Author : Manoj Joshi

Published on Jul 28, 2023 Updated 0 Hours ago

चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का उल्लेख किया और कहा कि चीन ने 'कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में विवाद को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और नियंत्रित किया है.' दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक लगातार अपनी स्थिति को मजबूत बना रहे हैं.

साल 2022 में: चीन की चुनौती से निपटने के तरीके
साल 2022 में: चीन की चुनौती से निपटने के तरीके

नए वर्ष के पहले ही दिन दो घटनाओं ने चीन के साथ अपने संबंधों पर भारत का ध्यान आकृष्ट किया. पहला एक वीडियो था, जिसमें गलवान घाटी में चीन का झंडा फहराया जा रहा था. यह वही जगह थी, जहां जून, 2020 में भारतीय एवं चीनी सैनिकों के बीच घातक झड़प हुई थी. दूसरी घटना भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच नए साल के अवसर पर मिठाइयों के आदान-प्रदान की तस्वीरें थीं. जिन दस जगहों पर मिठाइयों का आदान-प्रदान हुआ, उनमें से सात पूर्वी लद्दाख में थीं, जहां दोनों देशों की सेनाएं पिछली गर्मियों से अभूतपूर्व तैनाती में एक-दूसरे का सामना कर रही हैं.

भारतीय सैन्य सूत्रों का कहना है कि गलवान वीडियो टकराव की जगह पर शूट नहीं किया गया था, जो बहुत संभव है कि यह एक दुष्प्रचार (प्रॉपेगैंडा) था. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इसका असर हुआ

मनोवैज्ञानिक दबाव

वास्तव में, दोनों देश अब भी कुगरंग नदी घाटी में पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) 15 जैसे अन्य क्षेत्रों से चीन को बाहर निकलने, देपसांग में ‘बॉटलनेक प्वाइंट’ में अपनी नाकाबंदी हटाने और भारतीय गश्ती दल को लगभग 900 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में जाने की अनुमति देने पर सहमति बनाने के लिए बातचीत कर रहे हैं. भारतीय सैन्य सूत्रों का कहना है कि गलवान वीडियो टकराव की जगह पर शूट नहीं किया गया था, जो बहुत संभव है कि यह एक दुष्प्रचार (प्रॉपेगैंडा) था. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इसका असर हुआ, तीन दिन बाद भारतीय सेना ने गलवान में भी तिरंगा फहराए जाने की अपनी तस्वीर लगाई, लेकिन कहां, यह स्पष्ट नहीं है.

कुगरंग नदी घाटी और डेमचोक के पास चारडिंग नाला में कई अन्य क्षेत्र भी हैं, जहां से चीनी अभी तक पीछे नहीं हटे हैं. यहां तक कि पूर्वी लद्दाख में चीनियों के साथ अपने सैनिकों के सामना करने के बावजूद, भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में निरंतर चीनी बढ़त का सामना कर रहा है.

नए साल के अपने सालाना भाषण में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत या किसी भी अन्य देश का ज़िक्र नहीं किया. लेकिन नए साल पर अपनी टिप्पणी में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का उल्लेख किया और कहा कि चीन ने ‘कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में विवाद को प्रभावी ढंग से प्रबंधित और नियंत्रित किया है.’ दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के नजदीक लगातार अपनी स्थिति को मजबूत बना रहे हैं. ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, चीन ने पैंगोंग झील के सबसे संकरे बिंदु पर एक पुल का निर्माण किया है, ताकि उनके आधार क्षेत्रों से झील के उत्तरी किनारे तक आवाजाही को सुगम बनाया जा सके.

चीन बांग्लादेश का अब तक का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है. हालांकि, ढाका अपने कर्ज के प्रबंधन में सावधानी बरत रहा है और अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ श्रीलंका जैसी समस्याओं का सामना नहीं करता है.

यह सब भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पूर्वी लद्दाख सहित अग्रिम क्षेत्रों में कई पुलों और सड़कों का आभासी (वर्चुअल) उद्घाटन के ठीक एक हफ्ते बाद हुआ है. चीनी और भारतीय सैन्य अधिकारियों के बीच 13वें दौर की वार्ता बेनतीजा रही. 14वें दौर की बातचीत के बारे में ख़बरें आई हैं, लेकिन अब तक कोई पुष्टि नहीं हुई है. इससे पहले के दौर की बातचीत गलवान और पैंगोंग त्से से सैनिकों की वापसी कराने में सफल रही. लेकिन सरकार ने अब तक सबसे गंभीर समस्या देपसांग के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है, जहां लगभग 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर चीनी सैनिकों का कब्ज़ा है.

चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक बड़ी चुनौती

ऐसा लगता है कि सरकार इस क्षेत्र को चीन को सौंपने के लिए तैयार है. कुगरंग नदी घाटी और डेमचोक के पास चारडिंग नाला में कई अन्य क्षेत्र भी हैं, जहां से चीनी अभी तक पीछे नहीं हटे हैं. यहां तक कि पूर्वी लद्दाख में चीनियों के साथ अपने सैनिकों के सामना करने के बावजूद, भारत दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में निरंतर चीनी बढ़त का सामना कर रहा है. भारत की अर्थव्यवस्था के आकार और इसकी सैन्य क्षमता को देखते हुए, दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में इसे प्रधानता मिलनी चाहिए, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. पाकिस्तान, निश्चित रूप से एक ज्ञात समस्या है. लेकिन नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है.

भारत के पास पैसे के मामले में चीन को टक्कर देने के लिए संसाधनों की कमी है. 

नए साल के संबोधन के दो दिन पहले यह घोषणा की गई थी कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी की 2022 में पहली विदेश यात्रा इरिट्रिया, केन्या और कोमोरोस के साथ मालदीव, श्रीलंका की होगी. इन सभी देशों से भारत के हित जुड़े हैं, विशेष रूप से श्रीलंका से, जो भारतीय प्रायद्वीप से लगभग 30 किमी दूर है. वहां राजपक्षे परिवार फिर से सत्ता में है. हालांकि वे नई दिल्ली को खुश रखने के प्रति सावधान रहते हैं, पर वे हमारे लिए अनुकूल नहीं हैं.

चीन लगातार छह वर्षों से नेपाल के लिए एफडीआई का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है, जिसने 2020-21 में 18.8 करोड़ डॉलर निवेश की प्रतिज्ञा की है. यह बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है और चीन बिजली और ऊर्जा क्षेत्र के साथ-साथ एक्सप्रेस-वे, रेलवे लाइनों, पुलों और बंदरगाहों के निर्माण में भी निवेश कर रहा है. इसके अलावा, चीन बांग्लादेश का अब तक का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है. हालांकि, ढाका अपने कर्ज के प्रबंधन में सावधानी बरत रहा है और अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ श्रीलंका जैसी समस्याओं का सामना नहीं करता है.

चीन से जैविक खाद की एक खेप दूषित होने के बाद हाल के महीनों में श्रीलंका-चीन के संबंधों में कुछ हद तक समस्या आई है. चीनी दबदबे के कारण श्रीलंकाई विरोध खारिज हो गया और उन्हें सौदे के लिए चीनी कंपनी को 67 लाख डॉलर का भुगतान करने के लिए बाध्य होना पड़ा, और उनसे ताजा स्टॉक भी खरीदना पड़ा. श्रीलंका के साथ चीन के संबंधों को अक्सर हम्बनटोटा बंदरगाह सौदे के चश्मे से देखा गया है. बेशक श्रीलंका में क़र्ज़ की गंभीर समस्या है. लेकिन हमें श्रीलंका को दिए चीन के क़र्ज़ के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताना चाहिए.

चीन को टक्कर देने के लिए संसाधनों की कमी

वास्तव में चीन का क़र्ज़र्ज उसके कुल क़र्ज़ का महज 10 फ़ीसदी है. हाल में हुए दो अध्ययन, एक लंदन स्थित चाथम हाउस और दूसरा, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दो प्रोफेसरों द्वारा किया गया, इस लोकप्रिय आख्यान को ख़ारिज करते हैं कि चीन जान-बूझकर असहाय विकासशील देशों को कर्ज में फंसा रहा है. दुनिया और भारत के सामने इस क्षेत्र में चीनी गतिविधियों का मुकाबला करने में सक्षम होने की चुनौती है. हालांकि, भारत के पास पैसे के मामले में चीन को टक्कर देने के लिए संसाधनों की कमी है.

लेकिन इस क्षेत्र में विकास सहायता के मुद्दे को हल करने के लिए यह जापान और अमेरिका जैसे देशों के साथ गठबंधन कर सकता है. जून 2021 में, जी-7 देशों ने चीनी बीआरआई के विकल्प के रूप में एक नई ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड’ (बी3डब्ल्यू) पहल शुरू की थी. लेकिन इसका दायरा वैश्विक होगा, इसलिए नई दिल्ली को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बी3डब्ल्यू देशों को निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने में सक्रिय कूटनीतिक भूमिका निभानी चाहिए.

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यह लेख मूल रूप से अमर उजाला में प्रकाशित हो चुका है.

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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...

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