Published on Apr 11, 2023 Updated 0 Hours ago

AUKUS के तीनों सदस्य देशों के लिए पिछले दिनों सैन डिएगो में आयोजित बैठक ने सामूहिक और व्यक्तिगत- दोनों तरह के अवसर पेश किए. 

AUKUS: ‘अटलांटिक पैसिफिक’ को सामरिक क्षेत्र के तौर पर मज़बूत करने का प्रयास!

पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़, यूनाइटेड किंगडम (UK) के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन AUKUS- जो कि ऑस्ट्रेलिया, UK और अमेरिका के बीच एक त्रिपक्षीय रक्षा साझेदारी है- समझौते की गुत्थी सुलझाने के लिए कैलिफोर्निया के सैन डिएगो में जमा हुए. तीनों देशों ने सबसे पहले सितंबर 2021 में अपनी सुरक्षा साझेदारी का एलान किया था और तब से इस गठबंधन को लेकर विस्तृत चर्चा कर रहे थे. पिछले दिनों तीनों देशों के नेताओं ने AUKUS साझेदारी को लागू करने की योजना के बारे में बताया. सभी तीनों सदस्य देशों के लिए सैन डिएगो बैठक एक समीक्षा सम्मेलन से ज़्यादा थी और ये सामूहिक एवं व्यक्तिगत- दोनों तरह के अवसरों में बदल गई. 

ये पनडुब्बी "अत्याधुनिक होगी जो सभी तीनों देशों की सर्वश्रेष्ठ पनडुब्बी तक़नीक का फ़ायदा उठाने के हिसाब से तैयार" की जाएगी. इसके अलावा 2027 के बाद बारी-बारी से UK की एक एस्ट्यूट क्लास पनडुब्बी और अमेरिका की वर्जीनिया क्लास की 4 पनडुब्बियां पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पर्थ के नज़दीक HMAS स्टर्लिंग बेस पर तैनात होंगी.

ऑस्ट्रेलिया के लिए फ़ायदेमंद स्थिति 

13 मार्च 2023 को ऑस्ट्रेलिया, UK और अमेरिका ने प्रशांत महासागर में चीन की बढ़ती घुसपैठ से निपटने के लिए 2030 की शुरुआत में ऑस्ट्रलिया को "परंपरागत तौर पर हथियारबंद, परमाणु शक्ति से लैस अटैक पनडुब्बी (SSN)" मुहैया कराने की योजना के बारे में बताया. साझा बयान के मुताबिक़ अमेरिका जनरल डायनामिक्स के द्वारा निर्मित US वर्जीनिया क्लास परमाणु शक्ति से लैस तीन पनडुब्बी 2030 की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया को बेचना चाहता है. इसमें ऑस्ट्रेलिया के पास ये विकल्प भी होगा कि अगर भविष्य में आवश्यकता हो तो वो दो और पनडुब्बी ख़रीद सकता है. बयान में पनडुब्बी "SSN-AUKUS" को चरणबद्ध तरीक़े से विकसित करने का भी ज़िक्र है. ये पनडुब्बी "अत्याधुनिक होगी जो सभी तीनों देशों की सर्वश्रेष्ठ पनडुब्बी तक़नीक का फ़ायदा उठाने के हिसाब से तैयार" की जाएगी. इसके अलावा 2027 के बाद बारी-बारी से UK की एक एस्ट्यूट क्लास पनडुब्बी और अमेरिका की वर्जीनिया क्लास की 4 पनडुब्बियां पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पर्थ के नज़दीक HMAS स्टर्लिंग बेस पर तैनात होंगी.

हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में सामरिक समुदाय के भीतर इस समझौते को लेकर बंटी हुई राय हो सकती है. कुछ लोग इस समझौते की ऊंची लागत और ऑस्ट्रेलिया के द्वारा दिए जाने वाले फंड को लेकर चिंतित हैं. अनुमान के मुताबिक़ कार्यक्रम की लागत अभी से लेकर 50 के दशक के मध्य तक 268 अरब अमेरिकी डॉलर से लेकर 368 अरब अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है, साथ ही अमेरिका और UK से मदद पर भी निर्भर होना होगा. वैसे तो प्रधानमंत्री अल्बनीज़ इस समझौते को “ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में रक्षा क्षमता के मामले में सबसे बड़ा एकल निवेश” बताते हैं और ये भी जोड़ते हैं कि “ऑस्ट्रेलिया अपने पूरे क्षेत्र में संबंधों पर निवेश के ज़रिए सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए दृढ़ है” लेकिन कुछ लोग जैसे कि ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री पॉल कीटिंग AUKUS परमाणु पनडुब्बी समझौते को “एशिया में अमेरिका के प्रभाव को बरकरार रखने की आक्रामक कोशिश” के रूप में देखते हैं और ये भी कहते हैं कि “इसका चीन के आक्रामक रुख़ का विरोध करने से कोई लेना-देना नहीं है.” दूसरी तरफ़ ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के रॉरी मेडकाफ जैसे विशेषज्ञों ने बताया है कि समझौते में तय लक्ष्य तक पहुंचने में चुनौतियां होंगी और वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखना होगा. वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में “क्षेत्रीय एवं वैश्विक व्यवस्था में ख़राबी, चीन की सैन्य क्षमता में तेज़ विकास, वैश्विक वास्तविकता के रूप में युद्ध की वापसी, दुनिया के लिए हमारी जीवन रेखा की कमज़ोरी, कमज़ोर लोकतांत्रिक देशों के ख़िलाफ़ बड़े निरंकुश देशों के द्वारा आक्रमण एवं दबाव के उदाहरण और दूसरे देशों के ख़िलाफ़ चीन के द्वारा बल प्रयोग की खुली धमकी” शामिल हैं. ये कारण मौजूदा समय में इस तरह के समझौते को आवश्यक बनाते हैं. 

ऐसे सवाल भी रहे हैं कि क्या समझौते से ऑस्ट्रेलिया की संप्रभुता बाधित होगी. इसका कारण ये है कि क्या इन पनडुब्बियों का संचालन और उपयोग पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर होगा. क्या इससे ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो जाएगा कि अमेरिका-चीन की लड़ाई में ऑस्ट्रेलिया किस तरफ़ है? लेकिन बेक स्ट्रैटिंग जैसे ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञ कहते हैं कि “ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्रीय हितों को अमेरिका के हितों से अलग करना काफ़ी कठिन होता जा रहा है. अमेरिकी गठबंधन को ऑस्ट्रेलिया को सुरक्षित करने के एक साधन के तौर पर देखा जाना चाहिए न कि परिणाम के तौर पर.”

 ‘कंधे से कंधा’ मिलाकर खड़ा UK 

प्रधानमंत्री सुनक के सैन डिएगो दौरे में AUKUS की घोषणा महत्वपूर्ण रूप से यूनाइटेड किंगडम के इंटिग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश (IR2023) के जारी होने से मेल खाती है. ये 2021 में शुरू की गई मूल इंटिग्रेटेड रिव्यू (IR2021) रणनीति का नया संस्करण है जिसमें ब्रिटेन की विदेश नीति के दृष्टिकोण में पिछले दो वर्षों के दौरान व्यापक भू-राजनीतिक बदलाव वाली घटनाओं को शामिल किया गया है. 

ब्रिटेन के रक्षा औद्योगिक संचालन केंद्रों का पुनरुद्धार करते हुए AUKUS इंडो-पैसिफिक के लिए उसकी परिकल्पना के केंद्र में है, जिसका उद्देश्य एक स्थिर और खुले क्षेत्र को बढ़ावा देना और रणनीति के अनुसार चीन की “युग निर्धारक चुनौती” का मुक़ाबला करना है.

IR2021 के केंद्र में इंडो-पैसिफिक की तरफ़ झुकाव था और ये महत्वाकांक्षा थी कि ब्रिटेन “क्षेत्र में सबसे व्यापक और सबसे एकीकृत मौजूदगी के साथ यूरोपीय साझेदार” होगा. IR2023 न केवल इस झुकाव की पुष्टि करता है बल्कि फिर से दोहराता है कि इंडो-पैसिफिक ब्रिटेन की विदेश नीति का “स्थायी आधार” है. UK ने क्षेत्र में अपने असर, इरादों और सक्रिय मौजूदगी के भाग के रूप में कई क़दमों को लेकर प्रतिबद्धता जताई है जिनमें जापान के साथ एक रक्षा सौदा, आसियान के साथ संवाद का दर्जा, इंडो-पैसिफिक के लिए एक नया मंत्री और नौसैनिक परिसंपत्तियों की तैनाती शामिल हैं. 

इन विस्तार वाली भागीदारियों और प्रतिबद्धताओं में से सबसे महत्वपूर्ण है AUKUS जिसके तहत ब्रिटेन और अमेरिका के समर्थन और तक़नीक का उपयोग करके ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी प्रदान किया जाएगा. ब्रिटेन के रक्षा औद्योगिक संचालन केंद्रों का पुनरुद्धार करते हुए AUKUS इंडो-पैसिफिक के लिए उसकी परिकल्पना के केंद्र में है, जिसका उद्देश्य एक स्थिर और खुले क्षेत्र को बढ़ावा देना और रणनीति के अनुसार चीन की “युग निर्धारक चुनौती” का मुक़ाबला करना है. सुनक के द्वारा AUKUS के बारे में कहना कि ये “कई पीढ़ियों में सबसे महत्वपूर्ण बहुपक्षीय रक्षा साझेदारी” है, दिखाता है कि ब्रिटेन की इंडो-पैसिफिक परिकल्पना में ये समझौता कितना अहम है. ब्रिटेन की नई रणनीति चेतावनी देती है कि अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का माहौल और बिगड़ेगा और इसमें ये भी स्वीकार किया गया है कि “इंडो-पैसिफिक में तनाव का यूक्रेन के संघर्ष की तुलना में ज़्यादा वैश्विक परिणाम होगा”.

दस्तावेज़ में यूरो-अटलांटिक को ब्रिटेन के लिए सबसे महत्वपूर्ण भौगोलिक क्षेत्र के रूप में प्राथमिकता दी गई है और इस क्षेत्र में समृद्धि एवं सुरक्षा को इंडो-पैसिफिक के घटनाक्रम से जोड़ा गया है. इस संदर्भ में “अटलांटिक पैसिफिक” साझेदारी के एक नेटवर्क पर ज़ोर दिया गया है. इस तरह दो रणनीतिक युद्ध क्षेत्रों को मिला दिया गया है. IR2023 की पूरी रणनीति में “समान विचार वाले लोकतांत्रिक देशों” जैसे कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ साझेदारी के महत्व पर ज़ोर दिया गया है. ये दोनों देश ब्रिटेन के सबसे बड़े साझेदारों में से हैं. ब्रिटेन के लिए AUKUS इस साझा दृष्टिकोण की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है. ब्रेग्ज़िट के बाद के ब्रिटेन के लिए इंडो-पैसिफिक में स्थिरता और ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि यूरोपीय संघ के साथ उसके आर्थिक संबंध कमज़ोर हो गए हैं जिसकी वजह से उसे मजबूर होकर बाक़ी दुनिया के साथ व्यापार बढ़ाना पड़ रहा है. 

ब्रिटेन ने अपना रक्षा बजट बढ़ाने का संकल्प भी लिया है और इसे GDP के 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 2.25 प्रतिशत करेगा. इस तरह दो वर्षों के दौरान 5 अरब पाउंड का अनुदान और मिलेगा जिसमें से 3 अरब पाउंड का आवंटन परमाणु क्षमता, विशेष रूप से AUKUS को मज़बूत करने के लिए होगा. तब भी सुनक ने इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा बरकरार रखने के लिए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ “कंधे से कंधा” मिलाकर खड़े रहने का दावा किया है. ये एक प्रमुख सवाल है जो दो समकालिक क्षेत्रों में सुरक्षा प्रदान करने में ब्रिटेन की क्षमता पर मंडरा रहा है, विशेष रूप से ब्रिटेन के आर्थिक संकट और यूक्रेन को मज़बूत समर्थन के परिणामस्वरूप घटते सैन्य भंडार की वजह से. 

अमेरिका को असर कायम रखना है 

अमेरिका के लिए सैन डिएगो बैठक ने न केवल प्रगति की समीक्षा का अवसर प्रदान किया बल्कि उससे भी बढ़कर AUKUS के रूप में एक अत्यंत जटिल समझौते की योजना और उसकी रफ़्तार को बढ़ाने का भी मौक़ा दिया. बैठक के दौरान बाइडेन ने बयान दिया कि साझेदारी उन्हें एक साथ वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से पार पाने में मदद करेगी जिस पर दूसरे साझेदारों ने भी तुरंत सहमति दी. AUKUS समझौते को गति प्रदान करना इन तीनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वो इस समझौते की सबसे बड़ी आलोचना से उबरना चाहते हैं कि इसका पूरी तरह से फ़ायदा सामने आने में काफ़ी लंबा समय लग सकता है. तीनों पक्षों के बीच परमाणु तकनीकों के हस्तांतरण की वजह से संभावित देरी के अलावा AUKUS समझौते को तेज़ करने की आवश्यकता बाहरी कारणों से भी प्रेरित है क्योंकि चीन अपनी नौसेना की क्षमता में घरेलू स्तर पर तेज़ी ला रहा है जिसे पिछले दशक के दौरान देखा जा चुका है. इसके कारण चीन की नौसेना दुनिया में वास्तविक तौर पर सबसे बड़ी नौसेना बन गई है

रणनीतिक दृष्टिकोण से AUKUS कई कारणों से अमेरिका के लिए फ़ायदेमंद है. सबसे पहले तो ये इंडो-पैसिफिक में अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन प्रणाली को मज़बूत करता है जो कि इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिए महत्वपूर्ण है. दूसरा कारण ये है कि AUKUS इस क्षेत्र में अमेरिका की पहुंच और मौजूदगी को बढ़ाता है, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में जहां अमेरिका ने अपनी सैन्य पहुंच का विस्तार करने की कोशिश की है. तीसरा, ये ऑस्ट्रेलिया और UK को हथियारों की बिक्री और तक़नीक के हस्तांतरण के नये अवसर का निर्माण कर अमेरिका के रक्षा उद्योग को बढ़ावा देता है. आख़िरी कारण, ये चीन को स्पष्ट संकेत देता है कि अमेरिका इस क्षेत्र में अपने सहयोगियों और हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है और इसके लिए वो आधुनिक सैन्य क्षमता में निवेश करने को तैयार है.  

बाइडेन प्रशासन ने इस क्षेत्र में साझेदारी को फिर से ठीक करने और गठबंधन को मज़बूत करने की दिशा में काम किया है. इसके साथ-साथ AUKUS जैसा सामरिक गठबंधन सुरक्षा के दृष्टिकोण से पैसिफिक के युद्ध क्षेत्र में अमेरिका को एक बार फिर से मज़बूत स्थिति में ला सकता है.

नेतृत्व के स्तर पर तीनों नेताओं के बीच बैठक से एक सहमतिपूर्ण रास्ते का पता चलता है. AUKUS समझौते की घोषणा से लेकर अब तक तीन में से दो देशों में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका है. UK में जहां कई बदलाव हुए हैं वहीं ऑस्ट्रेलिया में एंथनी अल्बनीज़ सरकार ने स्कॉट मॉरिसन प्रशासन की जगह ली है. सांकेतिक तौर पर सैन डिएगो की बैठक ये भी दर्शाती है कि अमेरिकी नेतृत्व दोनों साझेदारों के साथ AUKUS समझौते को आगे ले जाना चाहता है. 

अंत में, AUKUS के साथ बाइडेन प्रशासन पैसिफिक के युद्ध क्षेत्र में अपने घटते असर को मज़बूत करना चाहता है. तेज़ी से आगे बढ़ रहा चीन पहले ही पैसिफिक के छोटे द्वीपों को अपनी तरफ़ खींचने की कोशिश कर चुका है और उसने इस क्षेत्र में एक अभूतपूर्व आर्थिक एवं सामरिक निर्भरता की स्थिति का निर्माण कर दिया है. एक तरफ़ चीन की आक्रामक रणनीति है तो दूसरी तरफ़ अमेरिकी नेतृत्व की चूक, जिसकी वजह ट्रंप प्रशासन के द्वारा लिए गए कुछ निर्णय हैं,  जिसके कारण इस क्षेत्र में उसके ग़ैर-नेटो गठबंधन का नेटवर्क कमज़ोर हुआ है और अमेरिका का असर कम हुआ है. बाइडेन प्रशासन ने इस क्षेत्र में साझेदारी को फिर से ठीक करने और गठबंधन को मज़बूत करने की दिशा में काम किया है. इसके साथ-साथ AUKUS जैसा सामरिक गठबंधन सुरक्षा के दृष्टिकोण से पैसिफिक के युद्ध क्षेत्र में अमेरिका को एक बार फिर से मज़बूत स्थिति में ला सकता है.

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Authors

Premesha Saha

Premesha Saha

Premesha Saha is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses on Southeast Asia, East Asia, Oceania and the emerging dynamics of the ...

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Vivek Mishra

Vivek Mishra

Vivek Mishra is Deputy Director – Strategic Studies Programme at the Observer Research Foundation. His work focuses on US foreign policy, domestic politics in the US, ...

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