Published on Nov 25, 2021 Updated 0 Hours ago

कोरोना वायरस महामारी के दौरान कई खाद्य कार्यक्रम ख़त्म कर दिए गए, जिसके चलते ब्राज़ील में खाने-पीने का संकट और गहरा हो गया है.

Brazil: भुखमरी की कगार पर!

आबादी के बीच असमानता के सबसे बड़े सबूत: भुखमरी से निपटने के लिए एक मज़बूत राजनीतिक एजेंडा लाकर ब्राज़ील (Brazil) ने 21वीं सदी में दुनिया को चौंका दिया था. हालांकि, इस साल कोविड-19 महामारी (Covid-19/Coronavirus Pandemic) के दौरान एक बार फिर से ब्राज़ील की सार्वजनिक चर्चाओं में भुखमरी और खाद्य सुरक्षा (Food Insecurity in Brazil) का मुद्दा छाया रहा है. क्योंकि, रिसर्च के जो आंकड़े जारी किए गए हैं, वो उसी ओर इशारा कर रहे हैं, जिस मुद्दे को कई सामाजिक संगठन पहले से ही काफ़ी ज़ोर-शोर से उठा रहे थे: भुखमरी ने एक बार फिर ब्राज़ील (Hunger in Brazil) के लाखों परिवारों में दोबारा दस्तक दे दी है.

खाद्य असुरक्षा का मतलब

खाद्य असुरक्षा का मतलब, किसी के लिए नियमित और स्थायी रूप से पर्याप्त मात्रा में अच्छा खाना हासिल करने में कमी या फिर इसे लेकर असुरक्षा की चिंता होना है. बर्लिन की फ्राए यूनिवर्सिटी के रिसर्च ग्रुप फूड फॉर जस्टिस: पावर, पॉलिटिक्स ऐंड फूड इनक्वालिटीज़ इन बायोइकॉनमी द्वारा, ब्रासीलिया यूनिवर्सिटी और मीनास गेराइस की संघीय यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर किए गए सर्वे के मुताबिक़, अगस्त से दिसंबर 2020 तक ब्राज़ील के 59.4 फ़ीसद परिवार खाद्य असुरक्षा के शिकार थे. इन लोगों में से भी ब्राज़ील के 15 फ़ीसद परिवार भुखमरी के शिकार हैं. फूड फॉर जस्टिस के आंकड़े बताते हैं कि ब्राज़ील में खाद्य सुरक्षा की स्थिति महामारी की शुरुआत से पहले के बरसों में ही लगातार बिगड़ रही थी. ब्राज़ील के इंस्टीट्यूट ऑफ जियोग्राफी ऐंड स्टैटिस्टिक्स (IBGE) द्वारा किए गए 2017-2018 के फैमिली बजट सर्वे (POF) के मुताबिक़, ब्राज़ील में 2013 में 22.6 फ़ीसद के मुक़ाबले 2017-2018 में खाद्य सुरक्षा के शिकार परिवारों की तादाद बढ़कर 36.4 प्रतिशत हो गई थी.

 ब्राज़ील में 2013 में 22.6 फ़ीसद के मुक़ाबले 2017-2018 में खाद्य सुरक्षा के शिकार परिवारों की तादाद बढ़कर 36.4 प्रतिशत हो गई थी. 

हालांकि, खाद्य असुरक्षा की ये चुनौती ब्राज़ील के सभी सामाजिक समूहों को समान रूप से प्रभावित नहीं करती है. गोरे पुरुष प्रमुखों वाले ऐसे शहरी परिवारों में, जिनकी प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 1000 रियाइस है और जो ब्राज़ील पश्चिम-मध्य, दक्षिणी या दक्षिणी पूर्वी इलाक़ों में रहते हैं, उनके खाद्य असुरक्षा के शिकार होने की आशंका कम होती है. वहीं दूसरी तरफ़, जिन परिवारों के मुखिया ब्राउन या अश्वेत महिलाएं हैं और जिनकी प्रति व्यक्ति मासिक आमदनी 1000 रियाइस से कम है, जो ग्रामीण इलाक़ों या फिर उत्तर और उत्तरी पूर्वी इलाक़ों में रहते हैं, ऐसे परिवारों के खाद्य सुरक्षा का शिकार होने की आशंका ज़्यादा होती है. ये ब्राज़ील के समाज की असमानताएं हैं, जो खान-पान के ज़रिए ज़ाहिर होती हैं.

खाने की खपत से जुड़े आंकड़ों की बात करें, तो महामारी की आमद से पहले से ही खाद्य असुरक्षा झेल रहे ब्राज़ील के परिवारों में स्वस्थ भोजन- जैसे कि मांस (72.6 प्रतिशत), सब्ज़ियां (67.2 प्रतिशत) और फलों (66.5 फ़ीसद) का अनियमित रूप से इस्तेमाल, यानी हफ़्ते में पांच बार से कम कर रहे थे. महामारी के बाद तो ये हालात और भी ख़राब हो गए, क्योंकि इस दौरान सेहत के लिए ज़रूरी खान-पान और भी कम हो गया. जैसे कि, जिन लोगों से बात की गई उन्होंने बताया कि उनके घरों में मांस का इस्तेमाल 44.4 फ़ीसद कम हो गया है. खाद्य सुरक्षा का सामना कर रहे घरों में तो खपत में ये गिरावट और भी ज़्यादा हुई है. ऐसे घरों में तो स्वस्थ खान-पान के इस्तेमाल में 85 प्रतिशत तक की गिरावट आई है.

सवाल ये है कि ब्राज़ील, जिसने 2014 में ही संयुक्त राष्ट्र के भुखमरी के नक़्शे से ख़ुद को मिटा दिया था, वो साल 2020 में एक बार फिर भयंकर खाद्य असुरक्षा के हालात का शिकार हो गया? इसके कई कारण हैं. पहला तो ये कि आमदनी कम होने से परिवारों के लिए खान-पान ख़रीद पाना मुश्किल हो गया; ये खाद्य सुरक्षा तय करने का सबसे बड़ा निर्णायक कारण होता है. पिछले पांच साल के दौरान ब्राज़ील ने भयंकर आर्थिक संकट का सामना किया है. जिससे बेरोज़गारी बढ़ गई है. न्यूनतम मज़दूरी घट गई है और महंगाई की दर लगातार बढ़ रही है. ये सभी बातें खाने-पीने के सामान की क़ीमतों पर असर डालती हैं. कोविड-19 महामारी ने इन परिस्थितियों को और बिगाड़ने का ही काम किया है.

पिछले पांच साल के दौरान ब्राज़ील ने भयंकर आर्थिक संकट का सामना किया है. जिससे बेरोज़गारी बढ़ गई है. न्यूनतम मज़दूरी घट गई है और महंगाई की दर लगातार बढ़ रही है. 

दूसरी बात ये कि 2016 से पहले के दशकों में जहां भुखमरी का ख़ात्मा करने को राजनीतिक एजेंडे में प्राथमिकता दी जाती थी. वहीं, पिछले पांच सालों के दौरान ख़र्च में भयंकर कटौती की गई है. यहां ये बताना ज़रूरी है कि ब्राज़ील ने जहां भयंकर ग़रीबी से निपटने के लिए, अपनी कैश ट्रांसफर योजना (बोलसा फैमिलिया) के लिए पूरी दुनिया से वाहवाही बटोरी है. वहीं, अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों के चलते संगठित रोज़गार के अवसर बढ़े हैं. लोगों की आमदनी में भी इज़ाफ़ा हुआ है. इससे आबादी के एक बड़े हिस्से को फ़ायदा पहुंचा है. लेकिन, 2016 में राष्ट्रपति डिलमा रूसेफ के ख़िलाफ़ महाभियोग के चलते प्रगति का ये चक्र बाधित हुआ है. हालांकि, ख़ुद डिलमा रूसेफ के कार्यकाल में ही उस समय शुरू हुए आर्थिक संकट के चलते सरकार के ख़र्च में कटौती की शुरुआत हो गई थी. न्यूनतम मज़दूरी को बढ़ाने की एक नियमित नीति- यानी कामगारों की तनख़्वाह महंगाई दर से ज़्यादा बढ़ने- और राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था के विस्तार- जिसके फ़ायदे न्यूनतम मज़दूरी की क़ीमत से जुड़े होते हैं- से आगे बढ़ते हुए आज सरकार की नीति, मज़दूरों के अधिकारों में रियायत देने, सामाजिक भलाई की योजनाओं के लिए सरकार का ख़र्च घटाने और न्यूनतम मज़दूरी से ख़रीदने की क्षमता घटने की हो गई है. दिसंबर 2016 में एक नए संविधान संशोधन ने अगले बीस साल के लिए एक नई वित्तीय व्यवस्था की स्थापना की थी. इस संविधान संशोधन के ज़रिए वर्ष 2036 तक ख़ास तौर से सामाजिक क्षेत्र में सरकार के ख़र्च और निवेश को सीमित कर दिया गया था.

महामारी के संदर्भ में पर्याप्त भोजन के मानव अधिकार की गारंटी देने वाली ज़रूरी योजनाओं जैसे कि राष्ट्रीय स्कूल खाद्यान्न योजना (PNAE) को बजट आवंटन कम कर दिया गया है

आख़िर में, वर्ष 2016 से ही खाद्य उत्पादन और इसके वितरण में एक के बाद एक बदलाव शुरू किए गए थे. इसके चलते परिवार को खेती करने के लिए बढ़ावा देने की सरकारी नीतियां ख़त्म कर दी गईं. कृषि क्षेत्र के विकास के मंत्रालय को भंग कर दिया (2016) गया, और खाद्य ख़रीद कार्यक्रम (PAA) जैसी अहम नीतियों को ख़त्म कर दिया गया. इससे भी बड़ी बात ये कि महामारी के संदर्भ में पर्याप्त भोजन के मानव अधिकार की गारंटी देने वाली ज़रूरी योजनाओं जैसे कि राष्ट्रीय स्कूल खाद्यान्न योजना (PNAE) को बजट आवंटन कम कर दिया गया है. इसने जनता की समान रूप से सेवा के सिद्धांत पर काफ़ी गहरा असर डाला है. 2019 में ब्राज़ील की राष्ट्रीय सरकार ने संगठिन सामाजिक संगठनों के साथ संवाद को ख़त्म कर दिया और दशकों तक खाने के अधिकार को बढ़ावा देने से मिले सबक़ की अनदेखी कर दी गई. ब्राज़ील की सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण सुरक्षा परिषद (CONSEA) को भी भंग कर दिया. जबकि ये संगठन सामाजिक भागीदारी का ठिकाना था, जहां पर नागरिक संगठनों और सरकार के प्रतिनिधि खाने और पोषण सुरक्षा संबंधी नीतियों पर बातचीत किया करते थे.

इन क़दमों को उठाने की ज़रूरत

ब्राज़ील के खाद्य सुरक्षा के संकेतकों को सुधारने के लिए, आमदनी के ठीक ढंग से बंटवारे की नीतियों को दोबारा लागू करना होगा. इनके साथ साथ सामाजिक संरक्षण की नीतियां भी लागू करनी होंगी. इनके अलावा परिवारों और खेती किसानी को कुछ ख़ास तरह से मदद देनी होगी और खाने और पोषण सुरक्षा की नीतियां भी लागू करनी होंगी. इससे पहले खाद्य असुरक्षा को सफलता से ख़त्म किया गया है और पूर्व में इससे निपटने के लिए किए गए उपायों से इस समस्या को दोबारा हल करने में मार्गदर्शन लिया जाना चाहिए. हालांकि, नई चुनौतियों और हालात के हिसाब से इन नीतियों में सुधार की ज़रूरत होगी. इसके लिए ज़रूरी ये है कि संगठिन नागरिक समूहों से एक बार फिर से संवाद करने की ज़रूरत है. अतीत में खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए सरकारी नीतियां बनाने में इस संवाद की अहम भूमिका रही थी. महामारी के संदर्भ में ऐसा संवाद ज़रूरी हो जाता है, जिससे सभी वर्ग एकजुट होकर काम करें और भुखमरी का मुक़ाबला करने के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाने के बजाय साथ आएं.

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Authors

Eryka Galindo

Eryka Galindo

Eryka Galindo is a PhD Researcher of the Junior Research Group Food for Justice: Power Politics and Food Inequalities in a Bioeconomy (LAI FU Berlin) ...

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Marco Antonio Teixeira

Marco Antonio Teixeira

Marco Antonio Teixeira is a Postdoctoral Researcher at the Institute for Latin American Studies (LAI) at the Freie Universitt Berlin (FU Berlin) and scientific coordinator ...

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Renata Motta

Renata Motta

Renata Motta is a Junior Professor of Sociology at the LAI at the FU Berlin Germany and project leader of the Junior Research Group Food ...

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