चीनी तटरक्षक बल (CCG) के जहाज ने पिछले महीने 22 अक्टूबर को दक्षिण पूर्व एशियाई देश फिलीपींस के विशेष आर्थिक ज़ोन (EEZ) के भीतर उसके एक आपूर्ति जहाज को टक्कर मार दी थी. दिलचस्प बात यह है कि मनीला में स्थित चीनी दूतावास ने एक दिन के अंदर ही इस घटना को लेकर एक आधिकारिक बयान जारी किया, जिसमें बताया गया कि चीनी तटरक्षक बल ने फिलीपींस के आपूर्ति जहाज के विरुद्ध “क़ानून के मुताबिक़ ज़रूरी कार्रवाई” की है. इस आपूर्ति जहाज पर पश्चिम फिलीपींस सागर में आयंगिन शोल पर पर खड़े फिलीपींस के बेहद पुराने नौसैनिक पोत बीआरपी सिएरा माद्रे (BRP Sierra Madre) तक “अवैध रूप से” निर्माण सामग्री पहुंचाने का आरोप था. महीने भर के भीतर चीनी कोस्ट गार्ड द्वारा ऐसी कई घटनाओं को अंज़ाम दिया गया है और अब यह ताज़ा घटना सामने आई है. पिछले महीने 6 अक्टूबर को CCG और फिलीपीन कोस्ट गार्ड (PCG) के पोत के बीच टक्कर हुई थी, इसी प्रकार 13 अक्टूबर को भी फिलीपींस की नौसेना (PN) जहाज और चीनी कोस्ट गार्ड पोत के मध्य टक्कर हुई थी.
जब चीन को वेस्टर्न पैसिफिक में अपने दबदबे को बढ़ाने से रोकने वाला कोई नहीं था. तब चीन ने न सिर्फ़ अपने मिलिट्री बजट में दोहरे अंकों की बढ़ोतरी की, बल्कि फिलीपींस समेत अपने तमाम दक्षिण पूर्व एशियाई पड़ोसी राष्ट्रों के साथ आक्रामकता के साथ बर्ताव करना शुरू कर दिया.
फिलीपींस-चीन संबंध
फिलीपींस के विशेष इकोनॉमिक ज़ोन में चीनी कोस्ट गार्ड की ओर से लगातार इसी प्रकार की उकसावे की कार्रवाई की जाती रही हैं और पिछले दो दशकों के दौरान इस तरह की कई घटनाएं घटित हो चुकी हैं. लेकिन जिस प्रकार से अक्टूबर के महीने में एक के बाद चीन की ओर से इस तरह की उकसावे की घटनाएं सामने आई हैं, उनसे स्पष्ट है कि चीन की आक्रामकता ख़ासी बढ़ गई है. जिस प्रकार से अमेरिका के साथ मनीला के संबंधों में मज़बूती आ रही है, ज़ाहिर है कि वो बीजिंग के लिए चिंता का सबब हैं. फिलीपींस-अमेरिका संबंधों की वजह से चीन विवादित समुद्री क्षेत्र में अपने प्रभुत्व को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. इन हालातों का विश्लेषण करने के लिए मौज़ूदा अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिवेश में आस-पास के इलाक़ों में चल रही गतिविधियों और नए-नए घटनाक्रमों पर भी नज़र डालना बेहद महत्वपूर्ण है.
फिलीपींस में चीन द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर उकसावे वाली इस घटना को समझने के लिए वैश्विक राजनीतिक घटनाक्रमों को व्यापक नज़रिए से देखना और समझना ज़रूरी है. शीत युद्ध समाप्त होने के बाद से ही अगर चीन के अतीत पर नज़र डाली जाए, तो बीजिंग ने पश्चिमी प्रशांत रीजन में मौक़ा मिलने पर उसका फायदा उठाने एवं पूरे क्षेत्र में अपनी मौज़ूदगी को सशक्त करने का पुरज़ोर प्रयास किया है. अपनी इस कोशिश में चीन ने न तो अमेरिका के प्रभाव और प्रभुत्व की चिंता की है और न ही फिलीपींस जैसे अपने पड़ोसी मुल्क़ों के मौलिक अधिकारों की ही कोई चिंता की है. वर्ष 1992 में जब सुबिक नेवल बेस से अमेरिकी सेना हट गई, तो बीजिंग ने इसे एक अवसर के रूप में देखा और क्षेत्रीय विस्तार की अपनी व्यापक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में जुट गया. चीन की इन्हीं महत्वाकांक्षाओं का नतीज़ा था कि उसने वर्ष 1995 में मिसचीफ रीफ पर अपना कब्ज़ा कर लिया. बता दें कि मिसचीप रीफ का इलाक़ा फिलीपीन के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन के भीतर है और फिलीपींस के मछुआरों के लिए मछली पकड़ने का एक पारंपरिक क्षेत्र है.
21वीं सदी की शुरुआत के बाद से ही बीजिंग द्वारा पश्चिम प्रशांत रीजन में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के इरादों को पूरी ताक़त के साथ परवान चढ़ाया गया. उल्लेखनीय है कि यह वो दौर था, जब अमेरिका मिडिल ईस्ट में आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में उलझा हुआ था, साथ ही पश्चिमी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर डालने वाले वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के दुष्प्रभावों का समाधान करने में व्यस्त था. यह वो समय था जब चीन को वेस्टर्न पैसिफिक में अपने दबदबे को बढ़ाने से रोकने वाला कोई नहीं था. तब चीन ने न सिर्फ़ अपने मिलिट्री बजट में दोहरे अंकों की बढ़ोतरी की, बल्कि फिलीपींस समेत अपने तमाम दक्षिण पूर्व एशियाई पड़ोसी राष्ट्रों के साथ आक्रामकता के साथ बर्ताव करना शुरू कर दिया. वर्ष 2011 में चीनी सेना द्वारा फिलीपींस के EEZ में कम से कम छह बार बड़ी घुसपैठ की गई. चीनी घुसपैठ की इन घटनाओं की वजह से ही आख़िरकार वर्ष 2012 में दोनों देशों के बीच चर्चित स्कारबोरो शोल समुद्री गतिरोध पैदा हुआ था. यह गतिरोध फिलीपींस EEZ के सीमा क्षेत्र में ही हुआ था और नतीज़तन स्कारबोरो शोल पर चीन ने पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया. इस तथ्य पर भी प्रकाश डालना बेहद ज़रूरी है कि वर्ष 2009 में बीजिंग ने अपनी विस्तारवादी रणनीति के तहत कब्ज़ाए गए इलाकों में अपने क्षेत्रीय हितों को क़ानूनी जामा पहनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक तौर पर अपना नाइन-डैश लाइन मैप (nine-dash line map) प्रस्तुत किया था.
वर्तमान दौर में जब अमेरिका और चीन के बीच महाशक्ति की होड़ तेज़ होती जा रही है, तब मनीला ने वाशिंगटन के पाले में जाने का फैसला किया है और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करके फिलीपींस अपनी क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता और अपने अधिकारों की रक्षा करना चाहता है. अमेरिका की ओर फिलीपींस के बढ़ते झुकाव ने जहां एक तरफ चीन के लिए इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में रोड़े अटकाए हैं, वहीं यहां की क्षेत्रीय व्यवस्था और शक्ति संतुलन में बदलाव की उसकी इच्छा को भी चोट पहुंचाई है. हालांकि, अक्टूबर के महीने में चीन ने जिस आक्रामकता के साथ पश्चिमी फिलीपींस सागर में अपने दांव-पेंच दिखाए हैं, कहीं न कहीं उसकी ये गतिविधियां वर्तमान दौर में अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति के अनुरूप ही हैं.
वैश्विक हालातों पर नज़र डालें तो लंबे वक़्त से यूक्रेन में चल रहा युद्ध अमेरिका के लिए भी एक चुनौती बनता जा रहा है और इसने भारत-प्रशांत क्षेत्र में वाशिंगटन के दबदबे को भी उल्लेखनीय रूप से प्रभावित किया है. वहीं इजरायल और हमास के बीच चल रही लड़ाई के बीच एक नया मोर्चा खुल गया है. यह युद्ध 7 अक्टूबर को हमास की ओर से इजरायल पर हुए अचानक हमले के बाद छिड़ा, जिसमें 1,400 से अधिक लोग मारे गए थे. यह लड़ाई और भी विकराल हो सकती है, साथ ही मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका (MENA) के इलाक़ों में व्यापक रूप से पांव पसार सकती है. MENA एक ऐसा क्षेत्र है, जहां समझा जाता है कि अमेरिका के अपने हित हैं. जिस प्रकार से अमेरिका इजराइल समेत क्षेत्र के कई देशों को सुरक्षा मुहैया कराता है और उनका एक बड़ा भागीदार है, ऐसे में मौज़ूदा हालात में इस क्षेत्र में अमेरिका की भूमिका अहम हो गई है. हमास के हमले के बाद अमेरिका ने तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हुए इस क्षेत्र में अपने युद्धपोतों एवं लड़ाकू विमानों को भेजा था. सच्चाई तो यह है कि हमास के हमले के कुछ ही घंटों के भीतर यूएसएस गेराल्ड आर. फोर्ड करियर स्ट्राइक ग्रुप को पूर्वी भूमध्य सागर में भेज दिया गया था. देखा जाए, तो इस क्षेत्र में अब अमेरिकी सेना दो मोर्चों पर फंसी हुई है. ऐसे में इस बात की प्रबल संभावना है कि बीजिंग इन युद्धों का फायदा उठाकर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों में बदल सकता है.
हिंद -प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों की परेशानी तब और अधिक बढ़ सकती है, जब चीन अंतर्राष्ट्रीय क़ानून एवं क्षेत्र के देशों की संप्रभुता और उनके अधिकारों की परवाह किए बग़ैर लगातार अपना दख़ल बढ़ाता जा रहा है
वाशिंगटन ने दुनिया भर में अपनी सुरक्षा गतिविधियों को संचालित करने के लिए कांग्रेस से 105 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बजट का आग्रह किया था. ख़ास बात यह है कि यूक्रेन को 61 बिलियन अमेरिकी डॉलर और इजराइल को 14.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बजट आवंटित किया गया है, जबकि भारत-प्रशांत रीजन को सिर्फ़ 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का पैकेज मिला है. अमेरिका द्वारा सुरक्षा गतिविधियों के लिए आवंटित किए जाने वाले बजट की यह असमानता इंडो-पैसिफिक रीजन में उसके सहयोगियों एवं साझेदारों के बीच चिंताओं को बढ़ा सकती है. हिंद -प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रों की परेशानी तब और अधिक बढ़ सकती है, जब चीन अंतर्राष्ट्रीय क़ानून एवं क्षेत्र के देशों की संप्रभुता और उनके अधिकारों की परवाह किए बग़ैर लगातार अपना दख़ल बढ़ाता जा रहा है, साथ ही आक्रामक क़दमों के ज़रिए क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदलने की जुगत में लगा हुआ है. इसके अलावा, एक तथ्य यह भी है कि चीन की ताक़त रूस एवं ईरान की साझा ताक़त से भी बहुत अधिक हैं.
आगे की राह
ज़ाहिर है कि अमेरिका ने इस सदी की शुरुआत से ही पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपना जो लापरवाही वाला और विसंगति से भरा रवैया अपनाया है, उससे अमेरिका ने कहीं न कहीं अपने दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशियाई पड़ोसियों की क़ीमत पर चीन को ज़बरदस्त फायदा पहुंचाया है. वास्तविकता में इजराइल और हमास की लड़ाई के बीच चीन में सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि अमेरिका किस प्रकार से कई मोर्चों पर अपनी ताक़त को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत कर रहा है, जबकि सच्चाई में इन मोर्चों पर आख़िरकार अमेरिका बुरी तरह से “फंस गया” है. सुरक्षा के लिहाज़ में क्षेत्र में ये जो भी घटनाक्रम चल रहे हैं, चीन उनका सोच-समझ कर अपने पक्ष में उपयोग कर रहा है और सधे हुए क़दमों के साथ दक्षिण चीन सागर में अपने लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है. 22 अक्टूबर को फिलीपींस के आपूर्ति जहाज को चीनी पोत द्वारा मारी गई टक्कर बीजिंग की इसी सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा है. ज़ाहिर है कि ऐसे हालातों में, जब वाशिंगटन आने वाले दिनों में भी यूरोप और MENA में उलझा रहेगा, तब निश्चित तौर पर बीजिंग अपने छोटे-छोटे हितों को साधने के लिए इस क्षेत्रीय उथल-पुथल का भरपूर लाभ उठाएगा.
फिलीपींस को ऐसी विदेश नीति अपनानी चाहिए, जो साझीदार देशों के साथ रणनीतिक विकल्पों को तलाशने वाली हो, ताकि पश्चिम फिलीपींस सागर में बीजिंग की ओर से बढ़ते दख़ल एवं दबाव के बीच वह अधिक राजनीतिक लचीलापन सुनिश्चित कर सके.
ऐसी परिस्थितियों में मनीला को बहुत सावधानी पूर्वक क़दम बढ़ाना चाहिए और एक ऐसी विदेश नीति का अनुसरण करना चाहिए, जो बहुआयामी हो, साथ ही समान विचारधारा वाले पारंपरिक और गैर पारंपरिक साझीदार देशों के साथ सुरक्षा एवं आर्थिक संबंधों को व्यापक एवं सशक्त करने पर केंद्रित हो. इसके साथ ही फिलीपींस को ऐसी विदेश नीति अपनानी चाहिए, जो साझीदार देशों के साथ रणनीतिक विकल्पों को तलाशने वाली हो, ताकि पश्चिम फिलीपींस सागर में बीजिंग की ओर से बढ़ते दख़ल एवं दबाव के बीच वह अधिक राजनीतिक लचीलापन सुनिश्चित कर सके. ऐसे हालातों में जब फिलीपींस के सुरक्षा भागीदार के रूप में कोई भी अन्य देश अमेरिका के साथ खड़ा नहीं हो रहा है, तब फिलीपींस को सक्रियता के साथ अपने विदेशी नेटवर्क का विस्तार करना चाहिए और उसमें विविधता भी लानी चाहिए, ताकि क्षेत्रीय भू-राजनीति के अनिश्चित भविष्य के मद्देनज़र यह नेटवर्क ज़रूरत पड़ने पर एक रणनीतिक प्रतिरोध के रूप में कार्य कर सके.
डॉन मैकलेन गिल, फिलीपींस के भू–राजनीतिक विश्लेषक व लेखक हैं. साथ ही De La Salle University (DLSU) के डिपार्टमेंट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में लेक्चर हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.