Published on Jan 07, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत को सैन्य हार्डवेयर की ख़रीद को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के साथ संघर्ष को टालने के साथ स्वदेशीकरण की राह अपनाने के लिए दीर्घकालिक योजना के साथ आगे बढ़ना होगा.

CAATSA, रूस से S-400s मिसाइल की खरीद और भारत की सुरक्षा के स्वदेशीकरण की चुनौती

रूस से S-400 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों (एसएएम) ट्रायम्फ़ की ख़रीद के भारत के फैसले पर अमेरिकी प्रतिबंध ख़ास कर काउंटर अमेरिकाज एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शन एक्ट (CAATSA) का काला साया मंडरा रहा है. भारत-रूस एस 400 डील की वजह से अमेरिका-भारत संबंधों में होने वाले संभावित कड़वाहट के बारे में नई दिल्ली और वाशिंगटन डी.सी दोनों में कई विश्लेषण किए गए हैं ख़ास कर इसे देखते हुए कि अमेरिका अगर भारत पर प्रतिबंध लागू करता है. नई दिल्ली अपने हिस्से के लिए भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत रणनीतिक संबंधों के कारण बाइडेन प्रशासन से कुछ छूट हासिल करने का भरोसा रखता है.

यदि अमेरिका-भारत के हित पर्याप्त रूप से द्विपक्षीय संबंधों के प्रति एक साथ शामिल नही किए जाते हैं, जैसा कि मौजूदा वक़्त में  एस-400 यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका के बीच तनाव को लेकर है, तो ऐसे में वाशिंगटन के साथ संबंधों में तल्ख़ी की संभावना कम नहीं होगी. 

अमेरिका से छूट के प्रस्तावों की संभावना के बाद भी कई समस्याएं हैं, जो रूसी सैन्य हार्डवेयर पर भारत की निर्भरता की वजह से वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच संबंधों को प्रभावित करने की ताकत रखता है. सच में, इसे लेकर सबूत हैं कि अमेरिकी सांसद जैसे टेक्सास के सांसद जॉन कॉरिन और वर्ज़ीनिया के सांसद मार्क वार्नर राष्ट्रपति जो बाइडेन से भारत को इसे लेकर छूट देने की वकालत कर रहे हैं.  हालांकि, आगे बढ़ते हुए इस बात की सीमाएं होंगी कि भारत रूस से भविष्य में हथियारों की ख़रीद को लेकर अमेरिका से दबाव को कितना कम कर पाएगा.  इन सीमाओं में अमेरिका और भारत के पारस्परिक हितों को आगे बढ़ाने और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में समानता को संरक्षित करने की मांग करने वाले अमेरिका के भीतर विभिन्न समर्थन और हित समूहों के माध्यम से अमेरिकी कांग्रेस की लॉबी करने के प्रयास भी शामिल होंगे. यदि अमेरिका-भारत के हित पर्याप्त रूप से द्विपक्षीय संबंधों के प्रति एक साथ शामिल नही किए जाते हैं, जैसा कि मौजूदा वक़्त में  एस-400 यूक्रेन को लेकर रूस और अमेरिका के बीच तनाव को लेकर है, तो ऐसे में वाशिंगटन के साथ संबंधों में तल्ख़ी की संभावना कम नहीं होगी.  निश्चित तौर पर अमेरिका यह चाहेगा कि भारत या तो अमेरिकी रक्षा प्रमुख रेथिऑन या लॉकहीड मार्टिन द्वारा निर्मित थियेटर हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (टीएचएएडी) प्रणाली द्वारा निर्मित पैट्रियट बैटरी प्रणाली को ख़रीद ले. लागत और परिचालन आवश्यकताओं और अन्य कारणों से, भारत ने अमेरिकी एसएएमएस को ख़रीदने में संकोच किया था. अभी के लिए, भारत को छूट मिल तो जाएगी, हालांकि चाहे नई दिल्ली, रूस या अमेरिका से चीन और पाकिस्तान का मुक़ाबला करने के लिए अपनी हथियार की क्षमताओं को विकसित करना चाहता है तो इसे लेकर भारत को कई  बुनियादी समस्याओं का सामना करना होगा. भारत की रक्षा ज़रूरतों पर असर करने वाले इन समस्याग्रस्त मुद्दों का मास्को और वाशिंगटन से बहुत कम लेना-देना है लेकिन इन चीजों के लिए उन्हें अभी भी सीमित घरेलू रक्षा औद्योगिक आधार पर निर्भर होना होगा.

एस-400  की डील प्रतीकात्मक तौर पर एक बड़ी डील है लेकिन यह लंबे समय तक भारतीय कमी का प्रतीक रहेगा. क्योंकि अगर भारत ने पैट्रियट या थाड (THAAD) सिस्टम के लिए एस-400 को प्रतिस्थापित किया है तो ऐसा कर नई दिल्ली ने एक की जगह दूसरे आपूर्तिकर्ता के ऊपर निर्भरता पैदा कर दी है

भारत की स्वदेशी प्रक्रिया में भरोसे की कमी

भारत-अमेरिका और भारत-रूस संबंधों की स्थिति की परवाह किए बिना, भारत को अपनी स्वतंत्रता के बाद से एक अपरिहार्य चुनौती का सामना करना पड़ रहा है – यह सशस्त्र बलों की न्यूनतम ज़रूरतों को बेहतर ढ़ंग से पूरा करने वाले सैन्य उत्पादों को देश में निर्माण करने की असमर्थता है और इस चुनौती का देश सीधे तौर पर सामना कर रहा है. जैसा कि अमेरिका, रूस और यहां तक कि चीन में  एक सैन्य औद्योगिक परिसर (एमआईसी) की मौजूदगी नहीं है, भारतीय सेना की सभी सेवा शाखाओं की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाने की भारतीय क्षमता को आगे भी झेलना पड़ेगा. एस-400  की डील प्रतीकात्मक तौर पर एक बड़ी डील है लेकिन यह लंबे समय तक भारतीय कमी का प्रतीक रहेगा. क्योंकि अगर भारत ने पैट्रियट या थाड (THAAD) सिस्टम के लिए एस-400 को प्रतिस्थापित किया है तो ऐसा कर नई दिल्ली ने एक की जगह दूसरे आपूर्तिकर्ता के ऊपर निर्भरता पैदा कर दी है. दूसरी ओर, भारत को लॉकहीड या रेथिऑन निर्मित एसएएम ख़रीदने से इनकार करने के लिए अमेरिका को विदेशी सैन्य आपूर्ति के लिए उसके दुष्चक्र में फंसने और अमेरिका से कुछ हथियार प्रणाली ख़रीदकर उसकी भरपाई करनी पड़ सकती है. इसके विपरीत, अमेरिका से सोर्सिंग क्षमताएं भारत-रूस रक्षा संबंधों के लिए उनके नकारात्मक परिणामों के बिना मुमकिन नहीं कही जा सकती हैं.  जब तक भारत महत्वपूर्ण हथियार प्रणालियों पर इस विदेशी निर्भरता को सीमित नहीं कर पाता है तब तक एक या दो हथियार आपूर्तिकर्ताओं के साथ तनाव की संभावनाएं बनी रहेंगी, जो हो सकता है कि दुनिया की प्रमुख शक्तियां भी होंगी. हथियारों की  स्वदेशी निर्भरता से बाहरी दबाव को सीमित किया जा सकेगा और कई मायनों में उन्हें अप्रासंगिक बना दिया जाएगा. दूसरी ओर विदेशी हथियारों पर निर्भरता वैश्विक भूराजनीति के इस दौर में भारत पर हमेशा आपूर्तिकर्ता देश द्वारा दबाव बनाने में सक्षम होगा  लिहाजा कई बार इन मुल्कों के तनाव का भी असर भारत पर होगा.

यदि नई दिल्ली को वॉशिंगटन या मॉस्को के साथ भविष्य में होने वाले विवादों  को रोकना है, तो प्राथमिकता के तौर पर भारत को इसके लिए हर संभव प्रयास करना होगा साथ ही हथियारों पर अगर बाहरी निर्भरता को दूर करना है तो मिसाइलों के हर वर्ग में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में कोई कसर नहीं छोड़नी होगी. 

बेशक, मिसाइल विकास के क्षेत्र में, भारत को अपने उन्नत वेरिएंट सहित एस्ट्रा, पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्च सिस्टम्स (एमआरबीएलएस) जैसी हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को विकसित करने में सफलता मिली है, पृथ्वी शॉर्ट रेंज बैलिस्टिक मिसाइलों (एसआरबीएम) से लेकर इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल (आईआरबीएमएस) की अग्नि श्रृंखला तक, के-4 सबमरीन लॉन्चड बैलिस्टिक मिसाइल (एसएलबीएम) और नवीनतम प्रलय एसआरबीएम तक. और सुपरसोनिक मिसाइल एसिस्टेड टॉरपीडो (एसएमएआरटी) लॉन्च की है. इसके अतिरिक्त, भारतीय सशस्त्र सेवाओं ने ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइलों के सभी वेरिएंट को भी मैदान में उतारा है, हालांकि भारत और रूस के बीच एक ज्वाइंट वेंचर (जेवी) है, जो फिर से यह दर्शाती है कि भारत अभी भी रूस पर हथियारों के लिए निर्भर है. हालांकि,  वायु रक्षा क्षेत्र  में भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) को अभी तक एस-400 के बराबर एक विश्वसनीय सैन्य क्षमता विकसित करनी होगी.  भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की इन्वेंट्री में, भारतीय नौसेना (आईएन) के जंगी जहाजों पर एकीकरण के लिए आकाश एनजी और एक वर्टिकल प्रक्षेपण शॉर्ट रेंज सैम जैसे कम दूरी के एसएएम हैं, जो डीआरडीओ के दावों के बावजूद अभी भी ना केवल चीन और पाकिस्तान का मुकाबला करने के लिए तैनाती से पहले अतिरिक्त परीक्षण के दौर से गुजर सकते हैं, बल्कि समान रूप से रूस जैसे आपूर्तिकर्ताओं की देखरेख पर भारत की निर्भरता को कम करते हैं.

आगे की सोच

दुर्भाग्यवश, भारत आज मॉस्को और वाशिंगटन के बीच रणनीतिक संबंधों की स्थिति का ना चाहते हुए भी शिकार है.  हालांकि, नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच रणनीतिक संबंधों की मज़बूती के साथ-साथ मॉस्को और नई दिल्ली के बीच संबंधों के बल पर भरोसा जताने के लिए हथियार सौदों पर दबाव को नज़रअंदाज़ करना अच्छी बात है.  अमेरिका और रूस संप्रभु राज्य हैं और उनकी निश्चिंतता को एक सीमा के आगे हलके में नहीं लिया जा सकता है, ख़ासकर जब भारत को चीन और पाकिस्तान से वास्तविक सैन्य ख़तरों का सामना करना पड़ता है. यदि नई दिल्ली को वॉशिंगटन या मॉस्को के साथ भविष्य में होने वाले विवादों  को रोकना है, तो प्राथमिकता के तौर पर भारत को इसके लिए हर संभव प्रयास करना होगा साथ ही हथियारों पर अगर बाहरी निर्भरता को दूर करना है तो मिसाइलों के हर वर्ग में स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनने में कोई कसर नहीं छोड़नी होगी. यह सुनिश्चित करने के लिए, मिसाइल क्षमताएं ही हथियारों का एकमात्र आधार नहीं हैं, उन्हें भारत को पूरी तरह से स्वदेशी बनाने की ज़रूरत है, यहां तक कि विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से नई दिल्ली जो हथियार प्रणाली लेता है उसे भी. स्वतंत्रता के बाद से ही भारत सरकार घरेलू रक्षा उद्योग में स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध रही है. लिहाजा तमाम कमियों के बाद भी इस लक्ष्य को छोड़ने का कोई कारण नहीं बनता है.

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Author

Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti

Kartik Bommakanti is a Senior Fellow with the Strategic Studies Programme. Kartik specialises in space military issues and his research is primarily centred on the ...

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