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चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल को नई गति प्रदान की जा रही है और नया आकार दिया जा रहा है. इसके लिए खरबों डॉलर के समझौतों के साथ ही इसे ग्रीन टेक्नोलॉजी का केंद्र बिंदु बनाया जा रहा है, ताकि वैश्विक कनेक्टिविटी के मामले में यह पहल पश्चिमी प्रतिद्वंद्वियों की पहलों से आगे निकल जाए.
Image Source: Getty
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को शुरू हुए 11 वर्ष हो चुके हैं. देखा जाए तो यह दुनिया की सबसे बड़ी कनेक्टिविटी पहल है, बावज़ूद इसके शुरुआत से ही इस परियोजना को तमाम उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है, यानी इसे सफलताओं से ज़्यादा असफलताओं से जूझना पड़ा है. वैश्विक स्तर पर व्यापक कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास से जुड़ी चीन की इस पहल को न केवल अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की तरफ से आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि चीनी राष्ट्रपति की इस पहल को संदेह की नज़र से भी देखा जा रहा है. इन सारी वास्तविकताओं के बावज़ूद BRI में वैश्विक भागीदारी 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के पार हो चुकी है और इसके अंतर्गत दुनिया के 150 देशों में 38 आर्थिक सेक्टरों में 20,700 BRI परियोजनाओं को स्थापित और संचालित किया जा रहा है.
चीन अपनी बीआरआई पहल के महत्व को बरक़रार रखने की कोशिशों में जुटा है. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्ष 2023 में तीसरे बेल्ट एंड रोड फोरम (BRF) का आयोजन किया था. इसका मकसद, बीआरआई को आगे बढ़ाने में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना और वैश्विक स्तर पर इसकी आलोचना से निपटने के लिए रणनीति तय करना था. इसके अलावा, बीआरएफ आयोजित करने का उद्देश्य बीआरआई को भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के नए क्षेत्रों जैसे कि न्यू एनर्जी, हरित परिवर्तन तकनीक़ों, दुर्लभ कच्चे खनिज, व्यापार को गति देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर गलियारों के मुताबिक़ बदलने की दिशा में काम करना था. तीसरे बीआरएफ के दौरान जिन मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया था, उन्हें संकलित करते हुए एक दस्तावेज़ भी जारी किया गया. इसके मुताबिक, फोरम में बीआरआई के तहत व्यावहारिक सहयोग के नज़रिए को अपनाने, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को प्रमुखता देने, व्यापार के वैश्वीकरण, नई और हरित ऊर्जा परिवर्तन तकनीक़ों में सहयोग स्थापित करने पर बल दिया गया, साथ ही बीआरआई के तहत जो भी कनेक्टिविटी सहयोग किया जा रहा है, उनमें वैश्विक मापदंडों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया. इसके अलावा, बढ़ती जवाबदेही एवं हर छोटे से छोटे मुद्दों को तवज्जो देने व उनका हल निकालने के लिए बीआरआई के संस्थागतकरण को बढ़ावा देने यानी इसे नियमों और मानकों के तहत लाने पर भी फोकस किया गया.
इस लेख में व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में वैश्विक कनेक्टिविटी सहयोग के क्षेत्र में बदले हुए बीआरआई का विस्तृत विश्लेषण किया गया है, साथ ही बीआरआई में हुए संरचनात्मक बदलावों और वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक़ किए गए अनुकूलन प्रयासों का भी आकलन किया गया है.
बीआरएफ को आयोजित हुए लगभग दो साल बीत चुके हैं, ऐसे में उस दौरान जिन विषयों पर चर्चा की गई थी और जिन बातों पर ध्यान देने और अमल में लाने का संकल्प लिया गया था, उनका मूल्यांकन बेहद ज़रूरी हो गया है. इस लेख में व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में वैश्विक कनेक्टिविटी सहयोग के क्षेत्र में बदले हुए बीआरआई का विस्तृत विश्लेषण किया गया है, साथ ही बीआरआई में हुए संरचनात्मक बदलावों और वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक़ किए गए अनुकूलन प्रयासों का भी आकलन किया गया है.
बेल्ट एंड रोड पहल के कार्यान्वयन में सामने आ रही चुनौतियों का हल निकालने के लिए चीन ने तीसरे बीआरएफ के दौरान न केवल अपनी इस महत्वाकांक्षी पहल के तौर-तरीक़ों में बुनियादी बदलाव का मसौदा तैयार किया, बल्कि ऐसे पांच मुद्दों की खोज की जिन पर गंभीरता से काम करने की ज़रूरत है. इनमें बीआरआई के अंतर्गत निर्मित की जा रही परियोजनाओं को पर्यावरण अनुकूल बनाने पर ज़ोर देना, साझेदार देशों की कर्ज़ स्थिरता पर ज़्यादा ध्यान देना, चीन के निजी सेक्टर की भागीदारी को बढ़ाना और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना शामिल है. इसके अलावा बीआआई के तहत बनाई जा रही बड़ी-बड़ी परियोजनाओं की जगह छोटी-छोटी परियोजनाओं के निर्माण पर फोकस करने का भी निर्णय लिया गया.
वर्ष 2024 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो, इस साल के अंत में BRI परियोजनाओं में चीन की आर्थिक भागीदारी 1.174 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी. इसमें से निर्माण से जुड़े अनुबंधों में चीन की हिस्सेदारी 704 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जबकि निवेश में 470 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी. वर्ष 2019 और 2022 के बीच बीआरआई में चीन की आर्थिक हिस्सेदारी बहुत कम हो गई थी, वर्ष 2022 में तो यह गिरकर 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी नीचे चली गई थी. हालांकि, इसके बाद के दो वर्षों में BRI के तहत चीन की आर्थिक भागीदारी में ज़बरदस्त वृद्धि दर्ज़ की गई. वर्ष 2023 और 2024 में BRI निवेश एवं निर्माण अनुबंध का अनुपात 52:48 था, जो कि अब तक का सबसे अधिक 52.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. इसके अलावा, बीआरआई में चीन की आर्थिक भागीदारी भी अब तक सबसे अधिक यानी 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज़ की गई थी.
पता चलता है कि चीन पश्चिमी देशों की कनेक्टिविटी पहलों की तर्ज पर बीआरआई में भी निजी कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रहा है
इतना ही नहीं, जब से बीआरआई की शुरुआत हुई है, उसके बाद यह पहली बार था जब वर्ष 2023 और 2024 में इसके तहत किए जाने वाले समझौतों का औसत आकार 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर से भी कम हो गया. इससे ज़ाहिर होता है कि चीन का ज़ोर बीआरआई के तहत छोटी और मझोली परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर है. तीसरे बीआरएफ के दौरान चीन ने जो मुख्य प्रतिबद्धताएं जताई थीं, उनमें छोटी परियोजनाओं के निर्माण को तवज्जो देना भी शामिल था. इसके अलावा, पहली बार वर्ष 2023 में चीनी निजी कंपनियों BYD, हुआयू कोबाल्ट और CATL यानी कंटेम्पररी एम्परेक्स टेक्नोलॉजी कंपनी लिमिटेड बीआरआई की सबसे बड़ी निवेशक बनकर सामने आईं. ज़ाहिर है कि चीन द्वारा आयोजित तीसरे BRF में 384 निजी कंपनियों ने भागीदारी की थी, जबकि दूसरे BRF में महज 274 चीनी निजी कंपनियां शामिल हुई थीं. यानी इस दौरान निजी कंपनियों की भागीदारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज़ की गई थी. इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि चीन के निजी सेक्टर में किस प्रकार से बीआरआई के तहत चलाई जा रही परियोजनाओं में निवेश करने का आकर्षण है, इसके अलावा यह इन कंपनियों की जोख़िम लेने की क्षमता को भी दिखाता है. इससे यह भी ज़ाहिर होता है कि चीन बीआरआई के तहत छोटी और टिकाऊ परियोजनाओं के निर्माण की तरफ कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है. इससे यह भी पता चलता है कि चीन पश्चिमी देशों की कनेक्टिविटी पहलों की तर्ज पर बीआरआई में भी निजी कंपनियों की भागीदारी को प्रोत्साहित कर रहा है, ज़ाहिर है कि पश्चिमी पहलों में सरकारी विकास सहायता की जगह पर निजी कंपनियों की भागीदारी को प्राथमिकता दी जाती है. इतना ही नहीं, पिछले दो वर्षों के दौरान रणनीतिक और भौगोलिक लिहाज़ से भी BRI की भागीदारी में काफ़ी बदलाव दिखाई दिया है. पिछले दो वर्षो में एक तरफ जहां अफ्रीका और पश्चिम एशिया की भागीदारी में ज़बरदस्त इज़ाफा हुआ है, वहीं BRI में हरित ऊर्जा, डिजिटल, टिकाऊ, रणनीतिक लिहाज़ से अहम परियोजनाओं और हरित एवं नई प्रौद्योगिकी से जुड़ी परियोजनाओं की ओर उल्लेखनीय परिवर्तन भी दिखाई दिया है.
बीआरआई के तहत बीजिंग की ओर से टेक्नोलॉजी, विनिर्माण और खनन और मेटल्स जैसे सेक्टरों में जो भी निवेश किया जा रहा है और जो भी अनुबंध किए गए हैं, उन सभी का लक्ष्य कहीं न कहीं हरित ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में हर स्तर अपनी पकड़ को मज़बूत करना है. चीन हरित ऊर्जा के उत्पादन, एनर्जी ट्रांसमिशन यानी ऊर्जा के एक जगह से दूसरी जगह पर स्थानांतरण और महत्वपूर्ण खनिजों के शोधन में विश्व का सबसे अग्रणी राष्ट्र है. ऐसे में स्पष्ट हो जाता है कि इस सेक्टरों में चीन के ओर से किए जाने वाले निवेश का जो सबसे बड़ा मकसद है, वो उभरती हुई तकनीक़, हरित परिवर्तन प्रौद्योगिकियों और दुर्लभ कच्चे खनिज (CRMs) से संबंधित आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े क्षेत्रों में बीजिंग के दबदबे को और बढ़ाना है. ज़ाहिर है कि हरित ऊर्जा परिवर्तन एवं इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EV) के उद्योग के विकास को गति देने के लिए CRMs और नई प्रौद्योगिकी विनिर्माण बेहद ज़रूरी हैं. इन सेक्टरों में चीन की पैनी नज़र होने के कारण ही BRI के प्रौद्योगिकी विनिर्माण (22 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और धातु व खनन (30 बिलियन अमेरिकी डॉलर) सेक्टरों ने सबसे अधिक आर्थिक निवेश जुटाने का रिकॉर्ड बनाया है. वर्ष 2020 के बाद के आंकड़ों को देखें तो निवेश के मामले में प्रौद्योगिकी विनिर्माण सेक्टर ने 1,000 प्रतिशत और धातु व खनन क्षेत्र ने 124 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की है. धातु और खनन के सेक्टर में ये जो भी सर्वाधिक निवेश हुआ है, वो कहीं न कहीं BRI फ्रेमवर्क के अंतर्गत टेक्नोलॉजी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की फंडिंग में मदद करता है. यही वजह है कि पिछले दो वर्षों में बैटरी मैन्युफैक्चरिंग और हरित ऊर्जा उत्पादन में निवेश एवं निर्माण अनुबंधन कुल 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर था.
जिस प्रकार से बीजिंग पुरानी ऊर्जा और परिवहन सेक्टरों से अलग हटकर लगातार नई ऊर्जा, महत्वपूर्ण खनिजों, हरित ऊर्जा, तकनीक़ी आपूर्ति श्रृंखला और विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखा रहा है और रणनीतिक लिहाज़ से इन सेक्टरों की ओर रुख कर रहा है, वो दिखाता है कि बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का तानाबाना किस प्रकार तेज़ी के साथ बदल रहा है. इससे यह पता चल रहा है कि पश्चिमी देशों ने चीन की जिस महत्वाकांक्षी पहल को बेकार और बेमानी बता दिया है वो किस प्रकार उन्हें आईना दिखा रही है.
वैश्विक परिदृश्य में कनेक्टिविटी सहयोग की भू-राजनीति कितनी अहम है, चीन के BRI ने इस बात को बखूबी दुनिया के सामने लाने का काम किया है. वर्ष 2013 में बीआरआई की शुरुआत हुई थी और उसके बाद से जनवरी 2025 तक के आंकड़ों को देखें तो चीन ने दुनिया के 150 देशों के साथ 250 से ज़्यादा BRI सहयोग समझौते किए हैं. इसके अलावा, बीजिंग वर्ष 2023 में द्विपक्षीय बेल्ट एंड रोड सहयोग के ज़रिए 91 बीआरआई राष्ट्रों का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार भी बनकर उभरा है. वर्ष 2024 में चीन का बीआरआई देशों के साथ व्यापार 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर गया था. इसके अलवा, सभी BRI राष्ट्रों में चीन का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 483.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गया था.
बीजिंग की ओर से जिस तरह से BRI फ्रेमवर्क के अंतर्गत अलग-अलग क्षेत्रों में अपने आर्थिक सहयोग को बढ़ाया है, उसने देखा जाए तो चीन को वैश्विक स्तर पर और ख़ास तौर पर विकासशील देशों में भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक ताक़त के रूप में स्थापित किया है. ज़ाहिर है कि यह कहीं न कहीं एक महाशक्ति के रूप में चीन की सॉफ्ट पावर को मज़बूती देने का भी काम करता है. पश्चिमी कनेक्टिविटी पहलें और चीन के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी यानी भारत व जापान जैसे देशों की ओर से जो भी संपर्क परियोजनाएं शुरू की गई हैं, देखा जाए तो उनका मुक़ाबला बीआरआई के साथ ही है. जब भी मौक़ा मिला है ये देश BRI की कमियों और दोषों को सामने लाए हैं. जैसे कि इन देशों ने कहा है कि चीन का बीआरआई विकास के तानाशाही मॉडल, भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन, अपारदर्शिता, एक देश के प्रभुत्व का जीता-जागता उदाहरण है. इसके अलावा इन देशों ने बीआरआई के विकल्प के रूप में वैश्विक स्तर पर चलाई जा रहीं अपनी कनेक्टिविटी पहलों, जैसे ग्लोबल गेटवे, ब्लू डॉट नेटवर्क, भारत के IDEAS यानी भारतीय विकास एवं आर्थिक सहायता योजना को लोकतांत्रिक, टिकाऊ और वित्तीय रूप से ज़िम्मेदार यानी बजट को सोच-समझ कर ख़र्च करने वाला बताया है. हालांकि, यह भी एक सच्चाई है कि तीसरे बेल्ट एंड रोड फोरम के बाद जिस तरह से बीआरआई पहल में बदलाव आया है, वो अब इन देशों की कनेक्टिविटी पहलों से कहीं भी कमतर नहीं दिखाई दे रही है, यानी इन्हें टक्कर दे रही है.
ज़ाहिर है कि अगर ये देश इस दिशा में तेज़ी के साथ अपने क़दम आगे नहीं बढ़ाते हैं, तो अमेरिका के पीछे हटने से विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण में जो जगह खाली हुई है, वहां चीन अपने पैर जमा लेगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन में अमेरिकी विदेश नीति में जो उतार-चढ़ाव हो रहा है, उसने कहीं न कहीं कनेक्टिविटी सहयोग की अहमियत को ही समाप्त सा कर दिया है. हालांकि, ट्रंप ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे एवं पार्टनरशिप फॉर ग्लोबर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (PGII’s) की लोबिटो कॉरिडोर परियोजना का समर्थन करने का ऐलान किया है. बावज़ूद इसके भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस जैसे देशों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए और पिछले वर्षों में शुरू किए गए कनेक्टिविटी सहयोग (व्यापार को सुगम बनाने वाले आधारभूत ढांचे के विकास, निवेश और नियम-क़ानूनों को सुव्यवस्थित करने) को आगे बढ़ाना चाहिए. ज़ाहिर है कि अगर ये देश इस दिशा में तेज़ी के साथ अपने क़दम आगे नहीं बढ़ाते हैं, तो अमेरिका के पीछे हटने से विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण में जो जगह खाली हुई है, वहां चीन अपने पैर जमा लेगा. कहने का मतलब है कि जिस प्रकार से चीन ने वर्ष 2005 और 2015 के बीच अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में अपना प्रभुत्व स्थापित है (जिसने विकास कूटनीति में BRI की ताक़त को सशक्त किया) कुछ वैसा ही वह दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी कर लेगा.
चीन का बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव किसी भी लिहाज़ से कमज़ोर नहीं हो रहा है, बल्कि वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक़ और बदलती भू-राजनीति के अनुसार हालातों के साथ तालमेल बैठाते हुए बदलाव के दौर से गुजर रहा है और एक संतुलित रणनीति के तहत मज़बूती से आगे बढ़ रहा है. तीसरे बीआरएफ में जिन सुधारों का ऐलान किया गया था, उनमें स्थिरता, डिजिटलीकरण और निजी सेक्टर की अधिक से अधिक भागीदारी को बढ़ावा देना शामिल था. ज़ाहिर है कि ये क़दम एक तरफ रक्षात्मक रणनीति के तौर पर बीआरआई की प्रमाणिकता और विश्वसनीयता को बरक़रार रखने के लिए कारगर हैं, वहीं दूसरी ओर कमियों को दूर करके सुधार की दिशा में गंभीर कोशिश भी हैं. निसंदेह रूप से बीजिंग बीआरआई को लेकर दुनिया की सोच को बदलना चाहता है और इसके लिए अपनी इस पहल को नए तेवर और कलेवर में सामने लाने में जुटा हुआ है. लेकिन उसकी इस पहल के बारे में अपारदर्शिता, रणनीतिक लाभ में चालाकी, बेमेल विकास नतीज़े जैसे कई बुनियादी सवाल पहले की तरह क़ायम हैं. ऐसे में अगर लोकतांत्रिक देशों की तरफ से किफायती, समावेशी और सभी हितधारकों के लिए लाभकारी वैकल्पिक कनेक्टिविटी पहलों पर गंभीरता से काम नहीं किया जाता है, तो इस बात का ख़तरा बहुत ज़्यादा है कि नए कलेवर और तेवर के साथ पेश किया गया चीन का बीआरआई न केवल सशक्त होगा, बल्कि उसकी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाली कनेक्टिविटी परियोजना के रूप में मज़बूती से स्थापित हो जाएगा.
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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Prithvi Gupta is a Junior Fellow with the Observer Research Foundation’s Strategic Studies Programme. Prithvi works out of ORF’s Mumbai centre, and his research focuses ...
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