Published on Feb 26, 2019 Updated 0 Hours ago

24 फरवरी 2019 को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में श्री राकेश सूद की पुस्तक ‘न्यूक्लियर ऑर्डर इन 21 सेंचुरी’ के विमोचन अवसर पर डॉ मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भाषण के अंश।

पुस्तक विमोचन: डॉ मनमोहन सिंह द्वारा ‘न्यूक्लियर ऑर्डर इन द 21st सेंचुरी’ पर व्याख्यान

पुस्तक के लेखक श्री राकेश सूद, श्री श्याम सरन, श्री राजा मोहन, श्रीमती मनप्रीत सेठी, श्री शेखर गुप्ता, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष, यहां मौजूद देवियों, सज्जनों और गणमान्य व्यक्तियों, श्री राकेश सूद द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘न्यूक्लियर ऑर्डर इन 21 सेंचुरी’ के विमोचन के अवसर पर आकर मैं बहुत खुश हूं। मेरा परिचय श्री सूद से आज का नहीं हैं। मेरे उनसे तब के संबंध हैं जब वह भारत में विभिन्न क्षमताओं में काम कर रहे थे। इसके बाद उन्होंने अफगानिस्तान, नेपाल और फ्रांस में भारतीय राजदूत के रूप में भी सेवाएं दीं।

उन्हें भारत की विदेश नीति, उसके आर्थिक आयाम और क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों का गहरा ज्ञान है। यह किताब इससे उचित समय पर प्रका​शित नहीं हो सकती थी क्योंकि आज एक बार फिर यह दुनिया बढ़ते परमाणु जोखिमों के बारे में चिंतित है। मौजूदा परमाणु क्रम में तनाव आ रहा है। परमाणु हथियारों को लेकर किए गए परमाणु सौदे इतिहास के पन्नों में खो चुके हैं। कई देश हैं जो परमाणु ह​थियारों को बना रहे हैं। उनको एकत्रित कर रहे हैं। जिससे उनके प्रयोग किए जाने की संभावना बढ़ जाती है। परमाणु हथियारों को निरस्त करने का जो लक्ष्य था वह पूरा नहीं हो रहा है। शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच की प्रतिद्वंद्विता के चलते उस समय जो परमाणु हथियारों को विकसित करने की जो होड़ थी वह दोबारा हो रही है। दुनिया में बढ़ते उग्र राष्ट्रवाद, उग्रवाद और आतंकवाद के खतरों से जूझ रहे विश्व में रणनीतिक विचारकों द्वारा फिर से इसे परिभाषित किया जा रहा है।

जिस तरह शीत युद्ध के युग की तुलना में 21 वीं सदी के राजनीतिक घटनाक्रम नाटकीय तरीके से बदल गए हैं, उसी तरह से तकनीकी क्षेत्र भी बदल गया है। नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी पिछले 70 वर्षों में और ज्यादा परिपक्व हुई है। इसे हासिल करना और इसका प्रयोग करना और भी आसान हो गया है। यह और ज्यादा जोखिम और चुनौतियां उत्पन्न करता है। कई सारे नेताओं इस बात लेकर चिंतित है यह सब चीजें और अधिक अप्रत्याशितता की ओर ले जाएंगी और निर्णय लेने का जो सही समय वह उसको दबा देंगी। विश्व से 1945 के बाद से जो विश्व ने नहीं देखा है वह फिर हो सकता है। इन सब चीजों से परमाणु हमले की संभावना और बढ़ रही हैं।

यह किताब इस बात पर जोर देती है कि यदि हम चाहते हैं कि नाभिकीय हथियारों प्रयोग न हो तो हमें एक ऐसे क्रम को बनाने की जरूरत है जो हमारी वर्तमान राजनीतिक और प्रौद्योगिकी से मेल खाता हो। शीत युद्ध के काल से आज 21वीं शताब्दी के राजनीतिक समीकरण काफी अलग हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बहुध्रुवीयता एक वास्तविकता बन गई है, लेकिन राजनीतिक व्यवस्था को अभी भी उस सोच उस मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है जो अब व्यवहारिक नहीं हैं। इसलिए यह अक्सर कहा जाता है कि सबसे कठिन आदमी की मानसिकता से बाहर आना है।

यही बात है कि भारतीय थिंक टैंक और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने इस पुस्तक के प्रकाशन के लिए जो पहल की है क्योंकि अंदरुनी रूप से हम सब सभी जानते हैं कि नया नाभिकीय क्रम शीत युद्ध के अनुरूप बनाया नहीं जाएगा। परमाणु हथियार रखने वाला भारत एक ऐसा देश है जो स्वयं में विशेषता रखता है। भारत को प्रतिकूल परमाणु हथियारों वाला देश है और उन देशों की तरह नहीं जिन्होंने अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत सै​न्य जरूरतों के हिसाब से की थी। भारत एक मात्र देश है जिसके पास व्यापक और उन्नत शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम था, लेकिन हमें मजबूर किया गया कि हम अपने परमाणु कार्यक्रम को बदल लें क्योंकि हमारे देश धमकियां दी जा रही थीं। हमने लगभग 25 सालों तक अपने आपको रोके रखा जबकि हमारी तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन हम पहले ही कर चुके थे। इसलिए हमने निर्णय किया कि हमारा जो परमाणु कार्यक्रम होगा वह विश्वसनीय होगा। वह किसी को डराने को के लिए नहीं होगा। भारत की हर सरकार ने इस बात की पुष्टि की है कि हम पहले परमाणु बम का इस्तेमाल न करने वाली नीति पर चलेंगे।

परमाणु स्थिरता के लिए जरूरी है कि हम वैश्विक स्तर ऐसी नीतियां बनाएं और यह सुनिश्चित करें कि हम आत्मरक्षा के लिए इसे बढ़ावा दें। 2008 में न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप द्वारा भारत को दी गई विशेष छूट यह स्पष्ट करता है कि हम परमाणु क्षमताओं का और विस्तार नहीं करेंगे और जिम्मेदारी के साथ अपना काम करेंगे। य​ह आत्मसंतुष्टि देने वाला विषय है कि मेरी सरकार के कार्यकाल में हम अमेरिका और अन्य प्रमुख शक्तियों को बातचीत के लिए एक ला पाए थे और एक निष्कर्ष पर पहुंचे थे। जिसकी वजह से आज भारत दर्जनों ऐसे समझौते कर पाया है जहां वह अपनी नाभिकीय क्षमता का इस्तेमाल व्यापार और लोक कल्याण के कार्यों के लिए करेगा। शीत युद्ध के दौरान परमाणु क्रम को दो परमाणु महाशक्तियों, अमेरिका और सोवियत संघ की प्रतिद्वंद्विता, उनके आपसी मतभेद और परमाणु हथियारों की समानताओं के कारण बना था। आज का जो परमाणु युग है उसके बारे में यदि यही तरह से वर्णन किया जाए तो यह युग विषमताओं का हैं और अलग-अलग विचारों और सिद्धांतों से भरा हुआ है। हथियारों के जखीरे और तकनीक से संबंधित है। इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण चुनौती है कि जैसे 1945 के बाद से परमाणु बम का प्रयोग करना बंद कर दिया गया उसे हम आज भी जारी रखें।

इस पुस्तक के प्रकाशन में जो भी सहयोगी हैं वह आज की चुनौतियों पर अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं लेकिन सबका उद्देश्य सामान है कि हमें आज बातचीत करने की जरूरत है उन सभी वैश्विक चुनौतियों पर जिनसे हम आज मुकाबला कर रहे हैं जैसे परमाणु जोखिम का प्रबंधन करना, परमाणु विनाश को रोकना, यहां तक कि ऐसे देश भी जो रक्षा और सुरक्षा के लिए परमाणु हथियारों पर भरोसा करते हैं। यह पुस्तक शिक्षाविदों और पेशेवरों और संवाद प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए एक अच्छा स्रोत है।

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