Author : Hari Seshasayee

Published on Aug 18, 2023 Updated 0 Hours ago

लूला डी सिल्वा की सक्रिय विदेशी नीति का उद्देश्य ब्राज़ील की वैश्विक पहचान को मज़बूत बनाना है. ऐसा हो पाएगा या नहीं, अभी यह देखा जाना बाकी है और चार साल की छोटी अवधि में इसे पूरा किया जाना एक कठिन काम है.

ब्राज़ील की वापसी!

लुइज़ इनासियो ‘लूला’ दा सिल्वा तीसरी बार ब्राज़ील के राष्ट्रपति चुने गए हैं. और राष्ट्रपति चुने जाने के तुरंत बाद उन्होंने नवंबर 2022 में हुए COP27 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कहा, “ब्राज़ील की वापसी हुई है!” जंगलों के विनाश से लेकर जलवायु परिवर्तन, ग़रीबी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, शांति और बहुपक्षवाद जैसे विभिन्न मुद्दों पर सहयोग के लिए उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि”ब्राज़ील अपने उस खोल से बाहर निकल रहा है जिसमें वह पिछले चार सालों से बंद था.”

ब्राज़ील की वापसी का सबसे स्पष्ट संकेत तो इस बात से मिलता है कि जनवरी 2023 में पदभार संभालने के बाद से लूला डी सिल्वा लगातार अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं कर रहे हैं.


राजनीति की दुनिया में ऐसी भाषणबाजी तो चलती रहती है, और ख़ासकर भू-राजनीति में तो यह सब कुछ ज्यादा ही होता है. इसलिए, अगर ब्राज़ील की सचमुच वापसी हुई है, तो यह किस रूप में हमारे सामने आएगा?

ब्राज़ील की वापसी का सबसे स्पष्ट संकेत तो इस बात से मिलता है कि जनवरी 2023 में पदभार संभालने के बाद से लूला डी सिल्वा लगातार अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय यात्राएं कर रहे हैं. सिर्फ़ सात महीनों के छोटे से वक्त में लूला ने 15 देशों का दौरा किया है. उन्होंने सभी बड़े महाद्वीपों की यात्राएं की हैं: दक्षिण अमेरिका में अर्जेंटीना, कोलंबिया और उरुग्वे; उत्तर अमेरिका में संयुक्त राज्य अमेरिका; यूरोप में बेल्जियम, फ्रांस, इटली, पुर्तगाल, स्पेन, यूनाइटेड किंगडम; एशिया में जापान, चीन, संयुक्त अरब अमीरात और हाल ही में अफ्रीका में केप वर्ड.

यह कई मामलों में पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो के कार्यकाल से अलग है. विशेष रूप से, बोल्सनारो अपने चार साल के कार्यकाल के दौरान कभी भी अफ्रीका नहीं गए; लूला ने बोल्सोनारो की तुलना में कहीं अधिक यूरोपीय देशों की यात्रा की है, ख़ासकर ऐसे वक्त में जब यूक्रेन संकट के कारण यह यूरोप के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण समय है. बोल्सोनारो ने अपने कार्यकाल में अमेरिका की रिकॉर्ड आठ यात्राएं की थीं और वॉशिंगटन डीसी (और इसके अलावा, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी) को केंद्र में रखकर वह विदेश नीति का निर्धारण कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर, भले ही लूला सरकार अमेरिका के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देती है, लेकिन अमेरिका किसी भी तरह उसका सबसे महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय भागीदार नहीं है.

एक और मामले में लूला सरकार पिछली सरकार से अलग है. लूला सरकार लगातार वैश्विक और बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में हिस्सा ले रही है ताकि वह ऐसे वैश्विक और क्षेत्रीय संवादों में ब्राज़ील का पक्ष रख सके जो उसकी प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं. पिछले सात महीनों में लूला सरकार कम्युनिटी ऑफ़ लैटिन अमेरिकी एंड कैरिबियन स्टेट्स समिट (33 देशों का एक समूह), मर्कोसुर शिखर सम्मेलन (इस क्षेत्रीय संगठन में ब्राज़ील, अर्जेंटीना, पराग्वे और उरुग्वे शामिल हैं), G7 शिखर सम्मेलन (सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह), पेरिस में पॉवर ऑफ प्लैनेट फेस्टिवल और न्यू ग्लोबल फाइनेंसिंग पैक्ट समिट, कोलंबिया में अमेज़न टेक्निकल साइंटिफिक समिट और ब्रसेल्स में EU-CELAC सम्मेलन में हिस्सा लिया है. इसके अलावा, वह 22-24 अगस्त 2023 को 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए दक्षिण अफ्रीका का भी दौरा करेंगे.

लूला सरकार लगातार वैश्विक और बहुपक्षीय शिखर सम्मेलनों में हिस्सा ले रही है ताकि वह ऐसे वैश्विक और क्षेत्रीय संवादों में ब्राज़ील का पक्ष रख सके जो उसकी प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं.


लूला सरकार की इस सक्रिय विदेश नीति को कुछ नीति निर्माताओं और पर्यवेक्षकों ने पुर्तगाली भाषा में ‘एटिवा ई अल्टिवा’  यानी सक्रिय और मुखर कहा है. जबकि कुछ इसे लूला सिद्धांत भी कह रहे हैं. ब्राज़ील की विदेश मंत्री, मौरो विएरा ने हाल ही में एक साक्षात्कार में इस बारे में विस्तार से बताया, “लूला सिद्धांत का उद्देश्य ब्राज़ील की छवि और दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों में सुधार लाना है. जहां न केवल लैटिन अमेरिकी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को तरजीह दी जा रही है बल्कि विभिन्न वैश्विक मंचों (चाहे द्विपक्षीय हों या बहुपक्षीय) पर ब्राज़ील की उपस्थिति को दर्ज़ कराने को प्राथमिकता दी गई है.

जल्दबाज़ी से बचें


हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि लूला अपने शेष बचे कार्यकाल में अफ्रीका, एशिया और यूरोप में कई और देशों में ब्राज़ील की पहुंच का विस्तार करेंगे. ब्राज़ील महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों जैसे यूक्रेन युद्ध, ग़रीबी और भुखमरी, जलवायु परिवर्तन, मुद्रा नियंत्रण और बहुपक्षीय समूहों और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार पर और अधिक मुखरता के साथ अपनी बात रखेगा.

हालांकि, लूला का ब्राज़ील की वैश्विक उपस्थिति को मज़बूत करने का प्रयास वास्तविक है, लेकिन इसे अब तक सीमित सफ़लता मिली है. लूला की यूक्रेन और रूस के बीच वार्ताकार बनने की असफ़ल कोशिश और वेनेजुएला के सत्तावादी नेता निकोलस मादुरो के बचाव में उनकी टिप्पणियों से पता चलता है कि ब्राज़ील को जल्दबाज़ी बरतने से बचना चाहिए और कुछ मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रियाओं पर उसे पुनर्विचार करना चाहिए. पहले ही, लूला रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ बनने की अपनी असफ़ल कोशिशों से सबक ले चुके हैं और हाल ही उन्होंने इस मसले पर अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह इस युद्ध का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं और इसके बजाय वह देश में ग़रीबी, भुखमरी और बेरोजगारी के खिलाफ़ जंग छेड़ना चाहते हैं.

भारत और चीन जैसे एशियाई देश, जो लगातार आतंकवाद या क्षेत्रीय विवादों और कभी-कभार बाहरी युद्ध जैसे सुरक्षा खतरों का सामना करते हैं, इनके ठीक विपरीत ब्राज़ील को सिर्फ़ अपने घरेलू मुद्दों से निपटना है.


ब्राज़ील निश्चित तौर पर एक प्रमुख वैश्विक नेता बनने में सक्षम है. वास्तव में, ब्राज़ील के एक शांतिप्रिय देश होने के कारण उसके वैश्विक कद को काफ़ी ऊंचा माना जाना चाहिए. पिछले 150 सालों में ब्राज़ील किसी भी बड़े बाहरी युद्ध में शामिल नहीं हुआ है. उसके अपने 10 पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध हैं और किसी के साथ कोई बड़ा सीमा विवाद नहीं है. इसके अलावा, ब्राज़ील में आतंकवाद नहीं है और न ही घरेलू मोर्चे पर कोई बड़ी समस्या मौजूद है. भारत और चीन जैसे एशियाई देश, जो लगातार आतंकवाद या क्षेत्रीय विवादों और कभी-कभार बाहरी युद्ध जैसे सुरक्षा खतरों का सामना करते हैं, इनके ठीक विपरीत ब्राज़ील को सिर्फ़ अपने घरेलू मुद्दों से निपटना है.

जैसा कि ब्राज़ील विशेषज्ञ ब्रायन विंटर कहते हैं, लूला और उनकी विदेश नीति इस बात में विश्वास करती है कि “दुनिया एक नए ‘बहुध्रुवीय’ युग में प्रवेश कर रही है, जो पहले से अधिक समतापूर्ण होगी, जहां किसी एक देश की तानाशाही की बजाय कम से कम आठ देश मिलकर बड़े फ़ैसले कर रहे होंगे, जिसमें भारत, चीन और उभरते वैश्विक दक्षिण के देशों के अलावा ब्राज़ील भी शामिल होगा.”

फिर भी, वैश्विक मामलों में शामिल होने की ब्राज़ील की कोशिशों के बावजूद, यह संभव है कि वह “भविष्य के देश” वाली अपनी पुरानी स्थिति की ओर लौट जाए. ब्राज़ील के वैश्विक कद को और ऊंचा करने की लूला की कोशिश सफ़ल होगी या नहीं यह अभी देखा जाना बाकी है और ऐसा कर दिखाने के लिए चार साल बहुत कम हैं.

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