Author : Angad Singh

Published on Sep 15, 2023 Updated 0 Hours ago

प्रस्तावित पैंडेमिक ट्रीटी और इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन्स में बदलाव की क़ामयाबी सुनिश्चित करने के लिए WHO में संगठनात्मक एवं व्यवस्थापरक सुधारों को आगे बढ़ाना बेहद महत्त्वपूर्ण है.

क्या सयुंक्त राष्ट्र में संगठनात्मक सुधारों के बग़ैर बनाई जा रही पैंडेमिक ट्रीटी सफल हो सकती है?

मौज़ूदा वक्त में विश्व स्वास्थ्य संगठन महत्त्वपूर्ण प्रक्रियागत और व्यवस्थागत बदलाव के दौर से गुज़र रहा है. WHO द्वारा भविष्य में कोविड-19 जैसी महामारी को रोकने के लिए अपनी क्षमता को बढ़ाने या कहा जाए कि अपनी अक्षमता को दूर करने के मकसद से इन दिनों इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन्स में बदलाव को लेकर वर्किंग ग्रुप (WG-IHR) और इंटरगवर्नमेंटल निगोशिएशन बॉडी (INB) पर काम किया जा रहा है. WG-IHR एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य महामारी जैसी किसी परिस्थिति में सदस्य देशों के अधिकारों और उनकी ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करने वाले मौज़ूदा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों के संबंध में सदस्य देशों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर विचार करना है.

WHO द्वारा की जा रहीं इन क़वायदों को वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे में जो ख़ामियां हैं, उन्हें दूर करने के लिए बहुपक्षीय कोशिशों के तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है. लेकिन इन क़वायदों में WHO की संगठनात्मक व्यवस्था पर असर डालने वाले बुनियादी मसलों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है.

ज़ाहिर है कि जो मौज़ूदा इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन्स (IHR) हैं, उनमें कोरोनो वायरस महामारी को फैलाव के रोकने की क़ुव्वत नहीं थी, यही वजह थी की कोरोना महामारी के दौरान WHO पूरी दुनिया के निशाने पर आ गया था. IHR को लेकर बनाए गए कार्य समूह का उद्देश्य मौजूदा नियम-क़ानूनों में बदलाव करना है. जहां तक इंटर-गवर्नमेंटल नेगोशिएशन बॉडी की बात है, तो इसका मक़सद महामारी की रोकथाम और महामारी जैसी स्थिति के लिए पहले से तैयारी करने और उसका समुचित जवाब देने के लिए एक नए “WHO कन्वेंशन, समझौते या दूसरे अंतर्राष्ट्रीय उपायों” पर मसौदा तैयार करना है, जिसे दूसरे शब्दों में “पैंडेमिक ट्रीटी“, यानी “महामारी संधि” कहा जाता है. देखा जाए तो ये दोनों क़वायद अलग-अलग तरह की हैं, लेकिन कहीं न कहीं दोनों ही एक दूसरे के साथ नज़दीकी से जुड़ी भी हुई हैं, क्योंकि इन दोनों का ही लक्ष्य वर्ष 2024 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली के सामने अंतिम मसौदा दस्तावेज़ पेश करना है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में 17 से 21 जुलाई तक INB की छठी बैठक आयोजित की गई थी, जिसके बाद 24 से 28 जुलाई तक WG-IHR की चौथी बैठक भी आयोजित हुई थी. WHO द्वारा की जा रहीं इन क़वायदों को वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे में जो ख़ामियां हैं, उन्हें दूर करने के लिए बहुपक्षीय कोशिशों के तौर पर आगे बढ़ाया जा रहा है. लेकिन इन क़वायदों में WHO की संगठनात्मक व्यवस्था पर असर डालने वाले बुनियादी मसलों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है. ज़ाहिर है कि कूटनीतिक स्तर पर इन मुद्दों पर भी गंभीरता से ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि कि IHR और पैंडेमिट ट्रीटी को लेकर जो भी अंतिम मसौदा स्वीकृत किया जाएगा, आख़िरकार उसे WHO के वर्तमान ढांचे के भीतर ही कार्यान्वित किया जाएगा.

संगठनात्मक मसले

फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जिस सबसे जटिल मसले का सामना किया जा रहा है, वो संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था में भू-राजनीतिक दख़लंदाज़ी है. 22 जनवरी 2020 को कोविड-19 महामारी के दौरान WHO के महानिदेशक (DG) को वैश्विक स्तर पर राजनीतिक हमलों का शिकार होना पड़ा था, क्यों कि कोविडि-19 महामारी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न (PHEIC) घोषित करने में WHO नाक़ाम साबित हुआ था. ज़ाहिर है कोविड-19 को PHEIC घोषित करना IHR इमरजेंसी कमेटी (EC) के अंतर्गत आता है और इसमें WHO के महानिदेशक (DG) की कोई भूमिका नहीं होती है. सच्चाई यह है कि IHR इमरजेंसी कमेटी (EC) ऐसा इसलिए नहीं कर पाई, क्योंकि कमेटी में शामिल विशेषज्ञ उस समय इस फैसले को लेकर एकमत नहीं थे. बाद में 30 जनवरी 2020 को कमेटी के भीतर इस मुद्दे पर एक राय बनी और तब WHO महानिदेशक ने कोविड-19 महामारी को PHIEC घोषित किया. उल्लेखनीय है कि 22 जनवरी 2020 को WHO के DG चाहकर भी कोविड-19 को PHIEC घोषित नहीं कर सकते थे, क्योंकि वे संगठन के प्रशासनिक नियम-क़ानूनों से बंधे हुए थे और इमरजेंसी कमेटी द्वारा दी गई सलाह को मानना उनके लिए अनिवार्य था. कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना महामारी के दौरान WHO महानिदेशक के कार्यालय द्वारा संगठन के नियम-क़ानून का पालन किया गया, बावज़ूद इसके डीजी पर चीन का पक्ष लेने के आरोप लगाए गए और डीजी ऑफिस इन आरोपों के जवाब में कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था. इस सबका नतीज़ा यह हुआ कि आख़िरकार अमेरिका ने WHO से खुद को अलग कर लिया. भविष्य में ऐसी स्थितियां पैदा न हों और कोई भी देश इस WHO से नाता नहीं तोड़े, इसके लिए महामारी जैसे हालातों में IHR पर गठित वर्किंग ग्रुप इमरजेंसी कमेटी के किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले ही WHO के महानिदेशक को यह अधिकार देने के बारे में सोच रहा है, जिसके तहत वह विभिन्न देशों को प्रारंभिक स्तर का हेल्थ अलर्ट जारी कर सके. 24 से 28 जुलाई के दौरान हुई वर्किंग ग्रुप की हालिया मीटिंग के दौरान सदस्य देशों ने इस बात पर भी चर्चा की थी कि PHEIC को लेकर ‘हां या न’ जैसी घोषणा को क्या ऐसी परिस्थितियों के बारे में जो कि फिलहाल व्यापक स्वास्थ्य संकट की श्रेणी में नहीं आती हैं, ग्रेडेड डिक्लेरेशन यानी क्रमिक घोषणा से नहीं बदला जा सकता है. हालांकि, फौरी तौर पर ऐसी कोशिशें सुधारवादी ज़रूर दिखाई देती हैं और काफ़ी उन्नत भी हैं, लेकिन निम्न दो वजहों के चलते ये प्रयास WHO के महानिदेशक दफ़्तर को निष्पक्षता से समझौता करने के आरोपों से बचाने में ज़्यादा मददगार प्रतीत नहीं होते हैं.

उल्लेखनीय है कि 22 जनवरी 2020 को WHO के DG चाहकर भी कोविड-19 को PHIEC घोषित नहीं कर सकते थे, क्योंकि वे संगठन के प्रशासनिक नियम-क़ानूनों से बंधे हुए थे और इमरजेंसी कमेटी द्वारा दी गई सलाह को मानना उनके लिए अनिवार्य था.

पहला कारण यह है कि IHR ड्राफ्ट के आर्टिकल 48 के अंतर्गत इमरजेंसी कमेटी में जो विशेषज्ञ शामिल होंगे, उनका चुनाव WHO के महानिदेशक द्वारा किया जाना है. विशेषज्ञों की यह कमेटी जब एक बार बन जाती है, तो किसी वैश्विक स्वास्थ्य संकट के हालात को PHEIC घोषित करने या नहीं करने को लेकर WHO के डीजी को उसकी सलाह माननी ही पड़ेगी. कमेटी में शामिल विशेषज्ञों का चुनाव WHO महानिदेशक द्वारा किया जाता है, ज़ाहिर है कि ऐसे में इमरजेंसी कमेटी के सदस्यों और डीजी के बीच नज़दीकी सबंधों से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. वर्तमान में कार्य समूह IHR में बदलाव को लेकर जो कुछ भी कर रहा है, उसमें भी इस गठजोड़ को समाप्त करने के लिए कुछ नहीं किया गया है. उल्लेखनीय है कि WHO के डीजी और इमरजेंसी कमेटी के विशेषज्ञों के बीच इसी क़रीबी रिश्ते की वजह से कोविड-19 जैसे वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के दौरान कमेटी के साथ-साथ WHO के महानिदेशक, दोनों पर ही राजनीतिक रूप से निशाना साधना बहुत आसान हो जाता है. दूसरा कारण यह है कि इमरजेंसी कमेटी से मंज़ूरी मिले बगैर WHO महानिदेशक को शुरुआती पब्लिक हेल्थ अलर्ट जारी करने का अधिकार देने का विचार एक सकारात्मक क़दम ज़रूर है, लेकिन इससे WHO को फंडिंग करने वाले ताक़तवर सदस्य देशों द्वारा अपने राजनीतिक हितों के लिए महानिदेशक कार्यालय पर दबाव डालने और उसके निर्णय को प्रभावित करने की आशंका भी बढ़ जाती है.

इसी क्रम में जियो-पॉलिटिक्स के प्रभाव से WHO के महानिदेशक कार्यालय को दूर करने के लिए इंडिपेंडेंट पैनल फॉर पैंडेमिक प्रिपेयर्डनेस एंड रिस्पॉन्स यानी महामारी की तैयारी और उसका जवाब देने के लिए स्वतंत्र पैनल (IPPPR) द्वारा डीजी के पद पर बरक़रार रहने के लिए राजनीतिक समर्थन की अनिवार्यता को कम करने हेतु, फिर से महानिदेशक के चुनाव पर रोक लगाने का सुझाव दिया गया है. ज़ाहिर है कि इस प्रकार के क़दम से यह सुनिश्चित होगा कि महानिदेशक द्वारा की गई कोई भी कार्रवाई किसी निजी हित से प्रेरित नहीं होगी. एक और उपाय, जिसे अमल में लाया जा सकता है, वो यह है कि इमरजेंसी कमेटी का चुनाव करने की प्रक्रिया को विश्व स्वास्थ्य संगठन के डीजी कार्यालय से दूर कर दिया जाए. इससे DG और कमेटी के सदस्यों के बीच की मिलीभगत ख़त्म हो जाएगी. ऐसा करना WHO को एक तटस्थ संगठन बनाने में मददगार साबित होगा. निसंदेह तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन में IHR और पैंडेमिक ट्रीटी जैसे साधनों को अमेरिका एवं चीन के बीच की भू-राजनीतिक होड़ से दूर रखने के लिए इस प्रकार की निष्पक्षता बेहद ज़रूरी है.

इमरजेंसी कमेटी से मंज़ूरी मिले बगैर WHO महानिदेशक को शुरुआती पब्लिक हेल्थ अलर्ट जारी करने का अधिकार देने का विचार एक सकारात्मक क़दम ज़रूर है, लेकिन इससे WHO को फंडिंग करने वाले ताक़तवर सदस्य देशों द्वारा अपने राजनीतिक हितों के लिए महानिदेशक कार्यालय पर दबाव डालने और उसके निर्णय को प्रभावित करने की आशंका भी बढ़ जाती है.

हाल ही में WG-IHR की जो चौथी मीटिंग हुई थी, उसमें बड़े देशों के बीच ऐसी बहसों और विवादों के शुरुआती संकेत पहले ही मिल चुके हैं. IHR में बदलाव के अमेरिकी प्रस्ताव को लेकर रूस व चीन ने विरोध जताया है. इस प्रस्ताव में किसी आसन्न स्वास्थ्य संकट के बारे में WHO को सूचित करने के लिए देशों को महज 48 घंटे का समय मिलता है. प्रस्ताव के मुताबिक़ एक बार जब WHO को सामने आने वाले स्वास्थ्य संकट के बार में सूचना दे दी जाती है, तो जिस सदस्य देश में यह संकट होता है उसे WHO द्वारा समर्थित जांच-पड़ताल की मंजूरी के लिए 48 घंटे का अतिरिक्त समय मिल जाता है. ऐसा नहीं होने पर WHO सामने आने वाले स्वास्थ्य संकट के लिए सभी सदस्य देशों को अपनी ओर से एकतरफा नोटिस जारी कर सकता है. एक ओर, अमेरिका और भारत जैसे देश WHO द्वारा इतने कम समय में की जाने वाली कार्रवाई के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं, वहीं दूसरी ओर रूस और चीन जैसे देश इसे किसी देश के अधिकारों का अतिक्रमण बताते हुए विरोध करते हैं. ऐसे में WHO के लिए खुद को एक निष्पक्ष वैश्विक संगठन के रूप में सशक्त करना अनिवार्य हो जाता है, ताकि वो तटस्थ संगठन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर महाशक्तियों के बीच विवाद को थाम सके. इसलिए, पैंडेमिक ट्रीटी और IHR में संशोधन के माध्यम से WHO के डीजी दफ़्तर में बुनियादी तौर पर सुधार किया जाना न सिर्फ़ बेहद ज़रूरी है, बल्कि राजनीतिक रूप से WHO का एक तटस्थ बहुपक्षीय संगठन का दर्ज़ा बरक़रार रखने के लिए भी महत्त्वपूर्ण है.

व्यापक स्तर पर बहुपक्षीय संबंध की ज़रूरत

WHO को वर्तमान में ‘निचले स्तर की या ओछी राजनीति’ की जगह के रूप में देखा जाता है. ज़ाहिर है कि WHO देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के कार्यक्षेत्र में आता है न की राष्ट्राध्यक्षों के अधिकार क्षेत्र में. हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि जिस प्रकार से WHO को इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन्स और महामारी संधि को लेकर की जा रही चर्चा-परिचर्चा के दौरान विश्व व्यापार संगठन एवं TRIPS समझौते के दायरे में आने वाले विभिन्न क्षेत्रों में जाने की ज़रूरत पड़ती है, ऐसे में इन पहलों पर देशों के बीच व्यापक सहमति बनाना आवश्यक हो जाता है और इसके लिए देशों के राष्ट्राध्यक्षों को इसमें शामिल करना अनिवार्य हो जाता है. चूंकि पैंडेमिक ट्रीटी को एक अनिवार्य साधन को तौर पर विकसित किया जा रहा है, जिसमें देशों को स्वेच्छापूर्वक ‘सम्मलित’ होना होगा, इसलिए इस संधि को अंतिम रूप देने में राष्ट्राध्यक्षों का नज़रिया, उनके विचार और सुझाव लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं. सितंबर 2023 में महामारी की रोकथाम, इसका सामना करने के लिए पूर्व तैयारी और जवाब देने के विषय पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक आयोजित होने वाली है. यह मीटिंग महामारी की रोकथाम से जुड़ी कोशिश में देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों के बजाए राष्ट्राध्यक्षों को सीधे तौर पर शामिल करने के लिए एक बेहतरीन अवसर उपलब्ध कराती है. बैठक के लिए बनाए गए ज़ीरो ड्राफ्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि महामारी की रोकथाम के लिए बहुपक्षीय जवाबी कार्रवाई को लेकर हुई प्रगति का आकलन करने के लिए वर्ष 2026 में एक समीक्षा बैठक भी आयोजित की जाएगी. WHO को तमाम भू-राजनीतिक चुनौतियों से मुक़ाबला करने में सक्षम बनाने के लिए यह एक समुचित बहुपक्षीय नज़रिया है, क्योंकि जब वैश्विक स्तर के मसलों का हल तलाशने के लिए राष्ट्रों के प्रमुख एक मंच पर आते हैं, तो निश्चित तौर पर उसका परिणाम बेहतर होता है और उसमें किसी राजनीति की गुंजाइश भी नहीं बचती है.

कोविड-19 महामारी के पश्चात का WHO

जुलाई के महीने में WHO में हुई बैठक और सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र की हाई लेवल मीटिंग ऐसे बहुपक्षीय प्रयास हैं, जो महामारी को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की जा रही गंभीर कोशिशों को प्रदर्शित करते हैं. हालांकि यह भी एक सच्चाई है कि एक तरफ हेल्थ डिप्लोमेट्स संशोधित IHR और महामारी संधि की जद्दोजहद में लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर WHO में संगठनात्मक सुधारों जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य को नज़रंदाज़ कर दिया गया है. ऐसे में, सितंबर में होने वाली उच्च स्तरीय बैठक के दौरान WHO के सदस्य देशों को संगठन में व्यवस्थापरक सुधारों पर चर्चा शुरू करने का मौक़ा मिलेगा, ज़ाहिर है कि WHO पैंडेमिक ट्रीटी की अगुवाई कर रहा है.

WHO के संगठनात्मक ढांचे में सुधार लाने के लिए भारत जैसे सदस्य देश पहले ही अपने इरादों को ज़ाहिर कर चुके हैं. सुधार के इस नज़रिए के पीछे बुनियादी मकसद WHO के अधिकारों को बढ़ाना है और इस संगठन को ताक़तवर बनाना है. 

WHO के संगठनात्मक ढांचे में सुधार लाने के लिए भारत जैसे सदस्य देश पहले ही अपने इरादों को ज़ाहिर कर चुके हैं. सुधार के इस नज़रिए के पीछे बुनियादी मकसद WHO के अधिकारों को बढ़ाना है और इस संगठन को ताक़तवर बनाना है. WHO के सदस्य देशों में तकनीक़ी क्षमताएं विकसित करने में संगठन की सशक्त भागीदारी का भारत सरकार ने समर्थन किया है. तकनीक़ी क्षमताएं विकसित होने से सदस्य देश किसी भी स्वास्थ्य संकट की स्थिति में IHR के अंतर्गत खुद ही उसकी रिपोर्टिंग कर सकेंगे. इसके साथ ही WHO की टेक्निकल कमेटियों में विकासशील देशों और विभिन्न बीमारियों के बोझ तले दबे हुए देशों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का भी प्रस्ताव है. इन सभी प्रस्तावों से यह ज़ाहिर होता है कि वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था को बरक़रार रखने के लिए अभी भी WHO की प्रासंगिकता बनी हुई है। WHO की प्रासंगिकता आज ऐसे वक़्त में भी बनी हुई है, जबकि इसके वित्तीय संसाधन सिकुड़ते जा रहे हैं और ये GAVI व UNAIDS जैसी दूसरी स्वास्थ्य पहलों से भी कम हो गए हैं. वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अहम कार्य विश्व स्वास्थ्य संगठन के संगठनात्मक और व्यवस्थापरक सुधारों की दिशा में गंभीरता के साथ आगे बढ़ना है. ऐसे में सितंबर की बैठक बहुत महत्वपूर्ण है और सभी सदस्य देशों को WHO के सशक्तिकरण के लिए इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.