Published on Mar 22, 2021 Updated 0 Hours ago

ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत द्वीपसमूह स्थित देशों ने हमें सिखाया है कि महामारी की चुनौतियों से निपटने में क्या किया जा सकता है, साथ ही और क्या करने की जरूरत है

प्रशांत द्वीप के देशों में वैक्सीन मुहैया कराने के लिये आगे आया ऑस्ट्रेलिया — और क्या कर सकता है वह?

जब से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड-19 को महामारी घोषित किया है, तब से इसने दुनिया को जितना जोड़ा है, उतना ही बांटा भी है. हर देश और हर क्षेत्र पर इस महामारी का असर अलग-अलग हुआ है. कुछ देशों में इससे अप्रत्याशित तौर पर लोगों की जानें गई हैं, जिसका असर आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा. कुछ देशों ने कोविड-19 के संक्रमण को रोकने में सफलता पाई है, लेकिन खुद को दुनिया से अलग-थलग करने की कीमत पर.

साल भर पहले जितने समय में इस वायरस को रोकने वाली वैक्सीन आने का अनुमान लगाया गया था, उससे कहीं, कहीं पहले इसके आने से पूरा परिदृश्य ही बदल गया है. जो देश कोविड-19 को नहीं रोक पाए, उनके हाथ अब इसके लिए एक संभावित रामबाण नुस्ख़ा लग गया है. लेकिन सवाल यह है कि इस नुस्ख़ा को पाने की कतार में कौन सबसे आगे है?

हमें यह बात अच्छी तरह से पता है कि वैक्सीन तक पहुंच के मामले में दुनिया में बराबरी की स्थिति नहीं है. सच तो यह है कि आधे से अधिक टीकों का ऑर्डर दुनिया की सिर्फ 14 फीसदी आबादी के लिए दिया गया है. वह आबादी जो अमीर देशों में रहती है. इन परिस्थितियों में जिन देशों के पास वैक्सीन है, वह जो भी करेंगे, उसका उन देशों पर बड़ा असर होगा, जिनके पास यह नहीं है. ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर के द्वीपसमूहों में स्थित देशों से सीखा जा सकता है कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए. साथ ही, जो हो चुका है, उसके अलावा और क्या करने की जरूरत है.

प्रशांत क्षेत्र में महामारी

महामारी के शुरू होते ही यह स्पष्ट हो गया था कि दक्षिण प्रशांत क्षेत्र पर कोविड-19 का स्वास्थ्य और आर्थिक लिहाज से कहीं अधिक बुरा असर हो सकता है. इनमें से कई देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बहुत खराब है. उपकरणों, इंफ्रास्ट्रक्चर और कुशल कर्मियों के अभाव में वहां के नागरिकों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा नहीं मिल पाती. साथ ही, वे बाकी दुनिया से भौगोलिक तौर पर अलग-थलग भी हैं.

इन द्वीपसमूहों में स्थित 22 देशों और क्षेत्रों में महामारी के कारण सिर्फ 300 लोगों की मौत हुई. इनमें भी ज्यादातर लोगों की जान फ्रेंच पॉलिनेशिया और गुआम में गई. इस क्षेत्र के 11 देशों में तो अभी तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला है.

दूसरी ओर, यह क्षेत्र किसी भी राहत, प्रवास और पर्यटन के लिए बाहरी दुनिया पर आश्रित है. इसका मतलब यह कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाजाही पर रोक लगने की इसे बड़ी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ती. प्रशांत क्षेत्र के द्वीपसमूहों में स्थित कई देशों ने सीमाओं को बंद करने और लॉकडाउन जैसे कदम उठाए और कोविड-19 का संक्रमण रोकने में सफलता पाई. इन द्वीपसमूहों में स्थित 22 देशों और क्षेत्रों में महामारी के कारण सिर्फ 300 लोगों की मौत हुई. इनमें भी ज्यादातर लोगों की जान फ्रेंच पॉलिनेशिया और गुआम में गई. इस क्षेत्र के 11 देशों में तो अभी तक कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला है. लेकिन इसका इन देशों की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर हुआ है. मिसाल के लिए, ट्रैवल पर लगी रोक के कारण वनातु के पर्यटन क्षेत्र में 70 फीसदी नौकरियां खत्म हो गईं.

ऑस्ट्रेलिया से मिली मदद

ऑस्ट्रेलिया का लंबी अवधि में राष्ट्रीय हित प्रशांत द्वीपसमूहों से जुड़ा है, जो उसके काफी करीब स्थित भी हैं. औपनिवेशिक काल से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक इस देश की सबसे बड़ी रणनीतिक प्राथमिकताओं में से एक यह थी कि पास के द्वीपों पर संभावित शत्रु कब्जा न कर ले.

दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के लिए ऑस्ट्रेलिया आज भी सबसे अधिक दान करने वाला देश बना हुआ है. हां, यह भी सच है कि चीन की तरफ से भी यहां निवेश और मदद बढ़ रही है. ऑस्ट्रेलिया ने 2018 में पैसिफिक स्टेप अप की घोषणा की थी, जिसके तहत वित्तीय मदद बढ़ाने, प्रशांत क्षेत्र में एक ऑफिस बनाने के साथ 2 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाने की बात थी. इससे पता चलता है कि वह अपने आसपास के इस क्षेत्र में अपना दर्जा और प्रभाव बनाए रखना चाहता है. असल में पैसिफिक स्टेप अप वह नीति है, जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया अपने आसपड़ोस के क्षेत्रों को जोड़ने की कोशिश करता है और इसे उसकी विदेश नीति में सर्वोच्च प्राथमिकता हासिल है.

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है. उसने इन देशों को तुरंत वित्तीय मदद का प्रस्ताव दिया. संक्रमण से बचाव के उपकरण, मेडिकल साजोसामान और विशेष सलाहकार मुहैया कराए

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद इस क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया ने नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है. उसने इन देशों को तुरंत वित्तीय मदद का प्रस्ताव दिया. संक्रमण से बचाव के उपकरण, मेडिकल साजोसामान और विशेष सलाहकार मुहैया कराए. इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया ने उनके लिए ट्रांजिट कंट्री (उन देशों के नागरिकों को अपने यहां से गुजरने का रास्ता दिया) और राहत सामग्री पहुंचने के मार्ग की भूमिका भी निभाई. ऑस्ट्रेलिया में इन देशों के जो लोग सीजनल लेबर स्कीम के तहत काम कर रहे थे, उसने उनका वीजा भी बढ़ाया.

महामारी के दौरान ऑस्ट्रेलिया की तरफ से की गई एक महत्वपूर्ण घोषणा यह थी कि अमेरिका के ट्रंप सरकार के उलट वह COVAX का समर्थन करेगा. COVAX एक साझा फंड है, जिसे कोविड-19 वैक्सीन के समान वितरण के मकसद से बनाया गया है. इसका नेतृत्व कोअलिशन फॉर एपिडेमिक प्रीपेयर्डनेस इनोवेशंस, गावी और विश्व स्वास्थ्य संगठन कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया ने 8 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर देने का वादा COVAX की ख़ातिर किया है ताकि विकासशील देशों की पहुंच वैक्सीन तक हो सके. इसके साथ उसने भारत-प्रशांत क्षेत्र में भी इसी मकसद के लिए 52.3 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर देने की बात कही है, जिसमें से 20 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर पैसिफिक द्वीपसमूहों को मिलेंगे.

COVAX के पास कोई वैक्सीन नहीं

यह वैक्सीन राष्ट्रवाद का दौर है. इसलिए COVAX अभी तक वैक्सीन की सप्लाई का करार नहीं कर पाया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. ट्रेडॉस ऐड्रेनॉम गैबरेयेसस के मुताबिक, ‘वे वैक्सीन के समान वितरण की बात तो कर रहे हैं, लेकिन कुछ देश इसकी खातिर द्विपक्षीय करार को प्राथमिकता दे रहे हैं. वे इसके लिए COVAX की अनदेखी कर रहे हैं, वे सबसे पहले वैक्सीन हासिल करना चाहते हैं. इससे वैक्सीन की कीमत बढ़ रही है.’ डॉ. ट्रेडॉस इसे भयंकर नैतिक पतन के तौर पर देख रहे हैं. उनका कहना है कि इसकी कीमत दुनिया के सबसे गरीब देश अपने नागरिकों की जिंदगी देकर और रोजी-रोटी गंवाकर चुका रहे हैं.

COVAX को 2021 में 6 अरब ख़ुराक की जरूरत है, जिसमें से वह 2 अरब ख़ुराक बांटने की उम्मीद कर रहा है. लेकिन अगर अमीर देशों की तरफ से वैक्सीन की मांग बढ़ती है तो वैक्सीन के उत्पादन में देरी होगी. इससे COVAX टीका पाने वालों की कतार में और पीछे खिसक जाएगा. अमीर देशों की तरफ से ऐसा किए जाने के संकेत अभी से दिखने लगे हैं. हाल ही में इटली ने वैक्सीन की एक शिपमेंट रोक दी, जो ऑस्ट्रेलिया जा रही थी. कनाडा और नॉर्वे जैसे देशों ने अपनी ज़रूरत से अधिक वैक्सीन का ऑर्डर दिया है. हालांकि, उनका कहना है कि इनमें से जो भी वैक्सीन बचेंगीं, वे COVAX को दान कर देंगे. लेकिन इसमें देरी होगी.

अभी के अनुमान बताते हैं कि अमीर देशों में 2021 के आखिर तक बड़े पैमाने पर टीकाकरण हो चुका होगा, जबकि मध्यम आय वर्ग वाले देशों में यह काम 2022 के मध्य से उस साल के आखिर तक और दुनिया के सर्वाधिक गरीब देशों में 2023 तक पूरा हो पाएगा. प्रशांत क्षेत्र की बात करें तो सबसे बुरे अनुमानों में यहां तक कहा गया है कि कम से कम 2025 तक ही वहां की बड़ी आबादी का टीकाकरण हो पाएगा.

ऑस्ट्रेलिया चाहे तो वैक्सीन के समान वितरण को एक नैतिक मुद्दा बना सकता है. जहां भी मौका मिले, उस मंच से वह प्रशांत क्षेत्र के लिए इसकी मांग उठा सकता है. उसने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को लेकर ऐसा किया भी है

इसमें देरी से इस क्षेत्र पर बुरा आर्थिक असर होगा. इससे अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के खुलने में भी देरी होगी, जिसके पर्यटन पर आश्रित इन देशों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे. महामारी के दौर में समृद्धि की राह पर आगे बढ़ने के लिए वैक्सीन पूर्व शर्त बन गई है. COVAX को वैक्सीन मिलने में संभावित देरी, प्रशांत द्वीपसमूह क्षेत्रों के कुछ देशों की चीन सहित अन्य देशों से द्विपक्षीय बातचीत जैसे कारणों से इसके लिए साझी क्षेत्रीय योजना बनाना मुश्किल हो गया है. इतना ही नहीं, इस राह में भौगोलिक और लॉजिस्टिक्स संबंधी बाधाएं भी हैं.

और समर्थन के विकल्प

ऑस्ट्रेलिया और इस क्षेत्र की चिंता करने वाले अन्य देशों के पास प्रशांत द्वीपसमूहों में स्थित देशों की मदद के दूसरे रास्ते भी हैं. ऑस्ट्रेलिया चाहे तो वैक्सीन के समान वितरण को एक नैतिक मुद्दा बना सकता है. जहां भी मौका मिले, उस मंच से वह प्रशांत क्षेत्र के लिए इसकी मांग उठा सकता है. उसने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को लेकर ऐसा किया भी है. वह सरप्लस वैक्सीन को या तो COVAX को दान कर दे या इन्हें सीधे प्रशांत क्षेत्र के इन देशों को दे दे. मेलबर्न में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की 5 करोड़ ख़ुराक तैयार की जानी हैं. वह चाहे तो इसका एक हिस्सा पड़ोस के इन देशों को दे सकता है. उसने नोवावैक्स वैक्सीन के 5.1 करोड़ खुराक का ऑर्डर दे दिया है. जब इसे मंजूरी मिल जाए तो वह इसका भी एक हिस्सा उन्हें दे सकता है. उसे इन देशों को यह टीका मुफ्त में या कम कीमत पर देना चाहिए.

ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय विकास और प्रशांत क्षेत्र के मंत्री जेड सेसेल्जा ने बताया था कि उनका देश इन विकल्पों पर विचार कर रहा है. वह इस मामले में भारत जैसे देशों से सीख सकता है, जिसने मालद्वीस, सेसेल्स और मॉरीशस वैक्सीन सप्लाई की योजना बनाई है. आखिर में, ऑस्ट्रेलिया इस क्षेत्र के विकास में सहयोगी की भूमिका निभा सकता है क्योंकि कोविड-19 सिर्फ़ स्वास्थ्य से जुड़ा मसला नहीं है.

उसने पैसिफिक और तिमोर-लेस्ते के लिए 30 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर के पैकेज का ऐलान किया है ताकि वे महामारी के आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से निपट सकें. वह चाहे तो ऐसी पहल जारी रख सकता है.

ऑस्ट्रेलिया की सरकार इस बात को समझती है कि प्रशांत द्वीपसमूह क्षेत्रों में रहने वाले सभी लोगों का टीकाकरण खुद उसके हित में है, नैतिक और आर्थिक लिहाज दोनों से ही. इसके साथ अमीर देशों को यह पक्का करना होगा कि वैक्सीन का असमान वितरण दुनिया की हेल्थ और इकॉनमिक रिकवरी में बाधा न बन जाए. उन्हें COVAX की बात याद रखनी होगी, जिसका कहना है कि जब तक महामारी से हर कोई सुरक्षित नहीं हो जाता, तब तक इससे कोई सुरक्षित नहीं है.

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