-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने के पाकिस्तान के अड़ियल प्रयासों से निपटने के लिए भारत को टेक्नोलॉजी का प्रभावी इस्तेमाल करने वाली एक नई आतंक-निरोधी रणनीति तैयार करनी होगी.
पिछले महीने 13-19 सितंबर 2023 तक कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में सात दिनों के आतंक-निरोधी अभियान की समाप्ति चार ज़िंदगियों के अंत के साथ हुआ, जिनमें तीन वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी शामिल थे. इनके साथ-साथ लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का कमांडर उज़ैर ख़ान भी अपने एक साथी के साथ मारा गया. आतंकवादियों ने मुठभेड़ को लंबा खींचने के लक्ष्य से खड़ी चढ़ाई वाले स्थान और घने जंगल का रणनीतिक रूप से चयन किया, लेकिन सुरक्षा बलों ने सटीक निगरानी और गोलाबारी के लिए नए हाई-टेक उपकरणों का सहारा लिया. आतंकवादियों को मार गिराने के लिए ज़बरदस्त प्रभाव और सटीक निशाना लगाकर मार करने वाले ड्रोन्स की भी मदद ली गई.
अनंतनाग एनकाउंटर से ये बात साबित हुई है कि शहरी वातावरणों में सुरक्षा बलों का सामना कर पाने में नाकाम रहने वाले आतंकी अब उनसे भिड़ने के लिए कश्मीर के घने जंगलों का सहारा ले रहे हैं.
अनंतनाग एनकाउंटर से ये बात साबित हुई है कि शहरी वातावरणों में सुरक्षा बलों का सामना कर पाने में नाकाम रहने वाले आतंकी अब उनसे भिड़ने के लिए कश्मीर के घने जंगलों का सहारा ले रहे हैं. ख़ासतौर से 2020 के बाद से ये रुझान दिखाई देने लगा है, जब आतंकवादी समूह अपनी गतिविधियों को घाटी से दूर पीर पंजाल श्रेणियों में पुंछ और राजौरी के जंगली इलाक़ों में ले गए. उसके बाद से पिछले तीन वर्षों में आतंक-निरोधी अभियानों में पांच पैरा ट्रूपर्स समेत 26 सैनिकों की जान जा चुकी है.
कट्टरपंथ, अलगाववाद और आतंकवाद को ख़त्म करने के उद्देश्य से 2019 में भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त कर दिया. नई प्रशासनिक पहचान और केंद्र के साथ इस नए संघ शासित प्रदेश के सुधरे समीकरणों की बदौलत 2020 में सुरक्षा बलों ने 225 आतंकवादियों का काम तमाम कर दिया, जिनमें जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग आतंकी संगठनों के 47 कमांडर शामिल थे. इसके अलावा 299 आतंकवादियों और उनके मददगारों को गिरफ़्तार भी किया गया. इसके बाद 2021 में 20 पाकिस्तानी आतंकवादियों समेत 184 आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा गया. तब से ये रुझान बदस्तूर जारी है: पिछले साल जम्मू-कश्मीर में मारे गए कुल 187 आतंकवादियों में से 57 पाकिस्तानी और 130 स्थानीय थे. 25 सितंबर 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक इस साल सुरक्षा बल 53 आतंकवादियों का ख़ात्मा कर चुके हैं. इनमें से सिर्फ़ 11 स्थानीय थे जबकि बाक़ी के 42 आतंकी पाकिस्तानी नागरिक थे. 2019 से 2022 के बीच मारे गए आतंकियों में स्थानीय आतंकियों का हिस्सा 83 प्रतिशत था. साल 2022 में स्थानीय आतंकवादियों की तादाद में ज़बरदस्त गिरावट आई, जबकि ढेर किए गए विदेशी आतंकवादियों का हिस्सा बढ़कर 43 प्रतिशत हो गया.
चित्र 1: जम्मू-कश्मीर में मारे गए कुल आतंकवादी (2020-2023)
आतंकवादियों के ख़ात्मे के साथ-साथ सुरक्षा बलों ने उनके इकोसिस्टम के दूसरे हिस्सों पर भी ताबड़तोड़ प्रहार किए हैं. मिसाल के तौर पर आतंक के ओवर ग्राउंड नेटवर्क (OGW) को पूरी तरह से उखाड़ फेंका गया है. आतंकियों के 635 समर्थकों की गिरफ्तारी और 426 हथियारों की बरामदगी से ये बात पूरी तरह से ज़ाहिर हुई है. इसके साथ ही आतंकियों की फंडिंग पर बढ़ी दबिश ने घाटी, ख़ासतौर से दक्षिण कश्मीर के भीतर सक्रिय आतंकी समूहों के लिए हालात मुश्किल बना दिए हैं. इतना ही नहीं आतंकी संगठनों की भर्तियों में भी गिरावट आई है. 2023 के पहले नौ महीनों में 25 लोग ही आतंकी समूहों में शामिल हुए हैं. 2019 के 143 और 2022 के 100 के मुक़ाबले ये आंकड़ों में भारी गिरावट दर्शाता है. इसके साथ ही आत्मसमर्पण और पुनर्वास से जुड़ी नीति में नई जान फूंके जाने से मुठभेड़ों के दौरान कम से कम आठ भटके हुए नौजवानों ने आत्मसमर्पण किया और तक़रीबन 50 आतंकवादियों ने चुपचाप आतंक का रास्ता छोड़ दिया.
सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो सालों में घुसपैठ की कामयाब कोशिशों में भी भारी गिरावट दर्ज की है. 2021 में घुसपैठ की 31 कोशिशें कामयाब रही थीं, 2022 में इसकी संख्या घटकर आठ रह गई. घुसपैठ की कोशिशों के दौरान मारे गए आतंकवादियों की संख्या 2021 में छह थी, जो 2022 में बढ़कर 16 हो गई.
सुरक्षा एजेंसियों ने पिछले दो सालों में घुसपैठ की कामयाब कोशिशों में भी भारी गिरावट दर्ज की है. 2021 में घुसपैठ की 31 कोशिशें कामयाब रही थीं, 2022 में इसकी संख्या घटकर आठ रह गई. घुसपैठ की कोशिशों के दौरान मारे गए आतंकवादियों की संख्या 2021 में छह थी, जो 2022 में बढ़कर 16 हो गई. 2023 में सुरक्षा बलों को नियंत्रण रेखा (LoC) से घुसपैठ की कोशिश कर रहे 26 आतंकवादियों को ढेर करने में कामयाबी मिली है. जम्मू-कश्मीर पुलिस के ताज़ा-तरीन आंकड़ों के मुताबिक फ़िलहाल राज्य में 81 सक्रिय आतंकवादी हैं, जिनमें से 33 स्थानीय और 48 विदेशी हैं. दक्षिण कश्मीर वो इलाक़ा है जहां बड़ी तादाद में सक्रिय आतंकवादी मौजूद हैं. यहां कुल 56 आतंकवादी सक्रिय हैं, जिनमें 28 विदेशी और स्थानीय आतंकी शामिल हैं.
इन घटनाक्रमों ने आतंकी तंज़ीमों (संगठनों) को अपना तौर-तरीक़ा और ठिकाना बदलने के लिए मजबूर कर दिया है.
यहां ये ग़ौर करना ज़रूरी है कि इस साल मारे गए 31 आतंकवादियों को पीर पंजाल के दक्षिणी इलाक़े में ढेर किया गया है. ये इलाक़ा पाकिस्तान की सीमा पर है और नियंत्रण रेखा के साथ लगा है. पाकिस्तानी आतंकवादियों की मौजूदगी में भारी बढ़ोतरी (ख़ासतौर से पीर पंजाल के घने जंगलों में) आतंकवाद को ज़िंदा रखने और कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय तवज्जो बरक़रार रखने की चाल है. ऐसा लगता है कि ये आतंकी गुरिल्ला तरक़ीबों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जिसके तहत वो सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के बाद पीर पंजाल इलाक़े के घने जंगलों में वापस लौट जाते हैं और अगले हमले के लिए दोबारा एकजुट होते हैं.
नियंत्रण रेखा के पार से आने वाले आतंकवादी एक ही जातीयता और ज़ुबान साझा करते हैं, जिससे वो स्थानीय परिवेश में आसानी से घुल-मिल जाते हैं, इससे सुरक्षा बलों के लिए उनकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है. एक और बात, समतल ज़मीन और सड़कों के स्थापित जाल वाले कश्मीर घाटी के उलट पीर पंजाल के दक्षिणी इलाक़े में परिवहन व्यवस्था ठीक तरह से विकसित नहीं है.
इन समूहों ने अपनी आतंकी सोच और दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए X, टेलीग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ी होशियारी से उपयोग किया है.
एक ऐसे वक़्त में जब सुरक्षा एजेंसियां पीर पंजाल के दक्षिण में आतंक-निरोधी रणनीतियां तैयार करने में कड़ी मशक्कत कर रही हैं, उन्हें एक नए ख़तरे से जूझना पड़ रहा है. वो ख़तरा है- दुष्प्रचार. जब अनंतनाग में मुठभेड़ चल रही थी, तब भी कुछ मीडिया समूहों ने ऐसे कड़े आरोप लगाए कि मुठभेड़ में शामिल आतंकियों के पास सैनिकों की आवाजाही के बारे में विस्तृत जानकारी मौजूद थी. उनका कहना था कि ये सूचनाएं उन्हें पाकिस्तानी क़ब्ज़े वाले कश्मीर में बैठे आतंकी आका मुहैया करा रहे थे- जो अंदर के किसी सूत्र का हाथ होने का इशारा करते हैं. एक स्थानीय न्यूज़ एजेंसी द्वारा अपलोड किए गए वीडियो में आरोप लगाया गया कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के डिप्टी सुपरिंटेंडेंट आदिल मुश्ताक़ (जिन्हें हाल ही में गिरफ़्तार और निलंबित किया गया था) इन सूचनाओं को लीक करने में शामिल रहे थे. ऐसी ख़बरें फैलने के बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस को सामने आकर इन अफ़वाहों का ख़ंडन करना पड़ा. पुलिस ने सेवानिवृत सुरक्षा अधिकारियों से झूठी ख़बरों का प्रचार करने से परहेज़ करने को कहा है. वीडियो को सुरक्षा एजेंसियों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश के तौर पर देखा गया.
वर्चुअल आतंकी समूहों के उभार के तौर पर एक और अहम रुझान देखा गया है. ज़ाहिर तौर पर इस तरह का कोई पिछला इतिहास नहीं रहा है. पिछले तीन सालों में द रेज़िस्टेंस फ्रंट (TRF), जम्मू कश्मीर गज़नवी फोर्स, और पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट (PAAF) जैसे समूह सामने आए हैं. ये कुछ और नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा और अन्य आतंकी संगठनों के मुखौटा संगठन हैं. मिसाल के तौर पर TRF ज़्यादातर लश्कर-ए-तैयबा के फंडिंग स्रोतों का इस्तेमाल करता है. जबकि PAAF जैश-ए-मोहम्मद का मुखौटा है, जो फ़रवरी 2019 में हुए घातक लेथपोरा (पुलवामा) आत्मघाती हमलों के लिए ज़िम्मेदार था. इन समूहों ने अपनी आतंकी सोच और दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने के लिए X, टेलीग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ी होशियारी से उपयोग किया है. इस सिलसिले में ये तमाम समूह, प्राथमिक रूप से कश्मीर घाटी को मुस्लिम-अल्पसंख्यक इलाक़े में तब्दील करने की कथित साज़िश जैसे मसलों पर तवज्जो देते रहे हैं. इन्होंने स्थानीय लोगों को विशेष पुलिस अधिकारियों (SPOs) के तौर पर काम करने के ख़िलाफ़ चेतावनी भी दी है.
जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात की बहाली के बीच ऊपर के घटनाक्रम रावलपिंडी और इस्लामाबाद द्वारा कश्मीर घाटी में अशांति फैलाने के दृढ़ प्रयासों का संकेत देते हैं. लगातार फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की जांच-पड़ताल के दायरे में रहने के चलते पाकिस्तान ने नए-नए समूह तैयार करने का रास्ता चुना है, जिससे उसकी धरती पर फल-फूल रहे भारत-विरोधी आतंकी समूहों से ध्यान हट जाएगा और कश्मीर के उग्रवाद को स्थानीय समस्या के तौर पर दर्शाया जा सकेगा. भारत को आतंक-निरोध की एक नई रणनीति तैयार करनी होगी जो टेक्नोलॉजी का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के साथ-साथ दुष्प्रचार और सुरक्षा एजेंसियों में दरार पैदा करके आतंकवाद को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका की निगरानी और प्रतिकार करती हो.
एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
समीर पाटील ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Ayjaz Wani (Phd) is a Fellow in the Strategic Studies Programme at ORF. Based out of Mumbai, he tracks China’s relations with Central Asia, Pakistan and ...
Read More +Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. His work focuses on the intersection of technology and national ...
Read More +