घोषणा की साल 1980-95 के दौरान बतौर एक राष्ट्र जनसंख्या दर में तेजी से हुई कमी का जिस चीन को फायदा पहुंचा उसी चीन में अब यह मामला सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिणामों से जुड़ता दिख रहा है, क्योंकि चीन की जनसंख्या दर ना सिर्फ लगातार घटती जा रही है बल्कि वहां की आबादी तेजी से बुज़ुर्ग भी हो रही है, और आबादी की इस उभरती विषमता को चीन ने 80 के दशक में देश में एक बच्चे की नीति को लागू करने में नज़रअंदाज़ कर दिया था.
जनगणना का काम दिसंबर 2020 को पूरा हो गया था. इसके अनुसार जनसंख्या 5.38 फ़ीसदी बढ़कर 2010 के 1.34 बिलियन से बढ़कर 1411.78 मिलियन हो गया था. कुछ ख़बरों के मुताबिक जनगणना में जनसंख्या में गिरावट दर्ज़ की गई थी लेकिन रहस्यमय परिस्थितियों में इस रिपोर्ट में बदलाव कर जनसंख्या को बढ़ा हुआ दिखाया गया . पहले की जनगणना आंकड़े के मुकाबले जनसंख्या का औसत वार्षिक दर 0.04 फ़ीसदी कम हुआ है. साल 1953 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन ने जब से जनसंख्या संबंधी आंकड़ा जुटाना शुरू किया है तब से जनसंख्या में यह सबसे कम बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. ऐसा रहा तो जल्द ही भारत भी विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के तौर पर याद किए जाने वाले चीन से आगे निकल जाएगा.
साल 1953 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन ने जब से जनसंख्या संबंधी आंकड़ा जुटाना शुरू किया है तब से जनसंख्या में यह सबसे कम बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. ऐसा रहा तो जल्द ही भारत भी विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश के तौर पर याद किए जाने वाले चीन से आगे निकल जाएगा.
इस आंकड़े के मुताबिक चीन में साल 2020 में महज 12 मिलियन बच्चे पैदा हुए. यह चौथा साल ऐसा था जब जन्म दर में गिरावट दर्ज़ की गई. साल 2019 में 14.65 मिलियन बच्चे पैदा हुए थे. एक साल में जनसंख्या में आई 18 फ़ीसदी की गिरावट कोरोना संक्रमण की वजह से बताई जा रही है, लेकिन यह चीन के लिए कोई नई बात नहीं है क्योंकि साल 1987 में 25.5 मिलियन बच्चों के जन्म के साथ जब जन्म दर अपने चरम पर थी तब भी इसके बाद जन्म दर में कमी दर्ज़ की गई थी. चीन की प्रजनन दर – अपने पूरे जीवन काल के दौरान एक महिला जो औसत बच्चों को जन्म देती है – मौजूदा वक्त में 1.3 है. जबकि प्रतिस्थापन दर जिसके चलते जनसंख्या स्थिर रहती है वो 2.1 है. जापान में पिछले साल प्रजनन दर 1.36 था जबकि यूरोपीयन यूनियन के लिए यही आंकड़ा 1.5 है.
1980 के मध्य से चीन में एक बच्चा पैदा करने की सख़्त नीति लागू है. हालांकि इस नीति का एक गंभीर नतीजा यह हुआ है कि इसके चलते लिंग चयनात्मक गर्भपात की घटनाएं तेजी से बढ़ी है जिसने देश में लिंग अनुपात को बुरी तरह प्रभावित किया है. मौजूदा जनगणना बताती है कि देश में अभी 723.34 मिलियन पुरूष और 688.44 मिलियन महिलाएं हैं. हाल के दशक में पुरुष-स्त्री के अनुपात बेहतर हुए हैं लेकिन यह अभी भी कई सामाजिक समस्याओं की जड़ है. साल 2016 के दौरान एक बच्चा पैदा करने की नीति में कुछ छूट दी गई जबकि शादीशुदा जोड़ियों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई. लेकिन लोग दो बच्चे पैदा करने के लिए उत्साहित नहीं दिखे क्योंकि दूसरे बच्चे को पालने का ख़र्च ज़्यादा था. इसके साथ ही शिक्षित चीनी महिलाएं जान बूझकर शादी में देरी करने लगीं जो 2014 के बाद कम होने लगा.
बेहद प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक नतीजे
लेकिन जनसांख्यिकी से जुड़े चीन के विशेषज्ञ इसकी वजह से उभर रहे संकट को लेकर लगातार चेतावनी देते रहे हैं जो अब काफी गंभीर हो चुका है. पिछले वर्ष जारी किये गए एक रिपोर्ट में चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइन्सेज ने कहा कि इस तरह के ट्रेंड “बेहद प्रतिकूल सामाजिक-आर्थिक नतीजे” पैदा कर सकते हैं और इसके लिए प्राथमिकता के तौर पर नीति बनाने की ज़रूरत है. अब पेकिंग यूनिवर्सिटी के रिसर्च से जुड़े प्रोफेसर लियांग जियानजैंग के मुताबिक, बिना सख़्त नीतियों के हस्तक्षेप के “नए बच्चों के जन्म की संख्या 10 मिलियन से कम हो सकती है जो जापान के प्रजनन दर से कम होगी”. सच में, प्रोफेसर लियांग ने जो सुझाव दिया है उसके मुताबिक सभी नए जन्म लेने वालों के लिए 1 मिलियन युआन ( करीब 15600 अमेरिकी डॉलर ) का पुरस्कार देने की बात कही है. उनका सुझाव है कि चीन के प्रजनन दर को 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर तक ले जाने और देश में बच्चों को जन्म देने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए चीन को अपनी जीडीपी का 10 फ़ीसदी ख़र्च करना चाहिए.
अधिकारी सभी तरह की पाबंदियां सामान्य तौर पर हटा सकते हैं लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भी ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत है जिसमें बच्चों की देखभाल के लिए सहायता से लेकर टैक्स में छूट और वित्तीय सब्सिडी जैसे उपाय शामिल हैं. इसे लेकर एक सहायता योग्य कदम ये भी हो सकता है कि लोगों के रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ा दिया जाए जो ज़्यादातर मामलों में अभी पुरुषों के लिए 60 साल और महिलाओं के लिए 50 साल है.
साल 2016 के दौरान एक बच्चा पैदा करने की नीति में कुछ छूट दी गई जबकि शादीशुदा जोड़ियों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी गई. लेकिन लोग दो बच्चे पैदा करने के लिए उत्साहित नहीं दिखे क्योंकि दूसरे बच्चे को पालने का ख़र्च ज़्यादा था
इस तरह के उभरते ट्रेंड को लेकर दूसरी चुनौतियां भी हैं जैसे तेजी से बुज़ुर्ग होती आबादी. साल 2020 की जनगणना के मुताबिक चीन में करीब 264 मिलियन लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र 60 साल या इससे ज़्यादा है. यह आबादी का करीब 18.70 फ़ीसदी हिस्सा है जो साल 2010 के 13.3 फ़ीसदी के आंकड़े से ज़्यादा है. जनगणऩा को लेकर जो भविष्यवाणी की जा रही है उसके मुताबिक यह आंकड़ा साल 2015 में 300 मिलियन के करीब पहुंच सकता है और साल 2033 में यह 400 मिलियन के आंकड़े को छू सकता है. नानकाई यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर युआन शिन के मुताबिक “जनसंख्या विकास के ऐतिहासिक नियम के चलते ही किसी देश की आबादी बुज़ुर्ग होती जाती है, जिसे बदल पाना मुश्किल है.” सच्चाई तो यही है कि उनका सुझाव यही है कि “देश और जनता (स्थिति का) शांति से मुकाबला करे”.
कौन-कौन सी समस्याएं
आने वाले दशक में एक बच्चा पैदा करने की नीति के दौरान पैदा लेने बच्चों को अपने माता पिता के बुज़ुर्ग होने की समस्या से दो चार होना पड़ेगा. हालांकि चीन में सामान्य सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था का चलन है, लेकिन ज़्यादातर लोगों के पास कोई मदद नहीं है लिहाजा परिवार और सरकार की मदद पर वो निर्भर रहते हैं. इससे पारिवारिक मदद की ज़िम्मेदारी बढ़ती जाएगी जबकि सामाजिक ट्रेंड इस ओर इशारा करती है कि “बुज़ुर्गों के लिए परिवार में देख रेख की अब कमी होती जा रही है.” इसके बाद 60 वर्ष से ऊपर आयु वाले लोग हैं, जो पूरी आबादी का एक तिहाई है, और जिनसे सामाजिक कल्याण सेवा और सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था पर असर पड़ सकता है. पहले से ही गरीब और जनसंख्या को लेकर चुनौती पेश करने वाले उत्तर पूर्वी राज्यों में पेंशन की कमी के चलते सरकार अमीर और दक्षिणी क्षेत्र के युवाओं से मदद करने की अपील कर रही है. लेकिन एक बड़ी समस्या यह है कि दूसरे इलाकों के मुकाबले चीन में तेजी से एक बड़ी आबादी बुज़ुर्ग होती जा रही है. अब तक अमेरिका और चीन दोनों मुल्कों में मध्य उम्र करीब 38 साल है. लेकिन साल 2050 तक अमेरिका में मध्य उम्र 41 साल होगी तो चीन में मध्य उम्र करीब 46 साल रहेगी. जबकि जापान और दक्षिण कोरिया में मध्य उम्र 50 साल से ऊपर होगी तो भारत में यह 37 साल रहेगी.
जनगणना के ये आंकड़े इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि चीन की ज़्यादातर आबादी अब शहरी हो चुकी है. चीन में 902 मिलियन लोग(64 फ़ीसदी) अब शहरी इलाकों में रहते हैं. जबकि 510 मिलियन आबादी(36 फ़ीसदी) अभी भी ग्रामीण इलाकों में बसती है. ये आंकड़े इस बात का खुलासा करते हैं कि पिछले एक दशक में चीन में क्रमबद्ध शहरीकरण की वजह से करीब 14 फ़ीसदी की दर से लोग शहरों में बसते जा रहे हैं. पूर्वी इलाके में देश की कुल आबादी का करीब 40 फ़ीसदी हिस्सा रहता है जबकि मध्य चीन में 26 फ़ीसदी, उत्तर पूर्वी हिस्से में 7 फ़ीसदी और पश्चिमी इलाके में 27 फ़ीसदी आबादी रहती है. एक अन्य महत्वपूर्ण बात जनसंख्या की उम्र सीमा को लेकर थी – क्योंकि 253 मिलियन आबादी, 0 – 14 वर्ष की आयुसीमा के अंदर थी (18 फ़ीसदी), 894 मिलियन आबादी 15-59 वर्ष की उम्र सीमा(63 फ़ीसदी) और जो 65 साल की उम्र से ज़्यादा थे उनकी तादाद 191 मिलियन (14 फ़ीसदी) थी.
सुझाव है कि चीन के प्रजनन दर को 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर तक ले जाने और देश में बच्चों को जन्म देने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए चीन को अपनी जीडीपी का 10 फ़ीसदी ख़र्च करना चाहिए.
इसके अलावा जो समस्या है वह शिक्षित होने के स्तर को लेकर है. चीन में करीब 218 मिलियन लोग ऐसे हैं जिन्हें यूनिवर्सिटी स्तर की शिक्षा प्राप्त है जबकि 15 वर्ष और इससे अधिक आयु के लोगों की स्कूली शिक्षा की औसत आयु 9.08 साल से बढ़कर 9.91 साल हो गई. इसका मतलब यह हुआ कि भारत में कक्षा 10 तक जो शिक्षा बच्चे प्राप्त कर लेते हैं उसे भी चीन में इस उम्र तक बच्चे प्राप्त नहीं कर पाते. दो राय नहीं कि भारतीय आंकड़े कई मायनों में खराब भी हैं, लेकिन चीन जो उद्योग आधारित और आधुनिक अर्थव्यवस्था बनने की ख़्वाहिश रखता है उसके लिए यह जरूर एक समस्या है.
विशेषज्ञों की चिंता
चीन की जनसांख्यिकीय स्थिति से जुड़े विशेषज्ञों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन सरकार ने इस समस्या से निपटने का मन ही नहीं बनाया है. राजनीतिक नेतृत्व भी अलग अलग तरह की समस्याओं को टालने की कोशिश में जुटा है – बढ़ते कर्ज़, अमेरिका के साथ कारोबारी प्रतिस्पर्द्धा, और अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन की कोशिश इसमें शामिल है.
अब तक अमेरिका और चीन दोनों मुल्कों में मध्य उम्र करीब 38 साल है. लेकिन साल 2050 तक अमेरिका में मध्य उम्र 41 साल होगी तो चीन में मध्य उम्र करीब 46 साल रहेगी. जबकि जापान और दक्षिण कोरिया में मध्य उम्र 50 साल से ऊपर होगी तो भारत में यह 37 साल रहेगी.
एक बच्चा पैदा करो नीति पर पाबंदी हटाने के अलावा सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कुछ ख़ास अब तक नहीं किया है. अब देश के सामने ज़्यादा विकल्प मौजूद नहीं है सिवाए इसके कि एक बड़ी बुज़ुर्ग आबादी के चलते देश की बचत को तेजी से खपत करना होगा, बावजूद इसके कि चीन उच्च स्तर के विकास के लिए उपभोग केंद्रित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की कोशिशों में है. हालांकि चीन जैसे विकासशील देश में जनसंख्या दर में गिरावट होना कोई बड़ी समस्या नहीं है. क्योंकि इससे वातावरण पर दबाव कम पड़ता है, इससे देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है, बेरोजगारी दर में कमी होती है, मजदूरी में बढ़ोतरी के लिए प्रेरणा मिलती है, वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ती है, और सामान्य तौर पर इससे लोगों के जीवन स्तर में बढ़ोतरी होती है. यह एक समस्या है जिसका अर्थ यह है कि कुछ लोग ही बुज़ुर्ग हो रही एक बड़ी आबादी का ख्याल रखेंगे. ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) नए बदलाव की शुरुआत कर सकते हैं ख़ास कर तब भी जब एक तरफ जनसंख्या में गिरावट दर्ज़ होगी फिर भी अर्थव्यवस्था का विस्तार होता रहेगा. लेकिन इसे लेकर जरूरत है कि ऐसी समस्या को लेकर तुरंत कार्रवाई करनी होगी – क्योंकि यह एक ऐसी समस्या है जो सरकार द्वारा ही बनाई गई है.
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