Published on Mar 13, 2021 Updated 0 Hours ago

बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी, उसकी अर्थव्यवस्था के बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा एक चिंता बनी रहेगी.

कोविड-19 के साये में बांग्लादेश को मिली राजनीतिक स्थिरता

वैश्विक तौर पर 2020 कोविड-19 महामारी फैलने की वजह से चुनौतियों और कठिनाइयों का साल रहा. इस साल मानवता का हर पहलू अशांत रहा. बांग्लादेश इस मामले में अपवाद नहीं रहा क्योंकि यहां भी वायरस फैला. मुश्किलों से गुज़रने के बावजूद कुछ पल प्रतिष्ठा और महत्व के रहे जिन्होंने बांग्लादेश के लिए 2020 को एक यादगार साल बना दिया.

राजनीतिक तौर पर 2020 बांग्लादेश के लिए स्थायित्व का साल रहा. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की पूर्ण बहुमत वाली सरकार ने शायद ही अपने स्थायित्व के ख़िलाफ़ किसी चुनौती का सामना किया. विपक्ष ने किसी बड़ी राजनीतिक रैली का आयोजन नहीं किया जिसके लिए बांग्लादेश बदनाम रहा है. 2020 को बांग्लादेश की राजनीति के लिए सकारात्मक साल माना जा सकता है क्योंकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की नेता और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम ख़ालिदा ज़िया, जो भ्रष्टाचार के लिए पांच साल जेल की सज़ा कटा रही थीं, को दो साल के बाद मार्च में जेल से रिहा किया गया.

प्रधानमंत्री हसीना की सरकार के लिए ये महत्वपूर्ण साल रहा क्योंकि प्रतिष्ठित पद्मा ब्रिज का ढांचागत काम पूरा होने के साथ ही इस परियोजना ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया. ये ब्रिज प्रधानमंत्री हसीना के लिए एक बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है क्योंकि इसके लिए स्थानीय स्तर पर फंडिंग की गई. ये परियोजना उस वक़्त विवादों में आई थी जब विश्व बैंक ने इसकी फंडिंग से हाथ पीछे खींच लिए. तब कई विश्लेषकों ने परियोजना के लिए देसी फंडिंग के हसीना के फ़ैसले पर अविश्वास जताया था. इस तरह ढांचागत काम के पूरा होने से देश को काफ़ी गर्व हो रहा है.

प्रधानमंत्री हसीना की सरकार के लिए ये महत्वपूर्ण साल रहा क्योंकि प्रतिष्ठित पद्मा ब्रिज का ढांचागत काम पूरा होने के साथ ही इस परियोजना ने एक बड़ा मुकाम हासिल किया. 

राजनीतिक क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण घटना धर्म पर आधारित असरदार राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी (जेआई) के सुधारवादी गुट के द्वारा अलग राजनीतिक पार्टी की शुरुआत करना है. नई पार्टी का नाम आमार बांग्लादेश पार्टी रखा गया है और ये दावा करती है कि वो जमात-ए-इस्लामी की विचारधारा से अलग है. साथ ही वो 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी का अनुसरण बुनियाद के तौर पर करती है. ख़ास-बात ये है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की आज़ादी का विरोध करने के लिए बदनाम है. नई पार्टी की शुरुआत और उसकी गतिविधियों को लेकर एहतियात बरता जा रहा है.

लेकिन महामारी के फैलने की वजह से बांग्लादेश स्वास्थ्य सुरक्षा के मामले में अस्तव्यस्त रहा है. वायरस को फैलने से रोकने के लिए बांग्लादेश को मार्च में लॉकडाउन का ऐलान करना पड़ा जिसे बाद में बढ़ाकर अप्रैल तक किया गया. वायरस के संक्रमण की वजह से लाखों लोग बीमार पड़े और हज़ारों की मौत हुई.

आतंक में गिरावट

उग्रवाद या आतंकवाद में गिरावट का रुझान रहा क्योंकि इस तरह की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई. आतंकवाद और उग्रवाद को लेकर बांग्लादेश की ज़ीरो टॉलरेंस की नीति का पालन करते हुए क़ानून लागू करने वाले विभागों और सुरक्षा एजेंसियों ने आतंकवाद विरोधी सख़्त अभियान चलाए और अलग-अलग उग्रवादी समूहों जैसे जमात-उल-बांग्लादेश (जेएमबी) और उसके नये गुट से जुड़े लोगों को गिरफ़्तार किया.

आतंक के ख़िलाफ़ बांग्लादेश के सक्रिय क़दमों की वजह से ये संगठन हिंसा की किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने में नाकाम रहे. हालांकि, हिंसा की कुछ घटनाएं हुईं जैसे कि अगस्त 2020 में ढाका में कम तीव्रता वाला बम धमाका. उग्रवादी समूहों की गतिविधियों को नियंत्रित करने में सफलता के बावजूद बढ़ती धार्मिक रूढ़िवादिता को लेकर कुछ चिंताएं हैं. इसकी वजह से बांग्लादेश के उदारवादी ताने-बाने को ख़तरा है जिसे यहां के लोगों और सरकार ने बढ़ावा दिया है.

धार्मिक रूढ़िवादी समूहों जैसे हफ़ाज़त-ए-इस्लामी, जो कि सत्ताधारी अवामी लीग के क़रीब है, द्वारा नवंबर में राष्ट्रपिता और बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता बंगबंधु शेख़ मुजीब उर रहमान की मूर्ति की स्थापना के ख़िलाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन ने बांग्लादेश में कुछ चिंताएं बढ़ाई. धार्मिक रूढ़िवादियों द्वारा मूर्ति के विरोध की वजह ये है कि इससे धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन होता है. मूर्ति की स्थापना देश के स्वतंत्रता आंदोलन के नेता और हसीना के पिता बंगबंधु के 100वें जयंती समारोह के मौक़े पर की जानी थी.

बंगबंधु के हत्यारे को उनकी जयंती के शताब्दी वर्ष में मौत की सज़ा देना न सिर्फ़ बंगबंधु को श्रद्धांजलि थी बल्कि इससे वो पहले भी सुलझी जिसका निपटारा बांग्लादेश दशकों से करना चाह रहा था. 

लेकिन इसके बावजूद कुछ पल संजोने वाले थे. इन पलों में बंगबंधु के ख़िलाफ़ साज़िश करने और उनके हत्यारों में से एक कैप्टन अब्दुल मजीद की गिरफ़्तारी और उसके बाद अदालत के आदेश पर उसकी मौत की सज़ा शामिल हैं. मुजीब उर रहमान और उनके पूरे परिवार की हत्या 15 अगस्त 1975 को सेना के अधिकारियों के एक गुट ने कर दी थी. सिर्फ़ उनकी दो बेटियां, प्रधानमंत्री शेख़ हसीना और उनकी बहन रिहाना, बच गईं थीं.

एक लंबे वक़्त से हत्या के पीछे की साज़िश रहस्य बनी रही क्योंकि किसी भी कसूरवार पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सका था. शुरुआत में उन्हें उन सरकारों के द्वारा माफ़ी दे दी गई जो बंगबंधु के बाद बनी थीं. इस अपराध में शामिल लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की शुरुआत 1996 में अवामी लीग सरकार बनने के बाद हुई लेकिन दोषियों को फांसी के तख़्ते पर लटकाया नहीं जा सका क्योंकि ज़्यादातर दोषी फ़रार थे. बंगबंधु के हत्यारे को उनकी जयंती के शताब्दी वर्ष में मौत की सज़ा देना न सिर्फ़ बंगबंधु को श्रद्धांजलि थी बल्कि इससे वो पहले भी सुलझी जिसका निपटारा बांग्लादेश दशकों से करना चाह रहा था.

अच्छी अर्थव्यवस्था

महामारी की वजह से वैश्विक आर्थिक मंदी को देखते हुए बांग्लादेश का आर्थिक प्रदर्शन अपेक्षाकृत प्रभावशाली रहा है. क़रीब 2-3 प्रतिशत आर्थिक विकास के अनुमानों से बढ़कर बांग्लादेश ने लगभग पांच प्रतिशत विकास दर को हासिल किया और इस तरह उसने कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया जिनमें पड़ोसी देश भारत भी शामिल है.

विदेशी नीति के मोर्चे पर बांग्लादेश ने चीन और अमेरिका समेत ज़्यादातर वैश्विक शक्तियों के साथ दोस्ताना संबंध बरकरार रखा. इस्लामिक देशों के साथ भी बांग्लादेश के संबंध दोस्ताना थे. हालांकि, रोहिंग्या शरणार्थियों की बांग्लादेश वापसी के मुद्दे को लेकर सऊदी अरब के साथ उसके संबंधों में कुछ तनाव पैदा हुआ.

दक्षिण एशियों के ज़्यादातर पड़ोसी देशों के साथ बांग्लादेश के संबंध स्नेह और मैत्रीपूर्ण रहे. कुछ हद तक ये सोच थी कि भारत के साथ बांग्लादेश के संबंधों में कुछ तनाव है. इसकी वजह 2019 में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के द्वारा नागरिकता अधिनियम में संशोधन को बताया गया. लेकिन 2020 में भारत-बांग्लादेश के संबंध गहरे हुए हैं.

महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए दक्षिण एशिया के देशों के बीच सहयोग के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान में प्रधानमंत्री शेख़ हसीना बड़ी साझेदार रही हैं. भारत ने बांग्लादेश को बड़े पैमाने पर मेडिकल राहत सहायता मुहैया कराई. दोनों देशों के बीच क़रीबी दोस्ती के बड़े संकेत के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री हसीना ने दिसंबर में वर्चुअल बैठक की.

बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी. उसकी अर्थव्यवस्था के बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन जैसा कि कोविड-19 ने दिखाया, लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा एक चिंता बनी रहेगी. 

लेकिन म्यांमार के साथ बांग्लादेश के संबंधों ने गंभीर चुनौती का सामना किया. दोनों देशों के बीच विवाद के केंद्र में रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी का मुद्दा है जो म्यांमार के राखिने प्रांत से भागकर 2017 से बांग्लादेश में रह रहे हैं.

कोविड-19 के प्रकोप ने हमें उन अनिश्चितताओं के बारे में जागरुक किया है जो भविष्य की समझ से परे बने हुए हैं. लगातार अस्थिरता को देखते हुए भविष्य का कोई भी आकलन बेकार की कवायद साबित होगी. लेकिन इसके बावजूद कुछ रुझान इस ओर इशारा करते हैं कि बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी. उसकी अर्थव्यवस्था के बढ़ने की उम्मीद है. लेकिन जैसा कि कोविड-19 ने दिखाया, लोगों के स्वास्थ्य की सुरक्षा एक चिंता बनी रहेगी. अब कोविड-19 वायरस के म्युटेशन ने मामले को और भी चिंताजनक बना दिया है. हालांकि, बांग्लादेश ने वैक्सीन को हासिल करने के लिए दुनिया भर के वैक्सीन विकसित करने वालों के साथ कुछ समझौते किए हैं और उसे उम्मीद है कि वैक्सीन हासिल करके वो जल्द ही इन चुनौतियों से पार पाने में सक्षम होगा.


ये लेख मूल रूप से साउथ एशिया वीकली में प्रकाशित हुआ.

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