Author : Aditya Pandey

Published on Feb 16, 2022 Updated 0 Hours ago

खपत बढ़ने, उम्र दराज ग्रामीण आबादी, तेज़ शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के बाद भी क्या शी जिनपिंग खाद्य सुरक्षा का वादा जारी रखेंगे? 

चीन के सामने खाद्य सुरक्षा को बरकरार रखने की चुनौती: क्या अपने लोगों के भोजन के अधिकार को सुरक्षित रख पायेंगें शी जिनपिंग?

जून 2021 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऐलान किया कि उनके देश ने ‘सामान्य रूप से समृद्ध समाज’ बनने के चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के पहले शताब्दी लक्ष्य को हासिल कर लिया है. इस लक्ष्य के तहत चीन में अब ग़रीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या नगण्य है. जैसे-जैसे चीन अपने दूसरे शताब्दी लक्ष्य यानी ‘आधुनिक समाजवादी देश’ बनने की तरफ़ बढ़ रहा है, शी को पता है कि उन्हें ग्रामीण दूर-दराज़ के इलाक़ों को केंद्र बिंदु में रखना होगा ताकि लोगों के ‘चावल के कटोरे’ को हमेशा के लिए सुरक्षित रखा जा सके. इस उद्देश्य के लिए अनाज की क्वालिटी और उत्पादन को बढ़ाना होगा. 

अपनी सभ्यता के पूरे इतिहास के दौरान चीन ने कई बड़े अकाल का सामना किया है. 1949 में जब से चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने मेनलैंड चीन में सत्ता की बागडोर संभाली है, तब से चीन ने खाद्य सुरक्षा के मामले में कई बड़ी नाकामी देखी है.

अपनी सभ्यता के पूरे इतिहास के दौरान चीन ने कई बड़े अकाल का सामना किया है. 1949 में जब से चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने मेनलैंड चीन में सत्ता की बागडोर संभाली है, तब से चीन ने खाद्य सुरक्षा के मामले में कई बड़ी नाकामी देखी है. ऐसी ही एक बड़ी नाकामी चीन का भयंकर अकाल (1959-61) था. चीन के ग्रेट लीप फॉरवर्ड आंदोलन के दौरान पड़ा ये अकाल एक मानव निर्मित त्रासदी थी. माना जाता है कि इस अकाल की वजह से क़रीब साढ़े चार करोड़ लोगों की जान चली गई. उस दौर के जो लोग अभी भी ज़िंदा हैं, उनके जेहन में अभी तक अकाल की डरावनी यादें हैं. 

सीसीपी ने एक सोच बनाई है जिसके तहत चीन की चुनौतियों से निपटने में सक्षम होने के लिए देश के नेतृत्व को श्रेय दिया जाता है. नागरिकों से उम्मीद की जाती है कि वो उनकी पार्टी और उनके नेता शी जिनपिंग में अपना भरोसा बनाएं. लेकिन चीन की खाद्य सुरक्षा एक ख़ास तरह के संकट का सामना कर रही है. 

खाद्य के मामले में आत्मनिर्भरता की तरफ़ यात्रा

चीन अनाज, मांस और समुद्री खाद्य पदार्थ समेत खाद्य उत्पादों का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक देश है. इसके अलावा चीन विदेशों में कृषि भूमि का चौथा सबसे बड़ा ख़रीदार है. लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप ने अंतर्राष्ट्रीय खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पर ख़राब असर डाला है. वैसे तो चीन के पास मकई, चावल और गेहूं का पर्याप्त भंडार है लेकिन चीन के प्रमुख आहार- सुअर के मांस और सोयाबीन के लिए वो वैश्विक बाज़ारों पर निर्भर है. 

दुनिया चीन के आक्रामक उदय को अभी भी शक की नज़रों से देख रही है. इसकी ख़ास वजह ये है कि चीन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के डर को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर रहा है. व्यापार को लेकर टकराव, खाद्य जमाखोरी और ज़मीन हड़पने के आरोप, एशिया-प्रशांत में लड़ाकू सैन्य रवैया और कोविड-19 के प्रकोप से निपटने को लेकर दुनिया की चीन को लेकर सोच- ये चीन को अपने भीतर झांकने और आत्मनिर्भरता हासिल करने की कोशिशों को तेज़ करने के कुछ कारण हैं. 

चीन में खाद्य असुरक्षा की चिंताओं को बढ़ाते हुए पिछले साल नवंबर में डर की वजह से ख़रीदारी और जमाखोरी की व्यापक घटनाएं सामने आईं.

चीन में खाद्य असुरक्षा की चिंताओं को बढ़ाते हुए पिछले साल नवंबर में डर की वजह से ख़रीदारी और जमाखोरी की व्यापक घटनाएं सामने आईं. जब वाणिज्य मंत्रालय ने स्थानीय सरकारों को ठंड के महीनों के दौरान खाने-पीने के सामान की क़ीमत स्थिर रखने का निर्देश दिया तो अटकलें लगनी लगीं कि कोविड-19 की एक लहर आने वाली है या ताइवान के साथ युद्ध छिड़ने वाला है. 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान नीतियों में बदलाव 

पिछले कुछ वर्षों के दौरान चीन ने अपनी नीतियों में बदलाव करते हुए खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता की तरफ़ ध्यान दिया है. 1990 के आसपास चीन के नेतृत्व ने राष्ट्रीय अनाज भंडार की स्थापना का आदेश दिया ताकि केंद्रीय और क्षेत्रीय खाद्यान्न भंडार के बीच तालमेल रखा जा सके. आज राष्ट्रीय अनाज भंडार को दुनिया का सबसे बड़ा भंडार कहा जाता है. 2006 में राष्ट्रपति हू जिनताओ के नेतृत्व में 1.8 अरब मू ज़मीन (12 करोड़ हेक्टेयर) पर एक ‘लाल रेखा’ की स्थापना की ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि शहरीकरण और औद्योगीकरण उन ज़मीनों पर अतिक्रमण नहीं करे जिनका इस्तेमाल खेती के लिए होना है. 

अनाज उत्पादन के मामले में 95 प्रतिशत आत्मनिर्भरता का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया गया यानी 95 प्रतिशत घरेलू मांग घरेलू आपूर्ति से पूरी की जानी चाहिए. चीन दावा करता है कि अभी तक इसने इस लक्ष्य को सुनिश्चित किया है. प्रांतों में ज़िम्मेदारी को सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न की कमी को रोकने की राजनीतिक ज़िम्मेदारी प्रांतों के गवर्नरों और स्थानीय पार्टी नेताओं को सौंपी गई. अप्रैल 2021 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संसद के द्वारा एक क़ानून बनाया जिसके तहत लोगों के द्वारा ज़्यादा खाने और खाने-पीने के सामान की बर्बादी पर पाबंदी लगाई गई ताकि आम लोगों के मन में बचत की मान्यता को बिठाया जा सके. 

बीज नया ‘सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप्स’ है

2021 में चीन की केंद्रीय सरकार ने ‘दस्तावेज़ संख्या 1’ के नाम से साल का पहला नीतिगत दस्तावेज़ जारी किया. इस दस्तावेज़ को राष्ट्रीय नीतिगत प्राथमिकताओं का सूचक माना जाता है. लगातार 18वें साल इस दस्तावेज़ ने खाद्यान्न और कृषि पर ध्यान दिया. लेकिन बीज उद्योग में जेनीटिकली मोडिफाइड (जीएम) तकनीक को बढ़ावा और जीएम फसलों का व्यावसायिक इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव था. चीन के कृषि मंत्री तांग रेनजियान ने ऐलान किया कि कृषि तकनीक में बीज नया ‘सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप्स’ है और अनाज के उत्पादन को सुरक्षित रखने में बीज मददगार होगा.

अनाज उत्पादन के मामले में 95 प्रतिशत आत्मनिर्भरता का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया गया यानी 95 प्रतिशत घरेलू मांग घरेलू आपूर्ति से पूरी की जानी चाहिए. चीन दावा करता है कि अभी तक इसने इस लक्ष्य को सुनिश्चित किया है.

अमेरिका जैसे देशों, जहां व्यावसायिक इस्तेमाल वाली बीज तकनीकों की तीन-चौथाई रिसर्च में निजी कंपनियां शामिल हैं, के मुक़ाबले चीन में बीज तकनीकों की 10 से 20 प्रतिशत रिसर्च में ही निजी कंपनियां शामिल हैं. इसलिए सीसीपी ने कृषि और ग्रामीण मामलों के मंत्रालय को निर्देश दिया है कि प्रमुख निजी बीज कंपनियों को सरकार का सीधा समर्थन प्रदान करे. बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधिग्रहण को चीन के लिए बीज तकनीक हासिल करने का सबसे तेज़ रास्ता माना गया है. चीन की सरकारी कंपनी केमचाइना के द्वारा फरवरी 2016 में 43 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से स्विट्ज़रलैंड की खाद्य-तकनीक कंपनी सिनजेंटा का हाई-प्रोफाइल अधिग्रहण किया गया.

 

24 दिसंबर 2021 को चीन ने एक संशोधित बीज क़ानून को अपनाया जो कि 31 मार्च 2022 से लागू होगा. संशोधित क़ानून बीज उद्योग में जीएम तकनीक के व्यवसायीकरण और मानकीकरण को बढ़ाता है और इसे अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार लाता है. लेकिन चीन की सरकार को जीएम खाद्यान्न को बढ़ावा देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. 

आगे की चुनौतियां 

चीन के नेतृत्व के द्वारा जीएम मकई और सोयाबीन को 2020 में जैव सुरक्षा मूल्यांकन के ज़रिए गुज़ारने के बाद मंज़ूरी मिलने पर भी चीन के ज़्यादातर लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है. चीन के नीति निर्माता नागरिकों के बीच ये भरोसा बनाने में नाकाम रहे हैं कि जीएम खाद्यान्न इस्तेमाल के लिए सुरक्षित हैं. लोगों ने अतीत में खाद्य सुरक्षा से जुड़े स्कैंडल देखे हैं. 

नेचर फूड के एक अध्ययन के अनुसार चीन में ओज़ोन प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है जिसके परिणामस्वरूप गेहूं, चावल और मकई की पैदावार में क्रमश: 33 प्रतिशत, 23 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की कमी आई है. 

लेकिन ये समस्या का सिर्फ़ एक हिस्सा है. अभी तक चीन एक कृषि प्रधान समाज है लेकिन वो दुनिया की सिर्फ़ 7 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का पेट भरने की बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है. प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के द्वारा किए गए एक सर्वे में बताया गया कि 2009 के मुक़ाबले 2019 के आख़िर में चीन की कृषि योग्य भूमि 6 प्रतिशत कम होकर 12.8 लाख वर्ग किलोमीटर रह गई है- कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा जंगल, शहरी क्षेत्र या औद्योगिक केंद्र में तब्दील हो गया है. 1990 से रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध और अप्रभावी उपयोग ने भूमिगत जल और मिट्टी की गुणवत्ता को प्रदूषित किया है. 

चीन 2006 से दुनिया में ग्रीन हाउस गैस का सबसे बड़ा उत्सर्जक भी है. रोडियम ग्रुप की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में चीन ने रिकॉर्ड तोड़ते हुए क़रीब 14 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन किया. इस तरह वैश्विक उत्सर्जन में चीन का योगदान 27 प्रतिशत रहा. चीन में कार्बन उत्सर्जन का एक बड़ा स्रोत पशुओं का संवर्धन है. ‘जर्नल ऑफ इंटीग्रेटिव एग्रीकल्चर’ के अनुसार 1976-2016 की अध्ययन अवधि के दौरान चीन में सुअर मांस के उद्योग से ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन बढ़कर 1.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर हो गया. इससे राष्ट्रीय कार्बन उत्सर्जन में और बढ़ोतरी हुई है. 

ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन का फसल की पैदावार में नुक़सान में सीधा योगदान है. नेचर फूड के एक अध्ययन के अनुसार चीन में ओज़ोन प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है जिसके परिणामस्वरूप गेहूं, चावल और मकई की पैदावार में क्रमश: 33 प्रतिशत, 23 प्रतिशत और 9 प्रतिशत की कमी आई है. 2021 में भारी बारिश की वजह से चीन के कई प्रांतों में बाढ़ आ गई. हेनान प्रांत में 24 लाख एकड़ में खड़ी फसल को नुक़सान पहुंचा. हेनान प्रांत चीन में एक-तिहाई गेहूं और क़रीब 10 प्रतिशत मकई, सब्ज़ी और सुअर के मांस का उत्पादन करता है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने मानवजनित कारणों से जलवायु परिवर्तन को चीन और दूसरे देशों में बाढ़ की प्रमुख वजह बताया है. इसलिए नेतृत्व के लिए समय की आवश्यकता खाद्यान्न उत्पादन में टिकाऊ और पर्यावरणीय रूप से सुरक्षित पद्धतियों को अपनाना सुनिश्चित करना है. 

चीन की उम्रदराज जनसंख्या के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, का खाद्यान्न उत्पादन और खपत पर असर पड़ा है. 2016 में चीन में शहरीकरण दर 57 प्रतिशत थी और 2025 तक शहरीकरण दर 65 प्रतिशत पर पहुंच सकती है जबकि 2050 तक 80 प्रतिशत पर. शहरीकरण के ये आंकड़े एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करते हैं- अगर समाज में इसी तरह का बदलाव होता रहा तो ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन का हिस्सा कौन बनेगा? 

निष्कर्ष

10 साल पहले जब शी जिनपिंग सत्ता में आए तब से खाद्यान्न सुरक्षा पर उनका काफ़ी ध्यान रहा है. राष्ट्रपति दावा करते हैं कि “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण आधार है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा की गारंटी देना एक अनिश्चितकालीन मुद्दा है और किसी भी वक़्त इसमें ढील नहीं दी जा सकती.” 

जिस ‘धागे’ का ज़िक्र शी जिनपिंग कर रहे हैं वो उनके राष्ट्रपति कार्यकाल की लंबी अवधि के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. 2013 में उन्होंने अपने अधिकारियों को याद दिलाया था कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन पर ध्यान दें और उसके कारणों को दिमाग़ में रखें यानी रूस के तत्कालीन नेतृत्व के द्वारा सोवियत नेताओं जैसे लेनिन और स्टालिन की सार्वजनिक आलोचना की इजाज़त देना. चीन में 1989 के थियानमेन स्क्वायर प्रदर्शन का एक कारण अनाज की क़ीमत में काफ़ी ज़्यादा बढ़ोतरी थी और शी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों की सार्वजनिक आलोचना का दुष्प्रभाव अपने राजनीतिक करियर पर नहीं पड़ने देंगे. चीन की संसद, जो पांच साल में एक बार बैठती है, की बैठक इस महीने के आख़िर तक होनी चाहिए. इसमें ये तय होगा कि भविष्य का नेतृत्व कौन करेगा. वैसे शी की आकांक्षा ख़ुद के नेतृत्व को जारी रखने की है. 

 बढ़ते शहरीकरण और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आमदनी के बढ़ते स्तर के साथ दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश में लोगों के खाने-पीने की चीज़ों की खपत का बढ़ना तया है.

खाद्यान्न की बर्बादी के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय क़ानून लागू करने के बाद भी चीन को निश्चित तौर पर ये महसूस करना चाहिए कि वो अपेक्षाकृत रूप से ज़्यादा समृद्ध देश बन चुका है. बढ़ते शहरीकरण और शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की आमदनी के बढ़ते स्तर के साथ दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश में लोगों के खाने-पीने की चीज़ों की खपत का बढ़ना तया है. सीसीपी ने हमेशा अपने नागरिकों से खाद्यान्न और अनाज की भरमार का वादा किया है. अब जब नागरिकों ने ‘सामान्य रूप से समृद्ध समाज’ के फलों का मज़ा उठाना शुरू कर दिया है तो एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा होता है- क्या चीन की खाद्य नीति के अलग-अलग पुर्जे इतने वास्तविकतावादी हैं कि ‘चावल के कटोरे’ को सुरक्षित रखा जा सके या ये सिर्फ़ राष्ट्रपति शी जिनपिंग के द्वारा राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवारी के लिए महज़ एक राजनीतिक हथकंडा है.


लेखक ओआरएफ में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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