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भारत और चीन सहित रूस से कच्चे तेल के ख़रीदारों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की ट्रंप की धमकी वाशिंगटन के प्रतिबंधों की फेहरिस्त में दूरगामी परिणाम के साथ-साथ एक नाटकीय मोड़ लेकर आई है. जिसका वैश्विक असर और राजनयिक उलझनों तक प्रभाव पड़ सकता है.
Image Source: Getty
डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे शासन के लगभग छह महीने बीत जाने के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध के अभी भी पूरे जोरों पर जारी रहने के चलते, अमेरिका इस युद्ध को समाप्त करने के लिए मॉस्को को बाध्य करने के तरीकों की तलाश में खुद को एक चौराहे पर खड़ा पा रहा है. बिडेन की विरासत को मिटाने के लिए तत्पर लेकिन संघर्ष में शामिल होने के लिए खुद को तैयार न पाकर अब राष्ट्रपति ट्रंप ने रूसी अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है. जुलाई 14, 2025 को एक बयान में, ट्रंप ने घोषणा की कि अगर रूस 50 दिनों के भीतर युद्ध नहीं रोकता है तो अमेरिका ‘सेकेंडरी टैरिफ’ यानी शुल्क लगाएगा. इस वक्तव्य के दो सप्ताह बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 10-12 दिनों की एक नई समय सीमा निर्धारित की, जो स्पष्ट रूप से शांति समझौते पर प्रगति की कमी के चलते ये निराशा के कारण दिख रहा है. हालांकि, इस बार नई बात यह है कि नए अमेरिकी दंडात्मक कदम न केवल मॉस्को बल्कि भारत सहित रूस के कुछ करीबी पार्टनर देशों को भी निशाना बना सकते हैं.
इस बार नई बात यह है कि नए अमेरिकी दंडात्मक कदम न केवल मॉस्को बल्कि भारत सहित रूस के कुछ करीबी पार्टनर देशों को भी निशाना बना सकते हैं.
अमेरिका का रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाना कोई नई बात नहीं है. इन प्रतिबंधों ने रूस -अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों के, विभिन्न मौकों में, कई उद्देश्यों को पूरा किया है. यह विरोधाभासी बात है कि सबसे पहले प्रतिबंध शीत युद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद लागू किए गए थे जब रूस पश्चिम के लिए अपने आप को खोल रहा था. अमेरिका में रूसी प्रवासियों के आने की तेज़ी को देखते हुए सावधानी बरतते हुए प्रभावशाली रूसी ओलिगार्च और क्रोनरों को, जो कथित रूप से 'रूसी माफिया' से जुड़े थे, उन्हें लक्ष्य बनाकर ये प्रतिबंध लगाए गए थे.
1990 के दशक के आखिर में और 2000 के दशक के दौरान, वाशिंगटन ने हथियारों और मिसाइल प्रौद्योगिकियों के प्रसार की चिंता के चलते रूसी रक्षा कंपनियों को ‘ब्लैक लिस्ट’ में डाल दिया. मार्च 1999 में, अमेरिका ने तुला डिजाइन ब्यूरो, वोल्स्क मैकेनिकल प्लांट और त्स्निटोचमाश पर प्रतिबंध लगाए क्योंकि उन्होंने सीरिया को गाइडेड एंटी टैंक मिसाइल सप्लाई की थी. सीरिया को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में वर्गीकृत किया हुआ था. अगस्त 2006 में, अमेरिकी विदेश विभाग ने दो रूसी फर्मों ‘हथियार निर्यातक रोसोबोरोनेक्सपोर्ट (ROE)’ और ‘विमान निर्माता सुखोई’ के साथ-साथ क्यूबा, भारत और उत्तर कोरिया की अन्य संस्थाओं पर ईरान को ऐसी सामग्री प्रदान करने के लिए प्रतिबंध लगाए जिसका उपयोग सामूहिक विनाश या मिसाइल प्रणालियों के हथियारों को विकसित करने के लिए किया जा सकता था. कुछ महीनों बाद मामले की समीक्षा करने के बाद, अमेरिका ने सुखोई को सूची से हटा दिया हालांकि ROE पर प्रतिबंध 2010 तक बने रहे लेकिन बाद में रूस के साथ बराक ओबामा प्रशासन की 'रीसेट' (पेरेज़ाग्रूज़का) वार्ता के चलते रूसी रक्षा संस्थाओं को ब्लैक लिस्ट से हटा दिया गया.
अमेरिका-रूस के बीच के सरोकार पहले ही नाजुक और अस्थिर थे, इसमें जुलाई 2010 के प्रमुख जासूसी घोटाले जैसे किस्से शीत युद्ध के युग की याद दिलाते हुए, जो रिश्तों के बीच आ रही नरमी को अस्थिर करते रहे. 2012 के अंत में मैग्निट्स्की अधिनियम के आने के साथ 'रीसेट' का लगभग अंत हो गया. हालांकि विधेयक ने 1974 के जैक्सन-वानिक संशोधन को हटा दिया लेकिन अमेरिका और रूस के बीच व्यापार संबंधों को सामान्य करने के साथ साथ, इस विधेयक ने वकील और ऑडिटर सर्गेई मैग्निट्स्की की मौत के साथ-साथ रूस में अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों पर वीजा प्रतिबंध और संपत्ति को फ्रीज करने का काम किया.
रूस पर प्रतिबंधों को, 2014-2015 के बीच, उस वक़्त काफ़ी बढ़ा दिया गया जब अमेरिका ने 'यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने' के लिए ज़िम्मेदार व्यक्तियों और संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाया. राष्ट्रपति पुतिन के 'इनर सर्किल' में उच्च पदस्थ अधिकारियों को निशाना बनाने से लेकर 'क्षेत्रीय प्रतिबंधों' को अधिक व्यापक रूप से लागू करने के लिए दंडात्मक उपाय विकसित किए गए जो कुछ रूसी आर्थिक क्षेत्रों को अमेरिकी पूंजी और ऋण बाज़ारों तक पहुंच बनाने और साथ ही साथ अमेरिकी प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता को पाने से रोकने के लिए डिज़ाइन किए गए थे. विशेष रूप से, अमेरिका ने 14 रक्षा कंपनियों, रूस के छह सबसे बड़े बैंकों और चार ऊर्जा कंपनियों को नामित किया और रूस में आर्थिक विकास परियोजनाओं के लिए वित्त सहयोग को निलंबित कर दिया. इसके अलावा अमेरिका ने डीप वाटर, आर्कटिक ऑफशोर या शेल प्रोजेक्ट्स के लिए अन्वेषण या उत्पादन में मददगार वस्तुओं, सेवाओं या प्रौद्योगिकी के प्रावधान, निर्यात या पुनः निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
अगस्त 2017 में प्रतिबंधों के माध्यम से Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act (CAATSA) को अपनाने के साथ ही रूस के ख़िलाफ़ प्रतिबंध के रूप में एक और प्रमुख कदम सामने आया. 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में कथित रूसी हस्तक्षेप के जवाब के रूप में प्रचारित इस विधेयक को अमेरिकी कांग्रेस में भारी समर्थन मिला, जिससे प्रभावी रूप से राष्ट्रपति ट्रंप को इसे कानून के रूप में हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. रूसी रक्षा उद्योग के साथ किसी भी 'महत्वपूर्ण ट्रांजेक्शन’ में शामिल संस्थाओं के ख़िलाफ़ 'सेकेंडरी सेंक्शन” की धमकी के चलते इस अधिनियम का वैश्विक हथियार बाज़ार में रूस की स्थिति पर काफी असर हुआ. रूसी उन्नत हथियारों के आयात के लिए चीन और तुर्की के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्यवाही के साथ साथ मास्को के साथ अपने रक्षा सौदों को रद्द करने के कुछ देशों के फैसलों को प्रभावित करने में सफ़ल रहा. हालांकि, CAATSA कानून भारत को सतह से हवा में मार करने वाली S-400 मिसाइल प्रणालियों की खरीद से रोकने में विफ़ल रहा.
रूसी रक्षा उद्योग के साथ किसी भी 'महत्वपूर्ण ट्रांजेक्शन’ में शामिल संस्थाओं के ख़िलाफ़ 'सेकेंडरी सेंक्शन” की धमकी के चलते इस अधिनियम का वैश्विक हथियार बाज़ार में रूस की स्थिति पर काफी असर हुआ.
यूक्रेन पर युद्ध के जवाब में रूस के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंधों के लिए आधार तैयार करने वाला सबसे प्रमुख आदेश एग्जीक्यूटिव ऑर्डर (EO) 14024 बना. इस आदेश पर अप्रैल 2021 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के साथ हस्ताक्षर किए थे, जिसमें रूस की 'हानिकारक विदेशी गतिविधियों' जैसे अमेरिकी चुनावों में हस्तक्षेप करने और अमेरिका के ख़िलाफ़ 'साइबर-सक्षम गतिविधियों' का संचालन करने का हवाला दिया गया था. रोचक बात यह है कि यह कदम जून 2021 में जिनेवा में आयोजित होने वाले अमेरिका-रूस शिखर सम्मेलन के लिए प्रारंभिक प्रयासों के दौरान हुआ.
फरवरी 2022 से अब तक, EO 14024 के दायरे को वित्तीय सेवाओं, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स, समुद्री, एकाउंटिंग, ट्रस्ट और कॉर्पोरेट गठन सेवाओं सहित प्रतिबंधों के साथ रूसी अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को लक्षित करने के लिए ट्रेजरी निर्देशों और निर्धारण के अमेरिकी विभाग के माध्यम से महत्वपूर्ण रूप से विस्तारित किया गया है. इसमें प्रबंधन परामर्श, क्वांटम कंप्यूटिंग, धातु और खनन, वास्तुकला, इंजीनियरिंग, निर्माण, विनिर्माण और परिवहन क्षेत्र भी शामिल किए गए. अन्य आदेशों की एक श्रृंखला ने रूसी अर्थव्यवस्था में निर्यात-आयात संचालन और निवेश को प्रतिबंधित कर दिया (टेबल 1 देखें). ट्रेजरी के निर्णय, जैसे कि दिसंबर 2022 में रूसी कच्चे तेल पर मूल्य सीमा और फरवरी 2023 में पेट्रोलियम उत्पादों को लागू करना या मार्च 2024 में रूसी मूल के सोने, हीरे के आभूषणों और असॉर्टेड हीरे के आयात पर प्रतिबंध लगाना इत्यादि बिडेन प्रशासन के महत्वपूर्ण कदम थे. इन उपायों ने प्रतिबंधों को और तीव्र कर दिया है जो अब रूसी अर्थव्यवस्था पर प्रतिबंधों के एक पूरे नेटवर्क के रूप में उभर कर आए हैं.
टेबल 1. अप्रैल 2021 से जनवरी 2025 तक रूस के ख़िलाफ़ प्रमुख अमेरिकी प्रतिबंध से संबंधित कानून
स्रोतः अमेरिकी ट्रेजरी विभाग और अमेरिकी कांग्रेस के आंकड़ों के आधार पर लेखक द्वारा संकलित
जनवरी 2025 में पदभार संभालने के बाद से, राष्ट्रपति ट्रंप रूस पर नए प्रतिबंध लगाने के प्रति नीरस नज़र आए हैं. साथ ही, मास्को के साथ राजनयिक संबंध कायम रखने के बावजूद, ट्रंप प्रशासन ने रूसी अर्थव्यवस्था पर पिछले किसी भी प्रतिबंध में ढील नहीं दी है.
रूस-यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने में असमर्थता को लेकर बेचैन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इस युद्ध पर रूस द्वारा किए जा रहे ख़र्चे की क्षमता को कम करने के लिए एक नए 'स्लेजहैमर' का इस्तेमाल कर सकते हैं.
जिस कानून की बात हो रही है वह है ‘सैंक्शनिंग रशिया एक्ट ऑफ़ 2025’ जिसे अप्रैल 2025 से रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम द्वारा प्रस्तुत किया गया था और यह 84 अन्य अमेरिकी सांसदों द्वारा भी समर्थित है. जब तक रूस युद्ध बंद नहीं करता, तब तक ''सेकेंडरी टैरिफ' लगाने की राष्ट्रपति ट्रंप की बार-बार की गई धमकियों ने विधेयक की मंजूरी के लिए एक सुगम रास्ता तैयार किया है.
रूस और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय ऊर्जा व्यापार लगभग न के बराबर होने के चलते रूस से अमेरिका में आयातित खनिज संसाधनों पर शुल्क बढ़ाने के प्रस्ताव का मॉस्को पर कोई खास असर नहीं होगा लेकिन नया विधेयक उन देशों पर 500 प्रतिशत शुल्क लगाने की बात करता है जो 'जानबूझकर' रूसी मूल के तेल, यूरेनियम, प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम या पेट्रोकेमिकल उत्पादों की खरीद, आपूर्ति या हस्तांतरण करते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के पास इन कदमों को वापिस लेने का अधिकार है और यह अधिनियम रूस के सबसे करीबी भागीदारों-जैसे भारत और चीन पर एक और ‘डामोक्लेस स्वोर्ड’ का काम कर सकता है जो रूस के कच्चे तेल के आयात का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा खरीदते हैं. इसके अलावा, प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए, ट्रंप उनके कार्यान्वयन को स्थगित करते हुए अपने द्वारा प्रस्तावित ''सेकेंडरी टैरिफ' को लागू करने के लिए एक रूपरेखा बनाकर एक कार्यकारी आदेश भी जारी कर सकते हैं.
हालांकि प्रतिबंध लगाकर मास्को को ऊर्जा निर्यात से राजस्व से वंचित करने के अमेरिका के तर्क स्पष्ट है, लेकिन इसका क्रियान्वयन कई वजहों से मुश्किल हो सकता है. पहली बात यह है कि प्रतिबंधों में कई वर्षों तक रहने के बाद रूसी अर्थव्यवस्था ने इन कदमों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता को विकसित किया है. और तो और ट्रंप की धमकियों से रूसी नेतृत्व के यूक्रेन पर अपने रुख़ से पीछे हटने की संभावना न के बराबर है जैसा कि रूसी विशेषज्ञ मानते हैं क्योंकि रूस "दबाव में कार्य नहीं करता है". दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि नए प्रतिबंधों को लागू करने का तरीका स्पष्ट नहीं है. रूसी खनिज संसाधनों के खरीदारों पर अतिरिक्त शुल्क व्यापार के पेचीदगियों को बढ़ा सकता है जो ट्रंप के कदमों के चलते पहले से ही अमेरिका के सहयोगियों और पार्टनर देशों में पेचीदा हो चुका है. अब यह भी देखा जाना बाकी है कि क्या वाशिंगटन यूरोपीय संघ यानी EU पर शुल्क लगाने को तैयार होगा, जो रूसी लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) और पाइपलाइन गैस का अब भी सबसे बड़ा आयातक है. तीसरी बात यह है कि रूसी कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध वैश्विक संकट भी पैदा कर सकता है और इससे तेल की कीमत में वृद्धि हो सकती है, आपूर्ति में व्यवधान पड़ सकता है और यह सब बातें प्रतिबंधों के ही उल्लंघन को बढ़ावा दे सकती है.
अब यह भी देखा जाना बाकी है कि क्या वाशिंगटन यूरोपीय संघ यानी EU पर शुल्क लगाने को तैयार होगा, जो रूसी लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) और पाइपलाइन गैस का अब भी सबसे बड़ा आयातक है.
रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के बजाय नए प्रतिबंधों को यदि लागू किया जाता है तो इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव पड़ सकता है और इससे अमेरिका के लिए भी व्यापार सौदे करना अधिक कठिन हो सकता है. 'सेकेंडरी टैरिफ’ के रूप में अधिक शुल्क लागू करने का ट्रंप का निर्णय उनके दूसरे शासनकाल का एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है और अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध के पूरे कार्यक्रम की दिशा को काफ़ी हद तक बदल सकता है.
अलेक्सी जाखारोव ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के फेलो हैं.
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Aleksei Zakharov is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the geopolitics and geo-economics of Eurasia and the Indo-Pacific, with particular ...
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