Published on Nov 13, 2021 Updated 0 Hours ago

यह बताना कि ऑकस एक बेहतर जोड़ी है क्योंकि यह क्वॉड  समूह की नीतियों को एक साथ स्पष्टता प्रदान करता है.

ऑकस से क्वॉड की मदद की व्याख्या…!

पिछले कई दशकों में वाशिंगटन ने कई तरह के सम्मेलनों का आयोजन किया है लेकिन 24 सितंबर को आय़ोजित किए सम्मेलन की तरह एक भी नहीं, यह पहली बार था कि व्यक्तिगत तौर पर क्वाड सदस्य देशों के चारों प्रतिनिधि, क्वाड की बैठक के लिए आपस में एक दूसरे से मुलाकात कर रहे थे, जिसमें सदस्य देशों के विदेश मंत्री और नीति निर्माता एक छत के नीचे शामिल थे, वो भी ऐसे समय में जबकि दुनिया शायद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अभी भी आंशिक रूप से निर्भर है.

अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान ने अब क्वॉड ड्रिलैट्रल डायलॉग (क्वॉड) को गति दे दी है. जब इसकी बुनियादी सालों के मुकाबले 2004 में भारतीय महासागर में सुनामी के बाद साल 2007 में इस समूह ने भारतीय महासागर क्षेत्र में मैरिटाइम राहत के तहत इसे शुरू किया था. लंबे समय तक क्वॉड ड ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह एक सैन्य गठबंधन नहीं है या यह नाटो का एशियाई संस्करण नहीं है. हालांकि. ऑकस इंडो-पैसिफ़िक समझौते को अलग करने में मदद करता है. क्वॉड ड के जरिए, भारत “मुक्त और स्वतंत्र इंडो-पैसिफ़िक” क्षेत्र के अपने दृष्टिकोण को दुनिया तक पहुंचाने में सक्षम होगा. साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस बात को सागर शब्दावली के साथ स्पष्ट किया था, जिसका मतलब इस क्षेत्र के सभी मुल्कों की सुरक्षा और विकास से जुड़ा था.

लंबे समय तक क्वॉड ड ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह एक सैन्य गठबंधन नहीं है या यह नाटो का एशियाई संस्करण नहीं है. हालांकि. ऑकस इंडो-पैसिफ़िक समझौते को अलग करने में मदद करता है. क्वॉड ड के जरिए, भारत “मुक्त और स्वतंत्र इंडो-पैसिफ़िक” क्षेत्र के अपने दृष्टिकोण को दुनिया तक पहुंचाने में सक्षम होगा.

24 सितंबर को क्वॉड ड सम्मेलन के फौरन बाद ऑस्ट्रेलिया-इंग्लैंड-अमेरिका (ऑकस) के नए समूह की ख़बर आई जो एक तरह से चीन पर लटकती हुई तलवार जैसी थी, ख़ास कर तब जबकि क्वॉड ड के सहयोगी देश पहले से ही इंडो- पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन की चुनौती का सामना करने का लक्ष्य रखे हुए हैं.

इस एंग्लोफोन सदस्यों के त्रि-संधि में फाइव आइज इंटेलिजेंस ओवरसाइट एंड रिव्यू काउंसिल (पांच आंखों की ख़ुफ़िया निगरानी और समीक्षा परिषद्) (एफआईओआरसी) में से तीन और क्वॉड ड सदस्यों में से दो शामिल हैं. कुछ लोगों ने सवाल किए कि क्या ऑकस के चलते क्वॉड ड का महत्व कम हो जाएगा क्योंकि ऑकस अपने मिशन को लेकर ज़्यादा प्रत्यक्ष है.

इसके इतर ऑकस ने दो चीजें की : पहला, इसने इंडो पैसिफ़िक क्षेत्र में ब्रिटेन को और करीब ला दिया और दूसरा, अपने स्वरूप में ज़्यादा सैन्यवादी दिखते हुए, इस त्रिसंधि में एक ख़ास बात यह है कि इसके तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे, जिससे ऑस्ट्रेलिया के पास भी परमाणु शक्तियों से लैस पनडुब्बियों का बेड़ा होगा.

ऑकस, ऑस्ट्रेलिया को दुनिया की छह ताकतवर मुल्कों के क्लब में विशेष रूप से सदस्य बनने का मौका देता है – जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, भारत और रूस शामिल हैं – जो इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन की आक्रामकता पर नकेल कसने में कामयाब हो पाएंगे.  इसके फलस्वरूप, ऑकस को अब “तीन देशों के बीच द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा व्यवस्था” के तौर पर बताया जा रहा है.

दूसरी ओर क्वॉड ड सैन्य समझौते से कहीं अलग है, यह दरअसल प्रजातांत्रिक मुल्कों के बीच मजबूत सहयोग का परिणाम है जो एक स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र की वकालत करता है.

जबकि चारों सदस्य देश प्रजातांत्रिक हैं और टोक्यो, कैनेबेरा, नई दिल्ली और वाशिंगटन बीजिंग के साथ कूटनीतिक विवादों में किसी ना किसी रूप में शामिल हैं, लिहाजा इसका मकसद ज़्यादा से ज़्यादा समतावादी है और ऐसे ही इसके प्रोजेक्ट को लेकर भी है .

वैक्सीन, जलवायु परिवर्तन, उभरती हुई तकनीक और स्कॉलरशिप

कोरोना महामारी के दौरान सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा वैक्सीन की उपलब्धता रही थी. इसमें दो राय नहीं कि भारत और अमेरिका दोनों ही कोरोना महामारी के चलते बुरी तरह तबाह हुए थे.

सबसे अग्रणी दवा निर्माता होने के नाते भारत क्वाड वैक्सीन एक्सपर्ट समूह के जरिए अच्छी गुणवत्ता वाली और किफ़ायती वैक्सीन और दवाईयां प्रदान कर सकता है.

कोरोना की दूसरी लहर से तबाह होने के बाद अब भारत ने फिर से वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम या फिर वैश्विक दक्षिण के मुल्कों के साथ वैक्सीन डिप्लोमेसी शुरू करने की बात कही है. सबसे अग्रणी दवा निर्माता होने के नाते भारत क्वाड वैक्सीन एक्सपर्ट समूह के जरिए अच्छी गुणवत्ता वाली और किफ़ायती वैक्सीन और दवाईयां प्रदान कर सकता है. अमेरिका दुनिया में एमआरएनए वैक्सीन का सबसे बड़ा निर्माता है और जापान की लॉजिस्टिक मदद के जरिए इस क्षेत्र में उभरते बाज़ार के लिए उच्च गुणवत्ता वाली वैक्सीन प्रदान कर सकता है.

अब एक क्वाड वर्किंग ग्रुप है जो मौजूदा सप्लाई चेन को और ज़्यादा मज़बूती और किलेबंदी प्रदान करता है. क्वॉड सम्मेलन के दौरान अहम डिज़िटल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे कि 5 जी, साइबर सिक्युरिटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उभरते बाज़ार में निवेश करने को प्राथमिकता बनाया है. आखिर में, पेरिस जलवायु परिवर्तन संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देश के रूप में भारत क्वॉड क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप का अहम हिस्सेदार है और वाशिंगटन और नई दिल्ली ने ग्रीन एनर्जी और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के संबंध में एक साथ काम करने को लेकर स्वीकृति जताई है. हाल ही में, अमेरिकी क्लाइमेट राजदूत जॉन केरी ने फ़ॉसिल फ़्यूल(जीवाश्म इंधन) को कम करने और टिकाऊ विकास के लिए भारत और अमेरिका की साझा प्राथमिकताओं का ज़िक्र किया था.

क्वॉड सम्मेलन के दौरान भावी पीढ़ी की प्राथमकिताओं पर जोर देने के अलावा 100 छात्रों के लिए स्टेम फेलोशिप की घोषणा की, 25 छात्र हर सदस्य देशों से, जो अमेरिकी यूनिवर्सिटी में विज्ञान की पढ़ाई कर सकेंगे.

भारत का महत्वकांक्षी लक्ष्य

इसके अतिरिक्त जैसा कि भारत का लक्ष्य अपनी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर का बनाने का है, ऐसे में इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत को प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी. वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, पीयूष गोयल, अपने अमेरिकी दौरे पर यूएस इंडिया स्ट्रैटजिक फोरम (यूएसआईएसपीएफ) के चौथे वार्षिक सम्मेलन के दौरान घोषणा की कि अमेरिका के साथ 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार को अगले दशक तक एक ट्रिलियन के स्तर तक ले जाना है.  और इसके लिए कारोबारी समझौतों को साकार करना होगा या फिर छोटे-छोटे व्यापारिक समझौतों को अंजाम देना होगा जैसा कि क्वॉड ड सदस्य देश ऑस्ट्रेलिया के साथ देखा गया है. क्वॉड अपने बहुआयामी स्वरूप की वजह से द्विपक्षीय समझौतों को बढ़ावा दे सकता है.

भारत और जापान कभी भी ऑकस के सदस्य नहीं बन सकते हैं. पहला, भारत हमेशा से सैन्य सुरक्षा संधियों के ख़िलाफ़ रहा है और रणनीतिक स्वायत्तता की मज़बूती से वकालत करता रहा है. दूसरा, जापान खुद ही परमाणु तकनीक के ख़िलाफ़ रहा है.

ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका के लिए ऑकस का अर्थ कई मायनों में बहुत ज़्यादा है ना कि फ्रांस के लिए, लेकिन यह कहानी किसी और दिन के लिए है. भारत और जापान कभी भी ऑकस के सदस्य नहीं बन सकते हैं. पहला, भारत हमेशा से सैन्य सुरक्षा संधियों के ख़िलाफ़ रहा है और रणनीतिक स्वायत्तता की मज़बूती से वकालत करता रहा है. दूसरा, जापान खुद ही परमाणु तकनीक के ख़िलाफ़ रहा है. इसके अलावा कनाडा और न्यूजीलैंड, बतौर फाइव आइज इंटेलिजेंस कमेटी के सदस्य के तौर पर विदेश नीति के मोर्चे पर उसके आक्रामक पड़ोसी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मुकाबले काफी विनम्रता का रूख़ अपनाता रहा है. इसलिए यह बातें बताती हैं कि आख़िर कैसे यह नया समूह बनाया गया है.

भारत को बगैर परोक्ष रूप से शामिल किए ऑकस भारत की मदद कर रहा है. इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए भारत  त्रिसंधि का हिस्सा बना हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप यह इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में पावर के संतुलन को स्थिर करने की नई दिल्ली के हितों को साधता है. इससे एक तरफ चीन की जंगी सनक पर अंकुश लग सकेगा और भारत रणनीतिक स्वातयत्ता को भी सुनिश्चित कर सकेगा.

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