Author : Ayjaz Wani

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Published on Apr 03, 2023 Updated 0 Hours ago

कश्मीर घाटी में मूलभूत ढांचे की परियोजनाएं पूरी होने से आर्थिक विकास और सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा और सुरक्षा के मामले में बढ़त हासिल होगी.

कश्मीर में मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं की मदद से एकीकरण की ‘बाधा’ को दूर करने की कोशिश!

16 मार्च को कश्मीर के रामबन ज़िले के रामसू इलाक़े में बन रही पंथियाल स्थित बहुप्रतीक्षित T-5 सुरंग जनता के लिए खोल दी गई. 870 मीटर लंबी येसुरंग चार साल में पूरी की गई और इसे बनाने में 100 करोड़ रुपए की लागत आई. सामरिक रूप से अहम राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (NH44) का पंथियाल सेहोकर जाने वाला हिस्सा, इस परियोजना की सबसे नाज़ुक कड़ी थी; यहां अक्सर होने वाले भूस्खलन के कारण ड्राइवर और मुसाफिर इसे मौत का जालमानते थे. पिछले साल सितंबर में भूस्खलन और भौगोलिक अस्थिरता के कारण, इस रास्ते से परिवहन रोक देना पड़ा था. इसके कारण कश्मीर के सेबउद्योग को लगभग 1500 करोड़ रुपए का नुक़सान उठाना पड़ा था, जो कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. सड़क बंद कर देने के कारण हो रहे नुक़सान केविरोध में फल उत्पादकों और कारोबारियों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए थे. भारत के कुल सेब उत्पादन का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा कश्मीर घाटी मेंपैदा होता है, जो जम्म-कश्मीर संघ शासित क्षेत्र की कुल GDP में 8.2 प्रतिशत का योगदान देना है. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने संपर्क बढ़ाने वाली कईपरियोजनाओं को पूरा करने में तेज़ी ज़रूर दिखाई, जिसमें पंथियाल की T-5 सुरंग भी शामिल है. लेकिन, उसने ऐसा केंद्र सरकार के दखल के बाद जाकरकिया. कश्मीर को देश के बाक़ी हिस्सों से जोड़ने वाली परिवहन की कई परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, जो इस इलाक़े को आर्थिक रूप से परिवर्तितकरेंगी. एक बार पूरी हो जाने के बाद, ये परियोजनाएं कश्मीर के लोगों के भारत की मुख्य भूमि से एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगी और यहां पाकिस्तानद्वारा पाली-पोसी जा रही अलगाववाद की भावना को भी काफ़ी हद तक कमज़ोर करेंगी.

कश्मीर को देश के बाक़ी हिस्सों से जोड़ने वाली परिवहन की कई परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, जो इस इलाक़े को आर्थिक रूप से परिवर्तित करेंगी. एक बार पूरी हो जाने के बाद, ये परियोजनाएं कश्मीर के लोगों के भारत की मुख्य भूमि से एकीकरण का मार्ग प्रशस्त करेंगी और यहां पाकिस्तान द्वारा पाली-पोसी जा रही अलगाववाद की भावना को भी काफ़ी हद तक कमज़ोर करेंगी.

कश्मीर में संपर्क बढ़ाने वाली कई परियोजनाएं

पिछले एक दशक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने तेज़ी से आर्थिक परिवर्तन लाने के लिए कनेक्टिविटी के मूलभूत ढांचे को मज़बूतबनाने की दिशा में अभूतपूर्व छलांगें लगाई है. सरकार विश्व स्तर के हाईवे, हवाई अड्डे और हाई स्पीड रेलवे की नई लाइनें बना रही है, ताकि सड़क, रेलया वायु मार्ग से आसानी और तेज़ी से आवाजाही हो सके. भारत हर साल 10 हज़ार किलोमीटर नए राजमार्ग बना रहा है. देश में हवाई अड्डों की संख्यादोगुनी हो गई है और ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों का जाल इस साल बढ़कर 729,000 किलोमीटर लंबा हो गया है. इन परियोजनाओं के लिए केंद्रीय बजट मेंआवंटन में भारी वृद्धि की गई है और ये अब बढ़कर GDP का 1.7 प्रतिशत हो गया है, और प्रधानमंत्री ख़ुद हर महीने प्रगति की समीक्षा करते है.

इसी तरह इनमें से एक परियोजना कश्मीर घाटी को सीधे रेल नेटवर्क से जोड़ने की है. भू सामरिक रूप से अहम कश्मीर घाटी अब तक देश के रेलवेनेटवर्क से ठीक तरह से नहीं जुड़ी है. लेकिन अब केंद्र सरकार इस पर विशेष रूप से ध्यान दे रही है. 272 किलोमीटर लंबी उधमपुर- श्रीनगर- बारामूलारेल लिंक (USBRL) परियोजना को 2002 में हीराष्ट्रीय परियोजनाघोषित कर दिया गया था. उम्मीद की जा रही है कि ये प्रोजेक्ट 2025 तक पूरा होजाएगा. USBRL के 4.4 अरब डॉलर के मंज़ूर किए गए बजट को चार चरणों में बांटा गया था. बारामुला से क़ाज़ीगुंड के बीच 118 किलोमीटर लंबाहिस्सा 2009 में शुरू हो गया था. क़ाज़ीगुंड से बनिहाल के बीच 19 किलोमीटर लंबी रेल लाइन 2013 में चालू हो गई थी और 25 किलोमीटर लंबाउधमपुर- कटरा सेक्शन 2014 में शुरू कर दिया गया था. बनिहाल और कटरा के बीच बाक़ी बचे 111 किलोमीटर लंबे हिस्से को पूरा करने का काम जारीहै. ये हिस्सा हिमालय के बेहद मुश्किल हिस्से से गुज़रता है. एक बार पूरा हो जाने के बाद 38 सुरंगों वाली USBRL परियोजना, भारत के इंजीनियरों केकमाल की मिसाल बनेगी. इसमें 12.77 किलोमीटर की सबसे लंबी T49 सुरंग भी शामिल होगी.

देश में हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी हो गई है और ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों का जाल इस साल बढ़कर 729,000 किलोमीटर लंबा हो गया है. इन परियोजनाओं के लिए केंद्रीय बजट में आवंटन में भारी वृद्धि की गई है और ये अब बढ़कर GDP का 1.7 प्रतिशत हो गया है, और प्रधानमंत्री ख़ुद हर महीने प्रगति की समीक्षा करते है.

इससे भी बड़ी बात ये कि दुनिया का सबसे ऊंचा चिनाब पुल (1315 मीटर) और केबल के सहारे खड़ा पहला रेलवे पुल, इस रेल संपर्क परियोजना कीख़ूबसूरती को बढ़ाने वाला है. हालांकि, ये परियोजना जो क़ानूनी बाधाओं, जटिल भौगोलिक स्थिति, पहुंचने लायक़ जगहों और क़ानून व्यवस्था केमसलों के कारण समय से पूरी नहीं हो सकी है. लेकिन अब प्रधानमंत्री और रेल मंत्री इस परियोजना की प्राथमिकता के आधार पर निगरानी कर रहे हैं. उम्मीद की जा रही है कि ये परियोजना इस साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी. हाल ही में उत्तरी रेलवे ने मशहूर चिनाब पुल से होकर ट्रैक पर चलनेवाले वाहन परीक्षण के लिए गुज़ारे हैं.

2011 में भारत सरकार ने सामरिक रूप से अहम नेशनल हाईवे 44 के 295 किलोमीटर लंबे हिस्से को चौड़ा करके चार लेन का बनाने का काम भी शुरूकिया है. चार लेन के विस्तार का काम छह हिस्सों में बांटा गया था, जिसमें से चार हिस्सों का काम पूरा हो चुका है. ख़तरनाक इलाक़ा, धसंती ज़मीन औरदूसरी भौगोलिक चुनौतियों के कारण बनिहाल और रामबन (36 किलोमीटर) और रामबन- उधमपुर (43 किलोमीटर) लंबी सड़क के रास्ते में व्यापकबदला किया है. अब इसकी संशोधित लागत 5118 करोड़ रुपए हो गई है. बनिहाल से रामबन और उधमपुर तक जाने वाले नेशनल हाईवे 44 के इस 79 किलोमीटर लंबे हिस्से में 14 सुरंग शामिल होंगी, जिनमें हाल ही में खोली गई पंथियाल सुरंग भी शामिल है. सामरिक रूप से अहम इस सड़क के निर्माणका काम अगस्त 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा, जिससे श्रीनगर से जम्मू आने जाने का सफर चार घंटे में पूरा हो सकेगा. अभी इसमें 12 घंटे लगते है.

एकीकरण की खाई को पाटना

जम्मू-कश्मीर के भीतर, पूरे क्षेत्र में और भारत के बाक़ी हिस्सों तक आने जाने के लिए भरोसेमंद कनेक्टिविटी और परिवहन, देश के आर्थिक विकास कीदृष्टि से बहुत अहम है. ख़राब कनेक्टिविटी ने घाटी की 70 प्रतिशत आबादी के आर्थिक विकास पर नकारात्मक असर डाला है, जो खेती और जल्दीख़राब हो जाने वाले फलों की खेती पर निर्भर है. मूलभूत ढांचे की इन परियोजनाओं के पूरा होने से इस क्षेत्र के बाग़बानी उद्योग के विकास को बढ़ावामिलेगा, जो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा है. सड़कों की तुलना में रेलवे से परिवहन की व्यवस्था चार गुनी अधिक सस्ती और छह गुना कम ऊर्जाखपत वाली है. इसलिए, रेलवे कनेक्टिविटी से केवल परिवहन की लागत में कमी आएगी, बल्कि जल्दी नष्ट हो जाने वाले खेती के उत्पादों कानुक़सान भी बहुत कम हो जाएगा और इसके साथ साथ ताज़ा फल भारत के अलग अलग हिस्सों के बाज़ारों तक पहुंचाए जा सकेंगे. इसी तरह कृषिउत्पादों को राजमार्गों से मुक्त रूप से ले जा पाने की सुविधा घाटी के किसानों की क़िस्मत बदलने वाला साबित होगी.

मूलभूत ढांचे की ये परियोजनाएं क्षेत्र के पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा देंगी और वो अपनी पूरी संभावना को प्राप्त कर सकेगा और जम्मू-कश्मीर की तेज़ीसे बढ़ती बेरोज़गारी की दर में कमी ला सकेगा, क्योंकि कनेक्टिविटी के इन गलियारों के साथ साथ पर्यटन के नए ठिकाने भी विकसित होंगे. 2019 केबाद से जम्मू-कश्मीर एक बार फिर से भारत के प्रिय पर्यटन स्थल के रूप में उभरा है; 2022 में 1.88 करोड़ घरेलू और विदेशी सैलानी जम्मू-कश्मीर आएथे. पर्यटन उद्योग के दोबारा ज़िंदा होने का मतलब होगा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन को पर्यटन के लिए अतिरिक्त मूलभूत ढांचे का विकास करना होगा. कश्मीर घाटी के होटलों में इस वक़्त केवल 62,448 बेड ही उपलब्ध हैं और वो भी पर्यटन के लोकप्रिय ठिकानों जैसे कि डल झील, पहलगाम औरगुलमर्ग के आस-पास मौजूद हैं. पीर की गली, दूधपथरी, गंगबल, सोनमर्ग और यूस्मार्ग में पर्यटन की बुनियादी सुविधाओं की कमी है. जम्मू-कश्मीरप्रशासन को चाहिए कि वो सैलानियों की बढ़ती तादाद को सुविधाएं देने के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे का विकास करें और पर्यटन के नए ठिकानों कोबढ़ावा दे.

ये परियोजनाएं क्षेत्र के पर्यटन उद्योग को भी बढ़ावा देंगी और वो अपनी पूरी संभावना को प्राप्त कर सकेगा और जम्मू-कश्मीर की तेज़ी से बढ़ती बेरोज़गारी की दर में कमी ला सकेगा, क्योंकि कनेक्टिविटी के इन गलियारों के साथ साथ पर्यटन के नए ठिकाने भी विकसित होंगे.

वहीं दूसरी ओर, भारत के अन्य क्षेत्रों के साथ बिना बाधा की कनेक्टिविटी से कश्मीर के स्थानीय छात्रों को पढ़ाई भारत और रोज़गार के लिए देश के अन्यइलाक़ों में जाने में मदद और प्रोत्साहन मिलेंगे. भारत के अन्य इलाक़ों के साथ अधिक मेल-जोल से कश्मीर की मिली-जुली संस्कृति को दोबारा ज़िंदाकिया जा सकेगा, जो बेहद ज़रूरी है. इससे क्षेत्र के समाज का देश के बाक़ी हिस्सों से अधिक एकीकरण हो सकेगा. और सबसे अहम बात ये कि मूलभूतढांचे की इन परियोजनाओं से भारत को सामरिक बढ़त भी हासिल होगी. किसी भी स्थिति में भारत सैन्य उपकरणों और सैन्य बलों को तेज़ी से सीमावर्तीइलाक़ों में पहुंचा सकेगा.

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