Author : Oommen C. Kurian

Published on Feb 02, 2021 Updated 0 Hours ago

साल 2021 की कठिन चुनौतियों के बावजूद, कोविड-19 की महामारी ने स्वास्थ्य क्षेत्र को जो अवसर उपलब्ध कराए और जिनके ज़रिए इस क्षेत्र में सुधार संभव थे, उन्हें लेकर बजट 2021 दुर्भाग्यपूर्ण रूप से निराशाजनक रहा है, लेकिन अपने परिचित दायरे में ही है और ‘यथा स्थिति’ को मज़बूती से लागू करने का काम करेगा.

क्या सिर्फ़ पीने के साफ़ पानी पर निवेश कर, कोविड19 जैसी महामारी से मुक्ति और बेहतर स्वास्थ्य की नींव रखी जा सकती है?

साल 2021 के लिए वित्तमंत्री का भाषण, भारत के इतिहास में उन चंद बजट भाषणों में से था जब रक्षा क्षेत्र में बजट आवंटन का कोई उल्लेख नहीं किया गया. फिर भी, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि यह एक तरह के युद्ध से संबंधित बजट ही है, क्योंकि दुनिया के कई देशों की तरह भारत पर महामारी का ख़तरा मंडरा रहा है, और इस संकट ने देश भर में लोगों के जीवन और आजीविका को पिछले पूरे साल यानी 2020 में अधिकांश समय के लिए तबाह कर दिया था. पिछले वर्ष के बजट में स्वास्थ्य व कल्याण के लिए आवंटित किए गए लगभग 94,452 करोड़ रुपए के मुक़ाबले, मौजूदा बजट में 223,846 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो सीधे तौर पर 137 फ़ीसदी की वृद्धि है. हालांकि, यह माना जा रहा था कि बजट आवंटन के अलावा इस बार के बजट में व्यापक सुधारों और इन सुधारों के लिए संबंधित निवेश की बात भी की जाएगी.

साल 2018 के बाद से, जब प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, पीएमजेएवाई (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana, PMJAY) शुरू की गई थी, तो कई विशेषज्ञों ने यह चिंता व्यक्त की थी कि यह योजना स्वास्थ्य क्षेत्र के पहले से ही सीमित बजट से अधिक से अधिक धन सोख लेगी और इस के चलते ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार नहीं हो पाएगा. हालांकि, आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 ने सरकार की स्थिति को स्पष्ट रूप से समझाते हुए, इस डर को दूर किया और सरकार के पक्ष को सामने रखा. सर्वेक्षण में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, एनएचएम (National Health Mission, NHM) ने स्वास्थ्य क्षेत्र में असमानता को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, और इसलिए, आयुष्मान भारत के संयोजन में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पर ज़ोर दिया जाना जारी रहना चाहिए. भारत में इस बार बजट से इस बात की बहुत हद तक उम्मीद की जा रही थी कि वह स्वास्थ्य क्षेत्र में मज़बूत निवेश के ज़रिए और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से वित्तपोषण के तंत्र को जवाबदेह बनाने के ज़रिए, वितरण बनाम वित्तपोषण के झूठे द्वंद्व को पार करेगा.

भारत में इस बार बजट से इस बात की बहुत हद तक उम्मीद की जा रही थी कि वह स्वास्थ्य क्षेत्र में मज़बूत निवेश के ज़रिए और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से वित्तपोषण के तंत्र को जवाबदेह बनाने के ज़रिए, वितरण बनाम वित्तपोषण के झूठे द्वंद्व को पार करेगा. 

इसके अलावा, निजी आधारभूत ढांचे पर बढ़ती निर्भरता और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में जानकारी से संबंधित विषमता के चलते, बाज़ार की विफलता को देखते हुए, आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात की भी पैरवी की गई थी कि इस क्षेत्र में एक नियामक नियुक्त किए जाने और पर्यवेक्षण की ज़रूरत है. भारत में अनुसंधान क्षेत्र से जुड़े समुदाय और नागरिक समाज की भी लंबे समय से यह मांग रही है. आर्थिक सर्वेक्षण ने सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकारी व्यय के घटते स्तर के संदर्भ में अपना विश्लेषण प्रस्तुत किया और इस से संबंधित साक्ष्य प्रस्तुत किए कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के अनुपात में सरकारी व्यय तीन प्रतिशत से कम रहा है. इस संबंध और इस अनुपात में कोई भी सुधार, आउट ऑफ पॉकेट ख़र्च (Out of Pocket, OOP) यानी फुटकर ख़र्च में भारी गिरावट का कारण बनेगा. सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में ख़र्च में वृद्धि को अगर सकल घरेलू उत्पाद के तीन फ़ीसदी तक कर दिया जाता है, तो इस के चलते फुटकर ख़र्च में कमी आएगी, जो वर्तमान के 60 फ़ीसदी से घटकर लगभग 30 फ़ीसदी तक कम हो सकता है. इस के चलते भारतीय घरों में स्वास्थ्य पर होने वाले ख़र्च में कटौती हो सकती है और अन्य ज़रूरतों पर खर्च के लिए अधिक धनराशि मुक्त हो सकती है. इस के चलते घरेलू स्तर पर लोगों को बाहरी ऋणों से मुक्ति मिल सकती है और वह ऋण-चक्र से मुक्त हो सकते हैं.

आवंटित राशि अनुमान से 10% कम

इस सभी बातों का मतलब था कि स्वास्थ्य निवेश के क्षेत्र में सेक्टर-व्यापी वृद्धि की अधिक उम्मीद की जा रही थी. हालांकि, भाषण के तुरंत बाद जारी किए गए वास्तविक आंकड़ों (फ़िगर-1) ने ऐसी किसी भी उम्मीद को धराशायी कर दिया है. बजट दस्तावेजों के मुताबिक, बजट 2020 और बजट 2021 के अनुमानों के बीच, केवल 10.5 फ़ीसद की वृद्धि हुई है, जब की ज़मीनी स्तर पर आवश्यकताएं काफी हद तक बढ़ी हैं. इस वर्ष आवंटित राशि यानी 74,602 करोड़ रुपए वास्तव में पिछले साल के संशोधित अनुमानों से 10 फ़ीसदी कम है, जो पिछले साल 82,445 करोड़ रुपए थी. कोविड-19 से निपटने के लिए ज़रूरी टीकाकरण अभियान के लिए अतिरिक्त धनराशि तय की गई है, और इस बात की बहुत हद तक संभावना है कि पिछले वर्ष की तरह, आवंटन को ज़रूरत के हिसाब से संशोधित किया जाएगा. हालांकि, अब भी जब महामारी का ख़तरा बहुत हद तक मौजूद है, तो बजट दस्तावेज़ इस दिशा में सरकार के इरादों की कमी को दर्शाता है और इस बात की ओर संकेत करता है कि राज्यों को इस बोझ को खुद ही वहन करना होगा.

बजट में मौजूद आंकड़ों पर एक नज़र यह दर्शाती है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में यह वृद्धि वास्तविक होने के बजाय आंकड़ों और बहीखातों का खेल अधिक है. सच यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में यह वृद्धि बुनियादी स्तर पर नहीं है. 

यदि यह विश्लेषण सही है, तो बजट भाषण के अनुसार हम स्वास्थ्य और कल्याण के लिए साल दर साल होने वाले ख़र्च को लेकर 137 फ़ीसदी के बढ़ते आवंटन के आंकड़े पर कैसे पहुंचे? बजट में मौजूद आंकड़ों पर एक नज़र यह दर्शाती है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट में यह वृद्धि वास्तविक होने के बजाय आंकड़ों और बहीखातों का खेल अधिक है. सच यह है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में यह वृद्धि बुनियादी स्तर पर नहीं है. यह सही है कि एक नई केंद्र प्रायोजित योजना, प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ्य भारत योजना (PM Atma Nirbhar Swasthya Bharat Yojana) छह सालों में लगभग 64,180 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ बनाई और घोषित की गई है, जो प्राथमिक (primary), माध्यमिक (secondary) और तृतीयक देखभाल प्रणालियों (tertiary care systems) की क्षमताओं को विकसित करने में मदद करेगी. साथ ही इस योजना की मकसद रोग की पहचान से उसके इलाज तक व्यक्ति को सहयोग प्रदान करना है. लेकिन, इस संबंध में वार्षिक आवंटन अब भी मामूली बना हुआ है और असली मामला ‘स्वास्थ्य’ और ‘कल्याण’ की परिचालन से जुड़ी परिभाषा पर आकर अटक गया है.

स्वास्थ्य और कल्याण की श्रेणी में पानी और स्वच्छता का प्रभुत्व है और सरकार द्वारा पीने के पानी की आपूर्ति को सार्वभौमिक रूप से सुनिश्चित करने को केंद्र में रखे जाने के चलते इस आवंटन में लगभग 300 फ़ीसदी की वृद्धि देखी गई है. इसी के साथ, स्वास्थ्य और कल्याण को अलग-अलग घटक के रूप में देखते हुए (तालिका-1), अगर इनके साल दर साल के आवंटन पर एक नज़र डाली जाए तो यह पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र को उस अनुपात में धन राशि उपलब्ध नहीं कराई गई है, जिस अनुपात में महामारी ने भारत जैसे जनसंख्य़ा बहुल देश के सामने चुनौती पेश की है. कोविड-19 की रोकथाम के लिए टीकाकरण अभियान के लिए केंद्र द्वारा दिए गए वित्तीय सहयोग, जो 35,000 करोड़ रुपए है, और स्वास्थ्य क्षेत्र को वित्त आयोग से मिले अनुदान (Finance Commission Grants) जो लगभग 13,192 करोड़ रुपए है, के अलावा, इस क्षेत्र में वृद्धि बहुत हद तक मामूली ही है, जो कुलमिलाकर 10.5 फ़ीसदी तक सामने आती है.

साल 2021 में देश के सामने जो कठिन चुनौतियां मौजूद हैं उन्हें देखते हुए और महामारी ने स्वास्थ्य क्षेत्र में जो अवसर पैदा किए हैं उनके मद्देनज़र, बजट 2021 दुर्भाग्य से निराशाजनक ही बना रहा है और यह हर रूप में ‘यथा स्थिति’ को मज़बूती से लागू करने का काम करेगा. केंद्र सरकार के माध्यम से कोविड-19 की महामारी से निपटने, इस के लिए ज़रूरी बुनियादी ढांचे के निर्माण और रखरखाव व ज़रूरी सेवाएं उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी से संबंधित आर्थिक बोझ को राज्य सरकारों को सौंपे जाने का नतीजा अगले कुछ महीनों में ही सामने आएगा. यह ज़मीनी स्तर पर और भी अधिक चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि राज्यों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और उन का स्तर बहुत बेहतर नहीं है, और वह पहले से ही, दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के बोझ तले दबे हैं. ऐसे में जल क्षेत्र में बड़े स्तर का निवेश प्रशंसनीय है, लेकिन दुर्भाग्य से, जल क्षेत्र के बाहरी तत्वों का उपयोग कर के महामारी से लड़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. हमें भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में और अधिक निवेश की ज़रूरत है और यह एक ऐसा तथ्य है जो बजट 2021 द्वारा पूरी तरह उपेक्षित किया गया है. यह भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए एक और गंवा दिए गए अवसर की तरह है.

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