Author : Priya Shah

Published on Jul 26, 2023 Updated 0 Hours ago

सरकार, निवेशकों, संस्थाओं एवं उद्यमियों की तरफ से एकसाथ मिलने वाला समर्थन आर एंड डी क्लाइमेट (R&D in Climate) टेक स्टार्ट-अप्स (Strat-ups) को उनकी नई-नई टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने और कम कार्बन ट्रांजिशन में उनके योगदान के लिए बहुत अधिक अवसर प्रदान करेगा.

Case for R&D in Climate Tech Innovation: जलवायु प्रोद्योगिकी नवाचार में अनुसंधान और विकास के मायने
Case for R&D in Climate Tech Innovation: जलवायु प्रोद्योगिकी नवाचार में अनुसंधान और विकास के मायने

क्लीनटेक (Cleantech) यानी स्वच्छ ऊर्जा से जुड़ी टेक्नोलॉजी (Technology) को लेकर 2000 के दशक के मध्य में पहला बुलबुला फूटा था. यह वो वक्त था, जब सिलिकॉन वैली में निवेशकों ने अक्षय ऊर्जा स्टार्ट-अप्स (सौर, पवन, हाइड्रो) में अपना महत्वपूर्ण दांव लगाया था. इनमें से कई स्टार्ट-अप्स (Strat-ups) कंपनियां विभिन्न कारणों से बंद हो गईं, जिनमें चीनी निर्माताओं की तरफ से मिलने वाले सस्ते आयात से लेकर तेल और प्राकृतिक गैस (Natural Gas) की कीमतों में भारी गिरावट के कारण क्लीनटेक उत्पादों का कम उपयोग जैसे कारण भी शामिल थे. हालांकि, इन कंपनियों के बंद होने का एकमात्र सबसे बड़ा कारण यह था कि निवेशकों ने इससे ज़ल्द रिटर्न पाने की यानी मुनाफे की उम्मीद की थी, देखा जाए तो यह उम्मीद ठीक नहीं थी. ज़ाहिर है कि टेक स्टार्ट-अप्स (बैटरी, सेल या पैनल निर्माता) को स्थापित होने और प्रगति हासिल करने में अधिक समय लगता है. इस अनुभव के बाद, कई निवेशकों ने वर्षों तक इस सेक्टर (Sector)की ओर मुंह नहीं किया, जबकि लंबे समय की अवधि में इस सेक्टर में वृद्धि की बहुत अधिक संभावनाएं थीं.

क्लाइमेट टेक से जुड़े स्टार्ट-अप्स की संख्या क्लीन टेक से कहीं अधिक है, क्योंकि यह एक व्यापक अवधारणा है, जो अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है, ना कि सिर्फ़ ऊर्जा रूपांतरण पर. इतना ही नहीं यह एक सोचा समझा बदलाव है

हालांकि, लगभग दो दशक बाद इस क्षेत्र ने फिर से वापसी की है, जिसे अब ‘क्लाइमेट टेक’ यानी ‘जलवायु तकनीक’ के रूप में प्रचारित किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि इस नई लहर में ऊर्जा वितरण, पर्यावरण निर्माण, गतिशीलता, भारी उद्योग और साथ ही भोजन एवं भूमि उपयोग में कार्बन उत्सर्जन के स्रोतों में कटौती करने के लिए इन मुद्दों से जुड़े सभी क्षेत्रों में काम कर रहे स्टार्ट-अप्स शामिल हैं. इसलिए, क्लाइमेट टेक से जुड़े स्टार्ट-अप्स की संख्या क्लीन टेक से कहीं अधिक है, क्योंकि यह एक व्यापक अवधारणा है, जो अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित है, ना कि सिर्फ़ ऊर्जा रूपांतरण पर. इतना ही नहीं यह एक सोचा समझा बदलाव है, जो इसके अंदर की जटिलता और जलवायु चुनौती की व्यापकता को प्रदर्शित करता है.प्राइस वाटरहाउस कूपर की स्टेट ऑफ क्लाइमेट टेक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 की दूसरी छमाही और वर्ष 2021 की पहली छमाहीके बीच क्लाइमेट टेक स्टार्ट-अप्स के लिए वेंचर कैपिटल फंडिंग के लिए 87 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का आवंटन किया गया था.

नई जलवायु तकनीक की लहर है और मूल रूप से जलवायु सेक्टर में निवेश की प्रमुख विशेषता यह है कि यह ‘पारंपरिक’, एसेट-लाइट टेक निवेश से अलग है. एक सेवा के रूप में एंटरप्राइज़ सॉफ्टवेयर (SaaS) यानी एक सेवा के रूप में इंटरनेट पर एप्लिकेशन डिलीवर करने का एक तरीका, प्लेटफॉर्म और बाज़ार मॉडल निश्चित रूप से विभिन्न क्लाइमेट टेक सेक्टर में हार्डवेयर या मिडलवेयर जलवायु प्रौद्योगिकियों के लिए एक अतिरिक्त सॉफ्टवेयर परत के रूप में लागू होते हैं. पिछले 5 वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स और भू-स्थानिक डेटा तक पहुंच जैसे तकनीकी विकास से क्लाइमेट टेक स्टार्ट-अप्स को तेज़ी से बढ़ने में मदद मिल रही है. हालांकि, कार्बन में कमी का बड़ा हिस्सा भौतिक उत्पादों, निर्माण प्रक्रियाओं और गहन विज्ञान नवाचार के साथ जुड़ा होता है. इसलिए, रिसर्च एंड डेवलपमेंट यानी अनुसंधान एवं विकास पर विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि सफल क्लाइमेट टेक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो के निर्माण के लिए जो बेहद आवश्यक चीज़े हैं, उनमें यह बहुत महत्त्वपूर्ण है.

रिसर्च एंड डेवलपमेंट यानी अनुसंधान एवं विकास पर विशेष रूप से ध्यान देने की ज़रूरत है, क्योंकि सफल क्लाइमेट टेक इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो के निर्माण के लिए जो बेहद आवश्यक चीज़े हैं, उनमें यह बहुत महत्त्वपूर्ण है.

अधिकांश निवेशकों के लिए ज़रुरी है कि नियोजन रणनीति चलाने के लिए वेशोध प्रबंध पर प्रमुखता से ध्यान दें.शोध प्रबंध विकसित करने में उद्योग की मैपिंग, आपूर्ति और मांग के कारकों की समझ, नियामक को लेकर विपरीत परिस्थियों या अनुकूल हालातों, घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्धी बेंचमार्क और प्रमुख बाज़ार रुझानों की पहचान करना शामिल है. लेकिन जलवायु तकनीक के मामले में, थीसिस-बिल्डिंग अभ्यास के लिए बहुत गहराई में उतरने की भी ज़रूरत होगी.एक हिसाब से यह जानने की आवश्यकता होगी कि डीकार्बोनाइजेशन यानी कम कार्बन उत्सर्जन को क्या संचालित करता है और इसके लिएकिस प्रकार की प्रक्रियाएं ‘हरित’ होंगी, कम ऊर्जा या पानी का उपयोग करेंगी एवं सामग्री के पुन: उपयोग व नवीनीकरण के लिए सर्कुलर लूप बनाएंगी. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इन हार्डवेयर प्रौद्योगिकियों के पीछे अनुसंधान एवं विकास और विज्ञान में गहराई से जाना एवं उनके द्वारा उत्पन्न प्रभाव का आकलन करना.

क्लाइमेट टेक स्टार्ट-अप्स की यह दूसरी लहर इस दशक में बुलबुला साबित ना हो, इसे सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी निवेशकों पर ही है, क्यों कि वे इस सेक्टर के एक बहुत ही मज़बूत स्तंभ हैं. वास्तविकता में अनुसंधान और विकास नवाचार के बढ़ावे के लिए, एकेडमिक विश्वविद्यालयों का एक मज़बूत आधार होना चाहिए, जहां छात्रों को उत्पाद और प्रोटोटाइप परीक्षण करने के लिए प्रयोगशाला, उपकरण और अन्य संसाधन दिए जाते हैं. भारत में IIT मद्रास का नेशनल सेंटर फॉर कंबस्टन रिसर्च एंड डेवलपमेंट (NCCRD) बेहतरीन इन्क्यूबेशन लैब का एक ऐसा उदाहरण है, जो इस क्षेत्र की इंडस्ट्री के लिए नए-नए समाधान विकसित करने हेतु एयरोस्पेस इंजीनियरों, ऑटोमोटिव शोधकर्ताओं और थर्मल पावर विशेषज्ञों के साथ सक्रिय रूप से काम करता है. इसके अलावा, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के कोरस्टेम और टाइमडिवीजन सक्रिय रूप से व्यावसायीकरण की दिशा में आईपी की अगुवाई वाले स्टार्ट-अप्स का समर्थन करते हैं. इसके साथ ही उन्हें उत्पाद-बाज़ार के मुताबिक़ ढालने और बिजनेस योजना एवं कॉर्पोरेट पार्टनरशिप तक पहुंच बनाने में भी मदद करते हैं. इसी प्रकार से पुणे में स्थित वेंचर सेंटर, मैटेरियल्स, केमिकल्स और जैविक विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के लिए भारत का सबसे बड़ा विज्ञान आधारित इनक्यूबेटर है.

भारत के लिए अवसर 

हालांकि, भारत को अभी भी जलवायु तकनीक सेक्टर के लिए समर्पित अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाने और गहन विज्ञान इन्क्यूबेटरों का निर्माण करने के साथ ही उद्योग व पॉलिसी हितधारकों दोनों के लिए प्रासंगिक गठजोड़ स्थापित करने की ज़रूरत है. संयुक्त राज्य अमेरिका में, एलिमेंटल और जूल्स दो जलवायु तकनीक इन्क्यूबेटर हैं, जो प्रयोगशाला में किए गए नवाचारों को बाज़ार तक ले जाने का काम करते हैं.इसके अलावा, स्टैनफोर्ड के नए लॉन्च किए गए डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी के साथ-साथ कोलंबिया के क्लाइमेट स्कूलरिसर्च लैब्स स्थापित कर रहे हैं, जहां सबसे बड़ी वैश्विक कंपनियां नए नवाचारों पर नज़र रख रही हैं. ज़ाहिर है कि इन इनोवेशन को आख़िरकार इन्हीं कंपनियों की मूल्य श्रृंखला में अपनाया जाएगा. ग्रीनटाउन लैब्स और एमआईटी के क्लाइमेट कोलैब जैसे इंडस्ट्री नेटवर्क बहुराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ साझेदारी की सुविधा प्रदान करते हैं, जिन्होंने विज्ञान-आधारित जलवायु प्रतिबद्धताओं को बनाया है.

भारत को अभी भी जलवायु तकनीक सेक्टर के लिए समर्पित अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाने और गहन विज्ञान इन्क्यूबेटरों का निर्माण करने के साथ ही उद्योग व पॉलिसी हितधारकों दोनों के लिए प्रासंगिक गठजोड़ स्थापित करने की ज़रूरत है.

भारत में कंपनियां पहले से ही नेट ज़ीरो ट्रांजिशन की तैयारी कर रही हैं. बीसीजी द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक़कई भारतीय कॉर्पोरेट हाउसों ने वर्ष 2050 या उससे पहले नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन या कार्बन न्यूट्रल बनने का संकल्प लिया है. यह संकल्प लेने वालों में वेदांता, जेएसडब्ल्यू ग्रुप, अदानी ट्रांसमिशन, आदित्य बिड़ला ग्रुप और महिंद्रा शामिल हैं. इन बदलावों में ना सिर्फ़ जीवाश्म ईंधन के उपयोग के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों का इस्तेमाल शामिल होगा, बल्कि हीट रिकवरी सिस्टम, भवनों में ऊर्जा दक्षता, अपशिष्ट रिसाइकिलिंग और सभी आपूर्तिकर्ता मूल्य श्रृंखलाओं में कार्बन कटौती का मापन जैसे क़दम भी शामिल होंगे.

आगे की राह 

क्लाइमेट टेक के सेक्टर में अनुसंधान एवं विकास और इनोवेशन को तेज़ी के साथ बढ़ावा देने के लिए कुछ चीज़ों की ज़रूरत है., जैसे i) मज़बूत उद्यमशीलता इकोसिस्टम और गहन विज्ञान प्रतिभा; ii) संस्थाएं जो स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था को सक्षम करने को लेकर अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने के लिए उत्सुक हैं और स्थिरिता लाने की ज़िम्मेदारी की अगुवाई कर रही हैं;iii) निजी संगठनों और सरकारी योजनाओं से प्रोटोटाइप निर्माण एवं प्रयोगशाला की वित्तीय मदद के लिए परोपकारी अनुदान के रूप में ज़ोख़िम पूंजी.आख़िरी वाले बिंदु के संदर्भ मेंविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग (डीएसआईआर)औरवैज्ञानिक एवं  औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) सरकारी संगठनों के ऐसे उदाहरण हैं, जो ना सिर्फ़स्टार्ट-अप्स को आगे बढ़ाते हैं, बल्किउन्हें वित्तीय अनुदान भी उपलब्ध कराते हैं.एक बार वेंचर कैपिटल निवेशक के ज्ञान या अनुभव की सीमा 5 से 7 साल (आदर्श रूप से 9-10 साल या उससे अधिक) की पारंपरिक सीमा से अधिक समय तक समायोजित हो जाती है, और सरकार, निवेशकों, संस्थाओं एवं उद्यमियों की तरफ से एकसाथ समर्थन मिलता है, तो आर एंड डी क्लाइमेट टेक स्टार्ट-अप्स को इससे बहुत मज़बूती मिलती है. ऐसा होने पर इनके लिए अपनी नई-नई प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने और कम कार्बन ट्रांजिशन में योगदान देने के लिए बहुत अधिक अवसर पैदा हो जाते हैं.

जैसा कि दुनिया के सबसे बड़े एसेट मैनेजर औरब्लैकरॉक के सीईओ लैरी फिंक ने कहा है किअगले 1,000 यूनिकॉर्न क्लाइमेट टेकमें होंगे, जो ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर्स, बैटरी रिसाइकलर्स, ग्रीन बिल्डिंग मैटेरियल्स, नवीनकृषि और सर्कुलर फूड सिस्टम एवंएनर्जी स्टोरेज जैसी तमाम नई-नईटेक्नोलॉजी से संबंधित होंगे.इस क़दम को उठाने की दिशा में प्रमुख हितधारकों को प्रेरित करने के लिए हम सही स्थान और समय पर हैं. इसी का नतीज़ा है कि हम व्यापक स्तर पर और सफलता के अच्छी तरह से स्थापित कॉमर्शियल मार्ग के लिए जलवायु के क्षेत्र में कार्य कर रहे आर एंड डी स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा दे रहे हैं.

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