Published on Jun 08, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में पश्चिमी देशों के असर का मुक़ाबला करना चाहता है.

दक्षिणी प्रशांत के समंदर में ‘चीन’ दे रहा है ‘बवंडर’ की आहट: द्वीपीय देशों में हो रही है पाँव फैलाने की कोशिश!

सोलोमन आइलैंड और चीन के बीच सुरक्षा समझौते (जिसका ब्यौरा मार्च की शुरुआत में ही लीक कर दिया गया था और जिसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका में हलचल मच गई थी) के एक महीने से कुछ ज़्यादा समय के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने 26 मई को दक्षिणी प्रशांत महासागर के आठ देशों का तूफ़ानी दौरा शुरू किया. सोलोमन आइलैंड से शुरुआत के बाद वांग यी ईस्ट तिमोर, समोआ, टोंगा, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, किरिबाती, और वनुआतु के दौरे पर भी जाएंगे. इसके बाद वो माइक्रोनेशिया के संघीकृत राज्यों, कुक आइलैंड, और नियू के साथ वर्चुअल बातचीत भी करेंगे. 

दक्षिणी प्रशांत महासागर ने आनन-फानन में उन भौगोलिक क्षेत्रों की सूची में जगह बना ली है जहां असर कायम करने के मामले में चीन सीधे पश्चिमी देशों का मुक़ाबला कर रहा है.

दक्षिणी प्रशांत महासागर ने आनन-फानन में उन भौगोलिक क्षेत्रों की सूची में जगह बना ली है जहां असर कायम करने के मामले में चीन सीधे पश्चिमी देशों का मुक़ाबला कर रहा है. दशकों से ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का पड़ोसी होने की वजह से दक्षिणी प्रशांत के देश उनके लिए विकास के मामले में सहयोग का नज़दीकी क्षेत्र रहा है. लेकिन दुनिया के कई अन्य हिस्सों की तरह जहां बीजिंग ने अपनी पांव फैलाए हैं- उदाहरण के तौर पर अफ्रीका के देश, श्रीलंका, इत्यादि- प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश (पिक्स) भी अमेरिका और चीन के बीच तनाव का ताज़ा भौगोलिक क्षेत्र बन गये हैं. 

सोलोमन आइलैंड के साथ सुरक्षा समझौता

अप्रैल में चीन और सोलोमन आइलैंड के बीच जिस सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था, उसका मतलब काफ़ी व्यापक है- सामाजिक व्यवस्था के रखरखाव और लोगों की जान-माल की रक्षा से लेकर मानवीय सहायता, आपदा को लेकर प्रतिक्रिया, और सोलोमन आइलैंड की आंतरिक सुरक्षा क्षमता को मज़बूत करने तक. इस सुरक्षा समझौते का व्यापक दायरा निस्संदेह बेचैनी की स्थिति बनाता है क्योंकि सोलोमन आइलैंड के मामले में दखल देने के लिए आसानी से समझौते का इस्तेमाल किया जा सकता है और शायद यहां चीन के सुरक्षा बलों की तैनाती भी की जा सकती है. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड इस मामले में पहले के उदाहरण नहीं भूले हैं जब चीन ने इसी तरह के समझौतों का इस्तेमाल करके उनकी चिंता बढ़ाई थी जैसा कि जिबूती के मामले में हुआ था. वांग की पिछले दिनों की यात्रा का उद्देश्य प्रशांत महासागर के सभी 10 द्वीपीय देशों को इस बात के लिए तैयार करना था कि वो एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर करें जिसमें इंटरनेट नेटवर्क को चलाने से लेकर सुरक्षा सहयोग और मत्स्य पालन के लिए समुद्री योजना तक सब कुछ शामिल हों. इस तरह का समझौता चीन को इस क्षेत्र में लगभग पूरा नियंत्रण दे देगा जिसे एक सरकारी विज्ञप्ति के मसौदे और पंचवर्षीय कार्यवाही की योजना में चीन ने इस क्षेत्र के लिए “साझा विकास का दृष्टिकोण” करार दिया है. इसे चीन ने वांग की यात्रा से पहले प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों के साथ साझा भी किया है. दिलचस्प बात ये है कि सोलोमन आइलैंड की राजधानी होनियारा के मीडिया समूहों ने वांग के दौरे के विरोध में प्रदर्शन किया क्योंकि वांग के दौरे में चुनिंदा मीडिया एजेंसियों को ही कवरेज की इजाज़त दी गई थी. 

वांग की पिछले दिनों की यात्रा का उद्देश्य प्रशांत महासागर के सभी 10 द्वीपीय देशों को इस बात के लिए तैयार करना था कि वो एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर करें जिसमें इंटरनेट नेटवर्क को चलाने से लेकर सुरक्षा सहयोग और मत्स्य पालन के लिए समुद्री योजना तक सब कुछ शामिल हों.

चीन ने ज़ोरदार ढंग से कहा है कि प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश किसी भी दूसरे देश के पिछलग्गू नहीं हैं और दूसरे देशों के साथ सहयोग के मामले में विविधता की उनकी आवश्यकता का सम्मान करना चाहिए. पहली नज़र में दोनों ही दलीलें सही लगती हैं. लेकिन समस्या ये है कि, जो कि चीन के मामले में हमेशा और बार-बार होता है, ‘साझा दृष्टिकोण’; ‘सबके लिए फ़ायदा’; ‘जीत की परिस्थिति’ और इसी तरह के मिलती-जुलते शब्द हमेशा चीन के लाभ के हिसाब से बनाए जाते हैं. दक्षिणी प्रशांत के लिए व्यापक योजना के मामले में भी उद्देश्य चीन की शर्तों के मुताबिक़ और चीन के फ़ायदे के लिए इस क्षेत्र को विकसित करना है. 

नाज़ुक दौर से गुज़रता सोलोमन आइलैंड

सोलोमन आइलैंड पहले से ही नाज़ुक हालात से गुज़र रहा है लेकिन इस क्षेत्र के दूसरे देशों को चीन की पकड़ से मुक्त कराने के लिए ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, और अमेरिका को हर हाल में अपनी मौजूदगी बढ़ानी चाहिए और इन देशों के साथ साझेदारी करनी चाहिए. काफ़ी हद तक प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और अमेरिका ने नज़रअंदाज़ किया है. लेकिन अब जब इस क्षेत्र में चीन का ख़तरा साफ़ तौर पर दिख रहा है, उस वक़्त इन देशों ने हाल के वर्षों में कोशिशें फिर से शुरू की हैं. माइक्रोनेशिया और दूसरे देशों ने पहले ही सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है कि वो चीन की योजना को मंज़ूरी नहीं देंगे. माइक्रोनेशिया के राष्ट्रपति ने कहा है कि ये योजना प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को “चीन के बेहद क़रीब ले जाएगी और मूलभूत तरीक़े से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था और समाज को चीन के साथ जोड़ देगी.”  लेकिन बिना सोचा-समझा जवाब जैसे कि रचनात्मक भागीदारी की अनुपस्थिति में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग को तुरंत फिजी भेजने का फ़ैसला सिर्फ़ प्रतीकवाद के तौर पर देखा जाना तय है.  

अब जब इस क्षेत्र में चीन का ख़तरा साफ़ तौर पर दिख रहा है, उस वक़्त इन देशों ने हाल के वर्षों में कोशिशें फिर से शुरू की हैं. माइक्रोनेशिया और दूसरे देशों ने पहले ही सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है कि वो चीन की योजना को मंज़ूरी नहीं देंगे.

फिलहाल के लिए, प्रशांत महासागर के 10 द्वीपीय देशों के द्वारा चीन की योजना और व्यापक सुरक्षा समझौते को बढ़ावा देने की चीन की कोशिश को खारिज करने की ख़बरें हैं. साथ ही इन द्वीपीय देशों के बीच चीन की महत्वाकांक्षा को लेकर काफ़ी हद तक अविश्वास भी है. वैसे तो द्वीपीय देशों के इस रुख़ से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड को कुछ राहत मिलेगी लेकिन ये कुछ ही समय के लिए है. प्रशांत महासागर के द्वीपीय देश जलवायु परिवर्तन के ख़तरे का सबसे ज़्यादा सामना कर रहे हैं और समुद्र के बढ़ते स्तर के साथ-साथ आर्थिक चुनौती जैसे मुद्दों का समाधान करने के लिए काफ़ी कुछ करने की ज़रूरत है. यही वजह है कि वो पश्चिमी देशों और चीन के बीच भू-राजनीतिक लड़ाई को नाकाम बनाने के लिए उत्सुक हैं. ये ज़रूर याद रखा जाना चाहिए कि चीन कोई भी काम तुरंत करता है, उसके पास वित्तीय संसाधन की कमी नहीं है, और जहां तक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की बात है तो वो कोई भी कथित खाली जगह भरने के लिए फ़ौरन तैयार है. इसलिए प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों को ये भरोसा दिया जाना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के द्वारा (उनकी भौगोलिक नज़दीकी को देखते हुए) मदद, समर्थन, और सहयोग की पेशकश और वादा इस क्षेत्र में चीन के प्रवेश के जवाब में नहीं है बल्कि ये इस क्षेत्र के विकास में निवेश को लेकर सच्ची दिलचस्पी का दीर्घकालीन प्रदर्शन है. 

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