Published on Oct 03, 2020 Updated 0 Hours ago

अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को सावधानीपूर्वक खड़ा करना होगा ताकि पिछले दशक में हासिल मानव विकास के स्तर को बरकरार रख कर समानांतर मानवीय त्रासदी से बचा जा सके.

कोविड-19 से जंग: वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया का रिकॉर्ड बेहतर, लेकिन लड़ाई लंबी

दक्षिण एशिया के देशों में आबादी का घनत्व अधिक ही रहा है. इनमें लोग बड़ी संख्या में शहरी झोपड़-पट्टी एवं गांवों में भिचे-भिचे घरों में रहते हैं. यह बस्तियां नोवल कोरोना वायरस महामारी के संक्रमण का उपजाउ ठिकाना बन गई हैं.

दुनिया में चौतरफा ग़रीबों की कुल संख्या में से आधे लोग स्वास्थ्य एवं पोषण जैसी बुनियादी सुविधाओं से महरूम होकर दक्षिण एशिया के देशों में निवासरत हैं. इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का भी नितांत अभाव है. दक्षिण एशिया के कुछेक मानव विकास सूचकांक विशेषकर कुपोषण संबंधी संकेत सहारा में बसे अफ्रीकी मुल्कों की आबादियों से भी बदहाल हैं. ऐसा चूंकि गरीबी में ख़ासी कमी करने में इन देशों की सफलता और वहां से बेहतर आर्थिक वृद्धि के बावजूद है इसलिए विशेषज्ञ इसे ‘दक्षिण एशियाई पहेली’ कहते हैं. बढ़ती विषमता एवं सबको समान बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में नाकामी से यह धारणा और पक्की हो गई कि इस क्षेत्र के लिए कोविड19 घातक सिद्ध हो सकता है. लगातार छह महीने से कोविड19 महामारी फैलने के बावजूद दक्षिण एशिया की मृत्यु दर से अधिकतर लोग चकरा गए हैं.

दिनांक 15 सितंबर, 2020 आते—आते दुनिया में कुल उजागर संक्रमणों में 19 प्रतिशत तथा कुल मृत्यु में 10 प्रतिशत दक्षिण एशिया में पाई गईं. यह अनुपात पूरे दक्षिण एशिया में महामारी के आंकड़ों में अकेले भारत में 87 फीसदी संक्रमण तथा 86 प्रतिशत मृत्यु दर की भागीदारी के कारण कुछ विषम हो गया.

महामारी फैलने के महीने भर में दुनिया की सबसे विकसित अर्थव्यवस्थाओं को कोविड19 से संक्रमितों की संख्य़ा एवं मृत्युओं में अपूर्व तेज़ी झेलनी पड़ी. एकबार तो ऐसा लगा कि वे वायरस से निपटने में नाकाम हो गए. उसी बीच उत्तरी अमेरिकी, पूर्वी एशियाई एवं पश्चिमी यूरोपीय देशों के मुकाबले अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान एवं श्रीलंका को मिलाकर समूचे दक्षिण एशिया में संक्रमण एवं मृत्यु दोनों की दर बहुत कम रही. दुनिया की कुल आबादी में 23.4 प्रतिशत लोगों को बसाए हुए दक्षिण एशिया द्वारा 20 अप्रैल, 2020 को महामारी में महज 1.25 प्रतिशत संक्रमणों तथा 0.5 प्रतिशत मृत्यु का योगदान किया गया. दिलचस्प यह है कि कोविड19 से संक्रमण और मृत्यु की दर अफ्रीका में इसी तरह निम्न स्तर पर है. विशेषज्ञ उसे भी ‘अफ्रीकी पहेली/रहस्य’ बता रहे हैं.

दिनांक 15 सितंबर, 2020 आते—आते दुनिया में कुल उजागर संक्रमणों में 19 प्रतिशत तथा कुल मृत्यु में 10 प्रतिशत दक्षिण एशिया में पाई गईं. यह अनुपात पूरे दक्षिण एशिया में महामारी के आंकड़ों में अकेले भारत में 87 फीसदी संक्रमण तथा 86 प्रतिशत मृत्यु दर की भागीदारी के कारण कुछ विषम हो गया. महामारी फैले छह महीने बीतने पर दक्षिण एशिया की विशाल आबादी के मद्देनज़र प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 3054 संक्रमण एवं प्रति 10 लाख लोगों में सिर्फ 50 की मृत्यु दर निराशाजनक तो नहीं कही जा सकती.

इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि इन देशों में चूंकि सामुदायिक संक्रमण देर से फैल रहा है इसलिए संक्रमितों की संख्य़ा कम है. इसकी वजह स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण आरंभ में ही देशव्यापी लॉकडाउन एवं अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर रोक लगाया जाना बताई जा रही है. इसके पीछे यह अवधारणा भी है कि सबको बचपन में ही तपेदिकरोधी बीसीजी टीका/वैक्सीन लगने और इन देशों में कोरोना वायरस की अन्य किस्मों के प्रकोप के कारण लोगों में महामारी की प्रतिरोध क्षमता पैदा हो गई है. दूसरी ओर टैस्टिंग किटों और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण सिर्फ लक्षणयुक्त लोगों का ही परीक्षण हो रहा है और इससे इस विडंबना का आंशिक अंदाजा लगाया जा सकता है. इसके बावजूद दक्षिण एशिया में मृत्यु दर आश्चर्यजनक रूप में कम होना अकाट्य तथ्य है.

दक्षिण ए​शियाई देशों पर एक नज़र डालने से यह पता चलता है कि संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है और कुल संख्या डरावने स्तर पर पहुंची प्रतीत होती है मगर उसकी कुल आबादी से तुलना करने पर परिणाम बदल जाता है. पहले ग्राफ में दक्षिण एशियाई देशों में प्रति 10 लाख आबादी पर संक्रमितों एवं मृत्यु संख्या की (भारत के अलावा) 10 सबसे अधिक संक्रमित देशों से तुलना है. दक्षिण एशियाई देशों में संक्रमण फैलने तथा फिर महामारी से हुई मौतों की दर स्पष्ट रूप में कम इंगित हो रही है. आबादी के अनुपात में सबसे अधिक संक्रमित देश पेरू में प्रति 10 लाख आबादी पर (932) मृत्यु दर, दक्षिण एशिया में सबसे अधिक संक्रमित देश मालदीव में उतनी ही जनसंख्या पर (61) मृत्यु दर की तुलना में 15 गुना अधिक है. दक्षिण एशिया में संक्रमितों की कम संख्या का कारण अमूमन कम परीक्षण दर बताया जा रहा है मगर मृत्यु दर भी बहुत कम होने से और कुछ प्रतिध्वनित होता है.

चित्र 1: प्रति 10 लाख आबादी के अनुपात में दक्षिण एशिया में नोवल कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या बनाम प्रति 10 लाख जनसंख्या के अनुपात में हुई मृत्यु की संख्या

Data as of September 15, 2020, Source: https://www.worldometers.info/coronavirus/

वर्तमान में दुनिया के 20 सबसे अधिक संक्रमित देशों की सूची में दक्षिण एशिया के कुल आठ में केवल तीन देश: भारत, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान ही शामिल हैं। मृत्यु दर के लिहाज़ से अकेला भारत ही दुनिया में महामारी से सबसे अधिक मृतकों वाले देशों में शामिल है।

संक्रमितों तथा मृतकों की संख्य़ा भारत में हालांकि लगातार बढ़ रही है फिर भी भारत को सिर्फ कोविड19 पर ही नहीं बल्कि देश में फैले अन्य संक्रामक रोगों पर काबू पाने की कोशिश भी जारी रखनी होगी.

देश का भीतरी विश्लेषण

प्रति 10 लाख आबादी के अनुपात में संक्रमितों तथा मृत्यु संख्या के हिसाब से मालदीव का हाल खराब ही लगता है मगर उसका जनसंख्यात्मक आधार बेहद कम होने के कारण यह आंकड़े गुमराह भी कर सकते हैं क्योंकि संक्रमितों के समूहों में होने से प्रति आबादी आंकड़े अत्यधिक प्रतीत हो सकते हैं. सीमित स्वास्थ्य सेवा ढांचे के मद्देनज़र कुल मिलाकर मालदीव का हाल ठीक ही प्रतीत होता है. कोविड19 प्रक्षेपपथ (ग्राफ़ 2) से संक्रमण में ठहराव आता प्रतीत हो रहा है. देश हालांकि वायरस से डटकर लड़ता और निपटता हुआ प्रतीत हो रहा है मगर महामारी ने खतरे की अन्य घंटियां बजा दी हैं. देश की जीडीपी में दो-तिहाई योगदान इसके पर्यटन उद्योग का है जबकि विश्वव्यापी लॉकडाउन, यात्रा पर रोक, तथा डर से इसके तात्कालिक आर्थिक भविष्य पर ग्रहण लग सकता है।

चित्र 2: कोविड19 संक्रमित मामले: दक्षिण एशियाई देशों का प्रक्

महामारी फैलने के आरंभिक कुछ महीनों में भारत में जहां आश्चर्यजनक रूप में संक्रमितों और मृतकों की संख्या कम दिख रही थी वहीं यह देश अब दुनिया में दूसरा सबसे अधिक संक्रमित तथा तीसरा अधिकतम मृतकों का देश हो गया है. भारत की 1.3 अरब आबादी है इसलिए दक्षिण एशिया के अन्य देशों के मुकाबले इस देश में संक्रमितों की अधिक तादाद कतई आश्चर्यजनक नहीं है. आबादी के अनुपात में महामारी के आंकड़ों को समायोजित करने पर उसकी तीव्रता स्वयं ही कम प्रतीत होने लगती है फिर भी संक्रमितों एवं मृतकों की बढ़ती संख्या निश्चित ही चिंताजनक है.

ग्राफ-2 से भारत में संक्रमण फैलने की दर में ऊर्ध्वगामी रूझान दिखता है जिसमें निकट भविष्य में ठहराव का कोई संकेत नहीं मिल रहा. समूचे सितंबर माह में दैनिक संक्रमितों की संख्या (~90,000 से अधिक) तथा रोज़ाना मृतकों की संख्या (~1000 से अधिक) में लगातार अत्यधिक तेज़ी दर्ज हुई है. संक्रमितों तथा मृतकों की संख्य़ा भारत में हालांकि लगातार बढ़ रही है फिर भी भारत को सिर्फ कोविड19 पर ही नहीं बल्कि देश में फैले अन्य संक्रामक रोगों पर काबू पाने की कोशिश भी जारी रखनी होगी. यह अति आवश्यक है क्योंकि सबसे अधिक सख्ती से लगाए गए लॉकडाउन वाले देशों में शुमार होने के कारण  हमारी स्वास्थ्य सेवा और भारतीयों की रोज़ी-रोटी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं. भारत ने संक्रमण को जड़ें जमाने का मौका देकर हालांकि देर से परीक्षण बढ़ाए मगर अब जांच तेजी से और अधिक संख्या में की जा रही है. फिलहाल प्रतिदिन 10 लाख पर औसतन 42,000 की दर से परीक्षण किया जा रहा है.

बांग्लादेश और पाकिस्तान भी यही हाल दर्शा रहे हैं, जहां दोनों देशों में कोविड19 संक्रमितों की संख्या 3,00,000 से अधिक तथा प्रति 10 लाख जनसंख्या पर मृतकों की संख्या 29 हो गई है. संक्रमणों एवं मृत्यु के मामले में दोनों ही देशों में ठहराव आने के संकेत हैं. हालांकि प्रति 10 लाख जनसंख्या के अनुपात में इन दोनों ही देशों—पाकिस्तान (13,510 परीक्षण प्रति 10 लाख) तथा बांग्लादेश (10,645 जांच प्रति 10 लाख)—में परीक्षण की दर कम होने की सूचना के कारण भी संक्रमितों की संख्या कम आंके जाने की संभावना है। इसी प्रकार अफ़ग़ानिस्तान में तो 15 सितंबर तक संक्रमितों की संख्या बेहद कम 38,772 तथा मृतकों की भी 1,425 संख्या ही बताई गई है. यह दीगर है कि प्रति 10 लाख आबादी पर महज 2740 परीक्षणों के औसत से कुल 1,07,167 जांच करके अफ़ग़ानिस्तान की गिनती दुनिया में सबसे कम परीक्षण आंकड़ों वाले देशों में हो रही है. कम संख्या में परीक्षणों के बावजूद संक्रमितों की संख्या में कमी जताने से उसके द्वारा दिए जा रहे आंकड़ों की विश्वसनीयता एवं पारदर्शिता पर सवालिया निशान लग रहा है.

नेपाल और श्रीलंका का प्रक्षेपपथ एकदम भिन्न है. परीक्षण पर ज़ोर देकर नेपाल आरंभ से ही संक्रमितों तथा मृतकों की संख्या कम रखने में कामयाब रहा मगर सितंबर माह में संक्रमण तेज़ी से फैला है. संक्रमितों की संख्या बढ़ने से कुछ चिंता भी उभरी हैं लेकिन कोविड19 संक्रमण से प्रति 10 लाख आबादी पर महज 12 मौतों ने मृतकों की संख्या अल्प होने की पुष्टि की है तथा सरकार आश्वस्त लगती है कि संक्रमण पर प्रभावी काबू पा लिया जाएगा. दक्षिण एशियाई देशों में श्रीलंका में संक्रमितों की दर न्यूनतम (प्रति 10 लाख आबादी पर 152 संक्रमित) है. कोविड19 से वहां पर अब तक सिर्फ 13 लोगों की जान गई है. क्वारंटाइन संबंधी सख्त नियमों तथा संपर्क में आए लोगों की त्वरित पहचान से महामारी के संक्रमण पर प्रभावी रोक लगाने के लिए श्रीलंका की तारीफ़ हो रही है.

वैश्विक तुलनात्मक खाके में दक्षिण एशिया का रिकॉर्ड लगभग सकारात्मक रहा है मगर अभी तक वैक्सीन यानी टीका ईजाद नहीं होने के कारण इन देशों को सावधान रहना पड़ेगा. दक्षिण एशिया में बहुत ग़रीब तथा कम प्रतिरोध क्षमता वाली आबादी के साथ ही बड़ी संख्या में संघर्षरत लोग भी निवास करते हैं

‘कोरोना वायरस निषेध में सफलता की मिसाल’ बताए जा रहे भूटान में लौट कर आने वाले अंतरराष्ट्रीय नागरिकों को सख्ती से क्वारंटाइन करके तथा प्रौद्योगिकीय उपायों से संपर्कों को सफलतापूर्वक ढूंढ कर महामारी के संक्रमण को काबू किया जा रहा है. परीक्षण,क्वारंटाइन तथा इलाज की लागत भी भूटान ख़ुद ही वहन कर रहा है. इसके अलावा महामारी का झटका झेलने के लिए भूटान अपने नागरिकों को वित्तीय सहायता भी दे रहा है. सिर्फ 246 संक्रमितों तथा मृत्युविहीन महामारी प्रबंध करके भूटान ने प्रभावी निषेध और नियंत्रण की मिसाल कायम की है.

वैश्विक तुलनात्मक खाके में दक्षिण एशिया का रिकॉर्ड लगभग सकारात्मक रहा है मगर अभी तक वैक्सीन यानी टीका ईजाद नहीं होने के कारण इन देशों को सावधान रहना पड़ेगा. दक्षिण एशिया में बहुत ग़रीब तथा कम प्रतिरोध क्षमता वाली आबादी के साथ ही बड़ी संख्या में संघर्षरत लोग भी निवास करते हैं इसलिए भविष्य की घटनाएं इस क्षेत्र को अत्यंत असुरक्षित कर सकती हैं. किसी उद्योगपति ने हाल में सुझाया था कि दुनिया की समूची आबादी को वैक्सीन यानी टीका लगाने में कम से कम चार से पांच साल लग जाएंगे.

इसके अलावा लोगों तक प्रभावी ढंग से टीका पहुंचाने की राह तलाशने में अभी किस्म-किस्म की बाधाओं से भी निपटना होगा. दक्षिण एशियाई देशों में आबादी की सघनता एवं आमदनी की न्यूनता के कारण टीका शायद मुकम्मिल समाधान सिद्ध भी न हो पाए. अतीत के अनुभव यह बताते हैं कि कम विकसित देशों को टीकाकरण की अपनी बारी देर से आने के लिए तैयार रहना होगा. इसलिए उन्हें अपने संसाधनों को रोकथाम संबंधी उपायों पर लगाना चाहिए. इसके साथ ही अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को सावधानीपूर्वक खड़ा करना होगा ताकि पिछले दशक में हासिल मानव विकास के स्तर को बरकरार रख कर समानांतर मानवीय त्रासदी से बचा जा सके.

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