6 जून को बिम्सटेक (बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को–ऑपरेशन) ने अपनी स्थापना के 26 साल पूरे कर लिए. इसकी स्थापना 1997 में हुई थी. शुरुआत में भारत, थाईलैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका इसके सदस्य थे. बिम्सटेक का एजेंडा बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित देशों के बीच आर्थिक सहयोग और आपस में एक दूसरे से जुड़ने के साथ साथ दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के साथ नज़दीकी बढ़ाने को बढ़ावा देना था. बाद में बिम्सटेक की सदस्यता का विस्तार हुआ और म्यांमार, नेपाल और भूटान को भी सदस्य बनाया गया. इसके साथ साथ बिम्सटेक के एजेंडे में सुरक्षा और विकास संबंधी मुद्दे भी शामिल कर लिए गए. अपने 26 साल के पूरे सफ़र के दौरान ये क्षेत्रीय संगठन कई मामलों में सफल रहा, तो कई मामलों में नाकाम भी रहा है. जब बिम्सटेक की स्थापना हुई थी, तो दुनिया एकध्रुवीय थी. लेकिन, आज दुनिया एकध्रुवीय नहीं रह गई है. आज क्षेत्रीय शक्तियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को आकार देने और सुरक्षा संबंधी नई चुनौतियों का सामना करने में महत्वपूर्ण भूमिकाएं अदा कर रही हैं. इससे बिम्सटेक के लिए भी नए अवसर और नई चुनौतियां पैदा हुई हैं, और इनके कारण BIMSTEC को और अधिक संस्थागत बनाने की मांग भी बढ़ती जा रही है.
अपनी स्थापना के बाद भी बिम्सटेक लंबे वक़्त तक जड़ बना रहा था. लेकिन, 2014 में जब ये स्पष्ट हो गया कि सार्क (SAARC) अब बिल्कुल कारगर नहीं रह गया है, और बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और सामरिक महत्व बढ़ने लगा, तो दक्षिण एशिया के बिम्सटेक सदस्यों ने इस क्षेत्रीय समूह के ज़रिए आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.
अपनी स्थापना के बाद भी बिम्सटेक लंबे वक़्त तक जड़ बना रहा था. लेकिन, 2014 में जब ये स्पष्ट हो गया कि सार्क (SAARC) अब बिल्कुल कारगर नहीं रह गया है, और बंगाल की खाड़ी का आर्थिक और सामरिक महत्व बढ़ने लगा, तो दक्षिण एशिया के बिम्सटेक सदस्यों ने इस क्षेत्रीय समूह के ज़रिए आर्थिक एकीकरण और कनेक्टिविटी को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया. 2016 में भारत ने गोवा में पहली बार BRICS-BIMSTEC के बीच संपर्क का शिखर सम्मेलन आयोजित किया. इससे पहले काठमांडू में बिम्सटेक का चौथा और कोलंबो में पांचवां शिखर सम्मेलन हो चुका था. इन सभी शिखर सम्मेलनों के दौरान सदस्यों ने कई क्षेत्रों में सहयोग की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था. इन देशों ने तकनीक के लेन–देन और ग्रिड इंटरकनेक्शन के सहमति पत्रों पर दस्तख़त किए. इसके अलावा BIMSTEC के सदस्य देशों ने कनेक्टिविटी के अपने 10 साल के मास्टर प्लान के लिए एशियाई विकास बैंक से भी मदद मांगी.
BIMSTEC: नए अवसर और चुनौतियां
आज बिम्सटेक के सामने कई नई चुनौतियां खड़ी है. कोविड-19 महामारी और रूस–यूक्रेन युद्ध ने आपूर्ति श्रृंखलाओं में ख़लल पड़ने, वैश्विक आर्थिक दुष्प्रभावों, क़र्ज़ के बढ़ते बोझ, महंगाई के साथ साथ ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा जैसी समस्याओं को बढ़ा दिया है. जलवायु परिवर्तन की लगातार बढ़ती चुनौती ने चिंता और भी बढ़ा दी है. चूंकि इनमें से ज़्यादातर चुनौतियां बहुत से देशों से जुड़ी हैं. ऐसे में क्षेत्रीय साझेदारियां ज़रूरी हो गई है. वहीं, मुद्दों पर आधारित सीमित बहुपक्षीय सहयोग भी बढ़ रहे हैं.
इसके साथ साथ, BIMSTEC देश ख़ुद भी ऐसी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ने की आशंका है. इसके कई सदस्य देशों को ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा का ख़ौफ़ सता रहा है. नेपाल की अर्थव्यवस्था, आर्थिक सुस्ती के दौर में दाख़िल हो गई है. श्रीलंका, अपनी आज़ादी के बाद के सबसे बड़े आर्थिक और मानवीय संकट से धीरे–धीरे उबर रहा है. अभी भी दोनों देश विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, खाद्य और ईंधन की महंगाई और ज़रूरी सामान की क़िल्लत का सामना कर रहे हैं. अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने के लिए बांग्लादेश ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से एहतियातन क़र्ज़ देन की गुहार लगाई है. म्यांमार की अर्थव्यवस्था और वहां की सुरक्षा के हालात बेहद ख़राब हैं. रोहिंग्या के मुद्दे की वजह से, बांग्लादेश और म्यांमार के रिश्तों में पेचीदगी बनी हुई है. और, हिंद प्रशांत क्षेत्र में बिम्सटेक की व्यापक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, क्षेत्रीय एकीकरण और संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. इसीलिए, बिम्सटेक के सदस्य देशों के लिए ये संगठन विदेश नीति की प्राथमिकता बनता जा रहा है.
इरादे और संस्थाकरण
राजनीतिक इच्छाशक्ति ने BIMSTEC में नई जान डाल दी है. अब अपनी सामरिक गतिशीलता का फ़ायदा उठाते हुए, मौजूदा भू–राजनीतिक माहौल में बिम्सटेक अपनी प्रासंगिकता और ख़ुद को प्रभावी बनाने में नई जान डाल रहा है. बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में स्थित देशों के बीच द्विपक्षीयवाद का चलन ज़्यादा असरदार है. ऐसे सियासी माहौल में फलने फूलने के लिए, बहुपक्षीय संगठनों को अपनी संस्थागत व्यवस्थाओं को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है. इस मक़सद से BIMSTEC ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई क़दम उठाए हैं. इनमें सबसे अहम क़दम, 30 मार्च 2022 को हुए पांचवें शिखर सम्मेलन में बिम्सटेक चार्टर को अपनाना था. इस चार्टर से बिम्सटेक के लिए क़ानूनी और संस्थागत ढांचा स्थापित हुआ, जिससे बिम्सटेक को अपनी भविष्य की प्रगति के लिए एक ठोस आधार मिल गया.
म्यांमार की अर्थव्यवस्था और वहां की सुरक्षा के हालात बेहद ख़राब हैं. रोहिंग्या के मुद्दे की वजह से, बांग्लादेश और म्यांमार के रिश्तों में पेचीदगी बनी हुई है. और, हिंद प्रशांत क्षेत्र में बिम्सटेक की व्यापक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए, क्षेत्रीय एकीकरण और संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाना पहले से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.
इस बुनियाद पर आगे बढ़ते हुए BIMSTEC ने, 9 मार्च 2023 को बैंकॉक में हुई 19वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में अपने कामकाज को और अधिक संस्थागत स्वरूप देने के लिए अहम दस्तावेज़ों को मंज़ूरी देते हुए अपनी प्रशासनिक प्रक्रिया को मज़बूत बनाना शुरू कर दिया है. इन दस्तावेज़ों में बिम्सटेक की केंद्रीय व्यवस्थाओं की प्रक्रियाओं के नियम (मंत्रिस्तरीय शिखर बैठक, वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक और बिम्सटेक की स्थायी कार्यकारी समिति); बिम्सटेक की सेक्टर स्तरीय व्यवस्था; और बिम्सटेक के विदेशी रिश्तों से जुड़े दस्तावेज़ शामिल हैं. प्रक्रियाओं के इन नियमों पर इस साल नवंबर में होने वाले शिखर सम्मेलन के दौरान मुहर लगने की संभावना है. इनके अलावा, सदस्य देशों ने एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप की सेवा शर्तों को भी मंज़ूरी दे दी है. ये समूह, बिम्सटेक की भविष्य की राह तय करने के लिए सुझाव देगा; समुद्री परिवहन में सहयोग का समझौता, जिस पर छठे शिखर सम्मेलन के दौरान दस्तख़त किए जाएंगे; और बिम्सटेक बैंकॉक विज़न 2030, जिसकी शुरुआत भी छठवें शिखर सम्मेलन के दौरान होगी.
सहयोग के तमाम क्षेत्रों की संख्या को भी BIMSTEC ने 14 से घटाकर सात व्यापक क्षेत्रों में बांट दिया है. वैसे तो इससे निश्चित रूप से बिम्सटेक के लक्ष्य ज़्यादा हासिल करने लायक़ बन जाएंगे. मगर, केवल दो लाख डॉलर का मामूली सा बजट एक चिंता का विषय बना हुआ है. वैसे तो बिम्सटेक डेवलपमेंट फंड बनाने के लिए पहल की गई है, ताकि योजना बनाना और सहयोग के तमाम क्षेत्रों से जुड़ी परियोजनाओं को लागू करना आसान हो सके. लेकिन, अभी इसे लागू नहीं किया जा सका. सही मायनों में असरदार होने के लिए बिम्सटेक को पर्याप्त मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होगी.
बहुपक्षीयवाद की बेहतरीन मिसालों का अनुकरण
अपने अंदरूनी प्रयासों के साथ साथ, BIMSTEC को अपने जैसे दूसरे बहुपक्षीय संगठनों के काम–काज से भी सीख लेनी चाहिए.
बिम्सटेक के बेहद क़रीब ही एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (ASEAN) स्थित है, जो विकासशील देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग की एक कामयाब मिसाल है. चूंकि, बिम्सटेक के कई देश आसियान के भी सदस्य हैं और उनकी चुनौतियां भी साझी हैं, ऐसे में आसियान का उदाहरण, बिम्सटेक को भविष्य में बहुपक्षीय साझेदारियां विकसित करने की राह दिखा सकता है. प्रभावी ढंग से सीखने के लिए आगे चलकर आसियान और बिम्सटेक आपस में भी साझेदारियां कर सकते हैं. इस मामले में बिम्सटेक के एक सचिवालय प्रतिनिधिमंडल ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता स्थित आसियान मुख्यालय के साथ कई बैठकें की थी. इन बैठकों का मक़सद, ‘आसियान की व्यवस्था और बेहतरीन उदाहरणों के बारे में जानकारी बढ़ाने के साथ साथ भविष्य में आसियान और बिम्सटेक के बीच सहयोग की संभावनाएं तलाशना था.’ हालांकि, आसियान के अनुभव से सबक़ सीखने के साथ साथ, बिम्सटेक को ये बात भी याद रखनी होगी कि जहां आसियान की शुरुआत एक सुरक्षा संगठन के रूप में हुई थी, वहीं बिम्सटेक मोटे तौर पर एक आर्थिक साझेदारी का मंच है.
सदस्य देशों ने एमिनेंट पर्सन्स ग्रुप की सेवा शर्तों को भी मंज़ूरी दे दी है. ये समूह, बिम्सटेक की भविष्य की राह तय करने के लिए सुझाव देगा; समुद्री परिवहन में सहयोग का समझौता, जिस पर छठे शिखर सम्मेलन के दौरान दस्तख़त किए जाएंगे
दोनों ही संगठनों के सदस्य के रूप में थाईलैंड ऐसे सहयोग को मज़बूती देने में अहम भूमिका निभा सकता है. वहीं इस काम में भारत भी उसकी बख़ूबी मदद कर सकता है, क्योंकि वो बिम्सटेक का सदस्य है और आसियान का डायलॉग पार्टनर है. इन रिश्तों को आगे बढ़ाने में म्यांमार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता था. लेकिन, उसके घरेलू हालात इस मामले में बाधा बन सकते हैं. फिर भी, म्यांमार की सत्ताधारी सेना ने बिम्सटेक के साथ जुड़े रहने में लगातार दिलचस्पी दिखाई है. म्यांमार की सरकारी प्रशासनिक परिषद के सदस्य– सीनियर जनरल मिंग ऑन्ग हलाइग ने बिम्सटेक के 26वें स्थापना दिवस पर दोहराया था कि, उनका देश ‘बिम्सटेक चार्टर में रखे गए लक्ष्यों और मक़सदों को हासिल करने’ को लेकर प्रतिबद्ध है. इससे, बिम्सटेक में म्यांमार की दिलचस्पी ज़ाहिर होती है.
आगे की राह
अब चूंकि, उभरती आर्थिक और सुरक्षा की चिंताएं दूर करने के लिए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के देशों में एक सक्रिय क्षेत्रीय संगठन की ज़रूरत और उसे लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है, तो ये बिल्कुल सही समय है जब BIMSTEC इस क्षेत्र में अपनी एक ख़ास जगह बना ले. ये इसलिए और भी अहम हो जाता है कि उभरती हुई विश्व व्यवस्था के सामरिक ताने–बाने में बंगाल की खाड़ी का क्षेत्र ज़्यादा अहम होगा. क्योंकि, वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था की धुरी अब हिंद प्रशांत की ओर खिसक रही है. जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक की वर्षगांठ पर अपने संदेश में कहा है कि, ‘लंबे वक़्त से बंगाल की खाड़ी, बिम्सटेक क्षेत्र के लोगों के बीच एक पुल का काम करती रही है. समुद्री सहयोग का समझौता करने और पूरे क्षेत्र में मोटर गाड़ियों की आवाजाही की निर्बाध सुविधा देने के लिए समझौते करने के हमारे मौजूदा प्रयास, हमारी सामूहिक सुरक्षा, कनेक्टिविटी और समृद्धि के लिए बंगाल की खाड़ी की महत्ता को दोहराने वाले हैं.’
आज जब बिम्सटेक, बंगाल की खाड़ी के एक समुदाय के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है, तो उसे इंडोनेशिया को अपने यहां पर्यवेक्षक देश के तौर पर आमंत्रित करना चाहिए. चूंकि इंडोनेशिया, आसियान का एक प्रमुख देश है और बिम्सटेक के बाक़ी सदस्यों की तरह ही वो समान भू-राजनीतिक दर्जे में आता है.
अधिक प्रभावी ढंग से काम करने के लिए BIMSTEC द्वारा संस्थागत व्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए जो क़दम उठाए गए हैं, वो निश्चित रूप से एक अच्छी शुरुआत है. लेकिन, आगे की डगर अगर मुश्किल नहीं तो लंबी ज़रूर है. इन कोशिशों को अधिक प्रासंगिक और अर्थपूर्ण बनाने के लिए बिम्सटेक को अपने कामकाज में अलग अलग भागीदारों, और ख़ास तौर से स्थानीय समुदायों को शामिल करके अधिक समावेशी बनना होगा. इसके अलावा, राष्ट्रीय हित बिम्सटेक की प्रगति की राह में रोड़ा न बनें, इसके लिए वो विवादों के समाधान की एक व्यवस्था बना सकता है, जो विचार विमर्श और आम सहमति के सिद्धांत पर काम करें. आज जब बिम्सटेक, बंगाल की खाड़ी के एक समुदाय के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है, तो उसे इंडोनेशिया को अपने यहां पर्यवेक्षक देश के तौर पर आमंत्रित करना चाहिए. चूंकि इंडोनेशिया, आसियान का एक प्रमुख देश है और बिम्सटेक के बाक़ी सदस्यों की तरह ही वो समान भू–राजनीतिक दर्जे में आता है. इसलिए, अगर उससे मदद मांगी गई, तो इंडोनेशिया में बिम्सटेक के कामकाज को और बेहतर बनाने की काफ़ी संभावना है. बिम्सटेक द्वारा बंगाल की खाड़ी में अपनी नियति और दिशा तय करने की काफ़ी संभावना है, और इसे पाने के लिए समय की मांग यही है कि ज़्यादा विचार विमर्श किया जाए, तुरंत फ़ैसले लिए जाएं और उन्हें प्रभावी ढंग से लाग किया जाए.
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