Author : Sohini Nayak

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

BBIN मोटर व्हीकल एग्रीमेंट अब कोई अधूरा ख़्वाब नहीं रहा. क्योंकि, इसके सदस्य देश आख़िरकार कनेक्टिविटी की आकांक्षाएं पूरी करने के क़रीब पहुंच रहे हैं.

BBIN MVA: फिर ज़िंदा हो उठा बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल के बीच मोटर व्हीकल समझौता
BBIN MVA: फिर ज़िंदा हो उठा बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल के बीच मोटर व्हीकल समझौता

7-8 मार्च 2022 को बांग्लादेश, भूटान, भारत, और नेपाल के बीच गाड़ियों की आवाजाही का बहुप्रतीक्षित समझौता आख़िरकार एक क़दम आगे बढ़ा. क्योंकि इसमें भागीदार देश लंबे समय से दक्षिण एशिया में कनेक्टिविटी की अपेक्षाएं पूरी करने के लिए इकट्ठा हुए. ये बैठक नई दिल्ली में हुई. हर देश की तरफ़ से उचित प्रतिनिधित्व था, जिससे कि वो सहमति पत्र के नतीजे पर पहुंच सकें और आगे चलकर इस समझौते (BBIN MVA) पर दस्तख़त किए जा सकें. इस बैठक के दौरान सभी चार देशों के बीच यात्रियों की अबाध आवाजाही और सामान लाने और ले जाने के लिए नियमों पर सहमति के उस मुद्दे पर चर्चा हुई, जिस पर 15 जून 2021 को दस्तख़त किए गए थे. यहां पर इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि इस परिचर्चा में भूटान की मौजूदगी पर्यवेक्षक के तौर पर ही थी. भूटान ने पहले ख़ुद को इस समझौते से अलग कर लेने का विकल्प चुना था. भूटान को ये लग रहा था कि उसके प्राकृतिक संरक्षण से जुड़े नियमों को देखते हुए ऐसी परियोजना से उसके लिए ख़तरा पैदा हो सकता है. अभी भी, भूटान इस समझौते में मददगार के तौर पर शामिल होगा या फिर अलग ही रहेगा, इससे समझौते की प्रक्रिया पर गहरा असर पड़ने वाला है. एक तो इस समझौते में शामिल न होने से भूटान को साझा विकास के फ़ायदे नहीं मिल पाएंगे. जैसा कि अभी लग रहा है, भूटान इस समझौते को अपनी मंज़ूरी दे पाने की स्थिति में नहीं है. इससे समझौते को अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया और भी मुश्किल हो गई है.

भौगोलिक रूप से दक्षिण एशिया का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण इलाक़े में फैला हुआ है. एशिया के वैश्विक परिदृश्य में दक्षिण एशिया की बहुत अहमियत रही है. इसी आधार पर दक्षिण एशिया में बहुत से भू-राजनीतिक खिलाड़ियों और भागीदारों ने अपनी भूमिकाएं बढ़ा दी हैं.

इस उप-क्षेत्र और BBIN की अहमियत

भौगोलिक रूप से दक्षिण एशिया का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण इलाक़े में फैला हुआ है. एशिया के वैश्विक परिदृश्य में दक्षिण एशिया की बहुत अहमियत रही है. इसी आधार पर दक्षिण एशिया में बहुत से भू-राजनीतिक खिलाड़ियों और भागीदारों ने अपनी भूमिकाएं बढ़ा दी हैं. उनके अपने हित हैं. वो इस क्षेत्र में अपने हितों के हिसाब से नए पैमाने गढ़ रहे हैं. इसी में दक्षिण एशिया का उप-क्षेत्रवाद भी शामिल है.

BBIN के तहत विकास के ऐसे ही चतुर्भुज की परिकल्पना साकार करने की कोशिश की गई है. इसके तहत अलग-अलग क्षेत्रों को एक दूसरे के पूरक बनाने का प्रयास किया जा रहा है और इसके लिए आपसी सहयोग से तय दिशा-निर्देशों के ज़रिए नदियों, ऊर्जा, मूलभूत ढांचे जैसे साझा संसाधनों का उपयोग किए जाने का प्रस्ताव है. चूंकि, इस समझौते में गिने-चुने सदस्य ही शामिल हैं तो इनके बीच की विविधताओं से निपटने की प्रक्रिया निवेश की कम लागत वाली और आसान है. ऐसे सहयोग से अन्य देशों को अलग रखने की बात भी ज़ाहिरा तौर पर नहीं दिखती है. क्योंकि ये समझौता दूसरे बड़े क्षेत्रीय समझौतों से टकराव नहीं पैदा करता, जिनके ये देश सदस्य हैं. इस समझौते के तहत ज़्यादा विकसित देशों से कौशल और तकनीक भी दूसरे देशों को हासिल होने की संभावना है. इससे सभी सदस्य देशों में से कम विकसित देशों के कामगारों का कौशल विकास होगा और स्थानीय मज़दूरों को भी इसका लाभ मिलेगा. इसके अलावा, ऐसी उप-क्षेत्रीय परिकल्पनाओं से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को जोड़ने की कड़ियां भी विकसित होती हैं और फिर ये अर्थव्यवस्था के अन्य हिस्सों के विकास में योगदान देती हैं.

BBIN की तरफ़ लौटते हैं, तो ये विकास की एक महत्वपूर्ण कड़ी बन सकता है. ये समझौता बुनियादी तौर पर साझा कार्यकारी समूहों (JWG) के ज़रिए आपसी समन्वय का ऐसा ढांचा उपलब्ध करता है, जिसमें हर देश की आधिकारिक नुमाइंदगी होगी. इन कार्यकारी समूहों के माध्यम से सदस्य देश चौतरफ़ा समझौतों का ढांचा तैयार करके उन्हें लागू कर सकेंगे और समय-समय पर उसकी समीक्षा कर सकेंगे. इस समझौते के तहत जिन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान देना है उनमें जल संसाधनों का प्रबंधन, पावर ग्रिड के बीच कनेक्टिविटी, बहुआयामी परिवहन और सामान व परिवहन का मूलभूत ढांचा शामिल हैं. BBIN से संबंधों के विकास के हर क्षेत्र में ज़बरदस्त उछाल लाने की संभावनाएं हैं. फिर चाहे वो राजनीतिक हो, आर्थिक हो या सांस्कृतिक. इस विचार के तहत ये एहसास होना आवश्यक है कि साझा विकास के लिए BBIN के चार सदस्य देशों और पूरे क्षेत्र के एक दूसरे के साथ जुड़ने की प्रक्रिया तय है.

इस समझौते के तहत जिन क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान देना है उनमें जल संसाधनों का प्रबंधन, पावर ग्रिड के बीच कनेक्टिविटी, बहुआयामी परिवहन और सामान व परिवहन का मूलभूत ढांचा शामिल हैं. BBIN से संबंधों के विकास के हर क्षेत्र में ज़बरदस्त उछाल लाने की संभावनाएं हैं.

व्यापार और क्षेत्रीय एकीकरण को मज़बूती

वैसे तो भारत के विशाल आकार और आर्थिक ताक़त के चलते बाक़ी के सदस्य देश इस पहल को आम तौर पर भारत पर ज़्यादा केंद्रित मानते हैं. फिर भी बाक़ी के देश मोटे तौर पर इस उप-क्षेत्र में एकीकरण के पक्षधर हैं, जिससे कि वो अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाए रख सकें. ये सामरिक विचार उस सोच से पैदा हुआ है जिसमें इस क्षेत्र की स्थिरता के लिए मज़बूत रिश्तों की अहमियत समझी गई है. ऐसी उपयोगी साझेदारी के सकारात्मक असर से न केवल परिवहन के गलियारों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होगा बल्कि इससे व्यापार का प्रवाह भी सुगम होगा. यहां पर कुछ ख़ास सेक्टरों की समस्याओं का समाधान कर पाने में मोटर परिवहन समझौते की प्रासंगिकता उचित लगती है. ये बहुत बुनियादी क़िस्म का समझौता है, जिसमें 16 धाराएं हैं, जो सामान और यात्रियों के परिवहन पर केंद्रित हैं. बहुत से द्विपक्षीय समझौतों में ऐसे प्रावधान पहले से ही मौजूद हैं, जिनके ज़रिए परमिट को दोबारा नया किया जा सकता है. लेकिन, दिक़्क़त ये है कि अब तक इन द्विपक्षीय समझौते से नियामक चुनौतियों से पार नहीं पाया जा सका है और न ही सभी देशों के बीच व्यापार और परिवहन को निर्बाध किया जा सका है. संयुक्त राष्ट्र के निर्देशन में सामान के अंतरराष्ट्रीय परिवहन के लिए ऐसे कस्टम समझौते पर दस्तख़त नहीं हो सके हैं, जिनसे कस्टम के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया जा सके और जिन्हें समझौते में शामिल करने के लिए परिचर्चा का हिस्सा बनाया जा सके. भारत इस व्यवस्था का 71वां दस्तख़त करने वाले देश है, जो मानक कस्टम दस्तावेज़ के उपयोग को सुगम बनाता है. इस बारे में TIR संधि का भी ध्यान रखना होगा. इससे पूरे दक्षिण एशिया में व्यापार और क्षेत्रीय एकीकरण को मज़बूती मिलेगी. TIR से भारत को बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, म्यांमार और थाईलैंड को जोड़ने में मदद मिलेगी.

इस मामले में स्थिरता लाने के लिए एशियाई विकास बैंक काफ़ी समय से सक्रिय भूमिका निभा रहा है और तकनीकी और ज्ञान संबंधी सहयोग दे रहा है. सभी चार देशों को सलाह दी गई है कि वो अपने समृद्ध ‘सांस्कृतिक और प्राकृतिक आकर्षणों’ का इस्तेमाल पर्यटन की संभावनाएं तलाशने के लिए करें. इसमें बौद्ध धर्म से जुड़े दुनिया के कई बड़े स्थान भी शामिल हैं. हाल ही में एशियाई विकास बैंक के निदेशकों के बोर्ड ने दक्षिण एशिया में पर्यटन के मूलभूत ढांचे के विकास के लिए, मदद और क़र्ज़ के रूप में 57.5 मिलियन  अमेरिकी डॉलर की रक़म को मंज़ूरी दी है. इस रक़म से चारों देशों में अहम पर्यटन केंद्रों में पारंपरिक सेवाएं विकसित करने के साथ-साथ नए और बेहतर मूलभूत ढांचे का विकास किया जाना है. इससे पर्यटन के क्षेत्र से जुड़ी संस्थाओं की क्षमता का विकास होगा और वो ऐतिहासिक केंद्रों का बेहतर ढंग से प्रबंधन कर सकेंगे. इसके साथ-साथ, विकास की प्रक्रिया में स्थानीय लोग और समुदाय भी बढ़-चढ़कर भागीदारी कर सकेंगे. इससे समाज की सबसे निचले पायदान के लोग भी विकास की धारा से जोड़े जा सकेंगे.

सभी चार देशों को सलाह दी गई है कि वो अपने समृद्ध ‘सांस्कृतिक और प्राकृतिक आकर्षणों’ का इस्तेमाल पर्यटन की संभावनाएं तलाशने के लिए करें. इसमें बौद्ध धर्म से जुड़े दुनिया के कई बड़े स्थान भी शामिल हैं.

यहां इस बात का ज़िक्र करना भी उचित होगा कि चीन भी ऐसी ही आकांक्षाएं रखता है. उसने अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत दक्षिण एशिया में पर्यटन क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंद्रित किया है. हर साल इन देशों में चीन के हज़ारों सैलानी या तो छुट्टियां मनाने या फिर धार्मिक पर्यटन के लिए आते हैं. अगर इन देशों के बीच रेल सेवा का संपर्क बढ़ेगा, तो इससे चीन के सैलानियों के दक्षिण एशिया आने का सिलसिला भी तेज़ होगा. मिसाल के तौर पर भारत और बांग्लादेश के बीच, हल्दीबाड़ी से निलफामारी  ज़िले के चिल्हाटी  तक 75 किलोमीटर लंबी रेल लाइन को 55 बरस बाद सुधारा गया है. ऐसे हालात में अगर सभी चार देश अपने अलग अलग पर्यटन उद्योग का विकास करके चीन और अन्य देशों के सैलानियों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं, तो इनके बीच एकीकरण कर पाना आसान हो जाएगा और इससे चारों देशों को आर्थिक लाभ भी होगा. ये बात भूटान और नेपाल जैसे चारों तरफ़ ज़मीन से घिरे देशों पर तो ख़ास तौर से लागू होती है, जिनकी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन उद्योग ही है.

इस मामले में हर देश के नज़रिए को हम इस तरह से समझ सकते हैं

भारत: भारत की नज़र में BBIM MVA का सबसे बड़ा फ़ायदा ये होगा कि इससे वो अपने बाक़ी क्षेत्रों से उत्तर पूर्व के आर्थिक केंद्रों जैसे कि अगरतला (त्रिपुरा), गुवाहाटी (असम), और शिलॉन्ग (मेघालय) तक आसानी से सामान पहुंचा सकेगा. ख़राब मूलभूत ढांचे, मुश्किल भौगोलिक इलाक़ा, विद्रोही राजनीति और भू-राजनीकि सीमाओं के चलते भारत के उत्तर पूर्व के इलाक़े कई वर्षों से अविकसित और भारत के बाक़ी हिस्सों से कटे हुए हैं. अब उन्हें ऐसी तरक़्क़ी में बेहतर भागीदारी मिल सकी.

बांग्लादेश, भूटान और नेपाल: बांग्लादेश के अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण और भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, BBIN के ज़रिए मिलकर इस तरह काम कर सकते हैं, जो द्विपक्षीय संबधों की बंदिशों से आज़ाद हों. बंदरगाहों के बीच कनेक्टिविटी बढ़ने से इस पहल के आर्थिक लाभ, ख़ुद-ब-ख़ुद भूटान और नेपाल को लाभ पहुंचाएंगे. इससे उनके चारों तरफ़ से ज़मीन से घिरे होने की मुश्किलें दूर होंगी. इसी तरह उनके आवाजाही के अधिकारों को भी पंख मिल सकेंगे, जो अब तक अटके हुए हैं.

बांग्लादेश के अंतर्देशीय जल परिवहन प्राधिकरण और भारत के अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, BBIN के ज़रिए मिलकर इस तरह काम कर सकते हैं, जो द्विपक्षीय संबधों की बंदिशों से आज़ाद हों.

निष्कर्ष

कोविड-19 महामारी के दौर में ये सभी योजनाएं तभी सफल होंगी, जब सभी सदस्य इस समझौते को लेकर आम सहमति बना लें. क्योंकि इस समय पूरी दुनिया अपनी आर्थिक मुश्किलों से उबरकर कनेक्टिविटी की अपेक्षांए पूरी करने में जुटी है. दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठन अब तक नाकाम रहे हैं. इसकी बड़ी वजह साझा नज़रिए से आपसी सहयोग कर पाने में नाकामी रही है. हालांकि, इस बार ऐसा लगता है कि BBIN जैसी परियोजनाओं के ज़रिए ज़मीनी स्तर पर सहयोग बढ़ाने में सफलता मिलने की उम्मीद है. इसकी शुरुआत ट्रैक-1 स्तर पर हो रही है. जिससे इस योजना के साकार होने की दिशा में क़दम बढ़ा है, जो बरसों से ज़मीनी हक़ीक़त बनने और लागू होने का इंतज़ार कर रही है.

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