इस साल भारत G20 की बैठकों की अध्यक्षता कर रहा है. एक वैश्विक मंच की इन बैठकों में भारत, बंगाल की खाड़ी (BoB) और विकासशील दुनिया की प्राथमिकताओं को उठाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. मिसाल के तौर पर, बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक को–ऑपरेशन (BIMSTEC) के सदस्य देशों जैसे कि बांग्लादेश और म्यांमार के साथ भारत के मौजूदा व्यापार की स्थिति, भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र तक इनकी पहुंच और भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीतियों में उनकी केंद्रीय भूमिका को देखते हुए, भारत की G20 अध्यक्षता, इन देशों के लिए आर्थिक रूप से अहम है, ताकि ये देश बेहतर बहुपक्षीय संबंध विकसित कर सकें.
भारत के सबसे कमज़ोर पड़ोसी देश जैसे कि श्रीलंका और नेपाल अभी भी महामारी के असर, या फिर हालिया वैश्विक उथल पुथल, जैसे कि रूस और यूक्रेन के युद्ध से पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में भारत की केंद्रीय भूमिका उन्हें समाधान मुहैया करा सकते हैं, जो भारत के अपने अनुभव पर आधारित हों.
इसके अलावा चूंकि भारत के सबसे कमज़ोर पड़ोसी देश जैसे कि श्रीलंका और नेपाल अभी भी महामारी के असर, या फिर हालिया वैश्विक उथल पुथल, जैसे कि रूस और यूक्रेन के युद्ध से पैदा हुई आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं. ऐसे में भारत की केंद्रीय भूमिका उन्हें समाधान मुहैया करा सकते हैं, जो भारत के अपने अनुभव पर आधारित हों. और, भारत खाद्य और ऊर्जा जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से जुड़े अहम मुद्दों के समाधान देने के साथ साथ, और अंतरराष्ट्रीय आम सहमति भी बना सकता है.
खाद्य सुरक्षा
रूस और यूक्रेन के युद्ध और उसके बाद पैदा हुए खाद्य संकट के चलते खाद्य सुरक्षा एक बड़ी चिंता के रूप में उभरी है. यूक्रेन और रूस, वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की अहम कड़ियां हैं. दोनों के बीच युद्ध से कम और मध्यम आमदनी वाले देशों के कमज़ोर तबक़ों की खाद्य सुरक्षा पर दूरगामी असर पड़ा है, इनमें बिम्सटेक देश भी शामिल हैं. यही नहीं, ये देश पहले ही महामारी के बाद के दौर में भुखमरी से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे थे.
रूस और यूक्रेन के युद्ध का वैश्विक प्रभाव उस वक़्त स्पष्ट हो गया, जब इसके कारण ज़रूरी खाद्यान्नों के निर्यात में खलल पड़ गया. चूंकि, रूस और यूक्रेन, गेहूं, जौ और सूरजमुखी के तेल के बड़े निर्यातक देश हैं. ऐसे में इनके यहां से निर्यात रुक जाने से पूरी दुनिया के देशों में भयंकर नतीजे देखने को मिले. युद्ध के कारण, यूक्रेन के क़रीब दो करोड़ टन अनाज का निर्यात रुक गया, जिसका असर पूरे अफ्रीका के देशों, मध्य पूर्व और एशिया के उन देशों पर पड़ा, जो हर महीने लगभग 60 लाख टन कृषि उत्पाद के आयात के भरोसे रहते हैं. हालांकि जून 2022 तक, खाद्यान्न का ये निर्यात अपने शुरुआती दौर की तुलना में घटकर पांचवां हिस्सा ही रह गया. इससे दुनिया भर में क़िल्लत और बढ़ गई और कृषि क्षेत्र पर युद्ध का असर और उजागर हो गया.
Figure 1: म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड और बांग्लादेश में खाद्य असुरक्षा की मौजूदा स्थिति (आबादी का प्रतिशत)
इसके अलावा, श्रीलंका में आर्थिक संकट का वहां की आबादी की खाद्य सुरक्षा पर बेहद बुरा असर पड़ा था. वहीं बांग्लादेश को खाने पीने के सामानों की महंगाई से जूझना पड़ा. श्रीलंका की बात करें तो, वहां 2021 में अचानक से पूरे कृषि क्षेत्र में ऑर्गेनिक फार्मिंग लागू किए जाने का देश के कृषि व्यापार के प्रदर्शन पर विपरीत असर पड़ा था. हालात इतने ख़राब हो गए कि श्रीलंका को चावल, चीनी और खाने पीने का वो सामान भी ख़रीदना पड़ा, जो श्रीलंका में पहले उसकी अपनी ज़रूरत से ज़्यादा पैदा होता था. 2022 तक श्रीलंका के प्रमुख उत्पाद चाय के उद्योग को 42.5 करोड़ डॉलर का भारी नुक़सान उठाना पड़ा. इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा की आमदनी की स्थिति और बिगड़ गई. इन हालात को देखते हुए क्षेत्रीय संगठनों के लिए ऐसे संकटों से निपटने के लिए सुरक्षा के उपाय करना बहुत अहम है, जो भू–राजनीतिक स्थितियों और घरेलू अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के कारण उनकी खाद्य सुरक्षा को ख़तरे में डाल सकते हैं.
युद्ध के कारण, यूक्रेन के क़रीब दो करोड़ टन अनाज का निर्यात रुक गया, जिसका असर पूरे अफ्रीका के देशों, मध्य पूर्व और एशिया के उन देशों पर पड़ा, जो हर महीने लगभग 60 लाख टन कृषि उत्पाद के आयात के भरोसे रहते हैं.
आसियान फूड बैंक की तर्ज पर, ख़ास बिम्सटेक देशों के लिए बनाए गए एक खाद्य बैंक की स्थापना एक आकर्षक पहल हो सकती है, जो क़ीमतों में स्थिरता लाने में योगदान दे सकता है. इसके अलावा, नवंबर 2022 में भारत ने बिम्सटेक देशों के कृषि मंत्रियों की दूसरी बैठक की मेज़बानी की थी, जिससे सदस्य देशों को कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने और खाद्य व्यवस्था में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने में सहयोग के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. अपनी ज़रूरत से अधिक उत्पादन करने वाले देशों में खाद्य पदार्थों जैसे कि मिलेट्स के उत्पादन और क्षेत्र के भीतर व्यापार को बढ़ावा देने से इस क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता है.
ऊर्जा व्यापार
जब हम ऊर्जा के आयात की पड़ताल करते हैं, तो ये स्पष्ट हो जाता है कि बिम्सटेक के सभी सदस्य देश, विशेष रूप से भारत, म्यांमार और भूटान इन आयातों पर बहुत अधिक निर्भर है. ईंधन के व्यापार पर निर्भरता इस क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है, जिसके कारण बिम्सटेक देशों पर बाहरी आर्थिक झटकों का असर पड़ने की आशंका बढ़ जाती है. इसके अलावा, रूस–यूक्रेन युद्ध, ऊर्जा संसाधनों के मामले में देशों के आत्मनिर्भर बनने की महत्ता को और भी रेखांकित करता है.
Table 2: BIMSTEC देशों का ईंधन आयात (कुल आयातित उत्पादों में हिस्सेदारी, प्रतिशत में)
Country |
Most Recent Year |
Import Percentage |
Bangladesh |
2015 |
11 |
Bhutan |
2012 |
18 |
India |
2021 |
30 |
Myanmar |
2021 |
20 |
Nepal |
2021 |
15 |
Sri Lanka |
2021 |
16 |
Thailand |
2021 |
16 |
Source: Authors’ own, data from World Bank
नवीनीकरण योग्य ऊर्जा की तरफ आगे बढ़ने में नाकामी और ईंधन के आयात पर बहुत अधिक निर्भरता के कारण बांग्लादेश, ऊर्जा सुरक्षा के मामले में बेहद चुनौतीपूर्ण हालात का सामना कर रहा है. इसके अलावा, रूस–यूक्रेन युद्ध ने इन चिंताओं को और भी बढ़ा दिया है. ऊर्जा की बढ़ती हुई कीमतों और सब्सिडी के बढ़ते हुए बोझ ने वित्तीय असंतुलन और चालू खाते के घाटे को बहुत बढ़ा दिया है, जिससे बड़ी आर्थिक चुनौतियां पैदा हो गई हैं. इसके नतीजे में बांग्लादेश की सरकार को ख़र्च में कटौती के उपाय लागू करने पड़े. और, इसका नतीजा ये हुआ कि अगस्त 2022 में बांग्लादेश की सरकार ने डीज़ल और केरोसिन की क़ीमत में 42.5 प्रतिशत, ऑक्टेन के दाम में 51.6 फ़ीसद और पेट्रोल की क़ीमतों में 51.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर दी. इससे डीज़ल और केरोसिन के दाम 114 टका, ऑक्टेन की क़ीमत 135 टका और पेट्रोल का दाम 130 टका प्रति लीटर हो गया. बांग्लादेश में पिछले दो दशकों में इन चीज़ों के दाम में ये सबसे बड़ी बढ़ोत्तरी थी, जिसके बाद बांग्लादेश में भी पेट्रोल–डीज़ल के दाम भारत, चीन और नेपाल के स्तर के बराबर हो गए.
पहले, अक्टूबर 2005 में प्लान ऑफ एक्शन फॉर एनर्जी को–ऑपरेशन इन BIMSTEC, और अगस्त 2018 में बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शन की स्थापना के सहमति पत्र पर दस्तख़त करने के बावजूद, BIMSTEC देश ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के मामले में चुनौतियों का सामना करते रहे हैं. इन चुनौतियों में ज़रूरी मूलभूत ढांचे की और ज़रूरत, बिजली का एक लचीला बाज़ार और आपसी तालमेल वाली ग्रिड व्यवस्था और बिजली की शक्ति और प्राकृतिक गैस की पाइप लाइन तकनीक के मामले में ग्रिड कोड की कमी जैसी बातें शामिल रही हैं. इसके साथ साथ, वित्तीय नीतियों और उससे जुड़े दूसरे मसलों के अभाव भी इस क्षेत्र के देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की धीमी रफ़्तार के ज़िम्मेदार रहे हैं. हालांकि, 2021 में बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शन को–ऑर्डिनेशन कमेटी ने इन मसलों से निपटने पर अपना ध्यान लगाया है. इस समिति के लक्ष्यों में, बिजली के व्यापार और आदान–प्रदान के लिए एक नीतिगत ढांचा विकसित करना, क़ीमतें तय करने की व्यवस्था बनाना और बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शन मास्टर प्लान का अध्ययन (BGIMPS) करना शामिल है.
G20 का मंच उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक प्रशासन के मामलों में सहयोग को बढ़ावा देने और बड़ी चुनौतियों पर परिचर्चाएं करने के मौक़े उपलब्ध कराता है. इस संदर्भ में भारत के पास अनूठा अवसर है
2022 के जलवायु सम्मेलन (COP27) में भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो का लक्ष्य हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया था. इसके लिए भारत ने कोयले और तेल समेत सभी तरह के जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बंद करने की दूरगामी रणनीति भी पेश की थी. अपने इस विज़न के साथ तालमेल बिठाते हुए भारत, बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के स्रोतों के मामले में नई तरक़्क़ी को बढ़ावा दे सकता है. इसके साथ साथ, भारत का नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण, इस्तेमाल और निर्यात को बढ़ावा दे सकता है और इस क्षेत्र की मूल्य संवर्धक श्रृंखलाओं (Value Chains) में औद्योगिक और परिवहन संबंधी कार्बन उत्सर्जन को कम करने की गति तेज़ कर सकता है.
कुल मिलाकर, G20 का मंच उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक प्रशासन के मामलों में सहयोग को बढ़ावा देने और बड़ी चुनौतियों पर परिचर्चाएं करने के मौक़े उपलब्ध कराता है. इस संदर्भ में भारत के पास अनूठा अवसर है कि वो ख़ास तौर से बिम्सटेक क्षेत्र में और व्यापक रूप से हिंद प्रशांत क्षेत्र के विकासशील देशों के समुदाय के बीच क्षेत्रीय वैल्यू चेन्स को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता हासिल करने की अहमियत पर ज़ोर दे सकता है. खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके भारत ये दिखा सकता है कि किस तरह मज़बूत क्षेत्रीय साझेदारियां विकसित करने से आर्थिक तरक़्क़ी को बढ़ावा दिया जा सकता है. खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है और ऊर्जा के क्षेत्र में टिकाऊपन को मज़बूती दी जा सकती है. इसके अलावा, ऐसे प्रयास BIMSTEC देशों के बीच अधिक नज़दीकी सहयोग, तकनीक के आदान–प्रदान और क्षमता के निर्माण का रास्ता खोल सकते हैं, जिससे आख़िरकार एक अधिक समृद्ध और आपस में जुड़े हुए हिंद प्रशांत का मार्ग प्रशस्त होगा.
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