13 मार्च को, AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका) ने ऑस्ट्रेलिया के परमाणु-संचालित, पारंपरिक रूप से सशस्त्र पनडुब्बियों (एसएसएन) के अधिग्रहण का रास्ता साफ़ करने का अहम फ़ैसला लिया है. सितंबर 2021 में हुए इस अनौपचारिक सुरक्षा गठजोड़ के गठन के केंद्रीय उद्देश्य के रूप में यह फ़ैसला रेखांकित किया गया था. एयूकेयूएस समझौते की शुरुआत में ही जारी संयुक्त बयान में पनडुब्बी कार्यक्रम से संबंधित रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश जारी करने के लिए 18 माह का वक़्त निर्धारित किया गया था. इसे लेकर समय सीमा के अंतिम माह में घोषणा कर दी गई है.
एयूकेयूएस समझौते की शुरुआत में ही जारी संयुक्त बयान में पनडुब्बी कार्यक्रम से संबंधित रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश जारी करने के लिए 18 माह का वक़्त निर्धारित किया गया था. इसे लेकर समय सीमा के अंतिम माह में घोषणा कर दी गई है.
मार्ग
सैन डिएगो में नेताओं ने संयुक्त बयान जारी करते हुए उसमें एक व्यापक योजना दी. इसमें एक चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाने की बात कही गई है. इसके तहत पश्चिमी प्रशांत इलाके में लंबी अवधि में ऑस्ट्रेलिया के लिए ऑप्टिकल टेक्नॉलॉजी इंडक्शन अर्थात इष्टतम प्रौद्योगिकी अधिष्ठापन और क्षमता निर्माण के साथ क्षमता तैनाती की तत्काल आवश्यकता को संतुलित किया जाएगा. इसके लिए एसएसएन-एयूकेयूएस नामक अगली पीढ़ी कीत्रिपक्षीय पनडुब्बी कार्यक्रम की शुरूआत की जा रही है. इस कार्यक्रम के तहत यूके और ऑस्ट्रेलिया में नए एसएसएन का निर्माण होगा और इसे दोनों देशों द्वारा संचालित किया जाएगा. सितंबर 2021 में यूके एमओडी ने तीन साल में पूरा होने वाले एक एसएसएन डिजाइन और अवधारणा विकास अनुबंध को स्वीकृति दी. एसएसएन-एयूकेयूएस इसी डिजाइन पर आधारित होगा और इसमें तीनों भागीदार देशों की तकनीकों को शामिल किया जाएगा. इस परियोजना की समय सीमा को देखते हुए, एक अंतरिम समाधान भी खोजा गया है. रोडमैप अर्थात दिशा-निर्देश के पहले चरण में एसएसएन द्वारा ऑस्ट्रेलिया के बंदरगाहों का दौरा (2023 से यूएस द्वारा, और 2026 से यूके द्वारा) होगा. दूसरे चरण के तहत, 2027 से, यूएस नेवी और रॉयल नेवी दोनों ही वर्जीनिया और एस्ट्यूट क्लास एसएसएन को ऑस्ट्रेलिया में तैनात करना शुरू कर देंगे. 2030 के दशक की शुरुआत में आरंभ होने वाले तीसरे चरण में, अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी मिलने के बाद ऑस्ट्रेलिया को तीन वर्जीनिया क्लास एसएसएन बेचे जाएंगे. इसमें दो एसएसएन और बेचने का विकल्प भी शामिल रहेगा. चौथे चरण के तहत 2030 के दशक के अंत से रॉयल नेवी के लिए और 2040 के दशक की शुरुआत में रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए संयुक्त रूप से डिजाइन और विकसित एसएसएन-एयूकेयूएस पनडुब्बियों की डिलीवरी अर्थात आपूर्ति की योजना बनाई गई है.
इस कार्यक्रम के बारे में होने वाली घोषणा के ठीक पहले लगाई जा रही व्यापक और अलग-अलग अटकलों के बावजूद, योजना में कोई आश्चर्यजनक बात दिखाई नहीं दे रही है. इसमें पोर्ट विजिट अर्थात बंदरगाह के दौरे, फॉरवर्ड बेसिंग अर्थात विदेशी धरती पर शांति स्थापित करने के लिए सैनिकों/हथियारों की तैनाती और सेना की नियुक्ति, अंतरिम और अंतिम प्लेटफॉर्म सोल्यूशन्स अर्थात मोर्चे और मोर्चे से इतर मेडिकल देखरेख की सुविधा के अलावा औद्योगिक विशेषज्ञता, बुनियादी ढांचे, प्रशिक्षण, रखरखाव, सुरक्षा और संचालन की बात की गई है. यह वही मुख्य रूपरेखा है, जिसकी ओआरएफ द्वारा मई 2022 में प्रकाशित इश्यू ब्रीफ्स में संभावना जताकर इस पर प्रकाश डाला गया था. इस रूपरेखा में योजना के तहत लगभग चार दशकों - 2060 के दशक की शुरूआत तक - की लंबी अवधि और यूके और ऑस्ट्रेलिया में निकट-समवर्ती पनडुब्बी-निर्माण (एयूकेयूएस-एसएसएन) तथा जोख़िम शमन के लिए रॉयल नेवी को इन पनडुब्बियों की प्रारंभिक डिलीवरी जैसे अपवाद शामिल है.
इस रूपरेखा में योजना के तहत लगभग चार दशकों - 2060 के दशक की शुरूआत तक - की लंबी अवधि और यूके और ऑस्ट्रेलिया में निकट-समवर्ती पनडुब्बी-निर्माण (एयूकेयूएस-एसएसएन) तथा जोख़िम शमन के लिए रॉयल नेवी को इन पनडुब्बियों की प्रारंभिक डिलीवरी जैसे अपवाद शामिल है.
ऑस्ट्रेलिया के पास 2030 के दशक की शुरूआत तक अपने स्वयं के एसएसएन- यूएस वर्जीनिया क्लास- उपलब्ध होंगे, जो पहले से उपयोग की जा रही पनडुब्बियां होंगी, लेकिन जिनका अभी भी सफ़लतापूर्वक उपयोग किया जा सकेगा.
कार्यान्वयन
यह तो साफ़ दिखाई दे रहा है कि एयूकेयूएस भागीदारों के बीच एक व्यावहारिक योजना विकसित करने के लिए विस्तृत विचार-विमर्श किया गया है. यह विचार विमर्श प्रत्येक चरण के साथ जुड़ी कुछ अनूठी चुनौतियों और बढ़ती जटिलता को संबोधित करता है. यह भी उम्मीद लगाई जा रही है कि नेताओं के संयुक्त बयान से परे जाकर एक वर्गीकृत और अधिक विस्तृत समग्र योजना तैयार की जा चुकी है अथवा इसकी तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच चुकी है. पहले और दूसरे चरण में ऑस्ट्रेलिया में परमाणु पनडुब्बियों के संचालन, रखरखाव और निर्माण के लिए व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. इसके बाद तीसरे और चौथे चरण में ऑस्ट्रेलिया के पास उसके स्वामित्व वाली और उसके द्वारा संचालित पनडुब्बियां शामिल की गई है. यह संकेत भी दिया गया है कि ऑस्ट्रेलिया में पनडुब्बी परमाणु रिएक्टरों का विकास और उत्पादन नहीं होगा. यह रिएक्टर भागीदार देशों से आयात किए जाएंगे. इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया को फिसल मटेरियल अर्थात आण्विक सामग्री का अलग से हस्तांतरण नहीं किया जाएगा. इसके साथ ही मुख्य रूप से सर्विस लाइफ अर्थात सेवा जीवन के अंत में परमाणु कचरे का निपटान भी ऑस्ट्रेलियाई क्षेत्र में ही किया जाना तय किया गया है. ऑस्ट्रेलिया में परमाणु हथियार सक्षम पनडुब्बियों को फॉरवर्ड रोटेशन अर्थात अग्रसारण की अनुमति भी नहीं होगी.
इसी प्रकार यूएस और यूके पनडुब्बियों की (एचएमएएस स्टर्लिंग वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में शुरू होने की संभावना) तैनाती, वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियों के अधिग्रहण का कार्यक्रम, एयूकेयूएस-एसएसएन का डिजाइन अर्थात ढांचा और डेवलपमेंट अर्थात विकास, और ऑस्ट्रेलिया में नामित शिपयार्ड अर्थात जहाज बनाने अथवा मरम्मत करने का स्थान, में इसके बुनियादी ढांचे को विकसित किए जाने की संभावना है. इस दिशा में आने वाले महीनों में अलग, लेकिन एकीकृत योजनाओं के साथ काम आरम्भ किया जा सकता है.
चिंताएं और प्रतिक्रियाएं
एयूकेयूएस देशों (मुख्यत: ऑस्ट्रेलिया) के भीतर, कुछ पर्यवेक्षकों ने मुख्य रूप से उच्च लागत (368 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कुल लागत के कुछ प्रारंभिक अनुमानों के साथ) के साथ ही जेस्टेशन पीरियड्स अर्थात पनडुब्बी के उपलब्ध होने में लगने वाली लंबी अवधि, दो प्रकार के एसएसएन के संचालन से जुड़ी चुनौतियों के साथ ही परमाणु प्रसार के संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं व्यक्त की है. लेकिन इस कार्यक्रम का समर्थन करने वालों और सरकारों ने इससे जुड़ी लागत को न्यायोचित निरुपित करते हुए समय सीमा को भी सही माना है. ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने पश्चिमी और दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में अगले चार वर्षों में औद्योगिक क्षमता के विकास पर 3.995 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रारंभिक व्यय योजना पर अमल का संकेत दिया है.
यह संकेत भी दिया गया है कि ऑस्ट्रेलिया में पनडुब्बी परमाणु रिएक्टरों का विकास और उत्पादन नहीं होगा. यह रिएक्टर भागीदार देशों से आयात किए जाएंगे. इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया को फिसल मटेरियल अर्थात आण्विक सामग्री का अलग से हस्तांतरण नहीं किया जाएगा.
हालांकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के भीतर ज़्यादातर प्रतिक्रियाएं दबी हुई ही रही है. एयूकेयूएस के गठन को लेकर इंडोनेशिया और मलेशिया ने उस वक़्त जो आशंकाएं जताने में तेजी दिखाई थी, वह तेजी अब इन दोनों की ओर से नहीं दिखाई दे रही है. संभवत: उनकी नरमी का यह कारण है कि ऑस्ट्रेलिया ने यह कार्यक्रम घोषित किए जाने से पहले इसके औचित्य की व्याख्या करते हुए इसके समर्थन में माहौल खड़ा करने का प्रयास किया था. एयूकेयूएस देशों का यह भी मानना है कि भारत और जापान भले ही खुले तौर पर इस कार्यक्रम का समर्थन नहीं कर सकते, लेकिन वे इस बात को समझ सकते है कि इस कार्यक्रम पर अमल क्यों किया जा रहा है अथवा इसके कारक क्या है.
सबसे तीखी प्रतिक्रिया चीन की ओर से आयी है. चीन ने कहा है कि एयूकेयूएस ने एक ‘‘गलत और ख़तरनाक’’ पथ पर जाना शुरू कर दिया है. एयूकेयूएस के गठन के वक़्त चीन ने इस समझौते का विरोध करते हुए तीन बातों का उल्लेख किया था. यह समझौता हथियारों की रेस अर्थात होड़ को तेज करेगा, अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार व्यवस्था को कमजोर करेगा और अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता को चोट पहुंचाने वाला समझौता साबित होगा. चीन का कहना था कि ऑस्ट्रेलिया को वेपन्स ग्रेड अर्थात हथियार बनाने वाले स्तर के यूरेनियम के नियोजित हस्तांतरण को देखते हुए आईएईए के सभी सदस्यों को ऐसा करने से उपजने वाले सुरक्षा संबंधी समस्याओं से निपटने के उपायों को लेकर एक पारदर्शी, खुली और समावेशी प्रक्रिया में चर्चा करनी चाहिए. चीन की आपत्ति इस बात पर थी कि यह चर्चा केवल आईएईए सचिवालय और एयूकेयूएस सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए.
पिछले दो दशकों में पीएलए नौसेना की अभूतपूर्व वृद्धि के साथ चीन के आक्रामक और प्रतिरोधी व्यवहार को देखते हुए उसके समानांतर, एयूकेयूएस सौदे को लेकर संभावित हथियारों की होड़ को लेकर उसकी स्थिति आश्वस्त करने वाली नहीं है. चीन का ख़ुद का दृष्टिकोण और उसके कार्य क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले ही साबित हुए है. चीन की केवल एक आपत्ति अथवा अवलोकन पर ही ध्यान दिया जा सकता है. यह आपत्ति परमाणु अप्रसार व्यवस्था पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव से संबंधित है.
वर्तमान में वैश्विक परमाणु हथियार नियंत्रण और हथियार सीमा संरचना अस्त-व्यस्त हैं क्योंकि इसे लेकर सभी महत्वपूर्ण संधियाँ और समझौते या तो निरस्त है या निलंबित हैं. परमाणु अप्रसार के दृष्टिकोण से देखा जाए तो एयूकेयूएस ने परमाणु अप्रसार संधि 1968 के प्रावधानों के तहत मिली छूट का उपयोग करते हुए परमाणु हथियार वाले देशों से गैर-परमाणु हथियार वाले देशों को परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण का निर्णय लिया है. ऑस्ट्रेलिया ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑस्ट्रेलिया में न तो कोई यूरेनियम प्रसंस्करण होगा और न ही इसका संवर्धन किया जाएगा. इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया ने यह भी कह दिया है कि ऑस्ट्रेलिया का परमाणु हथियार विकसित करने का और उनकी तैनाती करने का कोई इरादा नहीं है. लेकिन यह बेहतर ही होगा यदि एयूकेयूएस देशों की ओर से सुरक्षा तंत्रों का ब्यौरा जारी कर दिया जाए. ऐसा होने पर इनसे जुड़ी आशंकाओं को दूर किया जा सकेगा. ये आशंकाएं इस सौदे में परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकियों के सुरक्षा उपायों को धता बताकर निगरानी तंत्र से बचते हुए हस्तांतरण करने से जुड़ी हैं.
मुख्य निहितार्थ
ऑस्ट्रेलिया को दी जाने वाली नई पनडुब्बियों के लिए एयूकेयूएस का रोडमैप और इसमें शामिल भागीदार देशों की पनडुब्बी तैनाती की योजना दरअसल इस क्षेत्र में बढ़ रही चीनी क्षमताओं का मुकाबला करने के लिए गठबंधन की ओर से उठाया गया कदम है. इसके चलते अब एयूकेयूएस सदस्य इस क्षेत्र में एक प्रभावी शक्ति संतुलन सुनिश्चित करने और प्रतिरोध को मज़बूत करने के साथ अपनी क्षमता में वृद्धि करने में सफ़ल हो जाएंगे. यह समझौता इस गठबंधन में शामिल तीनों देशों के बीच एक दीर्घकालिक रक्षा और सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करने वाला समझौता भी है. यह ब्रिटेन को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में परिचालन कार्यों के लिए अधिक संसाधन आवंटित करने के लिए प्रतिबद्ध करता है. पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटेन ऐसा नहीं कर पाया है. आने वाले महीनों में एयूकेयूएस के झंडे तले रक्षा सहयोग को लेकर कुछ अन्य प्रमुख घोषणाएं होने की भी संभावना है. ये घोषणाएं विशेषत: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), क्वांटम टेक्नोलॉजी अर्थात प्रौद्योगिकियों और व्यापक अंडरवॉटर डोमेन जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हो सकती हैं. पश्चिमी और दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में संघर्ष और आकस्मिक स्थिति के लिए बनाई जाने वाली अमेरिका की योजनाओं में एयूकेयूएस देशों के तेजी से एकीकृत होने की संभावना है. यह भी हो सकता है कि एयूकेयूएस गठबंधन भविष्य में जापान, फिलीपींस और कोरिया गणराज्य के साथ पुनर्जीवित हो रहे अमेरिकी गठबंधन संरचनाओं के साथ सुरक्षा सहयोग और समन्वय बढ़ाने की कोशिश करते हुए गठबंधनों और साझेदारी के नेटवर्क को भी बढ़ावा देगा. ऐसे में यह क्वाड के व्यापक उद्देश्यों के साथ संरेखण को चित्रित करने की भी कोशिश कर सकता है.
चीन अपने अन्य साझेदारों के साथ, जिसमें आसियान भी शामिल है, अधिक लचीला रुख़ अपना सकता है. चीन की यह कोशिश होगी कि वह नाटो और एयूकेयूएस के रवैयों के बीच समानताओं की आड़ लेकर इससे जुड़े ख़तरों को लेकर अन्य देशों को आगाह करें.
2030 तक पीएलए नौसेना के पास कम से कम चार विमान वाहक उपलब्ध होने की संभावना है. इसे देखते हुए एयूकेयूएस की पनडुब्बी योजना एक ऑपरेशन सेटिंग में पीएलए नौसेना की इन विमान वाहनों को तैनात करने की योजनाओं को प्रभावित करेगी. भले ही अभी एसएसएन-एयूकेयूएस की डिजाइन और हथियार पैकेज का विवरण उजागर नहीं हुआ है, लेकिन पारंपरिक प्रतिरोध को मज़बूत करने के लिए इसमें नेक्स्ट जेनरेशन, वर्टिकल लॉन्च, लैंड अटैक क्रूज मिसाइल होने की संभावना जताई जा रही है. अमेरिकी पनडुब्बियों की गश्त यूके और ऑस्ट्रेलियाई पनडुब्बियों द्वारा संवर्धित की जाएगी, जिसमें डिजाइन चरण से ही उच्च स्तर की इंटरऑपरेटेबिलिटी अर्थात अंतसंर्चालनीयता शामिल होने की संभावना है. इसके बावजूद, चीन की आधुनिकीकरण योजनाएं (अंडरवॉटर डोमेन समेत), फुटप्रिंट-टू-फुटहोल्ड रणनीति, और भारत-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक प्रभाव संचालन निकट से मध्यम अवधि में जारी रहने की संभावना भी जताई जा रही है. चीन के भविष्य में रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को और पुख़्ता किए जाने की संभावना है. लेकिन चीन को यह भी पता है कि पैसिफिक अर्थात प्रशांत क्षेत्र में चीन और रूसी नौसैनिक साझेदारी को पेश करने की सीमाएं सीमित है. चीन अपने अन्य साझेदारों के साथ, जिसमें आसियान भी शामिल है, अधिक लचीला रुख़ अपना सकता है. चीन की यह कोशिश होगी कि वह नाटो और एयूकेयूएस के रवैयों के बीच समानताओं की आड़ लेकर इससे जुड़े ख़तरों को लेकर अन्य देशों को आगाह करें.
यह घोषणा इस धारणा को दूर करती है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वज़ह से भारत-प्रशांत क्षेत्र पर अब अमेरिका का पहले जितना ध्यान केंद्रित नहीं है. इस क्षेत्र में चल रही रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के और भी तेज होने की संभावना है. ऐसे में यह तेज होती प्रतिस्पर्धा व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और सार्वजनिक वस्तुओं सहित रक्षा और सुरक्षा से परे रहने वाले क्षेत्रों को भी अपने घेरे में लेते हुए प्रभावित करेगी. ऐसे में एक नई और स्थिर दुनिया के साथ क्षेत्रीय व्यवस्था, अनिश्चितता से मार्गक्रमण करने, बहुपक्षवाद में सुधार और शांतिपूर्ण आर्थिक वैश्वीकरण की वापसी से संबंधित बहस और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगी.
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