भारत की जनसंख्या ने हाल ही में चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश बनने का दर्ज़ा हासिल किया और यह ओहदा भारत को उन्नत देशों में श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए एक विशेष अवसर प्रदान करता है. 1.4 बिलियन से अधिक की आबादी, जिनमें से लगभग 65 प्रतिशत कामकाज़ लायक उम्र (15-64 वर्ष) के व्यक्ति हैं और 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच वाले नागरिक 27 प्रतिशत से अधिक है, ऐसे में भारत की युवा डेमोग्राफ़िक प्रोफ़ाइल वैश्विक श्रम बाज़ार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की बहुत ज़्यादा क्षमता रखती है.
भारत के जॉब मार्केट में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे है क्योंकि भारत कोविड-19 के बाद 7.8 प्रतिशत की GDP वृद्धि दर के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है. मजबूत प्राइवेट कंसम्पशन और सार्वजनिक निवेश से प्रेरित तेजी से हो रहा आर्थिक विकास भारत को 2026-27 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है. हाल ही में जारी ORF रिपोर्ट के अनुसार से एम्प्लॉयमेंट इलास्टिसिटी एस्टिमेट्स के अनुमान विभिन्न सेक्टर, क्षेत्रों और जेंडर में महत्वपूर्ण अंतर बयान कर रहे है. सेवा क्षेत्र, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों (0.53) और महिलाओं (0.31) के बीच, सबसे अधिक दीर्घकालिक एम्प्लॉयमेंट इलास्टिसिटी प्रस्तुत कर रहा है.
हाल ही में जारी ORF रिपोर्ट के अनुसार से एम्प्लॉयमेंट इलास्टिसिटी एस्टिमेट्स के अनुमान विभिन्न सेक्टर, क्षेत्रों और जेंडर में महत्वपूर्ण अंतर बयान कर रहे है.
दूसरी ओर, कई उच्च आय वाले देश तेजी से डेमोग्राफ़िक बदलाव का अनुभव कर रहे हैं जिसके मुख्य कारण आबादी की बढ़ती उम्र और वहां की घटती जन्म दर है. 2050 तक, इन देशों में काम करने लायक उम्र के लोगो की आबादी 92 मिलियन से कम हो जाएगी और जबकि उनकी बुजुर्ग आबादी (65 और उससे अधिक उम्र वाले) 100 मिलियन से अधिक हो जाएंगे. यह डेमोग्राफ़िक बदलाव एक बहुत बड़े असंतुलन को जन्म देता है. काम करने की उम्र वाले लोगों की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वे पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में योगदान करने के लिए ज़रूरी हैं जो बुजुर्ग पीढ़ी के प्रति योगदान करते हैं और इस प्रकार वित्तीय और सामाजिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करते हैं.
वर्तमान अनुपात को बनाए रखने के लिए उन्नत देशों को अगले 30 वर्षों में 40 करोड़ से अधिक नए श्रमिकों की आवश्यकता होगी और यह एक ऐसी आवश्यकता है जिसे ये देश अकेले घरेलू श्रमिक बल से पूरा नहीं कर सकते हैं. इससे यह बात स्पष्ट होती है कि भारत सही नीतिगत निर्णय और कदम उठाकर अपने श्रमिक बल का उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मांगों के साथ मिलान कर सकता है, जिससे उन उन्नत देशों और भारत दोनों का आर्थिक विकास और आर्थिक एकीकरण सुनिश्चित हो पाएगा. भारत की आबादी युवा भी है, और बढ़ भी रही है जबकि कई उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को श्रमिक बल के निरंतर कम होने की दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, जर्मनी में कामकाज़ी उम्र की आबादी में 2050 तक 1 करोड़ की गिरावट आने का अनुमान है और जबकि बुजुर्ग आबादी में काफ़ी वृद्धि होगी। जापान, इटली और अन्य विकसित देशों में भी इसी तरह के रुझान देखे गए हैं.
चित्र 1: चयनित OECD देशों में वर्किंग एज पॉपुलेशन (20-64 वर्ष की आयु) में अनुमानित गिरावट
स्रोतः वर्ल्ड इकनोमिक फोरम
लेबर मोबिलिटी यानी विभिन्न देशों के बीच श्रमिकों के आवाज़ाही की छूट इन संभावित प्रवासियों को ज़रूरतमंद एम्प्लायर के साथ जोड़ सकती है और इससे वैश्विक समानता और उत्पादकता बढ़ सकती है. उदाहरण के लिए, अमीर देशों में जाने वाले श्रमिक अपनी आय में 6 से 15 गुणा वृद्धि की उम्मीद कर सकते हैं और इससे गरीबी में काफ़ी कमी आएगी. भारत का डेमोग्राफ़िक लाभ पर्याप्त संभावित श्रमिक बल प्रदान करने की क्षमता रखता है. अनुमान है कि भारत सहित कम आय वाले देशों में 2050 तक दो अरब नए कामकाज़ी योग्य उम्र के लोग होंगे यह अतिरिक्त श्रमिक बल उन्नत देशों में श्रमिकों की मांग और आपूर्ति के बीच की खाई को पाटने का अवसर प्रदान करता है.
लेबर मोबिलिटी की चुनौतियों का समाधान
लेबर मोबिलिटी के सकारात्मक प्रभाव व्यक्तिगत प्रवासियों से भी कई अधिक होते हैं. प्रवासी श्रमिकों द्वारा घर वापस भेजी गई राशि उनके अपने देशों की अर्थव्यवस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. 2022 में, भारत को इस तरह भेजी गई राशि (रेमिटेंस) के तौर पर 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्राप्त हुए और इसके साथ भारत 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रेमिटेंस के आंकड़े को पार करने वाला पहला देश बन गया. भारत के बाद मेक्सिको, चीन, फिलीपींस और फ्रांस का स्थान आता है. यह तथ्य दक्षिण एशिया के प्रवासी श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है, जिसमें भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश शीर्ष रेमिटेंस प्राप्तकर्ताओं में शामिल हैं. ये कोष गरीबी में कमी, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और समग्र आर्थिक विकास में योगदान करते हैं. हालांकि, महामारी ने प्रवासी श्रमिकों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, विशेष रूप से लो स्किल्ड नौकरियों में. महामारी के दौर में कई लोगों की नौकरी भी गई और उन पर ऋण भी चढ़ गया.
इन कुछ स्पष्ट दिखने वाले फ़ायदों के बावजूद, लेबर मोबिलिटी के लिए मददगार कई सिस्टम्स ज़रूरत के अनुकूल नहीं है और मांग को संभालने के लिए अपर्याप्त हैं. यह प्रणालियाँ नकारात्मक पब्लिक धारणाओं का भी शिकार है. कई उच्च आय वाले देशों में आप्रवासी या इमिग्रेंट्स विरोधी भावनाएं और प्रतिबंधात्मक आप्रवासन नीतियां संभावित प्रवासियों के लिए बाधाएं पैदा करती हैं. ये सांस्कृतिक मुद्दे अक्सर ऐसी नीतियों की ओर ले जाते हैं जो आप्रवासियों या इमिग्रेंट्स की संख्या को सीमित करती हैं और उनके लिए पर्याप्त समर्थन प्रणाली प्रदान करने में विफ़ल रहती हैं. इसके अलावा, कई परिस्थितियों में प्रवास से जुड़ी कानूनी और नौकरशाही की बाधाएं भी चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं. कई देशों में जटिल इमिग्रेशन की प्रक्रियाएं हैं जो संभावित प्रवासियों को वहां जाने से रोक सकती हैं. इसके अतिरिक्त, प्रवासियों को नए वातावरण के अनुकूल बनाने और समाज में एक उत्पादक सदस्य बनने में मदद करने के लिए व्यापक इंटीग्रेशन के पहल की भी अक्सर कमी होती है.
इस समस्या का एक संभावित समाधान लेबर मोबिलिटी को सुविधाजनक बनाने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ाना है.
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए एक रणनीतिक और अच्छी तरह से समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है. इस समस्या का एक संभावित समाधान लेबर मोबिलिटी को सुविधाजनक बनाने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों को बढ़ाना है. इमीग्रेशन की प्रक्रियाओं को सरल बनाना, माइग्रेशन के अवसरों के बारे में स्पष्ट जानकारी प्रदान करना और प्रवासियों के लिए सहायता सेवाएं प्रदान करना प्रक्रिया को अधिक सुलभ और कुशल बना सकता है. इसके अलावा, जन जागरूकता अभियानों के माध्यम से नकारात्मक पब्लिक धारणाओं को बदलने की कोशिश करने और प्रवासियों के सकारात्मक योगदान को उजागर करने से लेबर मोबिलिटी के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाने में मदद मिल सकती है.
भारतीय श्रमिकों का रणनीतिक एकीकरण
भारत का लक्ष्य सहयोग और आपसी लाभ पर ध्यान केंद्रित करते हुए "विश्व गुरु" (वैश्विक शिक्षक) से "विश्व बंधु" (वैश्विक भागीदार) बनने का है. यह बदलाव वैश्विक लेबर मार्केट की मांगों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए आवश्यक है. इस परिवर्तन को सुगम बनाने के लिए, भारत को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अपने कार्यबल को आवश्यक कौशल से लैस करने के लिए कौशल की पहल में भारत में निवेश करना चाहिए.
भारत से वैश्विक लेबर माइग्रेशन के लिए सक्षम स्थितियों की पहचान करके लेबर मोबिलिटी को बढ़ाने के लिए लेबर मोबिलिटी के लागत को कम करना होगा और भारतीय लेबर मार्केट में लौटने वाले श्रमिकों के सुचारू पुनः एकीकरण को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है.
अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भारतीय श्रमिकों की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल प्रदान करने की मुहिम महत्वपूर्ण हैं. इन पहलों को प्रौद्योगिकी क्षेत्र जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों में तकनीकी कौशल विकास, उन्नत देशों में ख़ास लेबर फोर्स की कमी को दूर करने के लिए, पेशेवर स्वास्थ्य सेवा प्रशिक्षण और संचार कौशल और सांस्कृतिक अनुकूलन क्षमता को बढ़ाने के लिए भाषा और सांस्कृतिक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसके अतिरिक्त, भारतीय शैक्षणिक और व्यावसायिक संस्थानों में निवेश एक मजबूत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर सकता है जो वैश्विक मानकों पर भी ख़रा उतरता है.
उच्च अर्थव्यवस्था वाले देशों में भारतीय श्रमिकों के रणनीतिक एकीकरण में कई कदम शामिल होने चाहिए. सबसे पहले, उन्नत देशों में उच्च मांग वाले क्षेत्रों की पहचान करने की आवश्यकता है जैसे की स्वास्थ्य सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्र जो श्रमिकों की भारी कमी का सामना करते हैं. दूसरा, भारतीय श्रमिकों की उत्पादकता और समग्र वैश्विक वित्तीय प्रभाव का आकलन करने सहित श्रम बाज़ार ढांचे का उपयोग करके इन क्षेत्रों में भारतीय श्रम को एकीकृत करने के आर्थिक प्रभावों का विश्लेषण करना ज़रूरी है. तीसरा, भारत से वैश्विक लेबर माइग्रेशन के लिए सक्षम स्थितियों की पहचान करके लेबर मोबिलिटी को बढ़ाने के लिए लेबर मोबिलिटी के लागत को कम करना होगा और भारतीय लेबर मार्केट में लौटने वाले श्रमिकों के सुचारू पुनः एकीकरण को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है.
अंत में, वैश्विक मांग के साथ भारत के प्रचुर मात्रा में कार्यबल को प्रभावी ढंग से इंटीग्रेट करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें लक्षित कौशल की और पहल करना, लेबर मोबिलिटी के ढांचे के सुदृढ़ीकरण और प्रवासी श्रमिकों के लिए मजबूत समर्थन प्रणाली को बनाना शामिल है. इस तरह के रणनीतिक प्रयासों के माध्यम से, भारत वैश्विक लेबर फ़ोर्स की आपूर्ति कर सकता है और मांग को कम कर सकता है और अंतर्राष्ट्रीय लेबर मार्केट में ख़ुद को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित कर सकता है.
सौम्या भौमिक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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