Published on Jul 21, 2020 Updated 0 Hours ago

अब आगे जो भी होता है, लेकिन एक बात तय है कि दुनिया में आगे चलकर कई राजनीतिक व्यवस्थाओं और आर्थिक ढांचों का पतन होगा और समाज में भारी उथल पुथल भी देखने को मिलेगी.

क्या कोविड-19 के बाद की दुनिया में तीसरी दुनिया के देश एक नई विश्व व्यवस्था की मांग कर सकते हैं?

कोविड-19 की महामारी के पूरी दुनिया में फैलने के बाद, इसके प्रसार की रोकथाम के लिए दुनिया भर में प्रतिबंधात्मक और अन्य उपाय लागू करने के जो निर्णय लिए जा रहे हैं, उसके बाद हम लगभग हर देश के नागरिकों के बर्ताव में बड़े और अर्थपूर्ण बदलाव देख रहे हैं. ये परिवर्तन खान-पान में आया है. सोने के समय और तरीक़े में आया है. वस्तुओं के इस्तेमाल करने के संदर्भ में आया है. इंसानों में ये बदलाव उनकी सांस्कृतिक गतिविधियों में आया है, पढ़ने सीखने के तौर तरीक़ों में आया है. साथ ही कोविड-19 के कारण आज नए हुनर का अभ्यास करने से लेकर धार्मिक रिवाज तक, सब कुछ बदला बदला सा नज़र आ रहा है.

इस महामारी के कारण इंसानों के बर्ताव में इस बदलाव की वजह शायद ये है कि लोग इंटरनेट का काफ़ी प्रयोग करने लगे हैं. साथ ही सोशल मीडिया पर भी सक्रियता काफ़ी बढ़ गई है. दुनियाभर में क़रीब छह अरब लोग आज इंटरनेट का प्रयोग करते हैं. ये लोग इस आभासी दुनिया में अपनी ज़िंदगी का अच्छा ख़ासा वक़्त बिताते हैं. कोविड-19 की महामारी शुरू होने के बाद से सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.

आज सोशल मीडिया पर तमाम लोगों के बीच जो संवाद होता है, वो पारंपरिक मीडिया (यानी टीवी, रेडियो या प्रेस) से बिल्कुल अलग होता है. लोगों के बीच इस तरह के संवाद का प्रसार, भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संबंधों पर असर डालता है. आधिकारिक मीडिया द्वारा दी जाने वाली जानकारी से इतर, सोशल मीडिया पर लोगों के बीच सूचना का जो आदान-प्रदान होता है, उसी कारण से हमारे व्यवहार में बड़ी तेज़ी से परिवर्तन आया है. और इसी वजह से आज नए मानव के उद्भव की चर्चा की जा रही है. इसे महामारी के बात का नया मानव कहा जा रहा है. इसमें कोई शक नहीं है कि नए व्यवहारों के उद्भव के कारण इंसानी सभ्यता के खेल के नए नियम भी बन रहे हैं. ये नियम राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज और संस्कृति के क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं.

इसमें कोई शक नहीं है कि नए व्यवहारों के उद्भव के कारण इंसानी सभ्यता के खेल के नए नियम भी बन रहे हैं. ये नियम राजनीति, अर्थशास्त्र, समाज और संस्कृति के क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ये कहा जा सकता है कि दुनिया, देश, राज्य और समाज को चलाने के लिए जो नए नियम गढ़े जाएंगे, वो इस बात पर निर्भर करेंगे कि इस महामारी की रोकथाम के लिए किस तरह के क़दम उठाए गए. और इसीलिए, भविष्य में किसी महामारी और उसके प्रभावों से निपटने के लिए जो उपाय सामने आएंगे, उनसे क्षति की लागत निश्चित रूप से कम हो जाएगी.

जिन देशों ने इस महामारी से उत्पन्न भयावाह समस्याओं का समाधान निकालने के लिए बिना ये सोचे हुए अधकचरे क़दम उठाए हैं, कि इनका मानवता के भविष्य पर क्या असर होगा, उन्हें आने वाले समय में अन्य संकटों का सामना करना पड़ेगा. आज कोई इस बात की कल्पना नहीं कर सकता कि आने वाले समय में ये संकट कैसे होंगे.

हो सकता है कि इस महामारी के बाद के दौर में कई बड़ी शक्तियों जैसे कि अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देश मिलकर चीन के ख़िलाफ़ एक संघर्ष की संरचना कर सकते हैं. ताकि वो चीन के साथ एक मज़बूत मोर्चे पर रहकर संवाद कर सकें. या फिर कम से कम वो अपने आर्थिक और सामाजिक हितों के संदर्भ में चीन की बराबरी पर खड़े हो सकें. क्योंकि इस महामारी के पश्चात, इन देशों के समाज और आर्थिक व्यवस्था में बिखराव का आना तय है.

जहां तक अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका और एशिया के अन्य विकासशील और अविकसित देशों की बात है, तो उनके लिए ये महामारी एक बेशक़ीमती मौक़ा लेकर आई है. वो इसकी मदद से पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं

कोविड-19 की महामारी के पश्चात होने वाले दुष्प्रभावों का असर हर देश के लिए अलग अलग होगा. इस महामारी से उत्पन्न संकट का पूर्वी एशिया और ख़ास तौर से चीन पर बहुत कम दुष्प्रभाव पड़ेगा. जबकि अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं और सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ढांचों को इस महामारी के बाद भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी.

जहां तक अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका और एशिया के अन्य विकासशील और अविकसित देशों की बात है, तो उनके लिए ये महामारी एक बेशक़ीमती मौक़ा लेकर आई है. वो इसकी मदद से पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता से स्वयं को मुक्त कर सकते हैं. इसी के साथ साथ इन देशों के पास ये मौक़ा भी है कि वहां की सरकारें अपनी जनता के साथ संबंध को नए सिरे से परिभाषित कर सकते हैं.

हालांकि, अगर ये देश वैसे ही काम करते रहते हैं, जैसे कि इससे पहले के हालात में कर रहे थे, तो उन्हें इस महामारी की और भारी क़ीमत चुकानी पड़ेगी, जो उपनिवेशवाद के दौर से भी अधिक होगी.

कोविड-19 की महामारी के रूप में क़ुदरत ने आज हमें जो मौक़ा दिया है, उसका अंदाज़ा निश्चित रूप से किसी ने नहीं लगाया था. लेकिन, ये समय तीसरी दुनिया के लिए बिल्कुल मुफ़ीद है कि वो सख़्त फ़ैसले लें और स्वयं को विश्व की महान शक्तियों के चंगुल से आज़ाद करा लें.

अब आगे जो भी होता है, लेकिन एक बात तय है कि दुनिया में आगे चलकर कई राजनीतिक व्यवस्थाओं और आर्थिक ढांचों का पतन होगा और समाज में भारी उथल पुथल भी देखने को मिलेगी.

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