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बिगड़ते जलवायु संकट के युग में चीन की पारंपरिक विकास से जुड़ी सोच मेकॉन्ग नदी घाटी में पर्यावरण का नुकसान कर रही है.
Image Source: Getty
‘चाइना क्रॉनिकल्स’ सीरीज़ का ये 165वां लेख है.
6.5 करोड़ लोगों के जीवन को बनाए रखते हुए मेकॉन्ग नदी छह सह-तटीय दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों- चीन, म्यांमार, थाईलैंड, लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (PDR), कंबोडिया और वियतनाम- के लिए एक महत्वपूर्ण जीवन रेखा है. अपनी समृद्ध जैव विविधता और उपजाऊ ज़मीन की वजह से मेकॉन्ग कृषि, व्यापार, संपर्क, पर्यटन और जलविद्युत उत्पादन जैसे क्षेत्रों में लाखों-करोड़ों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा और आर्थिक अवसर पर असर डालती है. न केवल मेकॉन्ग की उत्पत्ति चीन में होती है- इस तरह नदी तक चीन को स्वाभाविक पहुंच मिलती है- बल्कि इस क्षेत्र की महाशक्ति के रूप में मेकॉन्ग नदी घाटी में चीन का बर्ताव दूसरे निचले तटवर्ती देशों की खाद्य, पानी, ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा के लिए बहुत ज़्यादा महत्व रखता है. बढ़ती जलवायु सुरक्षा और बदलती भू-राजनीतिक व्यवस्था के युग में मेकॉन्ग नदी घाटी में चीन की बढ़ती भूमिका और हिस्सेदारी को उजागर करना एक दिलचस्प कवायद के रूप में उभर कर सामने आया है.
इस क्षेत्र की महाशक्ति के रूप में मेकॉन्ग नदी घाटी में चीन का बर्ताव दूसरे निचले तटवर्ती देशों की खाद्य, पानी, ऊर्जा और आर्थिक सुरक्षा के लिए बहुत ज़्यादा महत्व रखता है.
इसके महत्व को देखते हुए मेकॉन्ग जैसे एक महत्वपूर्ण सीमा पार जल संसाधन का टिकाऊ विकास ज़रूरी है. लेकिन इसके बावजूद मेकॉन्ग के लिए क्षेत्रीय सहयोग और एकीकृत प्रबंधन सीमित रहा है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद थाईलैंड, वियतनाम, लाओस और कंबोडिया जैसे लोअर मेकॉन्ग बेसिन (LMB) के देशों ने मेकॉन्ग नदी में विकास को बढ़ावा देने के लिए सहयोग का रास्ता चुना. इसका परिणाम 1957 में संयुक्त राष्ट्र समर्थित मेकॉन्ग समिति की स्थापना के रूप में निकला जिसने 1995 में मेकॉन्ग नदी आयोग (MRC) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया. जब बात मेकॉन्ग नदी के टिकाऊ विकास, उपयोग और संरक्षण की आई तो MRC ने LMB के लक्ष्यों और ज़िम्मेदारियों को सुव्यवस्थित किया. MRC ने पूरे बेसिन में हाइड्रोलॉजिकल डेटा के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि इस नदी के सार्थक विकास और संरक्षण का कोई भी प्रयास नदी के ऊपरी इलाके वाले देश और क्षेत्रीय महाशक्ति चीन की भागीदारी के बिना अपर्याप्त साबित हुआ है. MRC का एक डायलॉग पार्टनर होने के बावजूद चीन की तरफ से भागीदारी की उल्लेखनीय कमी ने मेकॉन्ग नदी घाटी में औद्योगीकरण, शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास की तेज़ रफ्तार पर निगरानी रखने या रेगुलेट करने की MRC की क्षमता को काफी हद तक नाकाम कर दिया है जिसकी वजह से नदी की पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) में महत्वपूर्ण हाइड्रोलॉजिकल बदलाव हुआ है. 2002 से चीन ने केवल सालाना बाढ़ के मौसम (जून-अक्टूबर) के दौरान पानी के स्तर और बारिश का आंकड़ा साझा किया है जिसने सटीक सूखा और बाढ़ का पैटर्न तैयार करने की LMB की क्षमता को कमज़ोर किया है. 2020 में आकर चीन पूरे साल के दौरान बाढ़ का आंकड़ा साझा करने के लिए सहमत हुआ.
पहाड़ी इलाके से गुज़रने और पानी की विशाल मात्रा के कारण मेकॉन्ग नदी में जल विद्युत उत्पादन की प्राकृतिक क्षमता है. नदी की इस क्षमता के साथ-साथ अपनी बेहतर ऊपरी स्थिति का लाभ उठाते हुए चीन ने 90 के दशक की शुरुआत से आर्थिक विकास, परिवहन और ऊर्जा खपत के लिए नदी पर बांध बनाने और जल संसाधनों को विकसित करने की एकतरफा होड़ शुरू कर दी. अभी तक चीन के क्षेत्र से गुज़रने वाली नदी की मुख्यधारा पर 11 बड़े बांधों का निर्माण किया गया है जबकि सहायक नदियों पर 95 से अधिक बांध बनाए गए हैं.
दो बुनियादी बातों के ज़रिए मेकॉन्ग को लेकर चीन की सोच को समझा जा सकता है. पहला है ‘अधिकारों की रक्षा’ जिसके तहत चीन को जो सही लगता है, उसके अनुसार अपनी सीमा में बहने वाली मेकॉन्ग नदी के उपयोग और विकास के लिए अपने क्षेत्रीय विशेषाधिकार का दावा करता है. दूसरा है मेकॉन्ग नदी घाटी में विकास को बढ़ावा देने के लिए चीन का आधुनिकतावादी विकास का दृष्टिकोण. ये मानक सीमा पार जल मार्गों को नियंत्रित करने के लिए बांध और दूसरे बुनियादी ढांचे के निर्माण के साथ आर्थिक स्थिरता एवं क्षेत्रीय विकास को जोड़ता है. लेकिन ये अनियंत्रित विकास पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान की कीमत पर हुआ है. मेकॉन्ग नदी घाटी की दीर्घकालिक हाइड्रोलॉजिकल निगरानी से पता चलता है कि ऊपरी तटवर्ती बांधों की मौजूदगी ने नदी के प्रवाह और मौसमी पानी की मात्रा में मूलभूत बदलाव ला दिया है और इसकी वजह से बहुत अधिक जलवायु परिवर्तन शुरू हो गया है. इसके अलावा, चीन पर जानबूझकर अपने जलाशयों में पानी रोकने का आरोप लगाया गया है जिसका LMB के लिए विनाशकारी परिणाम हुआ है. बारिश के कम स्तर के साथ इस तरह के कदमों से अकाल की स्थिति पैदा होती है, गाद का भार बढ़ता है और निचले तटवर्ती देशों के लिए खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है. जानबूझकर नदी के प्रवाह में रुकावट डालने के इन आरोपों से चीन ने इनकार किया है और उसका कहना है कि बांध बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्यों को पूरा करते हैं.
मेकॉन्ग नदी घाटी की दीर्घकालिक हाइड्रोलॉजिकल निगरानी से पता चलता है कि ऊपरी तटवर्ती बांधों की मौजूदगी ने नदी के प्रवाह और मौसमी पानी की मात्रा में मूलभूत बदलाव ला दिया है और इसकी वजह से बहुत अधिक जलवायु परिवर्तन शुरू हो गया है.
लंबे समय की पारिस्थितिक रुकावटों और पर्यावरण पर काम करने वाले अलग-अलग लोगों एवं सिविल सोसायटी समूहों के विरोध के बावजूद पिछले कुछ वर्षों के दौरान बांध के निर्माण में उछाल आया है. इसकी वजह घरेलू पानी एवं ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का बढ़ता दायरा और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के बीच ऊर्जा व्यापार एवं विदेशी निवेश में बढ़ता तालमेल है. चीन की “गोइंग आउट” नीति के तहत- जिसका उद्देश्य बाहरी निवेश जुटाना और विदेश में प्राकृतिक संसाधनों को नियंत्रित करना है- चीन के विकास बैंकों और सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों (SOE) ने LMB में कई बांधों के निर्माण का समर्थन किया है. उनकी भागीदारी वित्तीय समर्थन एवं उपकरण मुहैया कराने से लेकर प्रबंधकीय एवं तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान करने तक रही है. एक अनुमान के मुताबिक मौजूदा समय में अन्य मेकॉन्ग तटवर्ती देशों में चीन के द्वारा समर्थित 50 से अधिक बांध हैं.
2016 में चीन ने मेकॉन्ग नदी घाटी में बहुपक्षीय बातचीत को मज़बूत करने और उसे संस्थागत रूप देने के लिए लानकांग-मेकॉन्ग सहयोग (LMC) की पहल शुरू की जो उसकी मेकॉन्ग नीति में बदलाव का सूचक था. इस उपक्रम का उद्देश्य राजनीतिक सुरक्षा को बढ़ाना, टिकाऊ आर्थिक विकास करना और मेकॉन्ग बेसिन में सामाजिक-आर्थिक संबंधों को बढ़ाना था. इसके लिए LMC ने प्राथमिकता वाले पांच क्षेत्रों की पहचान की: कनेक्टिविटी, उत्पादन क्षमता, सीमा पार आर्थिक सहयोग, सीमा पार जल संसाधन सहयोग और गरीबी में कमी. इस कदम ने चीन की तरफ से स्वागत योग्य खुलेपन और क्षेत्र को प्राथमिकता देने का संकेत दिया और “सबके लिए लाभदायक सहयोग” का एक उदाहरण बताकर LMC की तारीफ की जा रही है.
हालांकि सभी तटवर्ती देश मेकॉन्ग में चीन की भागीदारी को परोपकार के रूप में नहीं मानते हैं. LMB में चीन के पैसे से तैयार कई जलविद्युत परियोजनाओं ने मेज़बान देशों की इच्छा के अनुरूप उत्पादन का स्तर नहीं हासिल किया है. इस तरह इन परियोजनाओं ने चीन के ‘कर्ज़ के जाल’ में फंसे होने के नैरेटिव में योगदान दिया है. लाओस में बांध टूटने और कंबोडिया में विस्थापित लोगों के अपर्याप्त पुनर्वास एवं मुआवज़ा से लेकर थाईलैंड में ‘भूतहा शहरों’ के निर्माण तक चीन समर्थित जलविद्युत परियोजनाओं ने मेकॉन्ग नदी घाटी में रहने वाले लोगों को अत्यधिक कष्ट पहुंचाया है.
बढ़ते जलवायु संकट के युग में ‘ऊपरी महाशक्ति’ की विकास से जुड़ी पारंपरिक सोच को विकास के परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरण के नुकसान से सीधी चुनौती मिल रही है.
इस तरह मेकॉन्ग में चीन की भागीदारी के बारे में बताना मुश्किल है. सरकार के स्तर पर चीन ने तटवर्ती देशों से बातचीत का नेतृत्व किया है और उसकी रूप-रेखा तैयार की है. LMC के माध्यम से चीन मेकॉन्ग नदी घाटी में विकास के समन्वय और विनियमन की MRC की क्षमता में क्रियान्वयन की कुछ खामियों से पार पाने में सफल रहा है. हालांकि ज़मीनी स्तर पर चीन के विकास के मॉडल के असर से LMB, वहां रहने वाले लोगों और नदी की इकोलॉजी की सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई है. बढ़ते जलवायु संकट के युग में ‘ऊपरी महाशक्ति’ की विकास से जुड़ी पारंपरिक सोच को विकास के परिणामस्वरूप होने वाले पर्यावरण के नुकसान से सीधी चुनौती मिल रही है. मेकॉन्ग के सह-तटवर्ती देश विकास से जुड़े लाभों और पर्यावरण संरक्षण के बीच अदला-बदली का फिर से आकलन कर रहे हैं. कंबोडिया की तरफ से मेकॉन्ग नदी की मुख्यधारा में किसी बांध के निर्माण पर रोक लगाने और म्यांमार में पर्यावरण कार्यकर्ताओं के द्वारा सफलतापूर्वक माइस्तोन बांध के निर्माण को रोकने के साथ कई लोग चीन की अगुवाई में “सबके लिए फायदेमंद” मेकॉन्ग साझेदारी की सीमाओं, सच्चाई और दीर्घकालिक अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं.
रोशनी जैन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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Roshani Jain is a Programme Assistant - Forums. Her research interests include South Asian environmental security and international resource sharing, with a special emphasis on ...
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