Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना को रक्षा मंत्रालय के साथ मिल कर इजराइली NLOS मिसाइलों के लिए संयुक्त रूप से मोलभाव करना चाहिए, ताकि बेवजह के ज्य़ादा खर्च से बचा जा सके.

सीमा सुरक्षा: भारतीय वायुसेना और थलसेना के अपाचे बेड़े की सबसे आवश्यक ज़रूरत है NLOS मिसाइल!
सीमा सुरक्षा: भारतीय वायुसेना और थलसेना के अपाचे बेड़े की सबसे आवश्यक ज़रूरत है NLOS मिसाइल!

एक बहुत ही अहम तकनीकी विकास की कड़ी में, नयी विकसित इज़रायली Spike Non-Line of Sight (NLOS) मिसाइल को शामिल किये जाने से AH-64E अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर की घातकता काफ़ी ज्यादा बढ़ जाने की उम्मीद है. अमेरिकी थलसेना की हेलीकॉप्टर एविएशन विंग, जो AH-64 अपाचे उड़ाती है, अपने बेड़े को इस नयी क्षमता से लैस करने की तैयारी कर रही है. आख़िर Spike NLOS काम कैसे करती है? यह इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल गाइडेंस सिस्टम या कैमरे से जुड़ी होती है जो उसे दिन और रात में दृष्टि प्रदान करता है. मिसाइल की रेंज 25 किलोमीटर है, और यह एक वायरलेस डाटालिंक सिस्टम के ज़रिये उस अपाचे हेलीकॉप्टर से जुड़ी होती है जिससे उसे छोड़ा जाता है. 

इज़रायली कंपनी द्वारा विकसित इस आधुनिकतम तकनीक को शामिल करने की दिशा में बढ़ने का अमेरिकी सेना का फ़ैसला सबक़ लेने लायक भी है और अहम तथ्य उजागर करनेवाला भी. क्योंकि, यह दिखाता है कि इजराइली डिफेंस कंपनियों ने ऐतिहासिक रूप से किस हद तक अहम तकनीकी इनपुट मुहैया कराये हैं

इजरायली मैन्यूफैक्चरिंग इकाई Rafael (राफेल) का कहना है : ‘Spike NLOS प्रणाली दुनिया की जानी-मानी स्पाइक फैमिली की सदस्य है’. इसकी अतिरिक्त खूबी में शामिल है कि इसे स्टैंड-ऑफ रेंज (यानी, इतनी पर्याप्त दूरी जो हमला करनेवाले को जवाबी फायर की जद में आने से बचने के लिए काफ़ी हो) से दागा जा सकता है, वह भी दुश्मन की सीधी नज़र में आये बिना.

निर्माता के मुताबिक, इसे लड़ाई के मैदान की विभिन्न तरह की स्थितियों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे कि बख्तरबंद या टैंक विरोधी अभियान में, हथियारबंद विद्रोहियो के खिलाफ़ मिशन में, विशेष बलों (Special Forces) के अभियानों और छोटी यूनिट के मिशन की मदद के लिए सुरक्षित दूरी से हमले की तैयारी रखने में. इज़रायली कंपनी द्वारा विकसित इस आधुनिकतम तकनीक को शामिल करने की दिशा में बढ़ने का अमेरिकी सेना का फ़ैसला सबक़ लेने लायक भी है और अहम तथ्य उजागर करनेवाला भी. क्योंकि, यह दिखाता है कि इजराइली डिफेंस कंपनियों ने ऐतिहासिक रूप से किस हद तक अहम तकनीकी इनपुट मुहैया कराये हैं जिन्होंने अमेरिकी हथियार प्रणालियों के प्रदर्शन, उनके असर और उनकी घातकता को बढ़ाया. अमेरिकी सशस्त्र बलों में अमेरिकी थलसेना इकलौती सर्विस है, जो AH-64 उड़ाती है, लेकिन भारतीय सेनाओं में अपाचे के इस्तेमाल के संबंध में यह बात सही नहीं है. भारतीय वायुसेना (IAF) और भारतीय थलसेना (IA) दोनों ही AH-64E के मालिक हैं, अलबत्ता भारतीय थलसेना को इस अटैक हेलीकॉप्टर के बैच की डिलीवरी मिलनी अभी बाकी है. दोनों के पास यह हेलीकॉप्टर होना NLOS मिसाइल को शामिल किये जाने की राह में बाधाएं खड़ी कर सकता है.

अपाचे को हासिल करने के लिए भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना के बीच अंतर-सर्विस विवाद का मतलब था इन हेलीकॉप्टरों की कीमत में ठीकठाक बढ़ोतरी हो जाना. अभी भारतीय वायुसेना को पूरी तरह डिलीवर हो चुके 22 अपाचे 2015 में 14,910 करोड़ रुपये या 2.1 अरब डॉलर के पड़े थे. 

मनमोहन सरकार के दौरान हुआ सौदा

भारतीय वायुसेना के अपाचे के मौजूदा बेड़े और इसके साथ भारतीय थलसेना द्वारा ऑर्डर किये गये अतिरिक्त अपाचे हेलीकॉप्टरों को NLOS मिसाइलों से लैस करना ज़रूरी है. बदकिस्मती से, दो सर्विसेज द्वारा अपाचे की ख़रीद दोनों के बीच तीखी आपसी प्रतिद्वंद्विता व विवाद का विषय बन गया है. भारतीय वायुसेना ने अपने हिस्से के 22 अपाचे AH-64 Longbow अटैक हेलीकॉप्टर हासिल कर लिये हैं. यह सौदा अंशत: अंजाम तक पहुंचा पूर्व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार के समय. उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक ही तरह के हेलीकॉप्टर के लिए भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना को दोहरे करार (dual contracts) से रोक पाने में अपनी अथॉरिटी का इस्तेमाल करने में अक्षम थे. जुलाई 2020 में डिलीवर हुए इन अटैक हेलीकॉप्टरों के आख़िरी बैच की भारत और चीन को बांटनेवाली वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर महत्वपूर्ण सेक्टरों में पहले ही तैनाती हो चुकी है. अपाचे को हासिल करने के लिए भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना के बीच अंतर-सर्विस विवाद का मतलब था इन हेलीकॉप्टरों की कीमत में ठीकठाक बढ़ोतरी हो जाना. अभी भारतीय वायुसेना को पूरी तरह डिलीवर हो चुके 22 अपाचे 2015 में 14,910 करोड़ रुपये या 2.1 अरब डॉलर के पड़े थे. लेकिन उसके बाद किये गये भारतीय थलसेना के छह हेलीकॉप्टरों (जो दयनीय रूप से छोटी संख्या है) के करार के लिए, अब भारत 6,600 करोड़ रुपये या लगभग 89 करोड़ डॉलर देगा. वास्तव में, भारतीय थलसेना के लिए जो हेलीकॉप्टर प्रति इकाई अनुमानत: 678 करोड़ रुपये का पड़ना चाहिए था, वह जाकर 1,100 करोड़ रुपये का पड़ा, क्योंकि भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना ने मिलकर ख़रीद नहीं की. अगर ऐसा किया गया होता, तो प्रत्येक AH-64E की कीमत 1000 करोड़ रुपये से काफ़ी कम रही होती और भारत के सरकारी खजाने की बड़ी रकम बचती.

2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद, भारतीय थलसेना ने भारत सरकार की मंज़ूरी के आधार पर आपातकालीन ख़रीद के तहत 250 मिसाइलों के साथ 12 लॉन्चरों का ऑर्डर दिया. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन द्वारा उत्पन्न की गयी स्थितियों के मद्देनजर, 2020 में भारतीय थलसेना ने ऑर्डर को दोहराया,  

अब जबकि NLOS के रूप में इज़रायल द्वारा विकसित अत्याधुनिक तकनीक सामने आयी है, तो इस बार भी वही गड़बड़ी नहीं की जानी चाहिए, जो अपाचे के अधिग्रहण के समय शुरू में की गयी. भारतीय वायुसेना के पास अभी जितने अपाचे मौजूद हैं और जो अपाचे भारतीय थलसेना को मिलने हैं, उन्हें अधिग्रहण से जुड़ी उन दिक्कतों की सज़ा नहीं मिलना चाहिए जिन्होंने भारतीय वायुसेना के AH-64E अधिग्रहण को नुक़सान पहुंचाया. भारतीय वायुसेना में जो 22 अपाचे पहले ही सेवा में हैं और जो अतिरिक्त छह हेलीकॉप्टर भारतीय थलसेना हासिल करने जा रही है (इस तरह 28 की बड़ी संख्या बनती है), उन सभी को एक ही NLOS मिसाइल प्रणाली से लैस किया जाए, बजाय कि दो अलग-अलग क़रार के ज़रिये अधिग्रहण के. अन्यथा, यह महंगा साबित हो सकता है.

इसके अलावा, अपाचे NLOS चूंकि स्पाइक श्रेणी की मिसाइल प्रणालियों का हिस्सा है, इसलिए भारत को महज़ एक अत्यधिक घातक मिसाइल को शामिल करने की ही कोशिश में नहीं लगना चाहिए, बल्कि एक साझा वाजिब क़ीमत के लिए भी मोलभाव करना चाहिए. दोहरे क़रार केवल क़ीमतों को बढ़ायेंगे.

बालाकोट हमले के बाद, आपातकालीन ख़रीद

भारतीय सशस्त्र बलों के लिए इजराइली सैन्य तकनीक कोई नयी चीज़ नहीं है. भारतीय नौसेना (IN) के कुछ जहाज़ों से लेकर भारतीय थलसेना के ज़मीनी बलों तक वे कई इजराइली तकनीकों को संचालित कर रहे हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय थलसेना के पास पहले ही स्पाइक एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (ATGM) है, जो कंधे पर रखकर दागी जाने वाली या पैदल सेना आधारित चार किलोमीटर रेंज की मिसाइल प्रणाली है और जैसा पहले ही कहा जा चुका है, अपाचे से दागी जाने वाली NLOS मिसाइल भी स्पाइक फैमिली का ही हिस्सा है. चूंकि स्पाइक ATGM भारतीय थलसेना के साथ पहले ही सेवा में है, इसलिए अगर भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना रक्षा मंत्रालय के ज़रिये एक साझा क़ीमत (common price) के लिए मोलभाव करें, तो एक वाजिब दर पर सौदे का अच्छा मौक़ा है. 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद, भारतीय थलसेना ने भारत सरकार की मंज़ूरी के आधार पर आपातकालीन ख़रीद के तहत 250 मिसाइलों के साथ 12 लॉन्चरों का ऑर्डर दिया. वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन द्वारा उत्पन्न की गयी स्थितियों के मद्देनजर, 2020 में भारतीय थलसेना ने ऑर्डर को दोहराया, जिसके तहत फिर उसे उतने ही लॉन्चर और मिसाइलें मिल सकती हैं.

हालांकि, निर्माता राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स के साथ सेना की दो सर्विसेज एवं रक्षा मंत्रालय द्वारा अलग-अलग क़रार फिर अधिग्रहण संबंधी उसी बड़ी भूल की ओर ले जायेगा, जिसने अपाचे हेलीकॉप्टर की ख़रीद पर खर्च को अनावश्यक रूप से बढ़ा दिया था. भारतीय वायुसेना और भारतीय थलसेना ने अभी तक NLOS की ख़रीद के लिए आधिकारिक रूप से कोई स्पष्ट दिलचस्पी या इरादा ज़ाहिर नहीं किया है, लेकिन रक्षा मंत्रालय और दोनों सेनाओं को अपने AH-64E हेलीकॉप्टरों को इस अत्यधिक घातक मिसाइल तकनीक से लैस करने के लिए ख़ुद को तैयार करना शुरू कर देना चाहिए. इससे उनकी अभियानगत प्रभावकारिता और लड़ाकू क्षमता में बड़ा इज़ाफ़ा होगा.

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