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भारत और ब्रिटेन के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते में लैंगिक समानता पर अलग से एक अध्याय है. इसमें बिना किसी शोर-शराबे के ज़्यादा समावेशी व्यापार नीति और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने की बात की गई है.
वर्तमान समय में, जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार लगातार तनावपूर्ण होता जा रहा है, उसी दौर में व्यापार नीति में चुपचाप एक ऐसा बदलाव हुआ, जो लगभग अनदेखा रह गया है. ये बदलाव है मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को शामिल करने की बढ़ती प्रवृत्ति. भारत और ब्रिटेन (यूके) के बीच हाल ही में व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (सीईटीए) हुआ. भारत के लिए ये पहला ऐसा मुक्त व्यापार समझौता है, जिसमें लैंगिक मज़बूती पर अलग से एक अध्याय शामिल है. यह अध्याय महिलाओं के लिए व्यापार के लाभों को बढ़ाने के प्रति एक मज़बूत प्रतिबद्धता पर ज़ोर देता है. इतना ही नहीं महिला उद्यमियों को ताक़त देने के लिए ये कदम आगे जाता है. ये समझौता, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में प्रगति को मापने के लिए एक निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली के साथ एक व्यापार और लैंगिक समानता कार्य समूह (TGEWG) की स्थापना को अनिवार्य बनाता है.
एक दशक पहले तक, बहुपक्षीय स्तर पर व्यापार और लैंगिक सशक्तिकरण संबंधी कोई प्रावधान नहीं थे. व्यापार और जेंडर पर पहली विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) कार्य
योजना 2017 में शुरू की गई थी, और फिर इसे 2021-2026 तक बढ़ा दिया गया था. इसे व्यापार और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के चार उद्देश्यों पर आधारित किया गया था:
जागरूकता बढ़ाना, सदस्यों की गतिविधियों को सुगम बनाना, सरकारी अधिकारियों और महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण देना, डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना. जहां
विकास नीतियों में महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता मिली है, वहीं व्यापार नीतियां अब तक लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाने से कतराती रही हैं, जबकि पर्याप्त प्रमाण
हैं कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार महिलाओं के जीवन को बदल सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बेहतर रोज़गार सृजित करके, वेतन बढ़ाकर, उच्च-कुशल कार्य और उद्यमिता के रास्ते खोलकर, आर्थिक असमानताओं को कम करके महिलाओं के जीवन को बदल सकता है. लैंगिक समानता पर व्यापार का प्रभाव दूरगामी है. ये शिक्षा, स्वास्थ्य fला उद्यमियों को ताक़त देने के लिए ये कदम सेवा और तकनीक तक महिलाओं की पहुंच को बढ़ाता है.
यह अध्याय महिलाओं के लिए व्यापार के लाभों को बढ़ाने के प्रति एक मज़बूत प्रतिबद्धता पर ज़ोर देता है. इतना ही नहीं महिला उद्यमियों की स्थिति सुदृढ़ करने के लिए यह कदम और आगे बढ़ता है. ये समझौता, महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में प्रगति को मापने के लिए एक निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली के साथ एक व्यापार और लैंगिक समानता कार्य समूह (TGEWG) की स्थापना को अनिवार्य बनाता है.
विश्व व्यापार संगठन की 2020 की एक रिपोर्ट से पता चला है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में शामिल व्यवसायों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है. विकासशील देशों में, व्यापारिक फर्मों में महिलाओं की संख्या 33 प्रतिशत है, जबकि सिर्फ घरेलू बाज़ारों में काम करने वाली फर्मों में यह संख्या 24 प्रतिशत है. इसके अलावा, जो देश व्यापार के प्रति अधिक खुले हैं, वहां लैंगिक समानता का स्तर भी ज़्यादा है. इसके बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है और उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इनमें नेटवर्क बनाने, निर्णय लेने और पूंजी तक सीमित पहुंच जैसी बाधाएं शामिल हैं. इसके अलावा, व्यापार मिशन जैसे व्यापार संवर्धन पहलों में भागीदारी, निवेश प्रथाओं-प्रक्रियाओं में लैंगिक पूर्वाग्रह और अवैतनिक देखभाल कार्य की असंगत ज़िम्मेदारियों जैसी मुश्किलें भी महिलाओं को झेलनी पड़ती हैं.
समर्पित अध्यायों और संस्थागत तंत्रों के माध्यम से व्यापार समझौतों में महिलाओं को शामिल करना उन्हें आर्थिक रूप से मज़बूत कर सकता है. व्यापार समझौते में लक्षित नीतियों को शामिल करने से क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महिलाओं की समान और सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिल सकता है. चिली, कनाडा और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे देश व्यापार समझौतों में लैंगिक समानता संबंधी प्रावधानों को शामिल करने में अग्रणी रहे हैं. कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी अलग-अलग स्तर पर इन्हें लागू करके लैंगिक-संवेदनशील प्रावधानों वाले मुक्त व्यापार समझौतों पर बातचीत की है. इसके अलावा, ब्रिटेन ने पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ 'व्यापार और लैंगिक समानता अध्याय', और यूके-जापान व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते में 'व्यापार में महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण' अध्याय पर भी बातचीत की है.
भारत-ब्रिटेन एफटीए के 'व्यापार और लैंगिक समानता' अध्याय में कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. लैंगिक समानता को व्यापार संबंधों के मुख्यधारा में लाया गया है. इन प्रावधानों को केंद्रीय स्तंभ के रूप में स्थापित किया गया है, जिससे लैंगिक सशक्तिकरण परिणामों पर निरंतर राजनीतिक ध्यान रहेगा और जवाबदेही सुनिश्चित होगी.
व्यापार और लैंगिक समानता कार्य समूह की स्थापना: कार्य समूह की परिकल्पना एक समर्पित संस्थागत तंत्र के रूप में की गई है. इसमें दोनों देशों के सरकारी प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिन्हें लैंगिक मुख्यधारा के लिए कार्य योजनाएं और लक्ष्य तैयार करने की जिम्मदारी दी गई है. इस कार्य समूह को काम में प्रगति की निगरानी के लिए नियमित बैठकें एवं आकलन करने, और एफटीए के तहत स्थापित गतिविधियों के सहयोग पर ब्रिटेन-भारत संयुक्त समिति को सिफारिशें करने का कार्य सौंपा गया है.
महिलाओं से संबंधित संरचनात्मक बाधाओं की पहचान: यह अध्याय महिला उद्यमियों और व्यापारियों के सामने आने वाली सबसे गंभीर बाधाओं की सूक्ष्मता से पहचान करता है. इसमें विशेष रूप से बाज़ार तक पहुंच, वित्तीय समावेशन, व्यापार के लिए वित्तीय मदद और व्यावसायिक नेटवर्क में भागीदारी के संबंध में मुश्किलों की पहचान करना शामिल है. समझौते का ये अध्याय इन बाधाओं को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की सिफारिश करता है, जैसे कि महिला व्यवसाय स्वामियों के लिए व्यापार मिशनों को बढ़ावा देना, महिलाओं के नेतृत्व वाले लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना और वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में उनके एकीकरण को सुगम बनाना.
कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी अलग-अलग स्तर पर इन्हें लागू करके लैंगिक-संवेदनशील प्रावधानों वाले मुक्त व्यापार समझौतों पर बातचीत की है. इसके अलावा, ब्रिटेन ने पहले ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के साथ 'व्यापार और लैंगिक समानता अध्याय', और यूके-जापान व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते में 'व्यापार में महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण' अध्याय पर भी बातचीत की है.
साक्ष्य-आधारित निगरानी: इस अध्याय में लैंगिक समानता पर आधारित डेटा एकत्र करने और व्यापार नीतियों का उसी हिसाब से विश्लेषण करने की सिफारिश की गई है. समझौते में दोनों सरकारों से महिलाओं और पुरुषों पर व्यापार उदारीकरण के विभिन्न प्रभावों पर नज़र रखने, अनुकूल नीतिगत प्रतिक्रियाओं को सक्षम करने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में ऐसी प्रगति करने की अपील की गई है, जिसे भौतिक रूप से मापा जा सके.
भारत ने अपने व्यापार और लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम में लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाने के लिए एक व्यापक रणनीति शुरू की है. भारत सरकार की राष्ट्रीय व्यापार सुविधा कार्य योजना (NTFAP) 2020-23 लैंगिक समावेशिता को एक आधारभूत सिद्धांत के रूप में स्थापित करती है. इस कार्य योजना के एक्शन प्वाइंट-27 में क्षमता निर्माण कार्यक्रम, महिला उद्यमियों के लिए परामर्श नेटवर्क और महिला व्यापारियों के लिए लक्षित सहायता उपायों को अनिवार्य किया गया है. राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति और प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, दोनों ही लैंगिक समावेशिता को एक महत्वपूर्ण, व्यापक प्राथमिकता के रूप में मान्यता देते हैं.
रणनीतिक रूप से प्रमुख माने जाने वाले मंत्रालयों ने तीन अलग-अलग माध्यमों से महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, उद्योग संघों और अनुसंधान संस्थानों के साथ साझेदारी की है. इन्हें व्यापारियों और उद्यमियों के रूप में, लॉजिस्टिक मुहैया कराने वाले सेवा प्रदाताओं के रूप में, और बंदरगाहों और रसद केंद्रों पर परिचालन कर्मचारियों के रूप में मान्यता दी गई है.
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के लॉजिस्टिक्स डिवीज़न ने लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाने के लिए एक समर्पित खाका तैयार किया है. केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने सीमा शुल्क संचालन में लैंगिक एकीकरण को मज़बूत करने, नीतिगत ढांचे और सीमा पार महिलाओं के लिए कार्य स्थितियों, में बदलाव लाने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं. भारतीय भूमि बंदरगाह प्राधिकरण (एलपीएआई) ने समर्पित शौचालय, स्तनपान सुविधाएं और बेहतर सुरक्षा प्रोटोकॉल सहित ठोस सुधार लाने के लिए एक व्यवस्थित मॉडल समीक्षा चेकलिस्ट लागू की है. इसके अलावा, बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय ने भारतीय बंदरगाहों पर महिलाओं के सामने आने वाली बाधाओं का व्यवस्थित रूप से विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण के बाद उसने लैंगिक-संवेदनशील बुनियादी ढांचे के लिए लक्षित सिफारिशें की है, इसके साथ ही, बंदरगाहों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने का भी समर्थन किया है.
इस कार्य योजना के एक्शन प्वाइंट-27 में क्षमता निर्माण कार्यक्रम, महिला उद्यमियों के लिए परामर्श नेटवर्क और महिला व्यापारियों के लिए लक्षित सहायता उपायों को अनिवार्य किया गया है. राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति और प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान, दोनों ही लैंगिक समावेशिता को एक महत्वपूर्ण, व्यापक प्राथमिकता के रूप में मान्यता देते हैं.
महिलाओं ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है. इसमें पूरी तरह महिलाओं द्वारा संचालित भंडारण सुविधाएं, अंतर्देशीय कंटेनर डिपो, परामर्शदाताओं का बड़ा नेटवर्क, समर्पित सहायता डेस्क और ठोस समावेशन लक्ष्य शामिल हैं. इस सबके बावजूद, भारत में महिलाओं का एक बड़ा वर्ग संरचनात्मक बाधाओं से विवश है. इसका मुख्य कारण तेजी से डिजिटल होती व्यापार प्रक्रियाएं, लैंगिक बराबरी के बुनियादी ढांचे की कमी और अब तक चली आ रही संगठनात्मक संस्कृति है. इसके अलावा, लगातार बदलती भू-राजनीतिक गतिशीलता और टैरिफ बाधाओं में वृद्धि ने भी मुश्किलें खड़ी की हैं. निर्यात-उन्मुख विनिर्माण क्षेत्रों-जैसे कि कपड़ा, चमड़ा, रत्न, आभूषण, और रसायन आदि में काम करने वाली महिलाओं के लिए इसने कहीं अधिक असुरक्षित स्थिति पैदा कर दी है.
महिला व्यापारियों, सीमा शुल्क का काम कराने वालों, मालवाहकों, क्रेन ऑपरेटरों, बंदरगाह अधिकारियों और विभिन्न मूल्य श्रृंखलाओं की महिलाओं के जीवन में सच्चा परिवर्तन लाना काफ़ी चुनौतीपूर्ण है. उनकी स्थिति में वास्तविक बदलाव लाना इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में जिन बातों का उल्लेख किया गया है, उन्हें कितने प्रभावी ढंग से लागू किया जाता है. इसके लिए तीन प्रमुख तत्वों की आवश्यकता है: वित्तपोषण या वित्तीय मदद, तकनीकी विशेषज्ञता और राजनीतिक इच्छाशक्ति.
राजनीतिक इच्छाशक्ति और लैंगिक समानता के समर्थक: लैंगिक भेदभाव कम करने के लिए बनाए गए कार्य समूह को वरिष्ठतम अधिकारियों के नेतृत्व में सशक्त बनाया जाना चाहिए. उनके पास निर्णय लेने का अधिकार हो और जो लैंगिक समानता को मुख्यधारा में लाने के सच्चे समर्थक हों. उच्च-स्तरीय राजनीतिक समर्थन के बिना, ये समूह सार्थक परिवर्तन के उत्प्रेरक के बजाय एक दिखावटी कार्य समूह बनकर रह जाएगा.
तकनीकी क्षमता और वित्तपोषण: ब्रिटेन और भारत की सरकारों को कार्य समूह को ज़रूरी तकनीकी सहायता मुहैया करने के लिए समर्पित वित्तपोषण तंत्र स्थापित करना होगा. इसमें व्यापार और लैंगिक समानता के लिए काम कर चुके विशेषज्ञों को शामिल करना, व्यापक वार्षिक लैंगिक कार्य योजनाएं विकसित करना और मज़बूत निगरानी ढांचे बनाना शामिल है. प्रतिनिधित्व में अलग-अलग भारतीय राज्यों की विशेषज्ञता भी शामिल होनी चाहिए, जिससे नीति-निर्माण में क्षेत्रीय दृष्टिकोण और वास्तविक स्थानीय ज्ञान सुनिश्चित हो सके.
जमीनी स्तर पर नेतृत्व नेटवर्क निर्माण: कार्य समूह को भारत के विशाल व्यापारिक ढांचे में महिला व्यापारियों, लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदाताओं और सुविधा कर्मचारियों के साथ सक्रिय रूप से संबंध विकसित करने होंगे. सिर्फ मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद और चेन्नई जैसे प्रमुख शहरों में ही ध्यान केंद्रित करने से बात नहीं बनेगी, बल्कि तूतीकोरिन, विशाखापत्तनम, कोच्चि, गोवा और कई अन्य शहरों को भी इस नेटवर्क से जोड़ना होगा. निजी क्षेत्र, उद्योग संघों (विशेषकर उनकी महिला शाखाओं) और सामुदायिक संगठनों से साझेदारी के माध्यम से जमीनी अनुभव और कार्यान्वयन के व्यावहारिक रास्ते सामने आ सकते हैं.
कार्यान्वयन की कमियों को दूर करना: मुक्त व्यापार समझौते के वर्तमान अध्याय में महिला लॉजिस्टिक्स सेवा प्रदाताओं और व्यापार सुविधा कर्मचारियों पर सीमित ध्यान एक महत्वपूर्ण कमी को दर्शाता है. कार्य समूह को इन उपेक्षित, लेकिन ज़रूरी हितधारकों को प्राथमिकता देनी चाहिए. उसे ऐसे लक्षित हस्तक्षेप विकसित करने चाहिए जो बंदरगाह संचालन, सीमा शुल्क सुविधाओं और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क में महिला व्यापारियों की विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करें.
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में भारत-ब्रिटिश मुक्त व्यापार समझौते की सफलता मज़बूत कार्यान्वयन, दृढ़ राजनीतिक प्रतिबद्धता, तकनीकी सहायता और ज़मीनी स्तर के हितधारकों की सार्थक भागीदारी पर निर्भर करेगी. लगातार कोशिश करते रहने से पूरी मूल्य श्रृंखला में महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. मज़बूत इच्छाशक्ति ही लैंगिक-संवेदनशील व्यापार समझौतों के लिए एक आदर्श स्थापित कर सकती है, जो सभी के लिए समावेशी विकास और अवसर प्रदान करते हैं.
सुनैना कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में निदेशक और सीनियर फेलो हैं.
मिताली निकोर एक अर्थशास्त्री हैं. इसके साथ ही वो युवा-नेतृत्व वाली पॉलिसी और इकोनॉमिक थिंक टैंक, निकोरे एसोसिएट्स की संस्थापक हैं.
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Sunaina Kumar is Director and Senior Fellow at the Centre for New Economic Diplomacy at the Observer Research Foundation. She previously served as Executive Director ...
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Mitali Nikore is an experienced infrastructure and industrial development economist and founder of Nikore Associates a youth-led policy design and economics think tank
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