-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
चीन दशकों तक जेट इंजन के विकास में तमाम विफलताओं से जूझता रहा है, लेकिन अब उसने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर ली है. अत्याधुनिक जेट इंजनों के विकास से जहां चीनी सेना की हवाई युद्ध क्षमता बढ़ी है, वहीं इस मामले में उसकी दूसरे देशों पर निर्भरता भी समाप्त हो रही है.
Image Source: Getty
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की हवाई ताक़त में 21वीं सदी में ज़बरदस्त इज़ाफा हुआ है. पीएलए की इस बढ़ती हवाई मारक क्षमता के पीछे जेट इंजन विकास में चीन को मिली सफलता और उसके सतत प्रयास हैं. चीन को यह सफलता एक दिन में नहीं मिली, बल्कि इसके पीछे दशकों की निरंतर मेहनत और असफलताओं से मिले सबक हैं. शुरुआती दौर पर नज़र डालें तो चीन की जेट इंजन विकसित करने की योजनाओं को नाक़ामी से जूझ़ना पड़ा और यह सिलसिला दशकों तक चला. इसी दौरान उसे अपने इंजन विकास के WS-6 और WS-8 कार्यक्रमों को रद्द तक करना पड़ा. लेकिन चीन ने हार नहीं मानी और आखिर WS-10 इंजन प्रोग्राम को सफल बनाते हुए अत्याधुनिक जेट इंजन निर्माण में अपनी क़ाबिलियत साबित की. WS-10 इंजन आज चीन की हवाई ताक़त को बढ़ाने की मुहिम की अगुवाई करते हुए उसके विमानन और नौसैनिक, दोनों प्लेटफार्मों के लिए जेट इंजनों की एक नई पीढ़ी तैयार कर रहा है. चीन ने यह उपलब्धि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के नेतृत्व में हासिल की है और देखा जाए तो अत्याधुनिक फाइटर जेट इंजनों के विकास में महारत हासिल करना उसके लिए तकनीक़ी रूप से बेहद महत्वपूर्ण भी है और चुनौतीपूर्ण भी है. चीन की यह क़ामयाबी दिखाती है कि उसने अरबों डॉलर ख़र्च कर अपनी सैन्य-औद्योगिक क्षमता को बढ़ाने में जी-जान लगा दी है.
चीन में लड़ाकू विमानों के इंजनों के विकास पर नज़र डालें, तो चीन को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ से I-5, I-16 और I-153 लड़ाकू विमान मिले थे. इसके अलावा चीन को SB, DB-3 और TB-3 बमवर्षक विमान भी मिले थे. दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद चीन ने मास्को की मदद से अपने कई शहरों में विमान निर्माण फैक्ट्रियां स्थापित की. मास्को के साथ इस सहयोग ने चीन को तमाम सोवियत विमानों और जेट इंजनों तक आसान पहुंच प्रदान की. इनमें ख़ास तौर पर मिग-15, मिग-17, मिग-19 जैसे फाइटर जेट शामिल थे. इसके अलावा, चीन को उस समय का सबसे ख़ास और विकसित मिग-21 लड़ाकू विमान भी मिला. मिग-21 एक इंजन वाला सुपरसोनिक फाइटर जेट था, जो दुश्मन के विमानों, विशेष रूप से हमलावर बमवर्षकों और टोही विमानों को निशाना बनाने में सक्षम था. मिग-21 तुमांस्की R-11 टर्बोजेट इंजन से चलता था. बीजिंग मिग-21 लड़ाकू विमानों को इस क्षेत्र में पश्चिमी देशों की तकनीक़ी दक्षता का मुक़ाबला करने के रूप में देखता था. चीन मानता था कि वो इस फाइटर जेट के ज़रिए व्यापक स्तर पर लड़ाकू विमानों के उत्पादन की शुरुआत करके न केवल पश्चिमी देशों का सामना कर सकता है, बल्कि रक्षा क्षमताओं के मामले में आत्मनिर्भर भी हो सकता है. हालांकि, 1960 में चीन और सोवियत संघ के बीच रिश्ते दरकने लगे थे, जिसके चलते दोनों के बीच लड़ाकू विमान के क्षेत्र में यह सहयोग समाप्त हो गया. दरअसल, सोवियत संघ ने चीन से मनमुटाव के बाद अपने विमान सलाहकारों को वापस बुला लिया था और चीन में चल रहे विमान उत्पादन से जुड़े संयुक्त उद्यमों को बंद कर दिया था. नीतज़तन चीन के पास लड़ाकू विमान उत्पादन से जुड़े अधूरे ब्लूप्रिंट, आधे-अधूरे बने मिग-21 किट और मामूली रूप से प्रशिक्षित इंजीनियर ही बचे थे. लेकिन चीन ने इस झटके के बाद भी हार नहीं मानी और जो भी संसाधन मौज़ूद थे उन्हें जुटाकर लड़ाकू विमान उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ता रहा. चीन ने जे-5 और जे-6 जैसे कार्यक्रमों के अंतर्गत हज़ारों की संख्या में मिग-17 और मिग-19 लड़ाकू विमान बनाए. इतना ही नहीं उसने मिग-21 विमान निर्माण की तकनीक़ हासिल करने के लिए ख़ासी मशक्कत की और रिवर्स-इंजीनियरिंग यानी उसके एक-एक कलपुर्जे की जानकारी जुटाकर जे-7 फाइटर जेट का निर्माण करने में सफलता हासिल की. जे-7 का उत्पादन चीन के स्वतंत्र विमानन उद्योग के लिहाज़ से एक मील का पत्थर था.
चीन के लिए तुमांस्की आर-11 टर्बोजेट इंजन का विकास बेहद चुनौतीपूर्ण रहा. चीन के पास इस इंजन से जुड़े सारे तकनीक़ी दस्तावेज़ मौज़ूद थे, फिर भी रिवर्स-इंजीनियरिंग के जरिए इसका विकास उसके लिए बेहद कठिन साबित हुआ. चीन का J-7 फाइटर जेट 1975 में चीनी WP-7 इंजन के साथ उड़ान भरने में कामयाब हो पाया. WP-7 इंजन के शुरुआती संस्करणों में टर्बाइन डिस्क एक्सपेंशन, ब्लेड की ख़राबी, ओवरहीटेड बियरिंग और ख़राब आफ्टरबर्नर नोजल्स जैसी कई गंभीर समस्याएं थीं. इन वजहों से WP-7B जेट इंजन का स्थाई निर्माण 1980 के दशक तक लटका रहा.
WS-10 इंजन आज चीन की हवाई ताक़त को बढ़ाने की मुहिम की अगुवाई करते हुए उसके विमानन और नौसैनिक, दोनों प्लेटफार्मों के लिए जेट इंजनों की एक नई पीढ़ी तैयार कर रहा है. चीन ने यह उपलब्धि पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फोर्स (PLAAF) के नेतृत्व में हासिल की है और देखा जाए तो अत्याधुनिक फाइटर जेट इंजनों के विकास में महारत हासिल करना उसके लिए तकनीक़ी रूप से बेहद महत्वपूर्ण भी है और चुनौतीपूर्ण भी है.
चीन को अपने लड़ाकू विमानों के इंजनों के विकास में दूसरी बड़ी क़ामयाबी वर्ष 1971 में तब मिली, जब चीन और अमेरिका के बीच इस संबंध में गठजोड़ हुआ. इस सहयोग की बदौलत ही 1972 में बोइंग 707s और 40 प्रैट एंड व्हिटनी इंजनों की 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर की डील हुई. इतना सब होने के बावज़ूद चीन की अमेरिकी इंजनों की नकल करने की सारी कोशिशें नाक़ाम साबित हुईं. इतना ही नहीं, चीन ने 1975 में 77 मिलियन पाउंड ख़र्च करके रोल्स-रॉयस स्पाई Mk 202 के उत्पादन का लाइसेंस हासिल किया. इसके साथ ही चीन ने योजना बनाई कि आठ वर्षों के भीतर इसे स्थानीय स्तर पर विकसित कर लिया जाएगा. लेकिन चीन इसमें सफल नहीं हो पाया और अपनी इस योजना को पूरा करने में उसे तीन दशक से ज़्यादा का समय लग गया. तमाम प्रयासों के बाद आखिर साल 2010 में चीन में विकसित किए गए WS-9 विमान इंजनों से JH-7 और JH-7A लड़ाकू-बमवर्षक विमानों ने उड़ान भरी. कहने का मतलब है कि चीन को कड़ी मेहनत के बाद आख़िर फाइटर जेट इंजनों के विकास में सफलता मिली, लेकिन ये इतनी भी बड़ी क़ामयाबी नहीं थी. हालांकि, इसके जरिए चीन ने स्वदेशी जेट इंजनों के निर्माण की ओर अपने क़दम ज़रूर बढ़ा दिए थे.
एविएशन इंजन के निर्माण में लगातार मिल रही नाक़ामियों के चलते बीजिंग को अपनी लड़ाकू विमानों के लिए चलाई जा रही WS-6 परियोजना और एयरलिफ्ट विमानों के लिए चलाई जा रही WS-8 परियोजना को रद्द करने पर मज़बूर होना पड़ा. इन विमान इंजन विकास परियोजनाओं को क़रीब दो दशकों से चलाया जा रहा था. इतना ही नहीं, चीन में 1988 में शुरू किए गए J-10 इंजन विकास प्रोग्राम में भी सालों तक कोई प्रगति नहीं हो पाई. इसकी वजह यह थी कि चीन में निर्मित किए गए WS-10 इंजन का प्रदर्शन मानकों के मुताबिक़ नहीं था. इस इंजन के विकास में अपेक्षित क़ामयाबी नहीं मिलने से PLA को जबरदस्त झटका लगा और उसे अपनी भविष्य की हवाई क्षमता बढ़ाने की योजनाओं को मुकम्मल करने में तमाम रुकावटों का सामना करना पड़ा. आख़िरकार, बीजिंग को अपनी विमान इंजनों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक बार फिर मास्को से मदद लेने के लिए मज़बूर होना पड़ा.
रूस ने चीन को Y-20 स्ट्रैटेजिक एयरलिफ्टरों के लिए D-30KP-2 इंजन दिए, साथ ही चीन के J-10 एवं J-11 फाइटर प्लेन प्रोग्राम्स के लिए AL-31FN इंजन प्रदान किए. चीन ने 1990 के दशक के मध्य में रूस से मिले AL-31FN इंजनों का उपयोग करके अपने J-10 फाइटर जेट निर्माण को पूरा किया और इसके बाद वर्ष 2003 में इन लड़ाकू विमानों को PLAAF में शामिल किया गया. तालिका-1 में चीन में इंजन विकास की प्रगति को दिखाया गया है. इसके मुताबिक़, समय के साथ-साथ रूसी इंजनों पर चीन की निर्भरता लगातार बढ़ती गई. इसके साथ ही 21वीं शताब्दी में चीन ने अपनी रिवर्स-इंजीनियरिंग की रणनीति पर भी दोबारा से अमल करना शुरू किया और दूसरे देशों के इंजनों की जानकारी हासिल कर उसकी मदद से अपने स्वदेशी इंजनों के निर्माण में जुट गया. जैसे कि बीजिंग ने अपने WS-10 इंजन के विकास में CFM-56 सिविलियन इंजन और AL-31FN रूसी इंजन से मिली जानकारी का इस्तेमाल किया है. इसके अलावा, चीन ने RD-33/93 और D-30KP-2 समेत तमाम दूसरे देशों से आयात किए गए जेट इंजनों से भी रिवर्स-इंजीनियरिंग के जरिए अपने देश में विकसित और उन्नत किस्म के जेट इंजनों के निर्माण की भी कोशिश की.
तालिका 1: चीन के लड़ाकू विमानों के लिए इंजन विकास कार्यक्रम
|
इंजन/थ्रस्ट |
सोर्स/इंस्पाइरेशन |
कार्यक्रम की शुरुआत |
लड़ाकू विमान |
निर्माता |
वर्तमान स्थिति |
|
WP-7A/B 40-64 kN |
R-11 (USSR) |
1962 |
J-7 |
शिआन XAEC |
J-7 वैरिएंट्स |
|
WS-9 54-91 kN |
Rolls-Royce Spey 202 |
1975 |
JH-7/7A |
शिआन XAEC |
वर्ष 2001 से कई JH-7/7A |
|
WS-10 A/B/C 135-142 kN |
CFM 56/ AL-31FN |
1987 |
J-10, J-11, J-16 |
शेनयांग SAEC |
2018 से J-10, J-11, J-16 |
|
WS-13 56-86/93 kN |
RD-33/93 |
2000 |
JF-17 |
गुइझोऊ GAEC |
JF-17 |
|
WS-15 160-180 kN |
WS-10 |
1990 के दशक की शुरुआत में |
J-20 |
शेनयांग SAEC |
2023/4 में J-20 |
|
WS-19 98-116 kN |
RD-33/93 |
2008 |
J-35 |
गुइझोऊ GAEC |
J-35 संभावित |
|
WS-20 138 kN |
D-30KP-2/ WS-10 |
2010 |
Y-20 |
शेनयांग SAEC |
Y-20 वर्ष 2023 से |
|
|
|
|
|
|
|
स्रोत: लेखक द्वारा संकलित
चीन ने अपने विमान इंजन विकास कार्यक्रमों की शुरुआत में 'एक फैक्ट्री, एक संस्था, एक मॉडल' रणनीति को अपनाया था, जो कि उसकी सबसे बड़ी ग़लती साबित हुई. दरअसल, चीन इस रणनीतिक के तहत अपने हर एयरक्राफ्ट प्रोजेक्ट के लिए एक समर्पित इंजन विकास कार्यक्रम चलाता था. लेकिन जब कोई विमान परियोजना रद्द होती थी, तो उससे संबंधित विमान इंजन का अनुसंधान और विकास भी पूरी तरह से ठप हो जाता है. कहने का मतलब है कि चीन की यह रणनीति ठीक नहीं थी और धीरे-धीरे वैज्ञानिकों द्वारा विमान इंजन और एयरफ्रेम के विकास को अलग-अलग करने की मांग की जाने लगी. चीन ने 2009 में चाइना एयरो इंजन कॉर्पोरेशन (CAEC) की स्थापना की. इसका मकसद सिविलियन और सैन्य दोनों तरह के विमान इंजनों के विकास को गति देना था. चीन के इस प्रयास में वर्ष 2016 में उस समय तेज़ी आई, जब स्टेट काउंसिल की 13वीं पंचवर्षीय योजना ने जेट और गैस टर्बाइनों के लिए 'टू इंजन' प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखा गया. चीन ने 28 अगस्त, 2016 को CAEC को 50 बिलियन युआन (7.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की पंजीकृत पूंजी के साथ एयरो इंजन कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना (AECC) में रूप में पुनर्गठित किया गया. इस नई कंपनी को चीन की स्टेट काउंसिल, एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन ऑफ चाइना (AVIC), कॉमर्शियल एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना (COMAC) और बीजिंग सरकार का समर्थन हासिल था. AECC ने रणनीति के तहत AVIC की ज़्यादातर सहायक कंपनियों का एकीकरण किया, ताकि देश में विमानन सेक्टर से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भरोसेमंद एवं स्वदेशी विमान इंजनों का निर्माण संभव बनाया जा सके.
चीन द्वारा अपने इंजन विकास कार्यक्रम को खोलने से और दूसरे देशों के आपूर्तिकर्ताओं से खुलकर मदद लेने से चीन के इंजन विकास कार्यक्रम कोई हर स्तर पर फायदा हुआ. जैसे कि इसने उन्नत तकनीक़ हासिल करने में आने वाली रुकावटों को दूर करने का काम किया, अपस्ट्रीम डेटा तक आसान पहुंच प्रदान की है,
चीन ने वर्ष 2016 में विमान इंजनों के विकास को गति देने के लिहाज़ से जो संगठनात्मक व नीतिगत बदलाव किए, उनका मुख्य मकसद सैन्य विमान इंजनों और नागरिक विमानन इंजनों के निर्माण में व्याप्त अलगाव को दूर करना था, साथ ही वर्टिकल इंटीग्रेशन यानी सप्लाई चेन पर नियंत्रण रखने की रणनीति से पैदा हुई खाई को पाटना था. इसके लिए चीनी सरकार की ओर से ओपिनियन्स ऑन द इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ इकोनॉमिक एंड नेशनल डिफेंस कंस्ट्रक्शन नाम का सरकारी दिशा निर्देश जारी किया गया, जिसका मकसद सैन्य-नागरिक विमानन इंजन विकास के एकीकरण पर ज़ोर देना था. चीन में इंजन विकास को गति देने के लिए AECC ने 'स्मॉल कोर, लार्ज कोलोबरेशन' मॉडल को अपनाया. इस रणनीति के अंतर्गत इंजन के निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले उच्चतम-मूल्य वाले घटकों का केवल 30 प्रतिशत हिस्सा ही देश में बनाया जाता है, जबकि बाकी कंपोनेंट्स को 350 से अधिक आपूर्तिकर्ताओं से आउटसोर्स किया जाता है. इन बाहरी आपूर्तिकर्ताओं में 16 देशों के 69 सप्लायर्स भी शामिल हैं. ये आपूर्तिकर्ता शुरुआत से ही जेट इंजन के अनुसंधान एवं विकास में शामिल थे, जिससे इंजन निर्माण की कुशलता, विशेषज्ञता और एकीकरण में काफ़ी सुधार हुआ. यानी चीन द्वारा अपने इंजन विकास कार्यक्रम को खोलने से और दूसरे देशों के आपूर्तिकर्ताओं से खुलकर मदद लेने से चीन के इंजन विकास कार्यक्रम कोई हर स्तर पर फायदा हुआ. जैसे कि इसने उन्नत तकनीक़ हासिल करने में आने वाली रुकावटों को दूर करने का काम किया, अपस्ट्रीम डेटा तक आसान पहुंच प्रदान की है, साथ ही इस क्षेत्र में इनोवेशन को बढ़ावा देने एवं निर्माण लागत को कम करने में भी यह क़दम कारगर साबित हुए. इतना ही नहीं, चीन ने फाइटर जेट इंजनों के विकास में निवेश भी बढ़ाया. वर्ष 2010 और 2015 के बीच चीन ने उन्नत जेट इंजनों के विकास में क़रीब 150 बिलियन RMB (23.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश किया. इतना ही नहीं, चीन ने अपनी इस महत्वाकांक्षी 'टू इंजन' परियोजना में वर्ष 2020 के अंत तक निवेश बढ़ाकर लगभग 300 बिलियन RMB (42 बिलियन अमेरिकी डॉलर) कर दिया.
चीन के जेट इंजन विकास पर नज़र डाली जाए तो WS-10 इंजन का विकास उसके लिए मील का पत्थर साबित हुआ है. हालांकि, इस उपलब्धि को हासिल करना चीन के लिए आसान भी नहीं रहा है और उसे तमाम मुश्किलों से जूझना पड़ा है. चीन में WS-10 इंजन को विकसित करने की परिकल्पना सबसे पहले 1970 के दशक में सामने आई थी, जिसे औपचारिक रूप से 1987 में मंजूरी दी गई. साल 2005 तक WS-10 इंजन के डिजाइन और उत्पादन का सर्टिफिकेशन मिल गया था. बावज़ूद इसके, WS-10 इंजन से लैस विमानों को वर्ष 2017 तक न तो सेना में शामिल किया गया और न ही इन पर ख़ास भरोसा जताया गया, तक तक बस इसका रूसी AL-31F इंजन के साथ दोहरे इंजन वाले J-11 विमानों में परीक्षण ही किया गया था. इसके अलावा, WS-10A इंजन के उपयोग के दौरान ज़बरदस्त तकनीक़ी खामियां भी सामने आईं. जैसे कि टर्बाइन ब्लेड का ज़्यादा गर्म होना, टरबाइन ब्लेड टूट जाना, स्प्रे होना और बीच हवा में ही जाम हो जाना. इस इंजन की पहली पीढ़ी के निर्देशात्मक तौर पर ठोस टर्बाइन ब्लेड उच्चतम तापमान और प्रेशर लोड के लिहाज़ से अनुकूल साबित नहीं हुए. पीएलए में उपयोग में लाए जाने के बाद के शुरुआती तीन वर्षों में WS-10 जेट इंजन से जुड़ी क़रीब 20,000 शिकायतें दर्ज़ की गईं. दरअसल, बनाते समय WS-10 इंजन का वेट थ्रस्ट 129 किलोन्यूटन (kN) पर सीमित किया गया था, जिसे बाद में बढ़ाकर 137 kN कर दिया गया और इसे अब 145 kN तक बढ़ाने की दिशा में काम किया जाना है.
चीन ने जब इस इंजन के उन्नत संस्करण WS-10B का विकास किया तो वो कई मायनों में सफल रहा. इस उन्नत जेट इंजन में टर्बाइन, कंप्रेसर और बियरिंग के लिए बेहतर मिश्र धातु और उपकरणों का इस्तेमाल किया गया था. साल 2018 में झुहाई एयरशो में WS-10B इंजन से लैस J-10C फाइटर जेट ने हवाई प्रदर्शन किया था और हवा में उसकी कलाबाजियों से लगा कि यह विमान काफ़ी उन्नत और भरोसेमंद है. तीन दशकों से ज़्यादा समय तक रिसर्च और डेवलपमेंट के बाद आख़िरकार चीन ने 2019 के चौथे J-10C बैच के सिंगल-इंजन लड़ाकू विमानों में WS-10B इंजन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. भले ही चीन को WS-10B जेट इंजन के विकास में कई तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन ये चुनौतियाँ न तो रूस के AL-31F इंजन विकास के दौरान आई विफलताओं जितनी गंभीर थीं और न ही वैश्विक मानकों के अनुरूप असाधारण थीं. कहने का मतलब है कि इतनी देरी के बावज़ूद चीन ने कहीं न कहीं औसत रूप से कम समय में ही इस उन्नत जेट इंजन विकसित करने में सफलता हासिल की.
चीन का WS-10 जेट इंजन उसका सबसे प्रमुख और भरोसेमंद जेट इंजन है और पिछले कुछ वर्षों में चीन के फ्रंटलाइन लड़ाकू विमानों में इसका बढ़-चढ़कर इस्तेमाल किया जा रहा है. जिन विमानों में इस इंजन का उपयोग किया जा रहा है, उनमें स्टील्थ J-20 विमान के शुरुआती मॉडल, कैरियर-आधारित J-15T विमान और J-11, J-16 व J-10 फाइटर जेट शामिल हैं. इसके अलावा, इन विमानों के एक्सपोर्ट वैरिएंट्स में भी इस इंजन का खूब उपयोग किया जा रहा है. कुल मिलाकर WS-10 जेट इंजन में अब कोई कमी नहीं है और यह चीन का वर्कहॉर्स इंजन बन गया है, यानी एक ऐसा जेट इंजन बन चुका है जो अपनी मज़बूती, विश्वसनीयता और लगातार मुश्किल परिस्थितियों में काम करने की क्षमता के लिए जाना जाता है. WS-10 इंजन ने चीन में जेट इंजनों के विकास को एक नई दिशा दी है और इंजन आर्किटेक्चर एवं मैटेरियल्स साइन्स को भी आकार देने का काम किया है. इसके इलावा, इस इंजन ने कहीं न कहीं चीन में और ज़्यादा विकसित जेट इंजनों जैसे कि WS-15 और WS-19 के विकास की मज़बूत नींव भी तैयार की. ज़ाहिर है कि चीन की पांचवी और छठी पीढ़ी के फाइटर जेट्स के निर्माण के लिए इन्हीं WS-15 और WS-19 जेट इंजनों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चीन के J-20 फाइटर जेट ने प्रोटोटाइप 2052 के साथ जून 2023 से कथित तौर पर WS-15 इंजन से उड़ान भरना शुरू कर दिया है. ज़ाहिर है कि यह चीन की विदेशी जेट इंजनों पर अपनी निर्भरता को समाप्त करने की दिशा में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है.
चीन में जेट इंजन विकास का कार्यक्रम आज तेज़ उड़ान भर रहा है. यानी प्रतिबंधों, विफलताओं और अलगाव को पीछे छोड़ते हुए चीन के जेट इंजन विकास ने वर्तमान में अहम उपलब्धि हासिल की है. चीन का स्वदेशी WS-10 जेट इंजन, जिसे शुरुआत में एक हिसाब से अस्वीकृत कर दिया गया था और जरा भी गंभीरता से नहीं लिया गया था, वो जेट इंजन आज चीन के अत्याधुनिक J-10, J-11, J-16 और J-20 समेत अग्रिम पंक्ति के कई फाइटर एयरक्राफ्ट को ताक़त दे रहा है. इतना ही नहीं, इसी WS-10 जेट इंजन के विकास ने चीन में अगली पीढ़ी के WS-15 और WS-19 जेट इंजनों के विकास के लिए भी मज़बूत आधार का काम किया है. जेट इंजनों के विकास में चीन की इस प्रगति के पीछे लगातार की गई कोशिशें हैं. चीन ने अपने जेट इंजन विकास कार्यक्रमों में कभी पैसों की कमी आड़े नहीं आने दी, साथ ही इसके लिए नीतियों में लगातार बदलाव किया. वर्ष 2016 में चीन ने जेट इंजनों के विकास को गति देने के लिए जो नीतिगत सुधार किए, उसने कहीं न कहीं चीन को इस दिशा में नई ऊंचाई प्रदान की और जेट इंजन विकास से जुड़ी तमाम अलग-अलग बिखरी हुईं अनुसंधान एवं विकास इकाइयों को एक साथ लाकर एक एकीकृत एयरोस्पेस उद्यम में मिलाने का काम किया. इसी का नतीज़ा है कि चीन में आज एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और रणनीतिक तौर पर सक्षम वायु सेना है, साथ ही चीन आज अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों के निर्माण के लिए विदेशी जेट इंजनों पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसके पास अपने देश में विकसित किए गए अत्याधुनिक जेट इंजन हैं.
जेट इंजन विकास के मामले में अगर भारत की बात की जाए, तो उसने पश्चिमी तकनीक़ तक पहुंच और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) इंजनों के विकास में फ्रांस के साथ चल रहे सहयोग के बावज़ूद कोई ज़्यादा सफलता हासिल नहीं की है. सच्चाई यह है कि अत्याधुनिक जेट इंजन निर्माण को लेकर न तो भारत का लक्ष्य स्पष्ट दिखाई देता है और न ही भारत में संस्थागत स्तर पर इसके लिए उतनी गंभीरता दिखती है. ऐसे में जेट इंजन के विकास में चीन की उपलब्धियों से काफ़ी कुछ सीखा जा सकता है. जैसे कि संगठन और सरकार के स्तर पर दृढ़ता के साथ लक्ष्य की ओर क़दम बढ़ाना और क्षमता हासिल करना, साथ ही इस क्षेत्र में व्यापक स्तर पर निवेश करना ताकि विकास कार्यक्रमों में कोई अवरोध न आए और जेट इंजन के विकास को एक मिशन के रूप में संचालित करना. कहने का मतलब है कि यदि भारत वास्तव में जेट इंजन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना चाहता है, तो उसे टुकड़ों में चल रहे प्रयासों से आगे बढ़कर एकीकृत, दीर्घकालिक और मिशन-आधारित दृष्टिकोण अपनाना होगा.
अतुल कुमार ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.
अनन्या वेल्लोर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च इंटर्न हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Atul Kumar is a Fellow in Strategic Studies Programme at ORF. His research focuses on national security issues in Asia, China's expeditionary military capabilities, military ...
Read More +
Ananya Vellore is a Research Intern with the Strategic Studies Programme, Observer Research Foundation. ...
Read More +