकासशील दुनिया के हितैषी के रूप में उसकी छवि को बनाए रखने में मदद मिलेगी.

इन हालातों को देखते हुए, क्षेत्र के अर्थव्यवस्थाओं, ख़ासकर पाकिस्तान जैसे BRI पहल से जुड़े देशों के लिए ज़रूरी है कि वह अपने कुल बाहरी ऋण में चीन की हिस्सेदारी पर नज़र रखें और उसका बेहतर प्रबंधन करें. CPEC में पाकिस्तान की भागीदारी के कारण विदेशी पूंजी पर अतिशय निर्भर कई अव्यवहारिक परियोजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसने देश की आर्थिक कठिनाइयों को और ज़्यादा बढ़ा दिया है. बाहरी ऋण के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव को अनदेखा करते हुए बाहरी ऋण पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भर रहने की प्रवृत्ति ने व्यापार संतुलन घाटे को बढ़ावा दिया है और इसके कारण विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) का स्तर भी काफ़ी गिर गया है. इसलिए, पाकिस्तान को ऋण के विविधीकरण और विदेशी ऋण के पुनर्गठन पर ध्यान देने की ज़रूरत है ताकि वह बाहरी ऋण को नियंत्रित और मौजूदा आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर सके.

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