यह The China Chroniclesसीरीज की 62वीं कड़ी है।
अन्य आलेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
म्यांमार को कूटनीतिक संतुलन बनाये रखने का दबाव महसूस हो रहा है। रोहिंग्या संकट की वजह से पश्चिमी देशों ने नेपिदौ से दूरी बना रखी है और इस सूरत में चीन की तरफ उसका झुकाव बढ़ता जा रहा है। चीन उसका उत्तरी पडोसी है जिसकी तरफ वो पहले भी राजनीतिक और आर्थिक समर्थन के लिए झुका है, इस स्थति का बीजिंग पूरा फायदा उठाने की तैयारी में है। लेकिन ये राह आसान नहीं।
म्यांमार में सैनिक शासन के दौरान चीन और म्यांमार में बहुत घनिष्ठ सामरिक सम्बन्ध रहे हैं, लेकिन जब सैनिक शासन की जगह २०१० में लोकतंत्र ने ली तो चीन म्यांमार के रिश्ते अनिश्चितता के दौर में आ गए। उसके बाद के सालों में म्यांमार ने चीन प्रायोजित दो प्रोजेक्ट रद्द कर दिए, २०११ में मैत्सोन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और २०१३ में लेत्पेदौंग की तांबे की खान। इस से दोनों के बीच एक तनावपूर्ण रिश्ते की शुरुआत हुई।
बदलते समय के मुताबिक बीजिंग ने म्यांमार नीति में बदलाव किया है ताकि दक्षिण पूर्वी इस देश में चीन के खिलाफ बढती भावना पर रोक लगाया जा सके और अपने मूल हितों को सुरक्षित रखा जा सके जिसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है नेपिदौ और वाशिंगटन के बीच सामरिक संबंधों को सीमित करना।
जब २०१६ में औंग सांग सुची के नेतृत्व वाली नैशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने सत्ता संभाला तो लोकप्रिय धरना के विरुद्ध्ह चीन और पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में एक संतुलित नीति अपनाई। हो सकता है कि चीन ने म्यांमार की तरफ अपनी नीति में जो बदलाव किये हैं उसकी वजह से फायदा हुआ हो लेकिन साथ ही नेपिदौ ने जो सामरिक संतुलन बनाने का प्रयास किया है उसकी वजह से भी कूटनीतिक संतुलन बन रहा है।
म्यांमार ने जैसे ही चीन की वित्तीय मदद से चल रहे दो प्रोजेक्ट रद्द किये, २०११ में मैत्सोन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और २०१३ में लेत्पेदौंग ताम्बा माइन, तब से ही दोनो देशों के संबंधों में संकट का दौर शुरू हो गया था।
चाइना म्यांमार आर्थिक गलियारा
म्यांमार, चीन की बेल्ट रोड परियोजना में तब शामिल हुआ जब मई २०१७ में कौंसिलर ऑंग सांग सुची ने अन्तार्राष्ट्रीय सहयोग के लिए चीन की बेल्ट रोड फोरम में हिस्सा लिया। सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट और मेरीटाइम सिल्क रोड इनिशिएटिव के तहत इस दौरे में एक MoU पर हस्ताक्षर हुआ।
बेल्ट रोड पहल के तहत, दो आर्थिक गलियारा – बांग्लादेश, चाइना इंडिया म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर और चाइना इंडोचाइना प्रायद्वीप कॉरिडोर में अपने भौगोलिक स्थिति की वजह से म्यांमार शामिल है। चीन और नेपिदौ दोनों ही बेल्ट रोड परियोजना में म्यांमार की अहमियत को पहचानते हैं।
जब म्यांमार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोहिंग्या संकट की वजह से दबाव महसूस कर रहा था उसी समय चीन ने चाइना म्यांमार आर्थिक कोरिडोर का प्रस्ताव दिया। अपने देश में रोहिंग्या मुसलमानों के साथ म्यांमार की सरकार ने जिस तरह का बर्ताव किया है उसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय जांच का दबाव उस पर बना हुआ है। बीजिंग इस बात को अच्छी तरह समझता है कि म्यांमार को चीन की कूटनीतिक और राजनीतिक मदद की ज़रूरत है ताकि अंतर्राष्ट्रीय जांच को टाला जा सके।
जब म्यांमार में सुधार के दौर में नेपिदौ के साथ बीजिंग के रिश्ते एक मुश्किल दौर में थे उसी समय चीन ने बेल्ट रोड स्कीम के तहत वैकल्पिक आर्थिक गलियारे पर काम शुरू कर दिया जिसमें शामिल है चाइना पाकिस्तान आर्थिक कोरिडोर, चाइना लाओस थाईलैंड (CLT) रोड और रेलवे कॉरिडोर और हाल के सालों में चाइना इंडिया नेपाल कॉरिडोर। चूँकि अब नेपिदौ और बीजिंग के बीच संबंध सुधर गए हैं और वो चीन की पहल को स्वीकार करने के लिए बेहतर तैयार है तो हो उम्मीद है कि बीजिंग CMCE को ज्यादा प्राथमिकता दे, क्यूंकि ये हिन्द महासागर और उसके आगे तक पहुँचने का बीजिंग के लिए सबसे छोटा रास्ता है।
CMEC के तहत चीन के युनान प्रान्त को म्यांमार के बड़े शहरों से जोड़ने के लिए रेल और रोड के बड़े प्रस्ताव दिए जा रहे हैं।
पिछले हफ्ते म्यांमार के एक अधिकारी के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन और मयंमार के बीच CMPC पर १५ पॉइंट का Mou हुआ है। ये कॉरिडोर चीन के युनान से केंद्रीय म्यांमार में मांडले तक जाएगा और फिर दक्षिण में यांगून और पश्चिम में कैऔक्पू SEZ तक एक Y आकर का कॉरिडोर बनाएगा जिसके तहत मूलभूत ढांचा का विकास, निर्माण, कृषि,, ट्रांसपोर्ट, फाइनेंस, और मानव संसाधन विकास, रिसर्च और तकनीक का विकास शामिल है ताकि चाइना म्यांमार आर्थिक कॉरिडोर ( CMEC ) का विकास किया जा सके।
CMEC के तहत बड़ी सडकें और रेल लाइन के ज़रिये चीन के युनान प्रान्त को म्यांमार के बड़े शहरों से जोड़ने का प्रस्ताव है। मार्च २०१८ में दोनों देशों ने Mou पर दस्तखत किये हैं जिसके तहत ये अध्यन किया जायेगा कि दो बड़े कॉरिडोर का बनाना कितना संभव है- Mandalay –Tigyaing –Muse एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट और Kyaukpyu-Naypyidaw हाई वे प्रोजेक्ट। बहरहाल ज़रूरी नहीं है कि सब कुछ बीजिंग की चाह के मुताबिक ही हो जाए। क्यूंकि म्यांमार में चीन के बड़े प्रोजेक्ट्स को लेकर शंका का माहौल काफी बढ़ गया है।
कैऔक्पू डीप सी पोर्ट
हाल ही में चीन के एक बड़े प्रोजेक्ट म्यांमार में विवाद में घिर गया है। ये हैं रखिन राज्य में कैऔक्पू SEZ। ये १० बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रोजेक्ट है जिसके तहत एक नए बंदरगाह का विकास होना है जिसकी लागत 7।5 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और एक औद्योगिक पार्क जिसकी लागत २।५ बिलियन डॉलर है। २०१५ में इसे एक ऐसे समूह को दे दिया गया है जिसका नेतृत्व एक चीनी निवेश कंपनी कर रही है, CITIC ग्रुप।
पिछले ही हफ्ते म्यांमार के योजना और वित्त मंत्री Soe Win ने कहा कि वो चीन से बात कर के इस प्रोजेक्ट को और सीमित करने को कहेंगे। कैऔक्पू SEZ प्रोजेक्ट के स्केल को छोटा करने के लिए मंत्री ने आर्थिक तर्क दिया और कहा कि जितना बड़ा प्रोजेक्ट होता है उतनी ही बड़ी ज़िम्मेदारी उसके पैसे वापस करने की होती है।
कुछ महीने पहले Sean Turnell , सुची के वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार ने भी ये फ़िक्र जताते हुए कहा कि 7।५ बिलियन डॉलर की लागत के बंदरगाह म्यांमार की ज़रूरत से कहीं ज्यादा है। Turnell के मुताबिक म्यांमार सरकार को चीन और श्रीलंका के सौदे का पूरा ध्यान है जिसमें कोलोंबो को १ बिलियन अमेरिकी डॉलर के हम्बंतोता पोर्ट के लिए चीनी कंपनी को ९९ सालों का लीज देना पड़ा था। श्रीलंका के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में स्थित हम्बंतोता पोर्ट के निर्माण के लिए श्री लंका सरकार ने चीन से क़र्ज़ लिया था जिसे वापस करना उसके लिए मुश्किल था।
हालांकि म्यांमार में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो क़र्ज़ के इस जाल के खतरे को बहुत बड़ा नहीं मानते। हाल ही में हांगकांग में हुए तीसरे बेल्ट और रोड सम्मलेन में म्यांमार के एक मंत्री और म्यांमार के निवेश आयोग के अध्यक्ष Thaung Tun ने क़र्ज़ जाल के इस खतरे को नकारते हुए कहा कि हालांकि म्यांमार इस बात से अवगत है कि श्री लंका में क्या हुआ, नेपिदौ ये सुनिश्चित करेगा कि कैऔक्पू पोर्ट दोनों देशों के लिए संभव हो सके, यानी इस बात की तरफ संकेत भी था कि म्यांमार इस प्रोजेक्ट के आकार को छोटा करने से इनकार नहीं कर रहा।
म्यांमार ने पहले के समझौते पर फिर से बातचीत कर के, उसे 85/15 फीसदी शेयर बंटवारे की जगह एक नया समझौता किया है। अक्टूबर २०१७ नें हुए इस समझौते को पक्षपाती माना जा रहा था। नयी डील के तहत CITIC ग्रुप के पास 70 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी जबकि बाक़ी म्यांमार सरकार और प्राइवेट कंपनियों के समूह के बीच बंटेगा।
शुरूआती रिपोर्ट ये आई थी कि कैऔक्पू SEZ प्रोजेक्ट पर बातचीत लम्बी चल रही है जिस से ये साफ़ था कि नेपिदौ इस प्रोजेक्ट की व्यवसायिक व्यवहारिकता को लेकर संतुष्ट नहीं था। इस में सच्चाई हो सकती है क्यूंकि क्यौक्पू म्यांमार के सबसे बड़े शहर यांगोन से दूर है और हो सकता है कि वो संचालन के लिए तेज़ी से मांग पैदा नहीं कर पाए।
म्यांमार ने पहले की गयी एक समझौते पर फिर से बातचीत कर के उसे 85/15 फीसदी शेयर बंटवारे की जगह नया समझौता किया है। अक्टूबर २०१७ नें हुए इस समझौते को पक्षपाती माना जा रहा था। नयी डील के तहत CITIC ग्रुप के पास 70 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी जबकि बाक़ी म्यांमार सरकार और प्राइवेट कंपनियों के समूह के बीच बंटेगा। तब भी सबसे बड़ी फ़िक्र इस परियोजना के अनुपात को लेकर है। नेपिदौ की सबसे बड़ी फ़िक्र है उसके पडोसी देशों के तजुर्बे।
कैऔक्पू कुनमिंग रेलवे
यही नहीं २०१४ में चाइना रेलवे इंजीनियरिंग कारपोरेशन और म्यांमार रेलवे मंत्रालय के बीच एक रेल परियोजना के लिए डील हुई थी जिसके तहत चीन के अंदरूनी यूनान इलाके को हिन्द महासागर तक कैऔक्पू से कुनमिंग तक जोड़ने की योजना थी। लेकिन इस के लिए तय समय सीमा तीन साल की थी जिस दौरान काम शुरू ही नहीं हो पाया। हाल की रिपोर्ट्स बताती हैं कि म्यांमार की मुख्या चिंता है सामाजिक तौर पर इसका विरोध, आर्थिक तौर पर इसकी व्यवहारिकता, राष्ट्रीय सुरक्षा और इस से होने वाले फायदे की पहुँच। इन्ही सब कारणों से इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया।
बीजिंग के लिए बेल्ट रोड पहल का एक अहम हिस्सा है कैऔक्पू परियोजना। बंगाल की खाड़ी से म्यांमार के रास्ते चीन को जोडती तेल और गैस पाइपलाइन के अलावा म्यांमार में चीन की सभी बड़ी परियोजना अभी बीच में ही लटकी हुई है। ये न सिर्फ चीन म्यांमार के संबंधों में तनाव पैदा करेंगे बल्कि म्यांमार से गुज़रती चीन के BRI परियोजना में बाधा भी बनेगा।
BRI स्कीम के तहत जो मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट हैं उन पर चीन म्यांमार के अशांत सीमा क्षेत्रों का कितना असर पड़ेगा ये भी बड़ा सवाल है। सीमावर्ती इलाकों में म्यांमार की शांति की कोशिश बहुत कामयाब नहीं हुई है। ११ से १६ जून २०१८ के दौरान तीसरे दौर की पैन्ग्लोंग सम्मलेन के पहले चीन ने म्यांमार को आश्वासन दिया है कि वो देश की शांति प्रक्रिया का समर्थन करता रहेगा।
बंगाल की खाड़ी से म्यांमार के रास्ते चीन को जोडती तेल और गैस पाइपलाइन के अलावा म्यांमार में चीन की सारी बड़ी परियोजना अभी बीच में ही लटकी हुई है। ये न सिर्फ चीन म्यांमार के संबंधों में तनाव पैदा करेंगे बल्कि म्यांमार से गुज़रती चीन के BRI परियोजना में बाधा भी बनेगा।
BRI स्कीम के अंतर्गत कई और नयी परियोजनाएं हैं, जिस से म्यांमार को अपनी सुरक्षा और इन परियोजनाओ पर खर्च हो रहे पैसों को लेकर चिंता बढती जा रही है। फ़िक्र की बड़ी वजह है पडोसी देशों के चीन के साथ अनुभव। ये म्यांमार की जनता की चीन के बारे में धारणा को भी प्रभावित कर रहा है। नेपिदौ चीन के निवेश पर हद से ज्यादा निर्भर नहीं होकर उसका विकल्प तलाश्ने की कोशिश करेगा। लेकिन अभी के लिए म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों में टकराव और उसके ऊपर बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से फिलहाल म्यांमार चीन की पहल के साथ खड़ा होगा। इस से चिंता भी बढ़ेगी और ये सवाल भी कि नेपिदौ के पास चीन के प्रस्तावों को स्वीकार करने के अलवा क्या कोई और विकल्प है, क्या वो खुद कोई पहल करने की स्थति में है।
म्यांमार ये चाहता है कि वो चीन पर अपनी निर्भरता या फिर चीन का बढ़ता असर कुछ कम करे लेकिन चीन और म्यांमार की एक दुसरे से लगी सीमा पर सुरक्षा और सियासी मुद्दे एक दुसरे से ऐसे जुड़े हैं कि ये कोशिश कामयाब नहीं हो पाती। साथ ही म्यांमार पर बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से चीन की कूटनीतिक और आर्थिक मदद लेना म्यांमार की ज़रूरत है।
हिन्द महासागर तक पहुँचने के लिए म्यांमार को एक पुल की तरह इस्तेमाल करना चीन के सामरिक हित में है और यही उसकी दीर्घकालीन नीति भी रही है। ये बीजिंग की रणनीति का अहम हिस्सा बना रहेगा और निकट भविष्य में चीन और म्यांमार की एक दुसरे पर निर्भरता बनी रहेगी।
लेकिन जल्द ही चीन के सामने एक दुविधा खड़ी होगी। अभी म्यांमार के अंदरूनी हालात और टकराव बीजिंग के लिए फायदे का सौदा तो हैं, क्यूंकि इसकी वजह से नेपिदौ चीन की तरफ समर्थन के लिए देखता है और इस से पश्चिमी देश और म्यांमार के बीच तनाव बढ़ता है लेकिन लम्बे समय में म्यांमार की अंदरूनी लड़ाई और टकराव सीमाई क्षेत्रों की शान्ति और स्थिरता पर असर डालेंगे और इसका असर चीन के BRI परियोजनाओं भी पड़ेगा। हो सकता है तब चीन इस टकराव को सुलझाने के लिए दूसरी बड़ी शक्तियों को इस मसले में शामिल करना चाहे।
लेकिन इस से म्यांमार में बीजिंग के सामरिक हित कमजोर होंगे, जिसमें प्रमुख हैं BRI की म्यांमार में स्थापना और दुसरे बड़ी शक्तियों को म्यांमार से दूर रखना। तब तक चीन के लिए म्यांमार का सामरिक मूल्य बना रहेगा, चुनौतियों के बावजूद उसमें किसी बड़े बदलाव की गुंजाइश कम है।
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.