Author : Anchal Vohra

Published on Jul 08, 2021 Updated 0 Hours ago

जो बाइडेन ने सऊदी अरब और उसके प्रमुख दुश्मन ईरान के साथ अमेरिकी संबंधों को लेकर फिर से नई शुरुआत की तो ईरान को लेकर ट्रंप की मध्य-पूर्व नीति पर विराम लगा दिया.

सऊदी अरब के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति के रुख में बदलाव, लेकिन ईरान के बयान में चेतावनी!

बाइडेन प्रशासन ने सऊदी अरब के असंतुष्ट और वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल ख़शोगी की हत्या से संबंधित सीआईए की रिपोर्ट को सऊदी अरब और उसके क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सुलेमान (एमबीएस) की शर्मिंदगी के बावज़ूद सार्वजनिक कर दिया. इस रिपोर्ट में साफ़तौर पर एमबीएस को अक्टूबर 2018 में इस्तांबुल के सऊदी दूतावास में जमाल खाशोगी के शव को टुकड़ों में बांटने और बाद में उसे ग़ायब करने का ज़िम्मेदार ठहराया गया.

 सीआईए की रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2017 से क्राउन प्रिंस का सऊदी अरब की सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों पर पूरा नियंत्रण रहा है जो इस बात की गवाही देता है कि इस तरह के ऑपरेशन को बिना क्राउन प्रिंस की आधिकारिक सहमति के बग़ैर अंजाम देना लगभग नामुमकिन है”. 

राष्ट्रपति ट्रंप ने तो इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इंकार कर दिया था लेकिन बाइडेन ने इस फैसले को बदल दिया. जो बाइडेन हमेशा से सऊदी अरब और ख़ासकर इसके अपरंपरागत शख़्सियत वाले क्राउन प्रिंस के आलोचक रहे हैं, लेकिन बाइडेन का यह रुख़ मध्य-पूर्व एशिया में अमेरिका के सबसे क़रीबी सहयोगी सऊदी अरब से उसके रिश्तों को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है.

बाइडेन प्रशासन ने औपचारिक रूप से अमेरिका और ईरान के बीच ज्वाइंट कॉम्प्रेहेन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन जिसे अमेरिका ईरान के बीच न्यूक्लियर डील के रूप में भी जाना जाता है – उसे लेकर वार्ता शुरू करने में दिलचस्पी दिखाई है.

 इसके अलावा बाइडेन प्रशासन ने औपचारिक रूप से अमेरिका और ईरान के बीच ज्वाइंट कॉम्प्रेहेन्सिव प्लान ऑफ़ एक्शन जिसे अमेरिका ईरान के बीच न्यूक्लियर डील के रूप में भी जाना जाता है – उसे लेकर वार्ता शुरू करने में दिलचस्पी दिखाई है. हालांकि, अमेरिका ने इसके लिए यह शर्त रखी है कि ईरान अपनी प्रतिबद्धता को मानने के लिए तैयार हो.

ध्यान देने वाली बात ये है कि यह समझौता कई बैक चैनल बातचीत के बाद साल 2015 में मुमकिन हो पाया था जिसे साल 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने तोड़ दिया और ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगा दिए. इतना ही नहीं ईरान के ख़िलाफ़ उन्होंने सबसे ज़्यादा दबाव  बनाने वाले अभियान को भी  छेड़ दिया.

ट्रंप के विपरीत और ओबामा के क़रीब

दरअसल, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टीम में तब कुछ ऐसे लोग भरे हुए थे जो ना सिर्फ़ यह चाहते थे कि न्यूक्लियर समझौतों को लेकर ईरान ज़्यादा से ज़्यादा समझौता करे बल्कि ईरान अपनी क्षेत्रीय विस्तारवादी सोच पर भी अंकुश लगाए. यही वजह थी कि उनके द्वारा तैयार की गई नीतियां सऊदी अरब और इज़रायल के समर्थन में थी और ये दोनों देश ईरान की बढ़ती ताक़त को अपनी स्थिरता और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मानते हैं.

बाइडेन ने भी इस नीति को बदल दिया और ट्रंप की तरह ही उन्होंने भी उन ताक़तों को एक मंच पर लाने का काम किया जो अमेरिका के पंरपरागत यूरोपीय सहयोगियों को नज़रअंदाज़ करते रहे थे. ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के साथ एक साझा बयान में अमेरिका ने कहा कि अगर ईरान अपनी प्रतिबद्धता निभाने के लिए अनुशासित होता है तब अमेरिका भी इसके लिए तैयार होगा और ईरान के साथ वार्ता करने को तैयार हो जाएगा. तनाव कम करने और गुडविल का प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने ईरानी राजदूतों के ऊपर लगी पाबंदी हटा दी. 

इसके प्रभाव में बाइडेन ओबामा युग के मध्य पूर्व एशिया के दृष्टिकोण को बढावा दे रहे हैं. जिसके तहत सुन्नी बाहुल्य सऊदी अरब के मुकाबले शिया बाहुल्य ईरान के क्षेत्रीय दबदबे को बढ़ावा दिया जा रहा है.

बाइडेन ने भी इस नीति को बदल दिया और ट्रंप की तरह ही उन्होंने भी उन ताक़तों को एक मंच पर लाने का काम किया जो अमेरिका के पंरपरागत यूरोपीय सहयोगियों को नज़रअंदाज़ करते रहे थे

हालांकि,  ईरान अपने विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ़ – जिन्होंने साल 2015 के तेहरान समझौते में प्रमुख वार्ताकार की भूमिका निभाई थी  उन्हें इस पूरे प्रसंग में वापस लाने की कोशिश में है. ईरान ने कहा कि अमेरिका बिना शर्त और प्रभावी तरीके से पहले सभी पाबंदियों को हटाए और इसके बाद ही ईरान पूरी तरह समझौतों को मानने के लिए तैयार होगा. जब से ट्रंप ने इस समझौते को ख़ारिज़ कर दिया है तब से ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की सीमा को पार कर लिया है. 

ज़रीफ़ चेतावनी दे चुके हैं कि बाइडेन के पास फैसले लेने के लिए “असीमित” वक़्त नहीं है.

बाइडेन सरकार की परीक्षा

ज़ाहिर है विश्लेषक इसे चेतावनी के तौर पर देख रहे हैं. विश्लेषकों की राय में जब तक ट्रंप अमेरिका की सत्ता में बने हुए थे तब तक ईरान धैर्य से सत्ता से उनकी विदाई की ओर टकटकी लगाए हुआ था और अपने क्षेत्रीय लड़ाकों को अमेरिकी सेना के प्रभाव को कम करने के लिए किसी तरह का कदम नहीं उठाने दे रहा था. और अब जबकि सत्ता में बाइडेन आ चुके हैं तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर में है और बाइडेन सरकार के पास ज़्यादा वक़्त नहीं है. इसके लिए बाइडेन सरकार को जल्द ही आगे बढ़ने की ज़रूरत है.

इसके साथ ही, ईरान ने बाइडेन प्रशासन की परीक्षा लेनी शुरू कर दी है और कुछ हद तक उन्हें उकसाना भी.  फरवरी महीने में कुर्दिस्तान ऑटोनोमस इलाक़े में इरबिल के अमेरिकी सैन्य बेस पर 15 रॉकेटों से हमला किया गया था. इस हमले के पीछे एक नए आतंकी समूह शराया अवलिया अल डैम या फिर ब्रिगेड ऑफ द गार्ज़ियन ऑफ ब्लड का हाथ बताया गया. कई विश्लेषकों की राय में यह आतंकी समूह इराक में ईरान समर्थित आतंकी समूह के साथ जुड़ा हुआ है. 

शराया अवलिया अल दम जिसने इस हमले का दावा किया उसने अपने बयान में कहा कि अमेरिकी की कब्ज़ा जमाने वाली सेना सुरक्षित नहीं होगी बावज़ूद इसके कि कुर्दिस्तान की क्षेत्रीय सरकार इसका स्वागत करती हो

ईरान को बाइडेन ने साफ़ चेतावनी दी है कि वह ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करे जिसे लेकर वो यह समझने की भूल करे कि उसे कोई दंड नहीं देगा, बल्कि वो और ज़्यादा सावधान रहे.

इस आतंकी समूह ने यहां तक दावा किया कि यह हमला ईरान के रेव्युलेशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) के पूर्व जनरल कासिम सुलेमानी और इराक में अपरोक्ष रूप से जंग लड़ने वाले समूह कता-इब-हिजबुल्लाह के प्रमुख अबू महदी अल-मुहानदिस की हत्या का नतीजा था. ग़ौरतलब है कि इन दोनों पर अमेरिका ने जनवरी 2020 में हमला किया था.   

अब जबकि जो बाइडेन ईरान को न्यूक्लियर हथियार हासिल करने से रोकने के लिए फिर से न्यूक्लियर समझौता करने को तत्पर दिख रहे हैं तो उन्होंने तेहरान को यह भी साफ कर दिया है कि उन्हें हल्के में लेने की ग़लती ना करे. इरबिल में अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर हुए हमले के ख़िलाफ़ अमेरिकी सैनिकों ने पूर्वी सीरिया में ईरान समर्थित आतंकी समूह पर हमले को अंजाम दिया. 

ईरान को बाइडेन ने साफ़ चेतावनी दी है कि वह ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करे जिसे लेकर वो यह समझने की भूल करे कि उसे कोई दंड नहीं देगा, बल्कि वो और ज़्यादा सावधान रहे.

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